सोने की चिड़िया (उड़िया बाल कहानी) : रघुनाथ राउत/ରଘୁନାଥ ରାଉତ
Sone Ki Chidiya (Oriya Children Story) : Raghunath Rout
एक रियासत थी। उस रियासत के लोग बड़े कंजूस और आलसी थे । वे लोग हमेशा यही सोचा करते थे कि काश उनके घर सोने से भर जाते। भले ही उन लोगों के मन में सोने की प्रबल लालसा थी, परन्तु उस रियासत में रत्ती भर भी सोना नहीं था ।
किसी दिन जाने कहाँ से उस रियासत में एक सोने की चिड़िया आ पहुँची । चिड़िया बहुत ही सुन्दर थी। उसे देखकर आँखें चौंधिया जाती थीं । जब वह अपने पंखों को लहराते लहराते एक पेड़ से दूसरे पेड़ पर जा बैठती और गाना गाने लगती तो उसे देखकर लोग आश्चर्य करते। उसे पकड़ने के लिए कितने ही उपाय किए गये, लेकिन सोने की चिड़िया बड़ी होशियार थी। उसे अंदेशा हो गया था कि अगर वह पकड़ी गयी तो सोने के ये लालची लोग उसे जरूर जान से मार डालेंगे। इसलिए वह उस रियासत को छोड़कर कुछ दिनों के लिए और कहीं भाग गयी।
कंजूस लोग उसे ढूँढ़ते-ढूँढ़ते थक गये ।
एक दिन की घटना है। सुबह का समय था। सुनहली धूप सोने के हिरन की तरह चारों ओर कूद कर बिखरी थी। सोने की चिड़िया उसी समय चोंच में एक सोने का फल दबाए फिर उसी रियासत में दिखाई पड़ी। वह आँगनों में घूम-घूमकर मधुर स्वर में गाना गाने लगी।
मैं हूँ चिड़िया सोने की
मैं हूँ चिड़िया सोने की
पंख झारूँ तो पर गिरेगा
सोने का, पर किसे मिलेगा?
भला आदमी मेरा प्यारा
सोने का फल होगा तेरा
सोने की चिड़िया का गाना सुनकर लोगों में सोने का फल पाने के लिए प्रतियोगिता शुरू हो गयी। सब ने अच्छे-अच्छे काम का बहाना करके, भले आदमी बनने और सोने का फल जीतने के लिए कोशिशें कीं। चिड़िया से हरेक ने अनुरोध किया, 'मैं ही भला आदमी हूँ. मैं हूँ, सोने का फल पाने के योग्य । मुझे फल दो ।' भले आदमी का दावा करने वाले लोग आपस में झगड़ने लगे। चिड़िया से फल पाने के लिए उसके पीछे-पीछे दौड़ने लगे।
सोने की चिड़िया सोने का फल चोंच में दबाकर पेड़ों की डालियों पर फुदकती फिरती रही। उसकी नजर में एक भी भला आदमी उस रियासत में दिखाई नहीं दिया।
एक दिन उड़ते समय उसने देखा कि वैसाख के महीने की जलती हुई दुपहरी में लगभग अस्सी बरस का एक फटेहाल किसान खेत में कुदाल चला रहा है और पसीने से तर-बतर है। उस खेत के नजदीक के एक दूँठे पेड़ पर बैठकर चिड़िया ने सुरीले ढंग से अपना प्यारा गाना गाया-
मैं हूँ चिड़िया सोने की
मैं हूँ चिड़िया सोने की
चोंच फैलाकर बड़े प्रेम से
नदी का पानी पीती हूँ
भला जानकर सोने का फल
बड़े प्यार से देती हूँ ।
उसने बड़े प्रेम से अपने गाने को कई बार दोहराया। लेकिन उस बूढ़े ने अपना काम छोड़कर एक बार भी उसकी तरफ नहीं देखा। सोने की चिड़िया को बड़ा आश्चर्य आश्चर्य हुआ।'आश्चर्य है, उसके मन में तो जरा-सा भी लोभ नहीं है। उसके पास जाकर वह बोली, 'दादाजी, नमस्ते । सिर्फ एक मिनट काम रोककर मेरी बात सुनोगे?'
बूढ़ा कमर सीधी करके खड़ा हुआ और उसकी तरफ देखकर बोला, 'क्या कहती है, जल्दी कह, देर होती जा रही है। कितना सारा काम बाकी है ।'
सोने की चिड़िया ने पूछा, 'क्या तुम्हें मेरे आने की बात नहीं मालूम। सोने के फल की बात तुमने नहीं सुनी ?"
