सोने का घड़ा : हरिकृष्ण देवसरे

वनमानुस हम-तुमसे मिलता-जुलता प्राणी है। वह अफ्रीका महाद्वीप का निवासी है और घने जंगलों में रहता है। लोग उसे ‘गोरिल्ला’ भी कहते हैं। किसी समय वह भी आदमियों के समान बातें करता, सुनता और समझता था। परन्तु, एक बार एक आदमी ने उसके साथ ऐसा व्यवहार किया, जिससे उसका हृदय टूट गया। बस, उसने कसम खा ली कि मैं कभी आदमी के सामने न बोलूँगा - उसे देखते ही चुप्पी साध लूँगा।

तुम यह जरूर जानना चाहोगे कि वह कौन-सी बात थी, जिससे वनमानुस ने आदमी के सामने चुप रहने की कसम खायी है - अच्छा, तो सुनो।

अफ्रीका में एक नदी के किनारे एक आदमी झोंपड़ी बनाकर रहता था। उसका नाम था गीका। उसकी पत्नी का नाम तो और भी भला था - वह सुदीला कहलाती थी। वैसे तो गीका और सुदीला सुखी थे, पर सन्तान के नाम पर उनके एक कानी बेटी भी न थी। इससे वे कभी-कभी दुखी हो उठते थे। एक दिन सुदीला रोती-रोती बोली, “बच्चे के बिना राजमहल भी सूना मालूम होता है, फिर यह तो नन्ही-सी झोंपड़ी है। हाय! हम लोग बड़े अभागे हैं। हमारी इतनी उम्र हो गयी और हम अब तक सन्तान का मुँह न देख सके। जब हम बूढ़े होंगे, तो कौन हमारी सहायता करेगा? जब हम मरेंगे, तो हमारे लिए कौन रोएगा? हमारे बाद कौन इस झोंपड़ी का मालिक होगा? तुम तो मेरे कहने पर कान ही नहीं देते।”

गीका ने कहा, “यदि देवता की यही इच्छा है, तो हम क्या कर सकते हैं? न हो तो एक काम करो। बाजार चलो और एक नन्हा-सा बालक मोल ले लो। उसे अपने बच्चे की तरह पालो। बड़ा होने पर वह हम लोगों को ही अपना माँ-बाप समझेगा। जब हम बूढ़े होंगे तो हमारी सहायता करेगा। जब हम मरेंगे, तो हमारे लिए रोएगा और हमारी झोंपड़ी का मालिक होगा। कहो, क्या कहती हो? यह सलाह पसन्द हो, तो बाजार चलने की तैयारी कर लो।”

सुदीला को यह सलाह पसन्द आयी। उसने जोड़-तोड़ मिलाकर बाजार की तैयारी की और दूसरे दिन गीका के साथ बाजार का रास्ता लिया। उन्होंने बाजार में बालक की बहुत तलाश की, परन्तु भगवान की इच्छा, उन्हें कहीं कोई बालक न मिला, मिली केवल एक बालिका। लाचार उन्होंने वही बालिका मोल ले ली।

खुश होकर गीका बोला, “वाह! यह चाहे बालिका है, पर एक बालक से ज्यादा हमारी सहायता करेगी। बालक से भी ज्यादा हमारे लिए तड़पेगी, क्योंकि कन्याएँ स्वभाव से अधिक ममतालु होती हैं।”

सुदीला ने कहा, “सच है, बिलकुल सच! यह बालिका तो मुझे बालक से भी ज्यादा प्यारी मालूम हो रही है।”

इस तरह बातें करते हुए वे बालिका को अपने घर ले आये और बड़े प्रेम से उसका पालन-पोषण करने लगे।

गीका रोज फल-फूल बटोरने के लिए जंगल में जाता था। सुदीला नदी-किनारे मछलियाँ पकड़ने का काम करती थी। अब उस पर लड़की का बोझ आ गया, इसलिए वह उसे भी काम पर साथ ले जाती, किसी पेड़ की छाया में लिटा देती और आप नदी-किनारे बैठकर मछलियाँ पकड़ती रहती। यहाँ मौका पाते ही एक वनमानुस आता और लड़की को खूब दुलारता। कभी मीठे-मीठे फल लाता और उसे खिलाता। कभी उसे गोद में उठाता और घण्टों उसके साथ खेला करता।

