सोने की लीद करने वाला घोड़ा : गाम्बिया लोक-कथा

Sone Ki Leed Karne Wala Ghoda : Gambia Folk Tale

यह लोक कथा भी पश्चिमी अफ्रीका के गाम्बिया देश की लोक कथाओं से ली गयी है। यह होशियारी की एक बहुत मज़ेदार कहानी है।

अगर कभी कोई चोरी या झूठ की बात करता तो अहमाडु इन दोनों में मास्टर था। वह कोई भी चीज़ चुरा ले जा सकता था जो भी उसके हाथ लग जाती।

वह अपने गाँव में इतना बदमाश हो गया था कि गाँव का कोई भी आदमी अपनी कोई भी चीज़ ऐसे ही खुली नहीं छोड़ता था।

अब क्योंकि वह ऐसा हो गया था तो सब लोग अपनी चीजें, सँभाल कर ही रखते थे। और क्योंकि अब वह गाँव वालों की कोई भी चीज़ नहीं चुरा सकता था तो कुछ दिनों बाद वह गरीब हो गया और इतना गरीब हो गया कि उसको खाने के भी लाले पड़ गये।

एक दिन उसके दिमाग में एक खयाल आया कि अगर उसको अमीर आदमी बनना है तो चोरी करने के लिये गाँव का सरदार ठीक आदमी रहेगा।

इस दुनिया में उसके पास बस अब एक ही चीज़ बाकी रह गयी थी – वह था उसका घोड़ा। नहीं नहीं, उसके पास दो चीजें, थीं, अगर तुम उसे गिनो तो, क्योंकि साथ में उसकी पत्नी भी तो थी।

एक रात उसने अपनी पत्नी से कहा — “मैंने अमीर बनने के लिये एक तरकीब सोची है। उसमें तुमको और घोड़े दोनों को मेरी सहायता करनी पड़ेगी। क्योंकि अब केवल तुम दोनों ही मेरे पास रह गये हो। और तुम तो मेरे लिये बहुत ही कीमती हो खास करके इस समय।

अपनी तरकीब को काम में लाने के लिये मुझे तुम्हारे सोने के हार की जरूरत पड़ेगी जो मैं अपने घोड़े को दूँगा। ”

अगले दिन उसने अपनी पत्नी का सोने का हार लिया और उसके कई छोटे छोटे टुकड़े कर दिये। उनमें से एक टुकड़ा उसने घोड़े के खाने में मिला दिया। बाद में जब घोड़े ने लीद की तो उसमें वह सोने का टुकड़ा चमक रहा था।

उसने फिर एक बार घोड़े के खाने में एक सोने का टुकड़ा मिला दिया और उस घोड़े को और उसकी लीद को ले कर वह सरदार के पास पहुँचा।

जब वह सरदार के घर में घुसा तो उसने फर्श छू कर उसको सलाम किया और आवाज लगायी — “सरदार अमर रहे। ”

सरदार बोला — “उठो मेरे बच्चे अहमाडु। कहो कैसे आना हुआ?”

अहमाडु बोला — “सरदार, मेरे पास एक बहुत ही खास खबर है जिससे आप घाना और माली दोनों देशों के सारे सरदारों को मिला कर उन सबसे भी अधिक अमीर बन जायेंगे। ”

सरदार ने पूछा — “तब तुम वह खबर अपने ही पास रख कर खुद ही अमीर क्यों नहीं बन जाते?”

अहमाडु ने नम्रता से जवाब दिया — “क्योंकि इतनी अमीरी तो केवल सरदारों को ही अच्छी लगती है जहाँपनाह। अगर मैं इतना अमीर बन गया तो मुझे पूरा यकीन है वह खजाना मुझसे आप ले लेंगे। इसलिये मैंने यह सोचा कि उसे मैं आपको अपने आप ही दे दूँ। ”

सरदार बोला — “अहमाडु, तुम बहुत ही अक्लमन्द आदमी हो। बताओ क्या खबर है?”

तब अहमाडु ने अपना घोड़ा और उसकी लीद सरदार को दिखायी। सरदार को ऐसा घोड़ा देख कर बहुत आश्चर्य हुआ जो अपनी लीद में सोना निकालता था।

इससे पहले कि वह अपने आश्चर्य पर काबू पाता कि इतने में घोड़े ने फिर से लीद की और उसमें भी सोने का एक टुकड़ा चमचमा रहा था।

सरदार ने पूछा — “तुम इस घोड़े का क्या लोगे। और देखो ठीक दाम बताना क्योंकि तुम यह जानते हो कि मैं तुमसे वह घोड़ा बिना कुछ दिये भी ले सकता हूँ। ”

