सोना-ही-सोना (ब्रिटिश कहानी) : एडमंड बर्क

Sona-Hi-Sona (British Story) : Edmund Burke

आज से चालीस-पचास वर्ष पहले की बात है। कोलंबिया के कार्टाजेना नगर में एक बीमार से व्यक्ति की कहानी आम चर्चा का विषय बनी हुई थी। इस व्यक्ति का नाम था गोमेज। गोमेज लोगों से धन माँगा करता था। उसका कहना था, उसने अमेजान नदी के दक्षिण में एक ऐसा पुराना नगर देखा है, जहाँ चारों ओर सोना-ही-सोना बिखरा है। सोने के मंदिर, सोने की मूर्तियाँ, सोने के बरतन! तात्पर्य यह कि हर तरफ सोना-ही-सोना! गोमेज एक अभियान दल के साथ इस नगर तक हो आया था। वह अपने साथ कुछ सोना भी लाया था, पर दुर्भाग्य से अब उसके पास एक पाई तक नहीं बची थी। यह कहानी, गोमेज के अपने शब्दों में :

सन् 1931 की बात है। मैं मानाओस नामक कस्बे में था। एक दिन मुझे पता चला कि एक यूरोपीय अभियान दल को एक मार्गदर्शक की जरूरत है। यह अभियान दल नदियों में नौकाओं से यात्रा कर जंगलों और उनमें पाई जानेवाली चट्टानों का सर्वेक्षण करना चाहता था। मुझे नदी-मार्गों का अच्छा ज्ञान था। मैं बेकार था और यह काम बखूबी कर सकता था। मैंने अभियान दल के मुखिया से बात की। वह मेरी योग्यता से प्रभावित हुआ और उसने मुझे अभियान दल का मार्गदर्शक नियुक्त कर लिया। बाद में मुझे पता चला, उस दल के तीन मुखिया थे—एक फ्रांसीसी, एक जर्मन और एक ब्राजीलियन।

हम रियो नीग्रो नामक नदी में यात्रा पर चल पड़े। एक रात की बात है। हम लोग नदी तट पर शिविर स्थापित कर विश्राम कर रहे थे। मुझे नींद नहीं आ रही थी। अतः मैं अकेला तट से लगे जंगल की ओर चला गया। सहसा मुझे लगा कि झाडि़यों में कोई छिपा है। मैंने समझा, कोई जानवर है; पर वह जानवर नहीं, एक मनुष्य था। चेहरा काले रंग से पुता हुआ। मैं तुरंत वापस भागा। मैंने दल के तीनों मुखियों को यह बात बताई। रात में उस व्यक्ति को ढूँढ़ना खतरे से खाली नहीं था। तय हुआ, सवेरे जाँच-पड़ताल की जाए।

सुबह हम लोगों ने जाँच की तो पाया कि नदी के तट की रेत पर कई लोगों के कदमों के निशान थे। अर्थात् रात को वहाँ कई लोग आए थे।

अब तो सभी लोग सतर्क हो गए। हमने पुनः नौकाओं में बैठकर यात्रा शुरू कर दी।

दोपहर में एक स्थान पर हम रुके। दल के मुखियों ने नौकाओं में पत्थर डालकर उन्हें पानी में डुबा दिया, ताकि जब वे लौटें तो नौकाएँ सुरक्षित मिलें।

अब हम घने जंगलों के बीच से गुजर रहे थे। दल के लोग कभी किसी चट्टान को तोड़कर उसका परीक्षण करते, कभी किसी पौधे को अपने थैले में रखते।

मुझे ऐसा लगता जैसे कई लोग हमपर निगाहें रखे हुए हैं। कभी-कभी हमें नगाड़ों की धीमी-धीमी आवाज भी सुनाई देती। इसका अर्थ साफ था—नगाड़ों द्वारा जंगल के निवासी हमारी उपस्थिति और हमारे यात्रा-मार्ग की सूचना भेजते थे। हम लोगों के दल में आठ बंदूकें और आठ पिस्तौलें थीं। गोला-बारूद भी था। अतः हम कुछ निश्चिंत थे। फिर भी खतरा तो था ही। हम लोग रात को सोते वक्त बारी-बारी से पहरा देते। रात को नगाड़ों की आवाज सुनाई देती तो हमारे दिल काँप जाते।

इस तरह हम कई दिनों तक घने जंगलों में यात्रा करते, चलते-चलते एक ऐसे स्थान पर पहुँचे, जहाँ गहरी-गहरी खाइयाँ थीं। इन्हीं खाइयों में से एक में हमें एक पगडंडी दिखाई दी। कभी वह सड़क रही होगी, पर अब उसपर घास और घनी झाडि़याँ उग आई थीं। दल के मुखिया आपस में तर्क करने लगे कि यह सड़क किन लोगों ने बनाई होगी—प्राचीन इंका लोगों ने या किसी और ने।

हम सब इस पगडंडी के सहारे बढ़ने लगे। इस तरह हम कई दिनों तक चलते रहे। नगाड़ों की आवाजों ने अभी भी हमारा पीछा नहीं छोड़ा था।

