सृष्टि की उत्पत्ति की कथा : मिजोरम की लोक-कथा

Srishti Ki Utpatti Ki Katha : Lok-Katha (Mizoram)

प्रारंभ में इस जगत् में कोई जीव-जंतु नहीं था। चारों तरफ वीरानी थी। सृष्टिकर्ता ‘खुआङजीङनू’ ने इस जगत् की सृष्टि की शुरुआत मिट्टी से की। मिट्टी की सतह को नम और वातावरण को ठंडा रखने के लिए उन्होंने फिर कई प्रकार की घास, हरे-भरे पेड़-पौधे और वनस्पतियों की भी सृष्टि की। कुछ समय के बाद पानी के अभाव में धरती सूखने लगी और सभी पेड़-पौधे सूख गए। यह देखकर सृष्टिकर्ता ने एक दिन आकाश में एक खिड़की खोल दी, जहाँ से सूखी हुई धरती तथा पेड़-पौधों को गीला और हरा-भरा करने के लिए उसने पानी की धार गिराई। इसीलिए जब पानी बरसता है तो मिजो जनजातियों के बुजुर्ग कहते हैं कि “नभ के ऊपर स्वर्ग में रहनेवाली युवती ‘वानचुङनुला’ झरने से पानी ला रही है। पानी लाते समय जब उसके बरतन से पानी छलक जाता है तो वह वर्षा की बूँदों के रूप में नीचे पृथ्वी पर गिरता है और यही बारिश होती है।”

पानी के बाद सृष्टिकर्ता ने घास, पेड़ और पौधों का सृजन किया। पानी की उपलब्धता से पेड़ और पौधे अंकुरित होकर बढ़ने लगे तथा पौधों में फूल, फल और बीज लगने लगे। तत्पश्चात् उन फल, फूल तथा पौधों को खाने के लिए उसने मनुष्य तथा अन्य जीव-जंतुओं की सृष्टि की। प्रारंभ में सभी जानवर आपस में बोल सकते थे और सभी एक-दूसरे की भाषा समझ सकते थे। उस समय उनमें आपस में कोई दुश्मनी नहीं थी। सभी प्रकार के जीव-जंतु एक साथ मिल-जुलकर अच्छे से रहते थे। उनमें कोई दुष्ट प्रकृति का नहीं था, न ही कोई किसी को हानि पहुँचाता था और न ही कोई किसी को किसी भी प्रकार की तकलीफ देता था। सभी आपस में मिल-जुलकर शांति के साथ रहते थे। सभी एक साथ ही खेलते, खाते, पीते और रहते थे। वे हर तरह से सुखी और संपन्न थे। उस समय धरती पर खाने-पीने के सामान की किसी भी प्रकार की कोई कमी नहीं थी। वे सभी खुशी से मिल-जुलकर रहते थे।

परंतु समय बीतने के साथ स्थितियाँ बदलने लगीं। बीतते समय के साथ मनुष्य तथा जानवरों दोनों की जनसंख्या बड़ी तेजी के साथ बढ़ती जा रही थी। उनकी बढ़ती संख्या के कारण उनके बीच का आपसी सामंजस्य बिगड़ने लगा था और खट-पट प्रारंभ हो गई थी। परिणामस्वरूप उनके बीच की आपसी आत्मीयता का पतन होने लगा। स्थिति पुनः पहले जैसी नहीं हो सकी। इस द्रुत गति के परिवर्तन ने उनके बीच में अविश्वास और संघर्ष को जन्म दिया। अंत में वे सभी रिश्तों को भुलाकर दुश्मन जैसा व्यवहार करने लगे। केवल जानवरों में ही नहीं बल्कि मनुष्य के बीच भी अलग-अलग प्रकार के स्वभाव, प्रकृति एवं मनोविज्ञान के लोग उत्पन्न होने लगे। इसके परिणामस्वरूप अपनी क्षुद्र स्वार्थ सिद्धि के लिए वे आपस में ही लड़ने-झगड़ने लगे। आगे चलकर मनुष्यों को लगा कि सभी प्रकार के जीव-जंतुओं को नियंत्रण में रखने के लिए एक नेता या राजा होना जरूरी है, तब से संपूर्ण मिजो जनजातीय समाज में लोगों को नियंत्रण में रखने के लिए किसी एक व्यक्ति को राजा या मुखिया नियुक्त करने की परंपरा की शुरुआत हुई।

(साभार : प्रो. संजय कुमार)

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