अहमाडु बोला — “मैं हमेशा ठीक ही बोलता हूँ जहाँपनाह। आपके एक बहुत ही छोटे नौकर की हैसियत से मैं इसका दाम केवल 100 सोने के टुकड़े और 100 चाँदी के टुकड़े माँगता हूँ। ”

फिर उसने सरदार के आदर में अपने दोनों हाथ अपनी छाती से लगाये और उसके अपने दाम लगाने का इन्तजार करता रहा।

सरदार बोला — “उठो मेरे बच्चे। तुमको 100 सोने के टुकड़े और 100 चाँदी के टुकड़े मिल जायेंगे। ”

और इसके साथ ही उसने अपने नौकरों को अहमाडु से घोड़े का मामला तय करने के लिये बोल दिया।

अहमाडु को तो विश्वास ही नहीं हुआ कि सरदार इतना दयालु था। अहमाडु फिर बोला — “यह देखने के लिये कि कोई आपका सोना चोरी न करले आप घोड़े को अलग रखियेगा और अपने बहुत ही यकीन के नौकरों को चार चाँद तक उसकी रक्षा के लिये रखियेगा।

उसके बाद आप अपने कुछ नौकर उस सोने को घोड़े की लीद से अलग करने के लिये लगाइयेगा जो उस काम को आपके बहुत ही यकीन वाले लोगों की देखरेख में करेंगे। ” इतना कह कर और अपने पैसे ले कर वह वहाँ से चला गया।

चार चाँद बाद उस घोड़े को जहाँ रखा गया था वह जगह उसकी लीद से भर गयी। सरदार के नौकरों ने वह पूरी लीद छान मारी पर उसमें तो उनको सोने का एक टुकड़ा भी नहीं मिला।

यह देख कर सरदार गुस्से से भर गया। उसने अहमाडु को बुलाने के लिये यह कह कर अपने आदमी भेजे कि — “उस कमीने को मेरे पास ज़िन्दा ले कर आओ और अगर वह न आये तो उसको मार दो और उसका मरा हुआ शरीर ले कर आओ ताकि मैं उसको गिद्धों को खाने के लिये फेंक सकूँ। ”

अहमाडु तो इसके लिये तैयार ही था क्योंकि उसको मालूम था कि सरदार उसको बुलायेगा ही क्योंकि उस घोड़े की लीद में सोना तो निकलना ही नहीं था सो जैसे ही सरदार के आदमी उसके पास आये तो उसने अपनी पत्नी को भी साथ लिया और उनके साथ चल दिया।

उसने अपनी पत्नी को अपना प्लान पहले से ही बता दिया था — “जब हम सरदार के पास पहुँचेंगे तुम जो कुछ भी में कहूँ उस हर बात पर बहस करना और उसको काटना। इस तरह हम आपस में लड़ेंगे और वहाँ से आगे मैं देख लूँगा। ”

अहमाडु ने एक सोने का टुकड़ा लिया और एक मुर्गा खरीदा। फिर उसने उस मुर्गे को मारा और उसका खून एक साँप की खाल के थैले में भर कर उस थैले का मुँह बाँध कर अपनी पत्नी के गले के चारों तरफ बाँध दिया। उसके बाद वे सरदार के पास चले।

सरदार के घर आ कर अहमाडु ने उसको झुक कर सलाम किया और बोला — “सरदार अमर रहे। जहाँपनाह ने मुझे बुलाया?”

सरदार बोला — “तुम कह रहे थे कि तुम्हारा घोड़ा अपनी लीद में सोना निकालता है। मैंने उसको तुम्हारे कहे अनुसार चार चाँद तक एक अकेली जगह में रखा पर मुझे उसकी लीद में से सोने का एक टुकड़ा भी नहीं मिला। ”

अहमाडु ने ज़ोर से कहा — “पर मैंने तो आपसे यह केवल कहा ही नहीं था बल्कि करके भी दिखाया भी था। ”

उसकी पत्नी बोली — “सरकार, इसने आपको धोखा दिया था। वहाँ कोई सोना वोना नहीं था। ”

अहमाडु चिल्लाया — “चुप रह झूठी। ”

पत्नी ने भी जवाब में कहा — “तुम झूठे हो। ”

अहमाडु ने गुस्सा होने का बहाना करते हुए अपनी पत्नी को बहुत डाँटा। फिर उसने अपना छोटा सा चाकू निकाला और उसके गले में लिपटा हुआ वह साँप की खाल वाला थैला काट दिया।

इससे उस थैले में भरा सारा खून फर्श पर बिखर गया और उसकी पत्नी जमीन पर गिर पड़ी।

यह देख कर सरदार चिल्लाया — “तुमने अपनी पत्नी को मार दियाÆ”

अहमाडु बोला — “आपने मुझे बुलाया था न? क्यों बुलाया था। जल्दी बताइये ताकि मैं इसको फिर से ज़िन्दा कर सकूँ। ”

सरदार यह सब देख कर परेशान था वह बोला — “तुमने अभी अभी एक इतना बड़ा जुर्म किया है और तुम मुझसे पूछ रहे हो कि मैंने तुमको क्यों बुलाया है?