एक दिन बालिका मजे से लेटी-लेटी सो रही थी। अचानक कहीं से एक बिच्छू आ निकला और उसके कपड़ों पर चढ़ गया। बालिका की नींद खुल गयी। वह मारे डर के जोर-जोर से रोने लगी। इतने में वनमानुस फल लिये हुए आ पहुँचा। उसने फौरन बिच्छू का काम तमाम कर दिया। फिर वह बालिका को गोद में उठाकर फल खिलाने लगा। वनमानुस को देखते ही बालिका चुप हो गयी और बड़े चाव से फल खाने लगी।

उधर बालिका की चीख-पुकार सुदीला के कानों में पड़ी, तो वह भी दौड़ती-दौड़ती आ पहुँची। ज्योंही उसने वनमानुस को देखा, त्यों ही बिना सोचे-समझे चिल्लाना शुरू कर दिया।

वनमानुस ने उससे कहा, “यह पागलपन छोड़ो, सुदीला! तुम नहीं जानतीं कि मैं तुम्हारी लड़की को किस तरह चाहता हूँ और कितनी सावधानी से उसकी रखवाली करता हूँ। मैंने और कुछ नहीं किया है, सिर्फ यह बिच्छू मारा है और तुम्हारी लड़की को दो-चार फल खिलाये हैं। परन्तु तुम अपने पति को यह हाल न बताना, नहीं तो वह बेवकूफी कर बैठेगा। आप हानि उठाएगा और मुझे हानि पहुँचाएगा। यदि मेरी बात न मानोगी, तो पीछे तुम्हीं पछताओगी। समझ गयी न?”

यह कहकर गोरिल्ला चला गया।

सुदीला उस समय तो मान गयी, परन्तु बात उसके पेट में पची नहीं। कई दिन तक वह इसी सोच में पड़ी रही कि पति से इस घटना की चर्चा करूँ कि नहीं? अन्त में एक दिन अपने पति को वनमानुस की बात बता ही दी।

गीका आग-बबूला होकर बोला, “यह तो बहुत बुरी बात है, गोरिल्ला तुम्हें धोखा देकर निकल गया। भला, उसे क्या गरज पड़ी थी कि वह हमारी बेटी को बचाने आता? गोरिल्ला मनुष्य की बेटी को प्यार करे, यह तो एक अचरज की बात है। जरूर उसके मन में कोई पाप है। अच्छी बात है। कल देखा जाएगा। यदि उसको इस चालाकी का मजा न चखाया तो मेरा नाम गीका नहीं।”

दूसरे दिन जब सुदीला बालिका को लेकर नदी किनारे पहुँची, तो गीका भी उसके पीछे-पीछे गया और एक झुरमुट में छिपकर बैठा रहा।

थोड़ी देर बाद वनमानुस आया और बालिका को गोद में लेकर दुलारने लगा। गीका तो घात में था ही, उसने फौरन ताक कर वनमानुस पर तीर छोड़ दिया। परन्तु भाग्य की बात वनमानुस साफ़ बच गया, तीर लगा बालिका को और वह पाँच मिनट में ही छटपटाकर रह गयी।

वनमानुस को बहुत दुख हुआ। उसने गीका से कहा, “ए बेवकूफ़ आदमी, तूने यह क्या किया। मैं तेरी बेटी को अपनी बेटी समझता था, उसे घड़ी भर के लिए अपनी गोद में उठा लेता और दो-चार फल-फूल खिला देता था, तो क्या बुरा करता था? यदि मैं ऐसा जानता, तो तेरी बेटी को छूता भी नहीं। हाय! हाय! तू बड़ा पापी और बड़ा हत्यारा है। तूने बिना सोचे-समझे अपनी फूल-सी बेटी की हत्या कर डाली। धिक्कार है तुझे। तू मुझसे नाहक इतनी नफ़रत करता है। जा, मैं कसम खाता हूँ कि आज से तेरे सामने बोलूँगा भी नहीं, तू इसी लायक है।”

यह कहकर वनमानुस घने जंगल में चला गया। उसी दिन उसने आदमी के सामने आना छोड़ दिया। यदि कभी वह आदमी के सामने आ भी जाता है, तो एकदम चुप्पी साध लेता है।

  • मुख्य पृष्ठ : कमलेश्वर; हिंदी कहानियां, उपन्यास और अन्य गद्य कृतियां
  • मुख्य पृष्ठ : संपूर्ण हिंदी कहानियां, नाटक, उपन्यास और अन्य गद्य कृतियां