स्पर्द्धा (कहानी) : जैनेंद्र कुमार
Sparddha (Hindi Story) : Jainendra Kumar
1
बेंजिलो के जी में एक बात उठी है- शायद बहुत दिनों से उठ रही है। इस समय मित्र से वह बात कहे बिना उससे रहा नहीं जा रहा है। इसी से उसने पूछा, "तुम क्या बनना चाहते हो, गिडिटो ?"
उत्तर में गिडिटो ने पूछा, "और तुम?"
उसके मन में जो आकांक्षा संचित हो रही है, अब वह वाणी में फूट ही जाएगी।
कहा-
"मैं ? नेपोलियन बनना चाहता हूँ मैं।"
"नेपोलियन ! एकदम ?"
“हाँ।"
"क्यों?"
"नेपोलियन का जीवन बहुत प्यारा लगता है। कहाँ वह खाक में से उठा, कहाँ आसमान के सिर चढ़ गया, और कैसे सेंट हेलेना की सूनी-सी जगह मर गया ! वह एक शख्स था, जो अरमान लेकर नहीं मरा। जी की सारी हसरत उसने निकाल ली। राजमुकुटों को लात से उछालने के बाद, चौथाई सदी तक दुनिया को थर्रा रखने के बाद, क्या चिन्ता थी ? वह कहाँ मरता है ! जेल में मरता है, या अकेला मरता है। मनुष्यों में वह सम्राट था। छोटा-सा आदमी था, पर कितना विराट था !"
"ठीक! तो तुम नेपोलियन बनोगे ? क्या और कोई नहीं है, जो बिना अरमान मरा हो !"
"तुम्हारा मतलब बुद्ध और ईसा से है ? मैं मानता हूँ वे अरमानों को साथ लेकर नहीं मरे, पर वे अरमान लेकर पैदा भी कहाँ हुए थे ?"
"तो क्या यह श्रेय की बात नहीं है ? आरम्भ से ही अपनी हविस को नष्ट कर रखना, क्या हर एक का काम है ?"
"मुझे तो इनमें कुछ भी बहादुरी नहीं दीखती । क्या थोड़ी बहुत हम सब को ही अपनी आकांक्षाओं पर मिट्टी नहीं डालनी पड़ती ?"
"तो तुम्हें निश्चय है, इसमें तारीफ की बात नहीं है ?"
"तो तारीफ की बात क्या है— मुझे तो नहीं दीखती । तारीफ की बात तो इसमें है कि अपनी आकांक्षाओं को उन्मुक्त कर दिया जाए, उन्हें असम्भव तक पहुँचने दिया जाए। अपने सब अरमानों को भाग्य के मुँह पर पूरा करके दिखाकर, एक विराट शक्ति के रूप को दुनिया की चकाचौंध के सामने स्तूपाकार - पर्वताकार खड़ा करके, फिर उसे ठोकर मारकर, व्यक्ति एक निर्जन कोठरी में जीवन की शेष घड़ियाँ, निरपेक्ष, निष्कांक्षी, कृत्कृत्य होकर चुपचाप बिता दे और फिर मिट जाए। मेरे निकट यह तारीफ की और यही आदर्श की बात है।"
"लेकिन फिर भी दुनिया बुद्ध और ईसा की ज्यादा ऋणी है। नेपोलियन तो बीती वस्तु बन गया। वह आज हमारे लिए पढ़-पढ़कर स्तम्भित होने भर के लिए है, लेकिन वे महापुरुष तो दुनिया में जीवित और अमर शक्तियाँ हैं।"
"जीवित और अमर शक्तियाँ नहीं हैं - जीवित और अमर अशक्तियाँ हैं । व्यक्ति के जीवन में क्या तुम रोज नहीं देखते कि ये नाम उसे सशक्त तो क्या उल्टे अशक्त बना डालते हैं। यदि कभी इनके व्यक्तित्व शक्ति बनते हैं तो इतिहास इस बात का साक्षी है, इससे घातक विध्वंसिनी और आत्मसंहारक शक्ति कोई नहीं होती। लेकिन तुम क्या कहते हो ? नेपोलियन पर जितना साहित्य निकला है, उतना और किसी एक व्यक्ति पर न निकला है, न निकलेगा । न तुम्हारे बुद्ध पर, न ईसा पर।"
"मानता हूँ, और शायद तुम्हें मना नहीं सकता। तो तुम नेपोलियन बनोगे ?"
"जी में तो है। प्रार्थना भी है; लेकिन बनने का मार्ग अभी नहीं सूझता। फ्रांस में क्रान्ति मची, वैसी ही जब यहाँ भी मचे, वैसी ही परिस्थितियाँ उत्पन्न हों, मुझे भी वैसे ही पक्के और साहसी आदमी मिलें, तब तो ! पर, क्या यह सब कुछ मिलेगा ? मिले तो मैं दिखा दूँ, कैसे नेपोलियन बना जाता है । "
"मुझे इसमें कुछ भी आश्चर्य न होगा; पर यार, एकदम सम्राट बन गये तो देखो हमारी भी याद रखना, हमें भी कुछ बना लेना ।" हँसकर गिडिटो ने कहा । हँसकर ही बेंजिलो ने जवाब दिया- " हाँ-हाँ, जरूर। "
गिडिटो ने फिर जैसे पक्का वायदा लेकर ही छोड़ा। मानो कल ही उसे नेपोलियन के बेंजिलो - संस्करण से प्रार्थना-पत्र स्वीकार कराना होगा ।
इस पर बेंजिलो ने सोचा- कैसा बेचारा गऊ आदमी है। सदा चुपचाप अच्छा- अच्छा रहता है, और चाहता है इस चुप्पी और इस छोटी गठरी-सी भलमनसी के ही इनाम में जब सम्राट बनूँ, तो इसे भी कुछ बना लूँ। बेचारा है! जानता है भलाई भी कुछ चीज है, जबकि यह जानता ही नहीं कि शक्ति ही सब कुछ है ।
इधर गिडिटो ने सोचा- दुर्भाग्य है कि परिस्थिति, आदमी, क्रान्ति-मार्ग, अक्सर और कुछ भी इस दुनिया में बना-बनाया नहीं मिलता। सभी कुछ बनाना होता है । कैसा दुर्भाग्य है जगत का कि केवल प्रकृति नियम में इस जरा-सी भूल के कारण दुनिया को बेंजो नेपोलियन बनकर के न दिखा सकेगा। मैं सचमुच विश्वास करता हूँ... अगर सब कुछ तैयार किया-कराया मिलता तो बेंजो अवश्य सम्राट बन सकता था । इतनी क्षमता उसमें है... पर अब ?