भूल जाओ कि मैंने तुमको क्यों बुलाया है। तुमने अपनी पत्नी को मारा है। तुमने एक भयानक जुर्म किया है और वह भी मेरी आँखों के सामने सामने। अब तुम उसकी सजा भुगतने के लिये तैयार हो जाओ। ”

अहमाडु ने तुरन्त ही एक कैलेबाश भर कर पानी माँगा। सरदार ने पानी मँगवा दिया। अहमाडु ने उसके ऊपर कुछ शब्द बोले। फिर उसने अपनी गाय की पूँछ का चँवर उस पानी में डुबोया और उस पूँछ को सात बार झटक कर उससे एक आवाज करते हुए वह पानी अपनी पत्नी पर छिड़क दिया।

वह बोला — “इसका कटा हुआ गला ठीक हो जाये और मैं तुझे हुकुम देता हूँ कि तू उठ जा। ”

अहमाडु की पत्नी तुरन्त ही उठ कर बैठी हो गयी और अपने पति को गले लगा लिया। अब उसका गला भी कटा हुआ नहीं था।

गाय की उस पूँछ के चँवर की ताकत को देख कर सरदार ने सोचा कि अगर यह चँवर उसके पास हो तो वह कितना ताकतवर हो जाये। वह अपने उन सब मरे हुए लोगों को ज़िन्दा कर सकता था जो लड़ाई में मारे जाते थे।

सो वह अहमाडु से बोला — “मैंने तो कभी यह सोचा भी नहीं था कि मैं अपनी आँखों से ऐसी ताकत देख पाऊँगा। मुझे लगता है कि मैं लीद में सोना निकालने वाले घोड़े के बदले में यह चँवर लेना ज़्यादा पसन्द करूँगा। तुम मुझे इसे कितने में बेचोगे?”

अहमाडु बोला — “मुझे यकीन है कि अब आप जानते हैं कि यह चँवर इस घोड़े से कहीं ज़्यादा कीमती है। पर आपको मैं इसको 200 सोने के टुकड़े और 200 चाँदी के टुकड़ों में दे दूँगा। ”

सरदार ने उस चँवर के दाम अहमाडु को दे दिये आरै वह चँवर उससे ले लिया।

एक दिन जब सरदार अपने सलाहकारों के साथ खा रहा था और पी रहा था तो वह अपनी नयी ताकत उन सबको दिखाना चाह रहा था।

जब उसकी एक पत्नी वहाँ और खाना रखने के लिये आयी तो उसने उन लोगों से कहा कि वह पहले उसको मार देगा और फिर उसे ज़िन्दा कर देगा।

तुरन्त ही उसने अपनी पत्नी को पकड़ कर जमीन पर गिरा दिया और उसका गला काट दिया। उसका एक सलाहकार यह देख कर घबरा गया और चीख पड़ा — “सरदार, यह आपने क्या किया? आपने तो उन्हें मार ही दिया?”

सरदार बोला — “ठीक। अब हम खाना खाते हैं और पीते हैं। बाद में मैं उसको जल्दी ही ज़िन्दा कर दूँगा। ”

पर उसके सलाहकारों को तो चिन्ता हो रही थी। उन्होंने सरदार को उसे जल्दी ही ज़िन्दा करने को कहा।

सरदार ने तब वह चँवर कैलेबाश में भरे पानी में डुबोया और अहमाडु की तरह कुछ शब्द बोले। फिर उसने चँवर को सात बार हवा में हिलाया और उसका पानी अपनी पत्नी के शरीर पर छिड़क दिया। उसने उसको हुक्म दिया कि वह उठ जाये।

पर वह तो वहीं की वहीं पड़ी रही हिली भी नहीं। उसने वह सब एक बार और दोहराया पर फिर भी कुछ नहीं हुआ। यह देख कर वह खुद भी डर गया।

उसने अपने नौकरों को फिर से अहमाडु को लाने के लिये कहा और बोला कि अब की बार तो उसे मरना ही पड़ेगा। नौकर अहमाडु को सरदार के पास ले आये।

सरदार ने अपने बहुत ताकतवर आदमियों को उसे उसके हाथ पीछे बाँध कर एक डूबने वाली चीज़ से बाँधने को कहा। फिर उसको एक चमड़े के थैले में डाल कर नदी के सबसे गहरे हिस्से में फेंकने के लिये बोल दिया।

