स्पर्श (कश्मीरी कहानी) : ओंकार कौल
Sparsh (Kashmiri Story) : Omkar Kaul
इस कैम्प में घूमते हुए एक टैंट के सामने आकर उसके पाँव रुक गए। टैंट के पास ही एक जानी-पहचानी सूरत नजर आई। वह पहचानने की कोशिश करने लगा। वह सोच ही रहा था कि उसने मुस्कराते हुए नमस्ते की। अभिवादन का प्रत्युत्तर देकर भी वह एकदम पहचान न पाया। वह इसकी उधेड़बुन समझ गई। उसने कहा, 'नहीं पहचाना पहचानोगे भी कैसे? मैं उमा।"
"उमा, ओह! माफ करना मैं आप यहाँ कैसे?"
वह उसके चेहरे में बरसों पहले बिछड़ा हुआ भोला-सा कमसिन चेहरा तलाश करने लगा। उसके बाएँ गाल पर काला तिल बरकरार था। उसकी बड़ी-बड़ी आँखों में आकर्षण अभी भी था। उसके बात करने का अंदाज वही था। हाँ, उसके लम्बे-लम्बे बाल जो माथे पर बिखरे रहते थे, अब बंधे थे। बालों का रंग कुदरती नहीं लग रहा था। उनमें हेयर-डाई की चमक थी। हाँ, उसके सुगठित शरीर में उस दुबले-पतले कोमल स्वरूप को ढूंढना मुश्किल था। कुछ क्षण वह इन्हीं विचारों में खोया रहा तो कान्ता बोली, “आइए अन्दर आइए। यही हमारा घर है।"
उसने टैंट का अधखुला पर्दा हटाया और भीतर चली गई। वहाँ एक डबल बेड पड़ा हुआ था और एक तरफ दो लकड़ी की कुर्सियाँ। वह भीतर आया और एक कुर्सी पर बैठ गया। उमा बेड पर बैठी। उसने टेबल फैन चलाया। अन्दर गर्मी थी। अतुल के मन में ढेर सारे सवाल उत्पन्न हुए। यह सबसे महत्त्वपूर्ण प्रश्न था, "तुम्हारे परिवार में कौन-कौन है?"
"दो बच्चे हैं-एक लड़का और एक लड़की। लड़का बारहवीं कक्षा में है और लड़की दसवीं कक्षा में।'
"और उनके पिता?" “वह अब इस संसार में नहीं हैं।"
"ओह बहुत अफसोस हुआ सुनकर!' “वे पाँच वर्ष पहले गुजर गए। उनका एक्सीडेंट हुआ था।" "सॉरी मुझे पता ही नहीं चला।"
“आपको कैसे पता चलता? आप तो विदेश में थे।"
"तुम्हें...आपको कैसे पता चला कि मैं विदेश में था?"
"मुझे सब पता है। मैं आपके बारे में सब कुछ जानती हूँ।"
"क्या जानती हो?"
“यही कि आपकी शादी भी हुई है। आपके दो बच्चे हैं। आप विदेश चले गए। लौटकर किसी ऊँचे पद पर हैं। आजकल आप कोई फिल्म बनाना चाहते हैं।"
"पर तुम्हें कैसे मालूम?"
"अखबार में छपा है। खैर छोड़िए इन बातों को। मैं चाय बनाती हूँ।"
"मैं चाय नहीं पीऊँगा।"
"क्यों नहीं? हम गरीब हैं इसलिए?"
"नहीं-नहीं, यह बात नहीं है मैं चाय बहुत कम पीता हूँ। खैर, बना लो।"
उमा स्टोव जलाकर चाय बनाने लगी। अतुल को भरोसा नहीं हो रहा था। उसकी आँखों के सामने बीस साल पहले का दृश्य आया।
वह एम.ए. कर रहा था और गर्मी की छुट्टियों में गाँव में था। उमा अपनी बड़ी बहन के यहाँ आई थी, जिसकी शादी उसी गाँव में हुई थी। उमा अब पन्द्रह-सोलह साल की थी। हाई स्कूल की परीक्षा देकर आई थी। वह बहुत नटखट थी। अतुल बहुत कोशिश करने के बावजूद भी उससे सम्पर्क न बढ़ा सका। वह कई बार अतुल की छोटी बहिन के साथ उसके घर भी आई। एक बार सीढ़ियों पर उतरते समय दोनों एकदम रुक गए थे। अतुल ने बड़ी हिम्मत करके उसकी बाँह पकड़ी थी। उमा ने बड़ी फुर्ती से अपनी बाँह छुड़ाई थी और बड़ी तेजी से सीढ़ियाँ उतर गई थी। अतुल को यह स्पर्श बहुत अच्छा लगा था। अतुल और उमा को फिर कभी अकेले मिलने का अवसर न मिला। दोनों एक-दूसरे को दूर से देखते और मुस्कराते रहते। बस केवल इतना परिचय था।
छुट्टियों समाप्त हुई तो अतुल शहर चला गया। छह महीने बाद घर आया तो उसे पता चला कि उमा का विवाह हुआ है। अतुल को उमा का मासूम चेहरा बार-बार याद आने लगा। समय गुजरा। धीरे-धीरे वह उमा को भूल गया। शिक्षा समाप्त हुई। वह विदेश गया। लौटने पर किसी अन्य राज्य से नौकरी मिली। उसका विवाह हुआ। बच्चे हुए।
कश्मीर में हालात बिगड़ गए। हजारों की तादाद में कश्मीरी शरणार्थी जम्मू और अन्य शहरों में आ गए। अतुल के मन में शरणार्थियों पर फिल्म बनाने का विचार आया। जम्मू के एक शरणार्थी शिविर का दौरा कर रहा था, शायद फिल्म का मसौदा इकट्ठा करने के इरादे से। उसने कल्पना भी नहीं की थी कि उसकी मुलाकात उमा से होगी।
वह इन्हीं विचारों में डूबा था कि उमा ने चाय का कप उसके हाथ में थमाया। चाय का कप लेते हुए उमा के हाथ का स्पर्श हुआ। अतुल ने उमा का हाथ अपने हाथ में ले लिया। उमा ने अपना हाथ नहीं छुड़ाया। अतुल ने नजर उठाई तो उमा की आँखें आँसुओं से भर गई थीं।
(अनुवादक : विंदित कौल)