2
गिडिटो और बेंजिलो दोनों कॉलेज में पढ़ते हैं। दोनों 'कार्बोनारी ('कार्बोनार' इटालियन शब्द है, जिसका अर्थ 'पत्थर का कोयला जलानेवाला' होता है। उन्नीसवीं शताब्दी के प्रारम्भिक भाग में इस नाम से इटली और फ्रांस में राजनीतिक गुप्त समितियाँ बनी थीं, जिनका प्रभाव उस समय बढ़ गया था।)' के सदस्य हैं। समिति में दोनों का क्या - क्या स्थान है, एक-दूसरा नहीं जानता। गिडिटो समिति की सबसे ऊँची तीन आदमियों की नायकगोष्ठी का भी सदस्य है। समिति के और सदस्य इस गोष्ठी को नहीं जानते। बस, उसके हुक्मनामों से उन्हें काम पड़ता है, व्यक्तियों से नहीं। इधर बेंजिलो समिति के भीतर ही अपने लोगों का गुपचुप एक अलग गुट बना बैठा है। अधिकारियों को, नायक गोष्ठियों को उसका पता नहीं है; पर यह गुट भीतर-ही-भीतर प्रबल होता जा रहा है।
दोनों गहरे मित्र हैं, पर गहराई में बहुत नीचे उतरकर जैसे उन दोनों में विच्छेद हो गया है। वे अपने को एक-दूसरे में खो नहीं सके हैं और दोनों ही यह बात जानते हैं। दोनों के ही व्यक्तित्व में, हृदय में और मस्तिष्क में एक-एक कोना है, जो दूसरे के लिए अगम्य है। दोनों ही उस कोने के द्वार पर टक्करें मारते हैं, पर प्रवेश नहीं कर पाते।
इन दोनों मित्रों में एक और सम्बन्ध है। उम्र में दोनों लगभग बराबर हैं, पर गिडिटो जैसे बेंजिलो के लिए अपने को जिम्मेदार समझता है। बेंजिलो समिति का आग भरा सदस्य है। गिडिटो जिसमें आग-वाग कुछ नहीं दीखती, इसका ध्यान रखता है कि कहीं उसका मित्र खुद ही अपनी आग में न पड़ जाए ! वह मानों मित्र का अभिभावक बन गया है। उसके खाने-पीने, पहनने-ओढ़ने की आवश्यकताओं को देखते और पूरी करते रहना उसने अपना दायित्व बना लिया है। बेंजिलो को खुद जैसे अपनी खबर रखनी ही नहीं चाहिए। बेंजिलो मित्र की इन सेवाओं को सहज स्वीकार कर लेता है । उसे मानो अपने मित्र के अहसानों का पता भी नहीं लगने पाता । वह मित्र के भोलेपन पर थोड़ी दया करता है । इधर गिडिटो अपने वयस्क मित्र की लापरवाहियों को देखकर खुश होता है और थोड़ा चिन्तित भी होता है।
दोनों क्रान्तिवादी हैं, पर बेंजिलो जैसे क्रान्ति का तर्क है। तर्क की तरह ही वह सीधा जाता है, और तर्क के समान टक्कर लेना और तोड़-फोड़ करना ही उसका काम है, और जैसे तर्क परिणाम के भले-बुरे की चिन्ता नहीं करता, जैसे तर्क केवल अपनी गति और दिशा से ताल्लुक रखता है, वैसे ही बेंजिलो है।
लेकिन गिडिटो, जैसे क्रान्ति की फिलासफी है। फिलासफी की तरह वह पूर्ण है, उसी तरह गम्भीर । क्रान्ति में अशान्ति रह सकती है, उसके परिणाम में भी हिंसा रह सकती है -- पर उसकी फिलासफी में शांति ही शान्ति है। हिंसा से फिलासफी डरती है। उसके निकट वह खुद शान्ति का साधन बन जाती है। वैसे ही गिडिटो खून से भय नहीं खाता, पर लहू की नदियाँ देखकर भी उसकी शान्ति के स्वप्न भंग नहीं होते !
लेकिन फिलासफी तर्क का पोषण करती है। तर्क जैसे उसका उच्छृंखल हठी बालक है।
बेंजिलो नेपोलियन बनना चाहता है। गिडिटो, गिडिटो ही बना रहना चाहता है। उसने अपना आदर्श किसी ऐतिहासिक पुरुष में बन्द नहीं किया है। वह अपना आदर्श अपने ही भीतर गढ़ता है, और अपने को उसके अनुरूप गढ़ता रहता है। वह गिडिटो ही बनकर अपने जीवन की सार्थकता ढूँढ़ेगा । नेपोलियन के नाम की प्रथा उधार लेकर वह अपने व्यक्तित्व को सबल, सार्थक और सम्पूर्ण बना सकेगा, ऐसा उसका विश्वास नहीं है।
छोटा-सा कमरा है। बीचों-बीच अनगढ़ मेज है। दरवाजे की ओर मुँह किये हुए मेज के किनारे एक ऊँची कुर्सी है। तीन तरफ तीन और साधारण कुर्सियाँ हैं । एक तरफ इटली का बड़ा नक्शा टँगा है। आले में कुछ बोतल और गिलास रखे हैं । एक कोने में एक खाली स्टूल है। और कुछ नहीं है। कमरा तीसरी मंजिल पर है ।
केवल तीन व्यक्ति बैठे हैं- गिडिटो, एंटिनो, लारेंजो ।
लारेंजो, “गिडिटो, अपना आसन स्वीकार करें।"
एंटिनों चुप रहा । गिडिटो चुपचाप उस ऊँची कुर्सी पर आ बैठा । सबने जेब से अपनी-अपनी नोट बुक निकाली।
गिडिटो - " एलबर्ट पाँच दिन पहले हममें था, आज वह पीडमोंट की गद्दी पर है। उसके सिर पर ताज रखते ही हमारे दो खास आदमी गिरफ्तार किये गये हैं। सोचना होगा कि हमें अपनी प्रगति क्या रखनी है । "
एंटिनो, "वह भगोड़ा है। उसकी वही सजा होनी चाहिए। "
लारेंजो, “सजा बोलने से कुछ नहीं होता। सजा पूरी नहीं की जा सकती।"
एंटिनो, "क्यों ?"
लारेंजो, “वह हमसे आगाह है। फिर सारी फौज और पुलिस उसकी पुश्त पर है । "
एंटिनो, “फौज और पुलिस हमारे मार्ग से हमें हटा सकती है तो हमें मर जाना चाहिए।"
लारेंजो, “मस्लहत भी कोई चीज है।"
एंटिनो, "कमजोरी है !"
गिडिटो ने तब कहा, “सम्भव है किसी की समझ में अपने इटालियन भाई को मारना ठीक हो, पर इस बारे में जल्दी नहीं करनी होगी। हम पीडमोंट के संरक्षण में इटली का ऐक्य सम्पन्न करना चाहते थे। आज हम टुकड़ों-टुकड़ों में बँटे हुए हैं। उन टुकड़ों की शक्ति आपस में ही क्षीण हो जाती है, इसलिए आस्ट्रिया के लिए हमारी देशभूमि रौंदना सम्भव है। हमारी लड़ाई आस्ट्रिया के खिलाफ है और इसलिए पहला काम हमारा इटली को एक राष्ट्र, एक आवाज और एक शक्ति बना देना है। यह काम पीडमोंट की गद्दी को तहस-नहस कर डालने से नहीं होगा। उसको ज्यादा-से-ज्यादा मजबूत - हाँ, उदार बनाने से होगा। एलबर्ट, हो सकता है, हमारा शत्रु हो, पर उस जितना भी उदार राजा मिलना असम्भव है। हम उसे मार नहीं सकते। उसकी सहायता हमें करनी होगी और अपने लिए भी प्राप्त करनी होगी, क्योंकि हमें अपनी शत्रुता- मित्रता नहीं देखनी, देश का हित देखना है।"