उन आदमियों ने उसके हाथ उसके पीछे बाँधे और एक चमड़े के थैले में डाल कर उस थैले का मुँह रस्सी से बाँध दिया। फिर वे उसको नदी में फेंकने के लिये नदी पर ले गये।

वे सुबह से ले कर शाम तक चलते रहे। अब उनको लघुशंका के लिये जाना था सो वह थैला उन्होंने सड़क के किनारे रख दिया और एक झाड़ी की तरफ चले गये।

इससे पहले कि वे वहाँ से लौट कर आते एक कोला नट बेचने वाला व्यापारी अपने गधे पर चढ़ कर वहाँ से गुजर रहा था।

अहमाडु को कुछ आवाज आयी तो वह थैले में से बोला — “मेहरबानी करके मेरी सहायता करो। मुझे सोना नहीं चाहिये। उन्होंने कहा है कि सरदार अपनी ज़िन्दगी बचाने के लिये मुझे अपना खजाना देना चाहता है। पर मुझे उसका कोई खजाना नहीं चाहिये, मैं गरीब ही ठीक हूँ। ”

वह व्यापारी बोला — “तुम पागल हो गये हो क्या? हर आदमी अमीर होना चाहता है और तुम कह रहे हो कि तुम गरीब ही ठीक हो। ”

अहमाडु बोला — “हाँ मैं ठीक कह रहा हूँ। वह खजाना तुम ले लो। यह पैसा मेरे लिये हमेशा से ही एक परेशानी रहा है। तुम मुझे खोल दो और तुम मेरी जगह इस थैले में बैठ जाओ। मुझे वह खजाना नहीं चाहिये। वह खजाना तुम ले लेना। ”

व्यापारी ने तुरन्त ही वह थैला खोला, अहमाडु को बाहर निकाला और खुद उस थैले में बन्द हो गया। अहमाडु उस व्यापारी के कोला नट उस गधे पर ले कर वहाँ से चला गया।

ज्ल्दी ही सरदार के आदमी लघुशंका से वापस आ गये। उन्होंने वह थैला उठाया और उसे उठा कर चल दिये। उनमें से एक बोला — “सो आखिर अहमाडु तुम हमारे हाथ लग ही गये। अब तुम किसी को धोखा नहीं दे पाओगे। हम तुम्हें अब नदी में फेंक देंगे। ”

व्यापारी यह सुन कर थैले में से चिल्लाया — “नहीं नहीं। मैं अहमाडु नहीं हूँ, मैं तो मैं हूँ। मुझे खोल दो। ”

वे लोग बोले — “हाँ हाँ हाँ। वह तुम ही हो, वह तुम ही हो। ” कह कर उन्होंने उस थैले को नदी में फेंक दिया और सरदार के पास लौट गये।

पर इससे पहले कि सरदार के नौकर उसको सारी खबर बताते कि अहमाडु गधे पर सवार हो कर वहाँ आ पहुँचा। सरदार तो उसको देख कर कुछ बोल ही नहीं सका।

अहमाडु सरदार से बोला — “सरदार, आपके पुरखों ने आपको आशीर्वाद भेजा है और साथ में ये कुछ कोला नट भेजे हैं। अच्छा हो अगर आप भी उनसे मिलने चले जायें। वे आपको बहुत याद करते हैं।

जहाँ वे हैं वहाँ सोना और चाँदी टनों में है। वे चाहते हैं कि आप वहाँ खुद जा कर वह सोना चाँदी ले आयें। आपको वहाँ जरूर जाना चाहिये जहाँ मैं गया था। जब तक आप वहाँ से लौट कर आते हैं तब तक मैं यहाँ रहता हूँ। ”

यह सुन कर सरदार ने अपने गाँव वालों को बुलाया और उनसे कहा — “अहमाडु ने मेरे पुरखों को देखा है। मैं भी उनको देखने जाना चाहता हूँ।

जब तक मैं उनको देख कर वापस आता हूँ तब तक यह अहमाडु तुम्हारा सरदार रहेगा। तुम लोग उसकी उसी तरीके से सेवा करना जैसे मेरी करते रहे हो। ”

अहमाडु ने सरदार के नौकरों को सरदार को वैसे ही चमड़े के थैले में बाँध कर नदी के सबसे गहरे हिस्से में फेंक देने के लिये कह दिया। सरदार के आदमी सरदार को थैले में बाँध कर नदी पर ले गये और उसको नदी में फेंक दिया।

अहमाडु ने उस गाँव पर चार चाँद तक राज किया और जब सरदार वापस नहीं आया तो वह उस गाँव का असली सरदार बन गया। इस तरह से गाँव का वह चोर गाँव का असली सरदार बन गया।

(साभार : सुषमा गुप्ता)

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