सूखा तालाब : हरियाणवी लोक-कथा
Sookha Talaab : Lok-Katha (Haryana)
हरियाणा के भिवानी व हिसार जिले भी कभी लोहारु रियासत के अंतर्गत मारवाड़ का हिस्सा बताए जाते हैं। हिसार के इन मारवाड़ी सेठों की दानशीलता-दानवीरता जो भामाशाह से आरम्भ होती है, की कहानियाँ हैं तो कही इनकी कंजूसी की ‘चमड़ी जाए पर दमड़ी न जाए’ ब्रांड के जगत प्रसिद्ध किस्से हैं। इन सेठों में दानशीलता कम दानवीरता अधिक होती है तथा कई बार इसमें इनका अहंकार साफ झलकता है। जबकि दान के साथ, अहंकार मेरी समझ में अवगुण ही कहलाएगा।
सेठ धनीराम, धन्नी या धन्ना सेठ से लखपति बने थे। उनके पिता ने तो सारी उम्र मुनीमी में पराए बही-रोकड़े में, कलम घिसाते गुजारी थी, मगर धन्नी में (यही नाम उनकी माँ ने रखा था, उनका बचपन में) अब यह धन्नी अधन्नी (आधे आने या दो पैसे) का अपभ्रंश था या धनी राम का, कोई नहीं जानता। शायद उसकी अनपढ़ बूढी माँ को भी याद नहीं है। मगर कुछ भी हो, अब उनका नाम सेठ धनी राम है और क्यों न हो, अब उनके पास धन की कमी कहाँ रही है? शहर में हीरे-जवाहरात की दुकान तथा परदेस में दो पीढियाँ (शाखाएँ) दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की कर रही हैं। पिता को सारे तीर्थ करवा दिए तथा वे स्वर्ग सिधार चुके हैं।
माँ की आँखों की बिनाई (रोशनी) उस वक्त ही चूल्हे के धुएँ से जा चुकी थी जब सेठ धनीराम सिर्फ धन्नी मुनीम थे। सेठ बनने के बाद हजारों रुपये खर्च किए मगर माँ की आँखों की रोशनी नहीं लौटी। पर उनकी सेवा में उन्होंने कोई कसर नहीं छोड़ी।
एक दिन माँ ने कहा, “बेटा, मैंने लाख रुपये कभी नहीं देखे, तुम्हारे पिता के पास कभी हुए ही नहीं। धनी राम ने तुरन्त बड़े मुनीम को बुलाया और आंगन में एक लाख चाँदी के रुपयों का ढेर लगवा दिया। फिर माँ का हाथ पकड़ कर उस ढेर के पास बिठा दिया और कहा, माँ इन्हें छूकर देख लो, यह पूरे एक लाख है।
अन्धी बूढी माँ ने लाख की ढेरी को चारों तरफ घूम-घूमकर, कई बार छू-छूकर देखा। वह तृप्त हो गई अपने बेटे की धनाढ्यता देख कर।
कुछ देर बाद माँ ने कहा, “बेटा खुश रहो! मेरी लाख रुपये देखने की तमन्ना तुमने पूरी कर दी। अब इन्हें वापिस तिजोरी में रखवा दो।
सेठ ने कहा, “वाह माँ, जिस रुपये को मेरी माँ ने छुआ है उसे वापिस कैसे रख दूं? यह तो तेरे हाथ से दान दूंगा। माँ रोकती रही, मगर उसने आनन-फानन में अपने पुरोहित को बुलवा भेजा। माँ के हाथ से संकल्प करवाकर, पण्डित जी को दान कर दिया सारा रुपया। फिर दर्प से कहा, “पण्डित जी, ऐसा दानी नहीं देखा होगा आपने जिसने माँ के छूने भर से लाख रुपया आपको फोकट में बिना किसी प्रयोजन या उत्सव के दान दे दिया।
अब आप तो जानते ही हैं कि महर्षि भृगु का लक्ष्मीजी को लात मारना प्रसिद्ध है। सो, अपनी कहानी के पण्डित जी, उसी भृगु ऋषि के वंशज थे शायद। उन्होंने लाख रुपये की ढेरी को लात मारकर कहा, “सेठ तेरे जैसे दानी तो बहुत होंगे, जो अपने करोड़ों में से एक आध लाख दान में दे कर यश लूटें, मगर मेरे जैसा गरीब मगर त्यागी ब्राह्मण भी तूने नहीं देखा होगा” और यह कहकर पण्डित जी बिना रुपये लिए चल दिए। लाला ने लाख पैर पकड़े पण्डित से माफी माँगी मगर पण्डित जी टस से मस नहीं हुए। कहते हैं कि सेठ धनीराम ने अनेक ब्राह्मणों को वे रुपये दान देने चाहे मगर किसी ने नहीं लिए। तब थक हारकर उसने अपने पैतृक गाँव रावलसर में उन रुपयों से एक तालाब बनवा दिया मगर देखिए, उस तालाब में पानी कभी ठहरा नहीं, इसलिए उसे धनी सेठ का सूखा तालाब कहते हैं।
(डॉ श्याम सखा)