बूढ़ा अपने पोपले मुँह से मुस्कराते हुए बोला, 'सब मालूम है। परन्तु उस फल का लोभ मेरे मन में नहीं है। इसी खेत में मेहनत करके मैं हर साल सोने की फसल उगाता हूँ । मेरे बाल-बच्चे उसे खाकर खुशी से दिन गुजार लेते हैं। इससे वह सोने का फल क्या ज्यादा कीमती है ? '
बूढ़े की मीठी-मीठी बातें सुनकर चिड़िया का मन खुश हो गया। फिर वह कुछ बोली नहीं । बूढ़े के सामने सोने का फल गिराकर वह न जाने कहाँ उड़ गयी।
बूढ़ा बड़ी दुविधा में फँस गया। सोचा, 'मुझे तो खाने-पीने की कमी नहीं है। मैं जैसा हूँ वैसा ही ठीक हूँ । अमीर बनने की चाह मेरे मन में नहीं है । इस सोने के फल को बेचकर अमीर बन भी गया तो उससे ज्यादा खुशी की बात भला और क्या होगी ? इस मुल्क में तो जाने कितने गरीब हैं। मैं अकेले अमीर बन भी गया तो क्या लाभ होगा। इसे मिट्टी में गाड़ देना ही बेहतर होगा। पेड़ हो जाने पर बहुत फलेगा। सोने का फल पाकर मैं भी अमीर बनूँगा और मुल्क के और लोग भी ।'
यही सोचकर बूढ़े ने एक बड़ा-सा गढ़ा खोदकर सोने का उसमें फल गाड़ दिया। कुछ रोज बाद सोने का अंकुर निकला और धीरे-धीरे एक पेड़ खड़ा हो गया। सोने के फल, फूल, पत्ते से वह पेड़ लद गया। उस मुल्क के लोग उससे फल तोड़कर ले जाने लगे और अपने-अपने घरों में सोने के अंबार खड़े कर दिये। सभी ने बूढ़े की तारीफ की। उस मुल्क का नाम पड़ा,
'सोने का मुल्क।'
लेकिन सोने के मुल्क में रहकर भी बूढ़े का मन खुश न था । वह हमेशा उदास रहता था। लोगों की सराहना को अनसुना करके वह दिन-रात सिर्फ उस सोने की चिड़िया की याद किया करता था । उसी की वजह से सारा मुल्क अमीर बना है। यही सोचकर वह फूला नहीं समाता था । उसका दिल चाहता था कि यदि उस चिड़िया से भेंट हो जाती तो बड़ी श्रद्धा से उसकी पूजा करता। खाने को मीठे-मीठे फल देता। अपने हाथ से कटोरे से दूध पिलाता ।
सचमुच एक दिन वह चिड़िया उस मुल्क में आ गयी, मानो बूढ़े के मन की बात वह जान गयी हो। यह देखकर उसे बेहद आश्चर्य हुआ कि अबको बार किसी ने उसकी ओर आँख उठाकर भी नहीं देखा। केवल वह बूढ़ा उसकी राह देख रहा था। उसने बूढ़े के पास जाकर पा- लागन किया और पूछा, 'दादाजी; सब कुशल-मंगल तो है !'
बूढ़ा सोने की चिड़िया को देखते ही खुशी से नाच उठा । मानो उसे आसमान का चाँद मिल गया हो। बड़े प्यार से अपने पास बिठाया और बोला, 'सब कुछ ठीक है। मेरे पड़ोसी मजे में हैं। सभी मिल जुलकर बड़े प्रेम से रह रहे हैं। उनकी खुशियाँ देखकर मैं भी खुश हूँ। लेकिन एक बात ने मेरी नींद हराम कर दी है। मेरा मन बहुत दुःखी है।'
चिड़िया बोली, 'कहो, क्या बात है ? मुझे बताओगे नहीं?'
बूढ़े ने कहा, 'मैं तो बूढ़ा हो चला। मेहनत-मजूरी करना अब संभव नहीं होता। यूँ ही बैठे-बैठे दूसरों की कमाई खाना मुझे अच्छा नहीं लगता । यह तो हराम का खाना है।'
सोने की चिड़िया मुस्करा कर बोली, 'समझी, तुम अब मरना चाहते हो । ठीक है । अब मैं चली।' इतना कहकर चिड़िया फुर्र हो गयी।
कुछ समय बाद एक फल चोंच में दबाये हुए आई। वह फल लाल रंग का था । बोली, 'लो यह जहर का फल है। इसे खाने से तत्काल बड़े आराम से मरोगे। मरने में कोई तकलीफ नहीं होगी।' यह कहकर चिड़िया ने बूढ़े के हाथ पर फल रख दिया और फुर्र हो गयी ।
अब बूढ़ा खूब खुश था। बड़े अनुग्रह के साथ उसने वह फल खाया । पर यह क्या ? कुछ समय बाद उसने अनुभव किया कि मरने के बजाये उसका शरीर बदलता जा रहा है। वह बीस-बाईस साल का एक जवान बन गया है। उसकी बाँहों में दुगनी ताकत आ गई है। सोने की चिड़िया ने जहर के फल के बदले अमृत का फल खिला कर उसे ठग दिया है।
'बूढ़ा जवान बन गया' - यह खबर सारे मुल्क में तत्काल फैल गयी। उसे देखने के लिए दिन-रात भीड़ लगी रही । बूढ़े के जवान रूप को देखकर लोगों की आँखें खुल गयीं। सभी ने अनुमान लगाया कि चिड़िया ने बूढ़े को क्यों सोने का फल खिलाकर जवान बनाया है। यह समझ आ जाने के बाद लोगों के मन से लोभ-लालच दूर हो गयी सब लोग कड़ी मेहनत करने लगे । दिन-ब-दिन उनका सुख बढ़ता गया। सारा का सारा मुल्क सुखी हो गया ।
(संपादक : बालशौरि रेड्डी)