एंटिनो - " किसी राजा के नीचे इटली का ऐक्य सम्पन्न करने की इच्छा दुःस्वप्न मात्र है। हम राजसत्ता नहीं चाहते। हम उसे कभी स्वीकार नहीं कर सकते । हम प्रजासत्ता चाहते हैं । राजसत्ता के इतने कड़वे अनुभव के बाद यह हम कभी सम्भव नहीं समझ सकते कि उससे प्रजासत्ता कायम करने में मदद मिलेगी - वैसे ही जैसे आग से सर्दी पाने की उम्मीद नहीं कर सकते। हमारा कोड हमें एक और स्पष्ट आज्ञा देता है। वही आज्ञा पुरुषतत्व की, और मैं समझता हूँ - बुद्धिमत्ता की भी है।"
गिडिटो - " मैं बहस नहीं करता। लारेंजो भाई की राय मैं जानना चाहता हूँ।"
लारेंजो- " मुझे डर है कि हत्या हितकारी नहीं होगी। इससे मेरी राय नहीं है ।"
गिडिटो - " भाई एंटिनो, अब मैं स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि समिति हत्या के पक्ष में न रहेगी, बहुमत यही है । "
एंटिनो - " बहुमत को सिर झुकाता हूँ, पर एक सूचना अध्यक्ष को देना चाहता हूँ।”
3
एक पन्ना उलटकर एंटिनो पढ़ना शुरू करता है-
सोमवार ता० 19 मार्च को सभा हुई । उपस्थिति 10। बेंजिलो, सभापति ।
भाषणों के बाद, सर्वसम्मति से तय पाया कि एलबर्ट को अपना सदस्य स्वीकार करना घोर अपराध था। वह अब पीडमोंट का राजा बन गया है। राजा, खासकर वह जो आस्ट्रिया की अधीनता स्वीकार करता है, प्रजासत्ता का दुश्मन है; इसलिए वह हमारा भी दुश्मन है। हमारी अक्षम्य गलती के प्रतिशोध और प्रजासत्ता एवं क्रान्ति की हितरक्षा का एक उपाय है, वह है एलबर्ट को नष्ट करना ।
सम्मति जब ली गयी तो केवल से, - विरोध में था ।
उसके लिए कई कानों तक दबी हुई 'ट्रेटर', (विश्वासघातक) की आवाज गयी ।
सबको शान्त करके बेंजिलो ने घोषणा की कि एलबर्ट की हत्या सभा द्वारा निर्णीत और उचित ठहरायी गयी। पढ़ने के बाद एंटिनो ने कहा - "इस सूचना के साथ मैं अध्यक्ष को अपने निर्णय पर फिर से विचारने का निवेदन करता हूँ ।"
गिडिटो - " मेरा वही मत है जो मैं दे चुका, और समिति का भी वही मत है । बेंजिलो ने अधिकार से बाहर की बात कही है। किसी दुराग्रह को बढ़ने देना ठीक नहीं है। एंटिनो भाई से मैं यह आशा करता हूँ कि वह बेंजिलो को नायक का मत और निर्णय स्पष्ट शब्दों में सुना देंगें। "
एंटिनो खड़ा हो गया। एक गिलास खींचा, कुछ शराब उँडेली, फिर अपनी कुर्सी के पास आकर, पतलून की जेब में एक हाथ डालकर बोला, “किन्तु मैं कहता हूँ, बँट जाकर हम गिरेंगे, एक रहने में हमारी विजय है । हममें फूट पड़े, इससे कहीं अच्छा है कि हम अपने सिद्धान्तों में तनिक अवकाश रखना सीखें, और अपने मत को बहुत तंग और बहुत अन्तिम न बना दें। "
यह कहकर एंटिनो ने गिलास ओंठ से लगा लिया।
गिडिटो एकटक अपने सामने देखता रहा, बोला नहीं ।
लारेंजो ने जवाब दिया, "अनुशासन एक चीज है। उसमें ढील आयी कि संगठन भी ढीला हुआ। हमें ऐसा ऐक्य चाहिए जो हमारे कर्तव्य को पुष्ट करे । कर्तव्य को खोकर मेल बढ़ाने से हम न बढ़ेंगे। हमें विभिन्नता का ऐक्य न चाहिए। हमें एकता का ऐक्य चाहिए। हमारा मत एक हो, काम एक हो, लगन एक हो, और इसका नाम है, शक्ति । हमें वही चाहिए, और हम उसे कड़ाई से अनुशासन में बाँध रखेंगे, बिखरने न देंगे।"
इतना कहकर लारेंजो ने भी अपना गिलास सँभाला।
एंटिनो ने कहा, “हम खबरदार रहें कि अपने ऊपर बहुत ज्यादा जिम्मा न लें। मतैक्य असम्भव था। जिस राय से यह सम्भव है, उसका नाम है बलात्कार, दमन, निरंकुश एकतन्त्रता । क्या हम एकतन्त्रता को मिटाकर स्वतन्त्रता को धरती पर ला देने के व्रती होकर ही यहाँ नहीं जमा हुए ? फिर क्यों हम ही अपने बीच निरंकुश एकतन्त्रता-सी खड़ी कर रहे हैं ?"
गिडिटो ने स्थिर भाव से कहा, "क्या हम बहस ही करें। क्या हम निर्णय न करें ? निर्णय तो करना ही होगा । दायित्व से डरना कापुरुषता है। निर्णय एक ही तरह का होगा। केवल निर्णयहीनता ही है, जिसमें किसी को असन्तोष न हो; निर्णय में विरोध अनिवार्य है। सबको सब कुछ मानने और सब कुछ करने देना था, तो भला था हम समिति न बनाते, आडम्बर न करते, सीधी तरह घर बैठते । लेकिन नहीं, एक बार एक जगह एक शपथ के नीचे हम इकट्ठे हुए। अपने को मिटाकर आज यहाँ हम जमा हैं। इसलिए हमारी अपनी स्वतन्त्रता कुछ नहीं है। आज देश की स्वतन्त्रता पर हमने अपनी स्वतन्त्रता को वारा है, धन्य होकर वारा है और इस तरह एक प्रकार की परतन्त्रता को अपने ऊपर स्वीकार कर एक बृहत स्वतन्त्रता को अपने - अपने लिए पहचाना और अपनाया है। अब हम निर्णय करें ? निर्णय का बोझ हम अपूर्ण प्राणियों के ऊपर पड़ा है, तो क्या हम उसे कन्धे पर से फेंककर चलते बने ? जानता हूँ, बोझ भारी है। पर फेंककर भागना भी नहीं हो सकेगा। अपनी परिमित बुद्धि के अनुसार ही हम फैसला करेंगे। पर हम सतर्क रहें कि उसमें हमारा अपना कुछ न हो, अहंकार की गन्ध न हो, प्रमाद न हो, मोह न हो। ठीक का ठेका कौन ले सकता है; पर इतना कर चुकने पर भी हमारा निर्णय गलत होगा, तो मानो हम उसकी गलती से अलिप्त रहेंगे। पर, चूँकि हमारे निर्णय के अन्ततः गलत होने की सम्भावना असम्भव नहीं है, इसलिए हम निर्णय करने की जिम्मेदारी से ही छूटें, यह नहीं हो सकता, और जहाँ तक मेरी गति है, वहाँ तक देखकर मैं कहता हूँ कि बेंजिलो ने जो किया है वह करके भूल की है। तब यह देखने और मानने के बाद उस भूल को बढ़ा देना हमारे लिए किसी प्रकार भी क्षम्य और सम्भव न होगा ।"
एंटिनो ने उत्तर न दिया, वह शराब ढालता रहा। लारेंजो भी इसी में व्यस्त हो रहा ।
गिडिटो खड़ा हो गया, नक्शे के सामने आ रहा और उसे आँख गाड़कर देखता रहा, देखता रहा । मानो बेंजिलो के भाग्य को उस नक्शे में से पढ़ लेना चाहता था ।
4
सन्ध्या हो गयी है। कमरे में गिडिटो अकेला है । वह प्रतीक्षा में है - कॉलेज चार घण्टों का खत्म हो चुका, बेंजिलो अब तक कहाँ रहा ? लौटा नहीं। खाना ठण्डा हो रहा है। कमरे के छज्जे पर आकर उसने सड़क के दोनों तरफ आँख फैलाकर देखा । बेंजिलो का कहीं पता नहीं !