एक दिन दोपहर को हम पत्थरों की एक विशाल दीवार के पास पहुँचे। पगडंडी यहीं जाकर खत्म हो गई थी। दीवार में एक द्वार था। द्वार पर दो गुंबद बने हुए थे। तीनों मुखिया आपस में चर्चा करने लगे। फिर उन्होंने हमें एक जगह पर रुकने का निर्देश दिया और खुद गुंबदों की ओर चले गए। थोड़ी देर बाद हमने देखा, वे एक विचित्र व्यक्ति के साथ हमारी ओर आ रहे थे। वह व्यक्ति कौन था? उसकी लंबी दाढ़ी थी, लाल रंग की। उसकी कमर में एक चमड़े का पट्टा बँधा था। उसमें सोने की परतें चढ़ी थीं। बौने की बाँहों पर भी सोने की पट्टियाँ बँधी थीं।

अब उस व्यक्ति के साथ हम सबने पत्थर की दीवार में बने द्वार में प्रवेश किया।

ओह! वहाँ का दृश्य देखकर हम आश्चर्य से भर उठे। भीतर एक नगर था। छोटे-छोटे मकान, बाजार, मंदिर! हमने उस बौने को खिलाया-पिलाया और फिर मुक्त कर दिया। वह हरिण की तरह चौकड़ी भरता हुआ भाग गया। हम जान गए कि मकानों में उस जैसे कई लोग छिपे हुए हैं। हमारी प्रत्येक गतिविधि पर उनकी निगाह है। पर हमारे पास बंदूकें थीं, पिस्तौलें थीं; अतः हम विशेष चिंतित नहीं थे।

हम लोग नगर के बीचोबीच बने मंदिर के पास पहुँचे। मंदिर को देखते ही हम लोगों के आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा। मंदिर तो सोने का बना हुआ था—सोने के स्तंभ, सोने की मूर्तियाँ, सोने के पात्र!

हमने मंदिर के पास बने हुए घरों को भी देखा। वहाँ भी हर चीज सोने की थी। पर आश्चर्य की बात, इन घरों में कोई नहीं रहता था। मुझे लगा, यहाँ तो सैकड़ों टन सोना पड़ा है, बस, उठाने की देर है।

शायद मुखिया भी यही बात सोच रहे थे। उन्होंने तय किया कि अब वापस लौटना चाहिए। बस, अब क्या था, दल के हर सदस्य ने सोने की बनी चीजें उठानी शुरू कीं। वहाँ कोई रोकनेवाला तो था नहीं। मेरा अनुमान है कि प्रत्येक व्यक्ति ने कोई बीस-बीस किलो सोना लाद लिया होगा।

अब हम लौट पड़े। किसी ने हमें सोना ले जाने से नहीं रोका। लेकिन यह यात्रा काफी कष्टप्रद थी। हमारे पास खाने-पीने का सामान प्रायः खत्म हो गया था और थकान भी हर दिन तोड़े जा रही थी। अतः रात होते ही हम आग जलाकर जो लेटते, तो नींद हमें दबोच लेती।

एक रात की बात है कि आग जलाकर हम सब लेटे हुए थे। थोड़ी देर बाद सारे लोग गहरी नींद में सो गए। आधी रात के बाद मैं ‘जंगल’ जाने के लिए उठा। चाँदनी रात थी, अतः मैं थोड़ा दूर निकल गया। ...और कुछ देर बाद लौटा तो मुझे जैसे साँप सूँघ गया। दल का प्रत्येक सदस्य पाँच फीट लंबे तीर से बिंधा था। मैं फौरन जंगल की ओर भागा। वहाँ झाडि़यों में छिपे-छिपे मैंने शेष रात गुजार दी।

सुबह हुई। मैंने झाडि़यों में छिपे-छिपे देखा, दल का कोई भी सदस्य जीवित नहीं बचा था। शायद वे बौने ही रात में आए थे। वे लूट का सारा माल वापस ले गए थे। साथ ही दल का सारा सामान भी। बंदूकें, पिस्तौलें, थैले—सबकुछ।

अब वहाँ ठहरना व्यर्थ था। खतरे से खाली भी न था। मैं पेट के बल रेंगता-रेंगता जंगल में बढ़ा। कुछ दूर जाने पर मुझे एक झरना दिखाई दिया। मैंने जी भरकर पानी पिया। कुछ जंगली फल खाए। थोड़ी ताकत आई तो सोचने लगा, क्या करूँ, कहाँ जाऊँ? मेरे पास न बंदूक थी, न भोजन। मैंने सोचा, बौने पूर्व दिशा से आए थे, अतः उत्तर दिशा की ओर बढ़ना चाहिए। बस, मैं चल पड़ा। झरनों का पानी पीता, जंगली फलों से भूख मिटाता, मैं कई दिनों तक चलता रहा। अंत में एक नदी के तट पर पहुँचा। वहाँ कोई अपनी नाव छोड़ गया था। मैंने क्षण-भर भी विलंब न किया। नाव में बैठकर उसे धारा में छोड़ दिया और इस तरह यहाँ पहुँचा।

यदि आप लोग साहस करें तो मैं आपको उस स्थान तक ले जा सकता हूँ। शर्त यही है कि लूट में आधा हिस्सा मेरा होगा।

यह गोमेज की आपबीती थी। कुछ लोगों को उसपर संदेह था। कुछ के लिए वह पागलपन था। पर कुछ लोग उसे सच समझते थे। कारण, वे जानते थे, जंगलों में आदिवासी सोने की चीजें इस्तेमाल तो करते हैं, पर उसे कीमती नहीं मानते।

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