बर्फ की लड़की : रूसी लोक-कथा
Snowmaiden : Russian Folk Tale
उस समय आधी रात हो रही थी। पूरे चाँद की चाँदी जैसी किरनें सारी धरती पर पड़ रही थीं।
अचानक सारा आसमान उन चिड़ियों से भर गया जो गर्म जगहों से वापस लौट आयी थीं। वहाँ वसन्त सारी धरती पर अपनी पूरी शान से आ गया था और वहाँ हंस और सारस भी दिखायी देने लगे थे।
उनमें से एक चिड़िया फ़र के पेड़ों से घिरे हुए एक खुले मैदान में उतरते हुए बोली — “उफ़, यहाँ कितना ठंडा है। ठंड ने तो यहाँ सब शाखाओं को कितना सख्त बना दिया है। घास के मैदानों में घास नहीं है, पेड़ सब चुपचाप नंगे और जमे पड़े हैं, पेड़ों के ठंडे तनों पर उनके गोंद जमे हुए लटके पड़े हैं।”
वह कुछ देर के लिये वहाँ रुकी पर फिर वह ऊपर आसमान की तरफ देख कर बोली — “अपने ऊपर तो साफ आसमान है। चाँद तारों को देखो तो वे कितने प्यार से चमक रहे हैं पर इस धरती को देखो यह तो इतनी सख्ती से चमक रही है जैसे हीरे का हार।”
जब वह यह सब कह रही थी तो उसके आसपास की सब चिड़ियें ठंड और शर्म से काँप रही थीं।
वह चिड़िया फिर बोली — “मैं ही तुम्हारे इन सब दुखों की जड़ हूँ। सोलह साल पहले मैंने ही लाल नाक वाले पाले से प्यार किया था। तभी से वह मेरे ऊपर राज कर रहा है।
क्योंकि हमारी एक बेटी है इसलिये मैं उसके खिलाफ भी नहीं जा सकती। वह उसको बहुत ही गहरे जंगल में अपने बर्फ के महल में रखता है।
उसी की वजह से मैं उससे झगड़ने से भी डरती हूँ। और इसी वजह से हम लोग बहुत दुख में हैं – उफ़ यह बेरहम ठंड और जाता हुआ वसन्त का यह मौसम।”
सुन्दर वसन्त अपनी बेटी को बहुत प्यार करती थी। उसने अपनी बेटी के बारे में सोचते हुए एक लम्बी साँस भरी। तभी वह बड़ा सा बूढ़ा लाल नाक वाला पाला जंगल में से बाहर आया।
वह सुन्दर वसन्त से खुशी से बोला — “हलो ओ सुन्दर वसन्त।”
सुन्दर वसन्त बोली — “हलो मिस्टर पाले। हमारी बेटी बर्फ की बेटी कैसी है?”
पाला बोला — “वह बिल्कुल ठीक है। मैं उसको अपने बर्फ के महल में अपने साथ ही रखता हूँ। अब तो वह इतनी बड़ी हो गयी है कि अब उसको किसी आया की भी जरूरत नहीं है।”
सुन्दर वसन्त ने उससे कुछ नाराज होते हुए कहा — “ओ बूढ़े, तुम किसी लड़की के दिल के बारे में कुछ नहीं जानते। वह अब सोलह साल की है। तुमको अब उसे जहाँ भी वह जाना चाहे वहाँ जाने देना चाहिये।”
बूढ़ा पाला बोला — “और सूरज उसको देख ले तो? क्या उसका दिल आदमियों के प्यार के लिये पिघल नहीं जायेगा? और फिर यारीलो सूरज देव उसको अपने कब्जे में ले लेंगे।”
इस तरह से दोनों माता पिता रात भर जंगल मे बैठे बैठे अपनी बेटी की किस्मत का फैसला करते रहे कि उनको उसके बारे में क्या करना चहिये और फिर आखीर में एक नतीजे पर पहुँचे।
लाल नाक वाला पाला बोला — “मुझे मालूम है कि एक जवान लड़की को ठीक से देखभाल की जरूरत होती है पर क्योंकि तुम्हारे पास तो उसको देखने भालने का समय ही नहीं है इसलिये हम उसको ऐसे अच्छे दिल वाले किसानों की देखभाल में रख देंगे जो बहुत ही नम्र हों और जिनके अपना कोई बच्चा न हो।
वहाँ बर्फ की लड़की के पास रोज के करने के लिये काफी काम होगा तो वह सपने देखना भी छोड़ देगी। इसके अलावा वहाँ उस पर किसी आदमी की निगाह भी नहीं पड़ेगी।”
सो बस यही तय रहा।