वह आकर पलंग पर बैठ गया। किताब खोल ली, लेकिन पाँच ही मिनट में " किताब बन्द कर देनी पड़ी। किताब के अक्षर जैसे तैरने लगते थे; उसका मन जैसे भागा भागा फिरता था ।
लैंडलेडी को बुलाया। कहा – “खाना परोसने की अभी जरूरत नहीं, लेकिन तैयार रहना चाहिए।” इतना कहकर जो हाथ पड़ा वही टोप ले, पिस्तौल जेब में डालकर बाहर आ निकला और मैरिथ के यहाँ पहुँचा ।
मैरिथ वह है, जो यदि गिडिटो न होता तो बेंजिलो की विवाहिता होती । बेंजिलो रोज इसके यहाँ आता है और चला जाता है। मैरिथ अपने धनी माँ-बाप को छोड़कर यहाँ अपने काम पर अकेली रहती है - और अपने दिन की राह देखती रहती है।
वह कुलीन है, और अपनी कुलीनता पर लज्जित है। सुंदर है, और अपने सौन्दर्य को रूखा रखती है । कुलीनता के सम्बन्ध में वह अपने को बिलकुल उदासीन नहीं बना सकी, और सौन्दर्य के बारे में सर्वथा अजानकार नहीं है । वह अपने से तंग है । वह पुरुष की होकर रहना चाहती है, क्योंकि वह स्त्री है। उसकी वृत्ति जोखिम ढूँढ़ती है। समिति की वह अत्यन्त तत्पर सदस्या है। उसे चैन नहीं है, इसलिए वह सदा उद्यत और गतिशील है। निम्नता में आकर्षण खोजती है। निम्नता में उसे प्रीति नहीं है, क्योंकि वह निम्न नहीं है। वह घर ही पढ़ी है, और ललित कला में उसने विशेष अभिरुचि पायी है। संगीत सीखा है और चित्र बनाये हैं। ताजे और हरे अपने स्वरपर्ण के दोने बनाकर उनमें अपने भीतर का सुख-दर्द बूँद-बूँद खींचकर, भरकर रख दे कि किसी के ओंठ उसे चखें - वय पाकर भूली- भटकी एकाकी घड़ियों में यह भी उसने किया है, पर यौवन जब प्रमत्त था और स्वीकृति चाहता था और भीतर लहू की बूँद-बूँद मानो अपना रंग देखने के लिए मचल रही थी, तभी विधि ने उसकी अजेयता पर एक ठेस पहुँचाई। तभी क्रान्ति का कठोर कर्म-सन्देश उसे सुन पड़ा। उसने अपनी तूलिका तोड़ दी, वायलिन फेंक दी, और देश की स्वतन्त्रता के अर्थ भरने के लिए ही जीने के इरादे से अपने खाली मन को भरकर वह रहने लगी।
ऐसे ही समय बेंजिलो पथ-प्रदर्शक बनकर उसके जीवन में आ मिला। बेंजिलो ने उसके इरादे के सामने कर्म की राह खोलकर मानों छिपा दी। यहाँ चलना - ही चलना है। यहाँ करते रहना है, और मरते रहना है। अपने को याद करते हुए, रहने की बात यहाँ नहीं है, अपने को सर्वशः भूलकर यहाँ रहना होगा। जीवन इतना थोड़ा है मौत के कामों को पूरा करते रहने के उसके कर्तव्य में से निकालकर एक भी अवकाश का क्षण जीवन को अपने लिए नहीं दिया जा सकता ।
और उसका परमात्मा जानता है, वह यही माँगती है। वह यही माँगती है। वह एक भी क्षण नहीं चाहती है, चाहती है, एक क्षण भी उसे न मिले। एक भी क्षण उससे कैसे उठाया जाएगा, क्योंकि उसका क्षण उसका युग है, और उसकी तूलिका टूट चुकी है, और वायलिन फिंक चुकी है। अब वह उस क्षण का क्या बनाएगी ?
वह अपना मन प्राण और समय किसी पर डालकर ही तो जी सकती है, क्योंकि वह क्या रह गयी है, जो कुछ समय अपने पास रख सके। किसी के लिए जीना चाहती थी। जब वह खो गया है तो वह अब मौत के लिए जिएगी और देश के लिए मरेगी।
इसलिए——इन्कलाब जिंदाबाद ।' वह सबसे अपने को तोड़कर इन्कलाब के लिए रहेगी; इस अनुष्ठान में बेंजिलो से दीक्षा का ऋण लेगी और उससे उऋण होने में लगी रहेगी। क्रान्ति पर अपना जीवन वारेगी। देश पर अपने को भूल जाएगी !
और कुछ ही दिनों बाद, अपने घर से अलग, इस स्थान पर उसने अपने को समिति में और समिति के काम में पाया ।
पर, हाय !
यहाँ गिडिटो... ।
5
गिडिटो ने कहा – “मैरिथ, बेंजी अभी घर नहीं पहुँचा! यहाँ भी नहीं आया ?"
मैरिथ–“नहीं, यहाँ तो नहीं आया। पर तुम आओ, बैठो। शायद आता हो। "
"बैठने की फुर्सत तो कम है।"
"क्यों जी, बेंजिलो को अपने हाथ में रखने से क्या तुम्हारी मुट्ठी पूरी भर जाती है ? क्या उसमें और किसी के लिए समाई नहीं है । "
"मैरिथ, बेंजी ने अपना सारा प्यार तुम पर वार रखा है। इटली को स्वतन्त्र होने दो। देखो, मैं खुद अपने हाथों तुम्हारा ब्याह करूँगा । उससे पहले ब्याह करके बेंजी अपना नाश कर लेगा । मैरिथ, वह नेपोलियन बनना चाहता है - नेपोलियन !”
"और क्यों जी, तुम क्या बनोगे ? तुमने अपना प्यार किसी पर वार रखा है ?"
"सो तुम नहीं जानतीं ! नेपोलियन पर !”
"तुम भी आदमी हो !"
"कौन कहता है ? मैं स्त्री होता तो ज्यादा ठीक रहता। अच्छा, अब मैं चला । " " तनिक ठहरो तो। बेंजी आना ही चाहता होगा! इतने में, थोड़ा आतिथ्य ही स्वीकार कर लो। "
"अच्छा लाओ, पाँच मिनट बैठता हूँ । लाओ, क्या देती हो?"
"नहीं, उतावले मत बनो। लेकिन हाँ, तुम शराब तो पीते ही नहीं।"
मैरिथ ने कुछ रूखे बिस्कुट ला रखे। बिस्कुट की जल्दी-जल्दी में नक्काशीदार चीनी की एक बढ़िया तश्तरी गिरकर टूट गयी । दो-तीन बिस्कुट भी गिरकर चूर हो गये । बिस्कुट रखकर मिनट भर में पड़ोसी से टोस्ट और चाय ले आयी ।
सब-कुछ चखकर गिडिटो ने घड़ी की तरफ देखकर कहा - "ओह! अब तो जाना ही होगा। क्षमा!" कहकर प्रतीक्षा नहीं की, उठकर सीधा चल दिया।
"ठहरो तो... अरे, ठहरो... अच्छा बस, पाँच मिनट !"
"अब नहीं मैरिथ, देखो बना तो फिर आऊँगा।"
गिडिटो नहीं ठहरा। जीने पर उतरते उतरते उसने मन में कहा - " मुग्धा मैरिथ ! "
6
गिडिटो फिर सड़क और गली गली और सड़क लाँघता हुआ अँधेरी गली में जा पहुँचा। और वहाँ से फिर उस कमरे में जहाँ सभा जुड़ी हुई थी। बेंजिलो अध्यक्षासन पर तमतमा रहा था ।
गिडिटो जब यहाँ दाखिल हुआ तो सभा एकदम रुक गयी । अयाचित उसका पहुँचना शायद वांछनीय न था ।
अध्यक्षासन पर से बेंजिलो ने कहा - " गिडिटो। किसकी इजाज़त से तुम अन्दर आये ?"
"बेंजी, चलो, खाना ठण्डा हो रहा है। पहले खा लो, तब और कुछ करना।"
"गिडिटो, बेवकूफ मत बनो। कैसे तुम यहाँ घुस आये ?"
“इन्तजार करते-करते नहीं तो रात भर बैठा रहता क्या ? भूख लगी, तुम्हें ढूँढता - ढूँढता चला आया।"
'भाड़ में जाए तुम्हारी भूख ! मैं जरूरी काम कर रहा हूँ। "
"कोई जरूरी काम नहीं है। अभी तो तुम्हारा खाना सबसे ज़रूरी है । "
"गिडिटो, मैं प्रेसीडेण्ट हूँ । कहता हूँ तुम अभी चले जाओ।"
"तुम्हें कुछ खयाल भी है ? कॉलेज खत्म हुए पाँच घण्टे हो चुके ! तब से भूखे हो, कुछ नहीं खाया। तुम्हें भूखे छोड़कर मैं कैसे चला जाऊँ ? "
"गिडिटो, बेवकूफी करोगे तो सख्ती करनी पड़ेगी।"
"करो सख्ती, कौन मना करता है । पर परमात्मा के लिए भूखे मत रहो।"
बेंजिलो ने झल्लाकर कहा, "बेंजमिन, गिडिटो को हम यहाँ नहीं चाहते, तुम उसे बाहर निकाल सकते हो ?"
बेंजामिन नाम का एक व्यक्ति उठा । उठकर देखा और फिर बैठ गया - " जी नहीं।"
"नहीं!" अध्यक्ष ने कहा, "कोई है जो इसे बाहर कर दे ?"
