स्त्री चाला : हिमाचल प्रदेश की लोक-कथा
Stri Chala : Lok-Katha (Himachal Pradesh)
एक था राजा । राजा की हजामत बनाने जो नाई आता था, उसकी | पत्नी नैण अपूर्व सुंदरी थी। एक बार वजीर ने नाइन को देखा तो वह देखता ही रह गया। नाई की अनुपस्थिति में उसने राजा से कहा, "हे प्रभु! स्त्रियाँ तो बहुत देखी हैं, लेकिन 'नैण' पर तो आँख टिकाए नहीं टिकती। उसे तो आपकी सेज पर होना चाहिए।" राजा तो स्वभाव से ही सामंत - वृत्ति का था । श्रवण मात्र से ही वह नारी के रूप- वैभव पर मुग्ध हो गया तथा नैण को प्राप्त करने के लिए उसकी लार टपकने लगी। वजीर ने उसे परामर्श दिया, "महाराज! नाई को कहीं बाहर भिजवा सकें तो उसकी अनुपस्थिति में नैण को फुसलाया जा सकता है।"
राजा ने नाई को बुलाकर कहा, "मुझे 'स्त्री-चाला' की जरूरत है। जहाँ कहीं से ही संभव हो, जाकर तुरंत ले आओ। तुम्हारी क्षमता तथा वफादारी पर मुझे पूरा भरोसा है।"
नाई बेचारा सीधा-सादा। वह सोच में पड़ गया। उसे तो 'स्त्री चाला' नाम की बला का भी नहीं पता था। वह उदास सा घर पहुँचा। बिना खाए-पिए खाट पर लेट गया। उसकी पत्नी ने पूछा, “इतने घबराए हुए क्यों हो?"
नाई ने रोनी सी सूरत बनाकर कहा, "राजा ने मुझे स्त्री चाला लाने का आदेश दिया है। पर मैं उसके बारे में कुछ भी नहीं जानता, व्यर्थ की मुसीबत गले पड़ गई।"
नैण ने विश्वस्त स्वर में कहा, “तुम तो व्यर्थ में स्त्री-चाला की चिंता कर रहे हो । जाओ, राजा से कहो- मैं स्त्री चाला तो ले आऊँगा, लेकिन पहले मुझे चार करोड़ रुपए दे दो।"
नाई राजा के पास गया और चार करोड़ रुपए ले आया ।
नाइन ने रुपए लिये तथा सँभालकर रख दिए। उसने अपने पति को छिपा दिया। दिन छिपने के बाद नैण सज-सँवरकर गाँव में घूमने लगी। रास्ते में उसे चौकीदार मिला। वह बड़ी आत्मीयता से बोला, "प्रिये, तुम कहाँ जा रही हो?"
नैण बोली, "मेरा पति राजा के लिए 'स्त्री चाला' लेने बाहर गया है। घर में मैं अकेली हूँ और ऊपर से अँधियारी रात, सो मैं परिचितों के घर जा रही हूँ ।"
चौकीदार ने कहा, " घर अपना ही अच्छा होता है। रात को मैं ही तुम्हारे घर आ जाऊँगा । पहरेदार को छोड़, क्यों तुम अन्यत्र जाती हो। " नैण ने 'अच्छा' कहा और आगे चल दी।
फिर उसे गाँव का नंबरदार मिला। नैण की महक से उसका भी शरीर पिघलने लगा। उसने कहा, "तुम्हें चिंता करने की जरूरत नहीं । अँधेरा घना होते ही मैं तुम्हारे घर आ जाऊँगा।"
चौकीदार, नंबरदार के बाद नैण को वजीर, राजा तथा पुजारी मिले, उन्होंने भी रात होते ही उसके घर पहुँचने की बात कही। नैण 'हाँ-हाँ' करती मन-ही-मन मुसकराती अपने घर लौट आई।
घर पहुँचते ही उसने चूल्हा जलाया तथा उसमें दो लकड़ियाँ लगा दीं और पतीला चढ़ा दिया।
सबसे पहले गुनगुनाता हुआ चौकीदार आया। वह अभी नैण को छूने की कल्पना ही कर रहा था कि नंबरदार ने आवाज लगा दी। चौकीदार ने डरकर कहा, "ओ नैणी, मुझे बचाओ।" नैण ने उसे उल्टी घघरी पहनाकर दाल पीसने बिठा दिया।
नंबरदार के बाद वजीर आया तो नंबरदार ने कहा, "ओ नैणी, मुझे बचा! मेरी तो इज्जत खतरे में है ।" नैण ने उसका दिउट बनाया तथा उसके ऊपर लैंप रख दिया। इसी प्रकार अभी वजीर अंदर आया ही था कि राजा आ गया। वजीर के अनुनय-विनय करने पर नैण ने उसका मुँह मिट्टी से लीप दिया तथा उसे अलमारी में बिठा दिया। अभी राजा नैण से प्रेम भरी बातें करने ही लगा था कि बाहर से पुजारी की आवाज आ गई। राजा गिड़गिड़ाया, "नैणी, मेरी साख खतरे में है, नारी की माया अपरंपार है। तू ही मुझे बचा सकती है।"
नैण बोली, "महाराज, चिंता मत करो, मैं तो आपकी बाँदी हूँ। आपको अपना देवता बनाकर अलमारी में बिठाती हूँ। फिर कोई नहीं पहचान पाएगा।" उसने राजा के मुँह पर भी मिट्टी पोत दी तथा उसे अलमारी में बिठा दिया।
अंत में पुजारी का आगमन हुआ। उसने अलमारी में बैठे लोगों को देख लिया और पूछा, "ये कौन लोग हैं, कन्या ?"
"महाराज! ये सभी मेरे देवता लोग हैं।" नैण बोली ।
उसके इतना कहते ही सबको एक-दूसरे की उपस्थिति का एहसास हो गया तथा लज्जित होकर वे आगे-पीछे भाग निकले। पुजारी भी खिसियानी बिल्ली सा उनके पीछे भाग लिया।
सबके भाग जाने पर नैणी अपने पति के पास आई। बड़े प्यार से उसे दुलारते हुए नैणी ने भोजन परोसा और कहा, "देखा, तुम्हारे ये हितैषी किस प्रकार मेरी देह नोचने के लिए लार टपका रहे थे। लेकिन 'स्त्री चाले' के सामने इनकी क्या बिसात? यदि अब राजा तुमसे पूछे कि 'स्त्री चाला' कहाँ है, तो कहना मेरी पत्नी ने तुम्हारे मुँह पर मिट्टी तो लीप दी, 'स्त्री चाला' और क्या होता है ?"
नैण की चतुराई पर नाई गद्गद हो उठा।
(साभार : सुशील कुमार फुल्ल)