अगली सुबह एक बूढ़ा और उसकी पत्नी जंगल में अपनी अँगीठी में आग जलाने के लिये लकड़ी इकठ्ठी करने आये। उस दिन क्योंकि वसन्त की छुट्टी थी सो वह बूढ़ा बहुत खुश था और बड़े उत्साह में था। वह गाना गाता चला आ रहा था और उसके पैर भी जमीन पर सीधे नहीं पड़ रहे थे।
पर उसकी पत्नी बहुत खुश नहीं थी। गाँव से आती बच्चों की आवाज उसको अच्छी नहीं लग रही थी क्योंकि उसको अपने शान्त घर की याद आ रही थी।
उस बूढ़े ने पत्नी से कहा — “अरे खुश रहा करो। मैं तुम्हें एक बात बताऊँ? चलो हम लोग यहाँ अपने लिये बर्फ की एक बेटी बनाते हैं।”
बुढ़िया उसकी बेवकूफी पर गुस्सा हो गयी और उस पर चिल्लायी — “तुमको शर्म नहीं आती? अगर लोग हमको ऐसे बच्चों वाले खेल खेलते देख लेंगे तो क्या कहेंगे।”
बूढ़े ने उसकी बातों पर ध्यान न देते हुए नीचे पड़ी बर्फ इकठ्ठी करनी शुरू कर दी। पहले उसने बर्फ का एक गोला बनाया फिर उसके बाँहें और टाँगें लगायीं और फिर उसके कन्धों पर सिर रखा। उसके एक नाक लगायी और उसके चेहरे पर मुँह और आँखें बना दीं।
जैसे ही वह यह बना कर चुका तो एक अजीब सी बात हुई जिससे दोनों बूढ़े पति पत्नी का मुँह आश्चर्य से खुला का खुला रह गया।
उस बर्फ की बनी लड़की के होठ तो लाल हो गये। उसकी आँखें खुल गयीं। उसने प्यार से उस बूढ़े जोड़े की तरफ देखा और मुस्कुरायी। उसने अपने शरीर से अपनी बर्फ झाड़ी और उस बर्फ के ढेर में से बाहर निकल आयी – एक जीती जागती लड़की।
दोनों पति पत्नी तो उस ज़िन्दा लड़की को देख कर भौंचक्के रह गये। बूढ़े को लगा कि वह जो पी कर आया था शायद इसी लिये उसकी आँखें उसके साथ चालें खेल रही थीं पर उसकी तो पत्नी भी उस लड़की को ही घूरे जा रही थी।
आखिर बूढ़ा बोला — “प्यारी बेटी, तुम्हारा नाम क्या है?”
लड़की बोली — “मेरा नाम बर्फ की लड़की है।”
बिना किसी हिचकिचाहट के वे उसको अपने घर ले गये। जब वह लड़की उनके साथ जा रही थी तो उसने मुड़ कर कहा — “विदा पिता जी, विदा माँ, विदा मेरे जंगल के घर।”
पर क्या वह केवल जंगल के पेड़ों की पत्तियों के हिलने की ही आवाज थी या फिर सचमुच में ही उस बर्फ की लड़की की आवाज का किसी ने जवाब दिया — “विदा ओ बर्फ की बेटी, विदा, विदा, विदा, विदा ...।”
उनको ऐसा लगा जैसे पेड़ों ने उसको झुक कर विदा दी और घनी झाड़ियों ने हट कर उसको जाने का रास्ता दिया।
समय गुजरता गया और वह बर्फ की लड़की बड़ी होती गयी – दिन ब दिन नहीं, बल्कि हर घंटे। वह हर रोज पहले से भी बहुत ज़्यादा सुन्दर होती जाती थी।
उसकी खाल बर्फ से भी ज़्यादा सफेद थी। उसके सफेद बाल सफेद राख जैसे थे या फिर चाँदी के बिर्च के पेड़ जैसे रंग के थे। उसकी आँखें नीले आसमान से भी ज़्यादा नीली थीं।
उन बूढ़े पति पत्नी के पास उस बर्फ की लड़की के लिये प्यार की कोई कमी नहीं थी। वे तो बस सारा दिन उसी को देखते रहते थे।
वह जब बड़ी हो गयी तो वह बहुत ही दयालु थी। वह घर में सारा काम करती थी। जब वह गाना गाती थी तो सारा गाँव उसका गाना सुनने के लिये रुक जाता था।
जल्दी ही वसन्त का मौसम आ गया और उसके साथ साथ आ गयी सूरज की धूप। धरती गर्म होने लगी। बर्फ की जो गन्दगी पड़ी रह गयी थी उसके बीच में हरी हरी घास दिखायी दिखायी देने लगी और लार्क चिड़िया50 गाने लगी।
इस धूप के आने से सब लोग बहुत खुश थे पर वह बर्फ की लड़की बहुत दुखी थी। उसको दुखी देख कर उसके माता पिता ने पूछा — “क्या बात है बेटी, क्या तुम्हारी तबियत ठीक नहीं है?”