दो व्यक्ति आगे बढ़े। वह काफी पास आये कि गिडिटो ने रिवाल्वर उनकी तरफ तानकर कहा, “चलो, लौट जाओ अपनी जगह पर ! खबरदार, जो कदम भी आगे रखा।"
फिर बेंजिलो के पास पहुँचकर और उसकी बाँह पकड़कर कहा, "चलो बेंजी, तमाशा न करो । घर चलो।"
बेंजिलो ने उसे जोर से धकिया दिया । गिडिटो गिरते-गिरते बचा। इतने में ही सभा के दो-तीन सदस्य उसकी तरफ लपके। उसने भीतर की जेब से एक तिरंगा कपड़े का टुकड़ा निकाला और दोनों हाथों से ऊपर उठाकर चिल्लाया, "सभ्यो, यह देखो। देखकर चाहो तो गोली मार दो, मेरे दोनों हाथ ऊपर हैं। नहीं तो इसका सम्मान रखो और इस सभा को बरखास्त कर दो।"
सभ्य, जो बड़े असभ्य हो रहे थे, अब सब-के-सब सुन्न बैठ गये ।
"सुनो, नायक की आज्ञा है, यह सभा यहीं बरखास्त होती है। मेरे 'तीन' कहते-कहते सब यहाँ से चले जाएँ। ए... क । दो... ।... "
कमरा बिलकुल खाली था ।
गिडिटो ने अब बेंजिलो से कहा, "चलो बेंजी, खाना खाने चलें। "
बेंजिलो भौंचक था। पूछा, "तो नायक तुम हो ?"
"हूँ तो हूँ - पर चलो, भूख लग रही है। "
“कहाँ चलूँ?”
"घर।"
"मैरिथ के यहाँ नहीं ?"
"जहाँ चाहो, वहाँ जाओ।"
"तुम न चलोगे ?"
"मैं अभी वहीं से आया था।"
"मैरिथ के यहाँ से आये थे ?"
“हाँ!”
"अब न जाओगे ?"
"नहीं।"
"घर पर मिलोगे ?"
"मैं घर पर न आया तो ?"
"तो बुरा होगा।"
"क्या होगा ?"
"बुरा होगा।"
“तो मैं घर पर न आ सकूँगा।"
"न आ सकोगे ? – कहाँ रहोगे ?"
"सो बतलाने की जरूरत नहीं। "
"तो मैं भी साथ चलता हूँ।"
दोनों साथ मैरिथ के स्थान की ओर चले ।
मैरिथ के घर पर ।
बेंजिलो, “मैरिथ, तुम्हें पता है हमारे नायक गिडिटो महाशय हैं ?"
मैरिथ को यह पता न था, पर यह पता था कि बेंजिलो नायक के प्रति बहुत सदभावना नहीं रखता। नायक के नरमपन, ढीलेपन और सुस्ती पर बेंजी अपने तीक्ष्ण- कटु विचार मैरिथ के सामने कई बार उत्तेजना के साथ प्रकट कर चुका था । इसलिए जब गिडिटो के नायक होने की सूचना उसे मिली, तो वह प्रसन्न न हो सकी। न जाने क्यों, उल्टी पीली पड़ गयी। आतंक से गिडिटो की ओर देखा । इस दृष्टि में भरे प्रश्न को अच्छी तरह न समझकर उसने कहा, "नायक कितना भोला भलामानस है, यह तुम शायद जानते ही नहीं ?"
बेंजिलो ने कहा, "मैं खूब जानता हूँ, उसके भोलेपन पर मैरिथ के सामने कई बार तरस खा चुका हूँ।"
इस पर मैरिथ फिर दहल -सी उठी। कुछ लेने गयी तो गिडिटो के कान में कह गयी, ‘“खबरदार रहना।" लौटकर आयी तो गिडिटो ने कहा, "बेंजी, क्या नेपोलियन से खबरदार रहना होगा ?"
बेंजिलो ने उत्तर दिया, "नेपोलियन खुद अपने को नहीं जानता। लेकिन खबरदार रहना अच्छा ही है।"
काफी रात बीते वह अपने डेरे को चले। पर रास्ते में ही न जाने कब बेंजिलो बेपता हो गया।
7
रात अँधेरी है, सुनसान है। पतलून की दोनों जेबों में पिस्तौल है। बेंजिलो महल के दरवाजे तक आ गया है। दरवाजे पर सन्तरी टहल-टहल कर पहरा दे रहा है।
बेंजिलो के आने पर सन्तरी ने सलाम किया।
"सब ठीक है ?"
"बिलकुल ।"
"उसी कमरे में?"
“हाँ।"
रास्ते में जितने मिले उनमें से किसी का अभिवादन लेकर, किसी को फुसलाकर, कुछ को डरा-धमकाकर और बाकी बचे दो-एक को ठण्डा करके बेंजो उस कमरे के दरवाजे पर आ गया। कमरा प्रकाशित था । एलबर्ट अकेला रहता था। अभी तक उसने ब्याह न किया था ।
बेंजिलो ने केवल झपे हुए दरवाजे को खोलकर कहा - " आ सकता हूँ?"
उत्तर मिला, "आइए"
उत्तर सुनने - न-सुनने की परवाह किये बिना वह अन्दर दाखिल हो गया ।
एलबर्ट इतनी रात गये भी एक कुर्सी पर बैठा था । सामने छोटी-सी मेज थी । उस पर कुछ कागज रंग-बिरंगे बहुत बड़े शंख से दबे थे। पास ही एक ऊँचे स्टूल पर शेडदार लैम्प था, जो अच्छा खुशनुमा था, पर राजाओं के लायक बिल्कुल न था । एलबर्ट का सिर अपने दोनों हाथों में थमा हुआ था। एक कोहनी मेज़ पर रखी थी, दूसरी कुर्सी की बाँह पर, उसके माथे पर बल थे। ऐसे बैठे-ही-बैठे अनायास ही उसने 'आइए' कहा था ।
आगत व्यक्ति को जब उसने देखा, तो वह बिल्कुल बदल गया। हाथ दोनों कुर्सी की बाँहों पर आराम करने लगे। सिर सीधा हो गया और वह थोड़ा हँसा।
“ओहो, बेंजिलो हैं ! मैं तो तुम्हें भूला जा रहा था । "
"मैं भूलने दूँ तब न !”
"यह भी ठीक है । आज शाम को मुझे खबर मिली थी कि आप रात को दर्शन देंगे, पर अभी - अभी तो मुझे इसका ध्यान उतर ही गया था । "
"आपकी खबर ठीक थी। क्या इसके आगे और कुछ खबर भी थी ?"
“उसे मैं आपसे जानने की आशा रखता हूँ।"
"आशा तो आप गलत नहीं रखते।"
"तो आज्ञा हो मेरे लिए। "
"एलबर्ट, अभी जल्दी काहे की है? तुम्हें जल्दी हो तो बात दूसरी । "
"बड़ा सन्तोष है कि आपको जल्दी नहीं। नहीं तो जल्दी आपके मिजाज़ में एक खास चीज है । फिर निश्चय के बाद देरी का कारण भी क्या !"
"एलबर्ट, मालूम होता है, तुम अपने भाग्य से परिचित हो । शायद समझते हो, प्रयत्न करने से भाग्य तो टलेगा ही नहीं, इसलिए इस तरह यहाँ निश्चिन्त बैठे हो । पर भाग्य को तुम्हारे प्रयत्नों की या निश्चिन्तता की कुछ परवाह नहीं । "
"बेंजिलो, तुम जानते हो, मैं भाग्य में विश्वास करता नहीं; पर अब मालूम होता है जैसे उसे मानना अच्छा है! मुझे भी विश्वास होता जा रहा है - होनहार टलता नहीं।"
"जाने दो, इन बातों को। तुम आज राजा हो, कल हमारे साथ मिलकर राज की दुश्मनी का दम भरते थे! यह क्या धोखा नहीं है - और तुम इस पर दुःख नहीं करते ?"
"यही तो मुश्किल है कि अफसोस मैं नहीं कर पाता। धोखा-वोखा मैं जानता नहीं; लेकिन मालूम होता है, इस तरह अपने देश के लिए मैं शायद कुछ कर सकूँ ।"
"एलबर्ट, तुम्हें शर्म नहीं आती ? राजा बने बैठे हो जबकि सैकड़ों-हजारों तुम्हारे साथी तुम्हारी ही जेलों में सड़-गल रहे हैं । तुम्हारे देशवासी गुलामी और दरिद्रता के नीचे कुचले जा रहे हैं, तब तुम ऐशो - इशरत में पड़े हो और आस्ट्रिया के जूते के नीचे अपने उन भाइयों पर हुकूमत चलाते हो ?"
