आत्मा का घर : अमरीकी लोक-कथा
Spirit Lodge : American Lok-Katha
(Folktale from Native Americans, Iroquois Tribe/मूल अमेरिकी, इरक्वॉइ जनजाति की लोककथा)
सरदार काकाहेला स्टिक्स नदी के किनारे जहाँ वह झील में गिरती थी अपने लोगों में शान्ति से रहता था।
उस गाँव के लोग सारे दिन काम में लगे रहते थे। लड़ाई लड़ने वाले शिकार करते थे और मछलियाँ पकड़ते थे। स्त्रियाँ घर में खाना बनाती थीं और बड़े लोगों और बच्चों की देखभाल करती थीं।
इस तरह से सब अपना अपना काम करते हुए अपने प्राकृतिक वातावरण में शान्ति से रहते थे।
एक दिन काकाहेला ने अपने गाँव के दक्षिण के एक गाँव में जाने का विचार किया। वह सुबह सुबह ही निकल पड़ा। उसको नाव से झील पार करनी थी और फिर कुछ दूर पैदल अपने दोस्त के घर तक जाना था।
उस दोस्त के घर उसको रात को रुकना था और अगले दिन फिर अपने घर वापस आने के लिये अपना सफर शुरू करना था।
वह अभी झील के किनारे से कुछ गज दूर ही गया होगा कि उसको किसी जानवर के बहुत ज़ोर से चिल्लाने की आवाज आयी और उस चिल्लाहट के साथ ही एक बहुत बड़ा भालू पास की झाड़ियों में से निकल कर उसके सामने आ खड़ा हुआ।
काकाहेला हथियारबन्द था। उसके पास अपना लड़ने वाला डंडा था और वह शिकारियों वाली पोशाक भी पहने था पर क्योंकि भालू उसका टोटम (object, or symbol representing an animal or plant) था इसलिये वह भालू को मार नहीं सकता था सो वह उलटे पैरों अपनी नाव की तरफ जो झील के किनारे बँधी थी भाग लिया ताकि वह वहाँ से भाग सके।
पर उसी समय वह भालू गुस्से में भर कर उस सरदार के ऊपर कूद पड़ा और उसको जमीन पर गिरा दिया।
काकाहेला के पास अब उस भालू से लड़ने अलावा और कोई चारा नहीं था सो उसने अपना लड़ने वाला डंडा उठाया और उससे भालू को बार बार पीट कर उसको अपने से दूर करने की कोशिश करने लगा।
जैसे जैसे ताकतवर भालू और उस सरदार में लड़ाई होती जाती थी घावों से निकला बहुत सारा खून जमीन पर बिखरता जाता था। आखिर सरदार ने अपना चाकू निकाल लिया और उससे भालू के सिर और गले पर बार बार मारना शुरू किया ताकि वह उसकी पकड़ से छुटकारा पा सके। भालू ने भी एक ज़ोर की चीख के साथ सरदार को छोड़ दिया।
काकाहेला वहाँ से हट गया और जमीन पर गिर पड़ा। उसका शरीर काफी घायल हो गया था। उसके घाव बहुत गहरे थे। उसने बड़ी मुश्किल से करवट बदली और अपने दुश्मन की तरफ देखा – अपने टोटम की तरफ।
भालू मर चुका था। दुख और बहुत सारे घावों की वजह से काकाहेला का सिर जमीन पर गिर पड़ा और कुछ ही पलों में वह भी मर गया।
उस सरदार के दोस्त को सरदार के इस इरादे के बारे में कुछ पता नहीं था कि वह उसके घर ठहरने वाला था सो वह इस घटना के बारे में कुछ नहीं जानता था।
दो दिन बाद उसको झील के पास एक भालू का मरा हुआ शरीर मिला और सरदार की नाव झील के किनारे बँधी हुई मिली। काकाहेला का खून से सना वह लड़ाई वाला डंडा और टोटम और चाकू उसकी दुख भरी कहानी कह रहे थे।
सरदार के शरीर का कहीं कोई नामो निशान नहीं था पर वहाँ भेड़ियों के पैरों के निशान बता रहे थे कि उसके दोस्त को भेड़ियों ने घसीटा था।
सो काकाहेला के दोस्त ने कई लड़ने वाले बुलाये और उनको अपने दोस्त का शरीर खोजने के लिये चारों तरफ भेजा।
वे सब बहुत दिनों तक सरदार को ढूँढते रहे पर सरदार का शरीर कहीं नहीं मिला।
करीब एक महीने बाद पूरे चाँद की रात को काकाहेला के लोगों ने पास की पहाड़ी के पास से एक अजीब सा कोहरा ऊपर उठता देखा जैसे आग से धुँआ उठता है।
सारा वातावरण साफ था रात भी दिन की तरह चमक रही थी पर फिर भी वह कोहरा घना हो कर उनकी आँखों के सामने खड़ा हो गया था और वहीं ठहर गया।
वहाँ उस जगह तेज़ हवा के होते हुए भी वह कोहरा ऊपर उठ रहा था और पेड़ों को हिला रहा था। पूरा गाँव इसको देख कर आश्चर्यचकित खड़ा था और सोच रहा था कि वह उनके सामने क्यों प्रगट हुआ।
उस रात सरदार अपने दवा वाले डाक्टर के सपने में आया और उससे बोला — “यह मैं हूँ जो कोहरे के रूप में प्रगट हुआ था। मैंने एक बड़े भालू को मार डाला है जिसने मुझे मारा इसलिये मुझे अब कभी भी आत्माओं की दुनियाँ में घुसने नहीं दिया जायेगा।
बजाय धरती पर घूमने के मैं अपने लोगों के पास रहना ज़्यादा पसन्द करूँगा इसलिये मैंने उस पहाड़ी पर उस जगह पर एक आत्मा का घर बना लिया है जो तुमने आज देखा।”
फिर सरदार ने उस दवा वाले डाक्टर से वायदा किया कि वह हमेशा अपने गाँव वालों के साथ रहेगा ताकि वे घर से जाते समय और घर लौटते समय दोनों समय सुरक्षित रहें।
अगर उनको उसके होने में कोई शक हो तो वे उस पहाड़ी की तरफ देख लें। वह जो कोहरा उस पहाड़ी पर से ऊपर की तरफ उठ रहा था वह उसकी उस आत्मा के घर से ही उठ रहा था। इस से उनको यकीन हो जायेगा कि उसकी आत्मा हमेशा उनके साथ रह रही थी।
अगली सुबह उस दवा वाले डाक्टर ने सरदार का सन्देश सब गाँव वालों को सुना दिया। सबको यह सुन कर बहुत खुशी हुई कि उनका प्यारा सरदार काकाहेला अभी भी उनके साथ ही था।
बहुत सारे लोग उस कोहरे को देख कर खूब ज़ोर से चिल्लाते तो वह कोहरा हमेशा उन आवाजों का जवाब देता – उनकी आवाज गूँज कर उनके पास आ जाती।
आज भी सरदार काकाहेला की आत्मा का घर उस पहाड़ी पर ठंड के मौसम में उठता हुआ देखा जा सकता है। और अगर कोई प्रेम से उसको पुकारता है तो उसकी आवाज गूँज कर उसी के पास आ जाती है यह बताने के लिये कि सरदार ने उसकी आवाज सुन ली है।
(साभार सुषमा गुप्ता जी, जिन्होंने लोक-कथाओं पर उल्लेखनीय काम किया है)