लड़की फुसफुसाती हुई बोली — “नहीं माँ मेरी तबियत ठीक है। पिता जी मेरी तबियत बिल्कुल ठीक है।”
धीरे धीरे पहले फूल खिलने लगे। फिर घास के मैदान पीले गुलाबी और नीले रंग के फूलों से भर गये। वसन्त की सारी चिड़ियाँ वहाँ वापस आ गयी थीं।
बर्फ की लड़की धीरे धीरे और ज़्यादा शान्त और दुखी होती गयी। वह सूरज से छिप जाती। वह किसी ठंडी जगह को ढूँढती रहती। जब बारिश होती तो वह अपने हाथ उसके नीचे फैला देती।
एक बार काले बादलों का एक टुकड़ा फट गया और उसमें से बटन जितने बड़े बड़े ओले पड़ने लगे। उन ओलों को देख कर तो वह इतनी खुश हुई कि वह उनको पकड़ने के लिये ऐसे दौड़ी जैसे वे कोई कीमती जवाहरात हों।
पर जैसे ही सूरज ने उनको पिघला दिया तो वह ऐसे रो पड़ी जैसे किसी भाई के मरने पर उसकी अपनी बहिन रोती है।
एक दिन जब गर्मियाँ आने वाली थीं तो गाँव की कुछ लड़कियों के एक झुंड ने बर्फ की लड़की को खेलने के लिये बाहर बुलाया।
उन्होंने कहा — “आओ न हमारे साथ, हम लोग गर्मियाँ मनाने के लिये बाहर जा रहे हैं।” पर बर्फ की लड़की तो उनसे बच कर साये में जा कर सिकुड़ कर बैठ गयी।
यह देख कर उसकी बुढ़िया माँ ने कहा — “जाओ न बेटी, अपनी दोस्तों के साथ खेल आओ। तुमको हम बूढ़ों के साथ घर में नहीं बैठना चहिये। जाओ और धूप का आनन्द लो।”
उन लड़कियों में से एक लड़की ने जिसका नाम अन्ना था बर्फ की लड़की का हाथ पकड़ा और उसको मैदान की तरफ खींच ले गयी।
उन्होंने वहाँ साथ साथ फूल इकठ्ठे किये, उनकी माला बना कर अपने बालों में गूँथे। फिर उन्होंने गाने गाये और जंगल के रास्तों के बराबर बराबर कूदती फाँदती रहीं।
उस दिन सारा गाँव ज़िन्दादिल हो रहा था। खुशियाँ मना रहा था। लड़के लड़कियाँ सब एक दूसरे के साथ खेल रहे थे।
पर केवल बर्फ की लड़की ही दुखी थी। वही अकेली घूम रही थी। उसका सिर नीचे लटका हुआ था। उसके जमे हुए होठों पर कोई मुस्कुराहट नहीं थी।
अचानक उसने बाँसुरी पर एक संगीत सुना तो उसने इधर उधर देखा। उसने देखा कि एक चरवाहा लड़का उसके सामने खड़ा है और उसको नाच के लिये बुला रहा है।
पहले तो उसने मना कर दिया और हिचकते हुए दूसरी लड़कियों के पीछे छिप गयी पर वह लड़का उसको बार बार बुलाता रहा।
चरवाहा लड़का बोला — “आओ प्रिय बर्फ की लड़की आओ, मेरे साथ नाचो। मैं अपनी बाँसुरी केवल तुम्हारे लिये ही बजाऊँगा और इस तरह मैं तुम्हारे होठों पर मुस्कुराहट ले कर आऊँगा।”
इस चरवाहे लड़के का नाम लैल था। उसको इस बर्फ की लड़की से प्यार हो गया था। उसने उस लड़की का हाथ अपने हाथ में ले लिया।
दूसरी लड़कियों ने उसकी तरफ आश्चर्य से देखा क्योंकि वह तो उस चरवाहे लड़के के साथ गोल गोल नाच रही थी और उसके पीले गालों पर गुलाबी चमक आ गयी थी।