"भाई, लाज आती अगर नहीं, तो क्या करूँ? मैं उसे जबरदस्ती बुलाने की आवश्यकता नहीं समझता। आज इस कुर्सी पर से सब देशसेवकों को नहीं, तो कुछ को तो मैं जेल से छुड़ा ही सकता हूँ; पर तुम क्या कर सके हो, क्या कर सकते हो ? और यह कुर्सी महल में तो रखी है, पर खूब देख लो, बिलकुल मामूली है। क्या आधी रात तक ऐसी कुर्सी पर जागते बैठना तुम्हारी निगाह में पाप है ? और तुम यह नहीं जानते कि हुकूमत करने वालों को अपने सिर का जूता ज्यादा खलता है। क्या मैं तुम्हें बताऊँ कि आस्ट्रियन मुझसे जितना डरते हैं, तुमसे उतना नहीं। "
"तुम आज गद्दी के मोह में पड़कर इटली को बेच रहे हो। "
“हूँ?”
"तुम यह नहीं समझते ?"
"अभी तक नहीं।"
“लेकिन तुमको समझने के लिए ज्यादा वक्त नहीं दिया जा सकता।''
"ठीक है, मैं पहले ही काफी ले चुका हूँ।"
"लेकिन तुम्हें अपना अधिकार है, राष्ट्र को खो देने का नहीं। "
"राष्ट्र को न समझने का जैसा तुम्हें अधिकार है, वैसा मुझे भी तो उसे समझने का अधिकार है।"
"हम इसको बर्दाश्त नहीं कर सकते।"
"बर्दाश्त की आदत पैदा करनी चाहिए।"
"वह आदत अभी पैदा करने का वक्त नहीं है। अभी समय है कि अपनी गति पर पछताओ, लजाओ, और पीछे मुड़ो। "
"नहीं तो ?"
"नहीं तो परिणाम भयंकर होगा । हम अपने देश का नाश नहीं देख सकते।"
"बेशक, तुम अपने देश का नाश या लाभ नहीं देख सकते।"
"जो हो, अब वक्त कम है। बोलो क्षमा या दण्ड ?"
"तुम्हें ऐसा अधिकार किसने दिया ?"
"समझो कि पहली घड़ी से जीवन की अन्तिम घड़ी तक एक- बस एक- राष्ट्र की चिन्ता रखनेवाले तरुणों ने।"
"तो उनसे कहो, उन्होंने भूल की। ऐसा अधिकार परमात्मा के हाथ से छीनने की आवश्यकता नहीं ।"
"खैर, हुआ " – इस भाव से और इस ध्वनि से बेंजिलो ने कहा - " बोलो, क्षमा या दण्ड ?"
"दण्ड या पुरस्कार जो भी होगा जरूर मिलेगा, पर क्षमा! क्षमा नहीं ।"
"क्षमा नहीं ?"
यह कहकर उसने जेब में हाथ डाल दिया। एलबर्ट ने सब कुछ देखा । वह भी देखा जो बेंजिलो नहीं देख पा रहा था । बोला - "बेंजिलो, एलबर्ट में सीजर का खून है, और इटली का देश-प्रेम है। क्षमा नहीं।"
"नहीं ?... तो लो।"
यह कहा और पिस्तौल खींच ली। इतने में ही किसी ने कसकर बाँह को पकड़ लिया। घोड़ा दबा । गोली शेड और लैम्प को चूर-चूर करती हुई निकल गयी। रोशनी बुझ गयी। घुप्प अँधेरा हो गया ।
गिडिटो ने पिस्तौल बेंजिलो के हाथ से छीनकर फेंक दी। यह झनझनाहट कर फर्श पर पड़ी।
कुछ भी न दीख पड़ रहा था। बेंजिलो ने कहा - "कौन है ? अलग हट जाओ, नहीं तो सिर फोड़ दूँगा ।" इतना कहकर दूसरी जेब में हाथ डाल दिया ।
गिडिटो ने एक जोर की चपत उसकी कनपटी पर जड़ दी।
"कम्बख्त । - यहाँ आया है मरने । चल घर, चल भाग।"
जब चलने और भागने में देर लगी तो कान पकड़कर उसे ढकेलते हुए कहा, " अरे भागता है या नहीं ? भाग जा झटपट, नहीं तो मर जाएगा।"
इतने ही में एक गोली सनसनाती हुई गिडिटो की बाँह को आर-पार कर गयी और बेंजिलो भाग गया। शोर मचाकर जब नौकर-चाकर, सिपाही - प्यादे इकट्ठे-के-इकट्ठे वहाँ हाजिर हुए और रोशनी की, तो गिडिटो बाँह पकड़े जहाँ के तहाँ खड़ा था, और एलबर्ट कुर्सी पर वहीं का वहीं पिस्तौल ताने बैठा था ।
गिडिटो पकड़ लिया गया।
बेंजिलो बेतहाशा घबराया-सा दौड़कर जब सदर दरवाजे के बाहर आया, तो किसी ने पुकारा, "बेंजी !”
देखा कि सामने मैरिथ चिन्ताव्यग्र खड़ी है। मैरिथ ने पूछा - "बेंजी, गिडिटो कहाँ है ?"
"गिडिटो ?"
बेंजिलो की घबराहट मैरिथ से छिपी न रह सकी। उसने जोर देकर कहा- "हाँ, गिडिटो।"
"वह तो अन्दर नहीं मिला।"
"अन्दर नहीं मिला?"
"मुझे नहीं मालूम।"
उसने चिल्लाकर पूछा - "नहीं मालूम ?"
"नहीं! लेकिन तुम इस वक्त यहाँ कहाँ घूम रही हो। चलो, घर चलें । "
"गिडिटो रात-रात भर तुम्हारी तलाश में घूमे, और तुम्हें अब चैन की सूझे । ऐसे ही हो तुम ? सच बताओ, गिडिटो कहाँ है ?"
"मुझे कैसे मालूम?"
"यहीं खत्म हो जाओगे। बोलो, नहीं मालूम ?"
बेंजिलो ने देखा, पिस्तौल सीधी उसकी मुँह की तरफ तनी है। मैरिथ की आँखों में जैसे वज्र-काठिन्य जल रहा है। वह खुद निहत्था था, दूसरा पिस्तौल भी वहीं छूट गया था। उसने कहा, "मालूम होता है, मैंने उसे गोली मार दी है !"
मैरिथ इस पर एक चीख छोड़कर और रिवाल्वर बेंजिलो के ऊपर फेंककर अन्दर भाग गयी। वह भरी पिस्तौल छूटी नहीं, उसके बदन से लगकर धरती पर गिर पड़ी। बेंजिलो ने उसे उठा लिया।
अन्दर जाकर मैरिथ ने देखा, गिडिटो को कई रक्षक हथकड़ी डाले लिए जा रहे हैं। वह बाँह को कसकर पकड़े है। उसने जब मैरिथ को देखा, तो कहा..."मैरिथ ! तुम यहाँ कहाँ ? बेंजी तो तुम्हें याद कर रहा था । जाओ उसकी देखभाल करना । कहीं वह रो-रोकर मर न जाए।"
मैरिथ गयी नहीं, वह वहीं खड़ी देखती रही।
"धित्, यह क्या आँखें फाड़ रही हो, जैसे बेंजी मैं ही हूँ। चलो, जाओ, बेंजी को ढूँढकर उसे सांत्वना दो ।"
वह फिर भी नहीं गयी।
"मैरिथ, देखो, नहीं जाओगी तुम ?" मैरिथ चुपचाप चली गयी।
8
गिडिटो के खिलाफ प्रमाण संगीन थे। वह रात को महराज के कमरे में पाया गया है । बाँह में गोली का घाव है। जेब में एक पिस्तौल मिली है। इतना होने पर भी वह छूट गया। एलबर्ट का इस सम्बन्ध में खास आज्ञापत्र प्राप्त हुआ था ।
घर पर आकर उसने देखा, बेंजिलो का सब सामान अस्तव्यस्त पड़ा था। उसके दिल में एक अज्ञात आशंका घर कर बैठी। वह मैरिथ के पास गया। बेंजो वहाँ न था। गिडिटो ने डाँटा। मैरिथ ने अपनी कर्तव्यपरायणता जताते हुए, क्षमा माँगकर कह दिया, "मैंने बहुतेरा ढूँढा, मुझे वह नहीं मिला। "
गिडिटो ने कहा, “और ढूँढो, मैरिथ! जब तक न मिले, तब तक ढूँढ़ो।"
“ढूँढूँगी तो, पर तुम भी कहीं खो न जाना।"
"मैं नहीं खोऊँगा । पर उसे तो पाना ही होगा । "
“जो कहोगे सो करूँगी, लेकिन कहे देती हूँ, वह बहुत जीता न रहेगा । "
"यह तो मैं भी जानता हूँ, लेकिन ऐसे रूठकर तो वह न जाने पाएगा।"
"गिडिटो, तुम ऐसे-ऐसे क्यों हो रहे हो ?"
"मैं, कुछ भी नहीं हो रहा। मैं यह सोच रहा हूँ कि बेंजी के अब नेपोलियन बनने का अन्त आ गया है। मेरे पास बहुत सुख था, अब मेरा सुख का आधार छिन जाएगा । और, मैरिथ, तुम्हारा सुहाग।"
"ठहरो, गिडिटो ! मेरे सुहाग की तुम चिन्ता करते होते तो क्या बात थी ! मैं जानती हूँ, मुझे अपने सुहाग का अर्ध्य किसकी बेदी पर चढ़ाना होगा । वह देवता स्वीकार करे या तिरस्कार कर दे, अर्ध्य तो समर्पण के लिए होता है । "
"तो मैं तुम्हारे बेंजी को ढूँढने जाता हूँ। "
कहकर वह चल दिया। मैरिथ ने सुना-सुनाकर कहा, "जाओगे तो हो ही। मेरे कहने से तुम रुकने वाले थोड़े ही हो। "
9
गिडिटो के कमरे में ।
गिडिटो, "छि:, बेंजी ! इस तरह भागा करते हैं ! "
बेंजिलो, "तुम बार-बार इतने बड़े क्यों बनते हो। मुझे इस पर बहुत खीझ उठती है। "
गिडिटो, "मैं बड़ा बनता हूँ! बोलो, कहो तो तुम्हारे जूते साफ कर दूँ ।"
बेंजिलो, "तुमने मुझे थप्पड़ क्यों मारा था ?"
गिडिटो ने यह नहीं कहा कि थप्पड़ गोली से बहुत छोटा है। उसने कहा- "बस यही बात है ? तो यह लो, जितने चाहो मेरी पीठ पर जमाओ।" यह कहकर बेंजी के पास एक बेंत रख दी।
"गिडिटो, तुम बड़े होशियार हो, लेकिन मैं तुम्हें बड़ा मानूँगा ही नहीं ।"
"तुम तो हो पागल, मुझे बड़ा मानो या छोटा मानो, बला से कुछ भी मानो, पर अपना मानो।"
"जितनी ही ऐसी बात कहोगे, उतना ही मैं तुम्हें दुश्मन समझूँगा ।"
"अच्छा, दुश्मन ही समझो, लेकिन अब मैरिथ के पास जाओ। वह याद कर रही थी। नहा-धो लो और कपड़े बदल लो। कैसे मैले हो रहे हो।”
बेंजिलो मन से चाहे कुछ भी कहे, पर ऐसी बातों में उसका गुजारा होता है गिडिटो की आज्ञाओं पर ही वह स्नान के लिए चला गया।
गिडिटो ने इतने में एक नया साफ सूट निकाल रक्खा। लौटने पर ठीक-ठीक करके उसे मैरिथ के पास रवाना कर दिया। मैरिथ के घर का दरवाजा बंद था। उसने नौकरानी को आज्ञा दी थी कि जो आए पहले उसे सूचना दी जाए। बेंजिलो ने दरवाजा खटखटाया। नौकरानी मैरिथ के पास पहुँची। पूछा गया - "कौन है ?"
"बेंजिलो।"
"उनसे क्षमा माँगकर कहना, मेरे मस्तक में बड़ी पीड़ा है। फिर पधारें।"
नौकरानी के मुँह से जब उसने यह सुना, घड़ों पानी उस पर गिर गया। उसने सोचा, “गिडिटो ने मुझे यहाँ तक बेवकूफ बनाया ! उसकी यह हिम्मत !" घर जाकर सीधा पलंग पर पड़ गया। गिडिटो अनुपस्थित था ।
10
इधर गिडिटो नायक - गोष्ठी में आया है। वही कमरा, वे ही लोग ।
लारेंजो, "बेंजिलो का अपराध अक्षम्य है।"
एंटिनो, “मैं मानता हूँ, समिति के नियमों के अनुसार उसने बहुत बड़ा अपराध किया है, किन्तु नियमों में संशोधन की बहुत आवश्यकता है, उनमें जकड़े रहने की इतनी आवश्यकता नहीं है।"
लारेंजो, “नियम नियम है और जब तक वे बदल नहीं जाते, उनका उल्लंघन सर्वथा दण्डनीय है।"
गिडिटो, " अपराध गुरुतम हो तो वह और भी विचारणीय है। इससे विचार और फैसले के लिए एक की बुद्धि पर निर्भर रहना ठीक नहीं मालूम पड़ता। मैं तीन आदमियों की दण्ड-समिति को इसका भार सौंप देना चाहता हूँ। भाई एंटिनो की क्या राय है?"
एंटिनो, “अपराधी के हित की रक्षा में सबसे उत्तम उपाय है। "
गिडिटो, " भाई लारेंजो ?"
लारेंजो, “न्याय-सिद्धि की इसमें पूर्ण आशा है।"
गिडिटो, “मैरिथ, सिपियो, गैरीबाल्डी - इन तीनों की दण्ड-समिति होगी। भाई एंटिनो अभियुक्त के पक्ष की ओर से वकील होंगे, भाई लारेंजो अभियोग की ओर से। मैं इससे संबंध नहीं रखना चाहता।"
एंटिनो, “नायक को अपनी जिम्मेदारी से बचने का अधिकार नहीं होना चाहिए।"
लारेंजो, "मेरा प्रस्ताव है कि दण्ड समिति का फैसला नायक के हस्ताक्षर के बाद प्रामाणिक हो।"
एंटिनो, "बिलकुल ठीक।"
गिडिटो, “आप लोग छोड़ेंगे नहीं। बड़ी अनिच्छा से यह भार भी मुझे अपने सिर लेना होता है। भाई एंटिनो इसका ध्यान रखें कि अभियुक्त को सूचना न हो। सबसे इस सम्बन्ध में समानता, बन्धुता और प्रजातन्त्र के नाम पर इटली के मानचित्र की छत्रछाया में शपथ ले ली जाए। सबको ध्यान रहे, परमात्मा की एक विभूति को, एक परमात्म- खण्ड को मारने या जीवित रहने देने का भार उन पर है। "
11
घर पर गिडिटो आया तो बेंजिलो आँखें मूँदे सो रहा था। इस समय इस चेहरे में, जिसके झरोखे झप रहे थे, कैसा मनोमुग्धकारी भाव था ! न गुस्सा था, न स्नेह था, न हास्य था, न कुछ था । बस एक अमूल्य बालपन था, एक भोली स्वाभाविकता थी । उसे मालूम पड़ा, जैसे इस सौन्दर्य का यह अन्तिम क्षण है ।
वह सामने कुर्सी लाकर बैठ गया। बेंजिलो के बाल उसके माथे पर आ रहे थे। उसने उन्हें पीछे को सरका दिया। वह फिर वहीं आ गिरे। उसने फिर सरका दिये। अबकी तीसरी बार उसने नहीं सरकाये । तीन-चार हिले-मिले बालों की इस उद्दण्ड लट को वह देखता रह गया। कैसे सुनहरे - सुनहरे बाल थे, और सब-के-सब तो सिर पर अच्छी तरह लेटे थे। यही लट कैसी हठ करके उसके माथे के आगे आ आ पड़ती थी ।
गिडिटो ने उस लट के अगले सिरे को कैंची से काट लिया और बाल के वे नन्हें-से टुकड़े उसने दराज से एक लाकेट निकालकर उसमें बन्द कर दिये।
फिर अलग जाकर वह अपनी किताब पढ़ने लगा। लेकिन कौन जानता है, वह बेचारी किताब कैसी पढ़ी गयी !