उस दिन के बाद से लैल उसकी खिड़की के नीचे अक्सर ही बाँसुरी बजाया करता था। वह उसको बातें करने के लिये खेतों और मैदानों में बुला लेता।
वह नीली आँखों वाली लड़की भी खुशी से अपने दोस्त के साथ दौड़ी चली जाती। वह उसके साथ घूमती और फूलों के हार बनाती। फिर उनसे अपने आपको सजाती।
लैल भी उसको बहुत प्यार करता था पर उसने कभी यह महसूस नहीं किया कि वह लड़की भी अपने दिल में उसको प्यार करती थी या नहीं। उसकी दोस्ती उस लड़के को एक बच्चे की दोस्ती जैसी भोली भाली दोस्ती लगती थी।
एक दिन लैल जंगल में अकेला ही टहल रहा था कि उसने वहाँ गहरे रंग की आँखों वाली अन्ना को देखा। अन्ना जब देखती कि लैल उस बर्फ की लड़की को तो बहुत प्यार करता था और उससे आँखें चुरा लेता था तो उसको बहुत जलन होती थी।
पर जब आज अन्ना ने देखा कि लैल अकेला ही टहल रहा है तो उसने सोचा कि उसको उसका ध्यान अपनी तरफ खींचने की एक बार फिर कोशिश करनी चाहिये।
वह उसके पास पहुँची और बड़े मीठे शब्दों में बोली — “आज मैं तुमको यहाँ अकेले घूमते देख कर कितनी खुश हूँ लैल। मेरे दिल में तुम्हारे लिये बहुत प्यार उमड़ रहा है। मुझे अपनी आँखें और गाल चूमने दो। मैं तुम्हारा दिल अपने प्यार से भर दूँगी।” कह कर उसने लैल को गले से लगा लिया।
उस नौजवान चरवाहे का दिल भी यह सुन कर प्यार से भर गया। पर तभी बर्फ की लड़की पेड़ों के बीच में से निकली और अन्ना और लैल के सामने आ खड़ी हुई। वह कुछ समझी नहीं कि वहाँ क्या हो रहा था सो वह वहीं रुक गयी।
तुरन्त ही लैल अन्ना से अलग हो गया और बर्फ की लड़की को समझाने के लिये दौड़ा। वह उससे बड़ी नर्मी से बोला — “देखो बर्फ की लड़की, अन्ना का दिल मेरे दिल जैसा बहुत प्यारा है पर तुम्हारा दिल बहुत ठंडा और खाली है। तुम उसकी तरह से प्यार क्यों नहीं कर सकतीं?”
यह सुन कर बर्फ की लड़की के गालों पर आँसू बहने लगे। वह जंगल की तरफ मुड़ी और उधर भाग गयी। वह जब तक भागती रही जब तक कि वह एक गहरी झील के पास नहीं आ गयी जिसमें गुलाबी और सफेद लिली खिली हुई थी।
उस झील के चारों तरफ फूलों वाली झाड़ियाँ और पेड़ थे जिनकी शाखाऐं झील के चमकते हुए पानी की तरफ झुकी हुई थीं।
उसके किनारे पर खड़े हो कर वह सिसकते हुए बोली — “ओ मेरी माँ, इन दुख भरे आँसुओं से तुम्हारी यह बेटी तुमसे कहती है कि तुम मुझे प्यार करना सिखा दो। मुझे एक इन्सान का दिल दे दो माँ, मैं तुमसे भीख माँगती हूँ।”
यह सुन कर झील में से सुन्दर वसन्त निकली और अपनी सिसकती हुई बच्ची की तरफ प्यार से देख कर बोली — “मैं तुमको केवल एक घंटा दे सकती हूँ क्योंकि कल जब सुबह होगी तो यारीलो सूरज देवता अपना गर्मी का मौसम शुरू कर देंगे और फिर मुझे यहाँ से एक साल के लिये चले जाना पड़ेगा। तुम्हारी क्या इच्छा है मेरी बच्ची बोलो?”