12
गिडिटो और बेंजिलो शतरंज खेल रहे हैं। गिडिटो हार पर हार रहा है, फिर भी जैसे हारना चाहता है । वह जैसे दिन-भर हर एक से हारता रहना चाहता है ।
बेंजिलो, बेचारा बालक, झल्ला रहा है। इस शतरंज के वक्त वह सब कुछ भूल जाता है। मात जरा-जरा सी देर में हो रही है – इस पर उसे बड़ा गुस्सा आ रहा है। "
गिडिटो, क्या हो रहा है ? यहाँ चलोगे तो बुरी शह लगेगी । "
"अरे, हाँ।"
"अच्छा, यह लो, मात हो गयी !"
"अच्छा, बेंजी, अब के लो, मिनटो में मैं तुम्हें मात किये देता हूँ ।"
"मात क्या खाक दोगे !"
"खाक-वाक मत चाहो जी, मात दूँगा - मात ! चारों खाने मात! "
"अच्छा!"
खेलना शुरू हुआ ही था कि सिपियो कमरे में दाखिल हुआ। गिडिटो पीला पड़ गया। बेंजी आगे की चाल सोच रहा था । गिडिटो ने कहा - "बेंजी तुम नहाये नहीं ? घण्टों से शतरंज ही होती रही ! इसे यों ही बिछी रहने दो ! जाओ, नहा आओ।"
"मैं कहता हूँ, तुमसे कयामत तक मात न हो।"— बेंजी ने कहा ।
"अच्छा नहा के आओ, फिर देखना।"
उसके चले जाने पर सिपियो ने फौजी सलाम करके लिफाफा निकालकर पेश किया। गिडिटो ने फौरन उसे खोल लिया। लिखा था-
बेंजिलो ने-
अः नियम विरुद्ध, नायक ने गोष्ठी की बिना सूचना और आज्ञा के, अलग दल बनाना प्रारम्भ किया।
आः समिति की नीति के खिलाफ नायक की स्पष्ट आज्ञा को तोड़कर एलबर्ट की हत्या का प्रयत्न किया।
इ: इस प्रकार निरंकुशता और आज्ञोल्लंघन की प्रवृत्ति बढ़ायी ।
ई: नायक को खतरे में डाला ।
इसलिए-
प्राण- दण्ड
इसके नीचे तीनों जजों के हस्ताक्षर थे। नीचे एक और नोट था-
मैरिथ दण्ड की पूर्ति का भार खुद उठाना चाहती है। इसके स्वीकार करने में हम कोई आपत्ति नहीं देखते।
इसके नीचे सिपियो और गैरीबाल्डी के हस्ताक्षर थे ।
गिडिटो ने अभियोग में - (ई) का वाक्य काट दिया और अपने हस्ताक्षर कर दिये । सिपियो चला गया।
बेंजिलो लौटा तो गिडिटो ने कहा - " शतरंज बन्द करो । आओ कुछ खाएँ- पिएँ ।”
लैण्डलेडी को बहुत जबर्दस्त ऑर्डर दे दिया गया। कई तरह की शराबें और सब कुछ प्रस्तुत हो गया ।
"गिडिटो तुम शराब पीओगे ?" बेंजिलो ने पूछा ।
“हाँ-हाँ, सुनते हैं इसमें बड़े गुण हैं।" गिडिटो ने जवाब दिया।
दोनों ने जितना हो सका, खाया और जितनी समा सकी, शराब पी। फिर दोनों मदहोश सो गये ।
13
मैरिथ की आयोजना से शनिवार के रोज झील की सैर के लिए जाने का निश्चय हुआ है ।
खाने का सब सामान साथ है। आज गिडिटो बिलकुल पीला पड़ा हुआ है, लेकिन हद से ज्यादा प्रसन्न मालूम होता है। दो-तीन घण्टे झील में किश्तियों से सैर हुई । इस सारे काल में एक मिनट भी तो वह शायद ही चुप रहा है। दुनिया भर के किस्से कहानियाँ, चुहलबाजियाँ उसे सूझ रही हैं। घड़ी-घड़ी पर उसे शराब की आवश्यकता पड़ती है।
बेंजिलो इन बातों से झल्ला रहा है। बड़ी पैनी दृष्टि से वह इन बातों को देख रहा है, और फिर-फिर कर मैरिथ की ओर देख लेता है ।
मैरिथ चित्र-सरीखा अपना एक जैसा चेहरा लेकर सब हँसी-खुशी में भाग ले रही है। क्या प्रलय उसके भीतर मच रही है... कौन है जो उसे जान सकता है ? न मालूम वह आज अपनी कब्र खोदने जा रही है या मुक्ति पाने जा रही है !
झील के उस पार जंगल में सब आ गये हैं। गिडिटो ने कहा, "बेंजी, देखो, हँसोगे नहीं तो मैं गुदगुदी मचा दूँगा । "
"क्या आज ही हँस लोगे ?"
"और नहीं तो क्या रोज-रोज हँसना मिलेगा ?"
"ठीक है, शायद रोज-रोज नहीं मिलेगा।"
"बेंजी, इस जंगल में कोई हमारी आवाज नहीं सुनेगा। आओ, खूब हँस लें, फिर इकट्ठे रो लेंगे ।"
"गिडिटो, तुम आज बिलकुल जानवर जान पड़ते हो ।"
"जान पड़ता हूँ ! बस ! अरे तुम्हें मालूम नहीं, मैं हूँ ही जानवर ! लेकिन कहता हूँ, रोज-रोज नहीं रहूँगा।"
गिडिटो ने बहुत शराब पी ली थी। वह अब ऊटपटाँग बक रहा था।
मैरिथ ने कहा - "बेंजी, इधर आओ। उन्हें अब आराम करने दो।"
बेंजिलो ने यह सुना। गिडिटो के आराम के प्रति मैरिथ की व्यग्र चिन्ता और उत्कण्ठा देखी, गिडिटो को देखा और फिरकर अपनी ओर देखती हुई मैरिथ को देखा, और 'आता हूँ' कहकर गिडिटो पर पिस्तौल तान दी। पर छोड़े ही छोड़े कि एक गोली उसकी छाती में लगी। वह ढह पड़ा। उसकी गोली हवा में सन-सन करती हुई निकलती चली गयी।
बेंजिलो कुछ भी बोल न सका। बात-की- बात में निष्प्राण हो गया । गिडिटो ने आगे बढ़कर उसी जिद्दी बालों की लट को हटाकर बेंजी के माथे पर एक चुम्बन ले लिया। कहा, "मैरिथ, अब उसे उठाओगी नहीं ?" मैरिथ डर रही थी। गिडिटो को न जाने क्या हो रहा था !
14
चर्च के घेरे की जमीन में एक बहुत गहरा गड्ढा खोदकर बेंजी की लाश उसमें रखी गयी। फावड़े से गीली गीली मिट्टी उस पर डाली गयी। आठ फीट ऊँची चार फीट चौड़ी और आठ फीट लम्बी वह जगह मिट्टी से ऊपर तक भर दी गयी ।
समिति के सब सदस्य आये थे, और सब चले गये। किसी ने उस पर एक आँसू भी नहीं बहाया।
गिडिटो मुँह लटकाए खड़ा था। जैसे उसकी आँखों का पानी और बदन का खून सूख गया है।
बस, मैरिथ रो रही थी। बेचारे मृत बेंजिलो के लिए नहीं, किन्तु बेचारे जीवित गिडिटो के लिए।
सबके चले जाने पर गिडिटो ने आगे बढ़कर उस कब्र पर ताजी ताजी पड़ी मिट्टी का एक चुम्बन लिया। पास से एक फूल को तोड़कर उसके सिरहाने रख दिया और गर्दन लटकाए हुए एक तरफ को बढ़ चला ।
मैरिथ पीछे लपकी । चिल्लाई – “गिडिटो !”
"हाँ" – यह 'हाँ' जैसे कब्र में से निकल रही हो ।
"कहाँ जाते हो ?"
"घर !"
"मेरे यहाँ नहीं ?"
"नहीं।"
मैरिथ इस पर वैसा ही मुँह लटकाए दूसरी तरफ चल दी।