बर्फ की लड़की के मुँह से बस एक शब्द निकला “प्यार”।”
काँपते हुए दिल से बर्फ की लड़की आगे बोली — “मेरे आस पास के सब लोग प्यार करते हैं माँ। सब खुश हैं और सन्तुष्ट हैं। केवल मैं ही हूँ जिसमें प्यार नहीं है।
न तो मैं किसी को प्यार करती हूँ और न ही मैं किसी को प्यार करने के काबिल हूँ। माँ मैं प्यार करना चाहती हूँ पर मुझे मालूम नहीं कि मैं किसी को कैसे प्यार करूँ?”
उसकी माँ दुखी हो कर बोली — “बेटी, क्या तुम अपने पिता की बात भूल गयीं? तुम अच्छी तरह जानती हो कि प्यार का क्या मतलब है। उसका मतलब है तुम्हारी मौत।”
बर्फ की लड़की बोली — “तो इससे तो अच्छा यह है कि मैं जल्दी से जल्दी मर जाऊँ। प्यार का एक पल, चाहे वह कितना भी छोटा क्यों न हो मुझे इस बिना प्यार वाली ज़िन्दगी से ज़्यादा प्यारा है।”
सुन्दर वसन्त एक आह भर कर बोली —
“ऐसा ही हो मेरी बच्ची। प्यार का स्रोत मेरे
सिर पर लगे इस लिली के ताज में है तुम
इसको ले लो और अपने सिर पर पहन लो।”
बर्फ की लड़की ने खुशी से माँ के सिर पर से वह लिली के फूलों वाला ताज ले लिया और अपने सिर पर रख लिया।
जैसे ही उसने वह ताज अपने सिर पर रखा वह चिल्लायी —
“माँ मेरे दिल में यह कैसी अजीब सी हलचल मच रही है। दुनियाँ
की सुन्दरता देखने के लिये मेरी तो आँखें खुल रही हैं। मैं चिड़ियों
का गाना सुन पा रही हूँ। माँ मेरे दिल में वसन्त की खुशी भरी जा
रही है।”
उसकी माँ बोली — “मेरी प्यारी बच्ची वसन्त की खुशबू ने तुम्हारी आत्मा को भर दिया है। तुमको अपने दिल में प्यार की पूरी ताकत का बहुत जल्दी ही पता चल जायेगा।
पर मेरी बच्ची, एक बात का ध्यान रखना। तुम अपने प्यार को यारीलो की तेज़ नजर से बचा कर रखना। उसकी गुलाबी किरनों की तारीफ करने के लिये सुबह को बाहर मत खड़ी रहना। जल्दी से पत्तों के साये में या जंगल की ठंडक में दौड़ जाना। अच्छा विदा मेरी बच्ची।”
इन आखिरी शब्दों के साथ ही सुन्दर वसन्त झील में डूबती चली गयी। बर्फ की लड़की जंगल के रास्तों पर कूदती फाँदती चल दी।
रास्ते में जब उसने बाँसुरी की आवाज सुनी तो उसका दिल तो बहुत ज़ोर से धड़कने लगा। वह उस आवाज की तरफ दौड़ पड़ी।
जल्दी ही वह एक खुले मैदान में आ पहुँची जहाँ सूरज चमक रहा था। वहाँ फ़र के पेड़ के पास एक लकड़ी का लठ्ठा पड़ा हुआ था और उस लठ्ठे के ऊपर बैठा हुआ लैल बहुत दुखी मन से अपनी बाँसुरी बजा रहा था।
वह जिस लड़की को प्यार करता था उसको देखते ही वह कूदा और खुशी से चिल्लाया — “ओ बर्फ की लड़की, मैं तुमको सारा दिन ढूँढता रहा। मुझे अपने उन जल्दी में कहे गये शब्दों के लिये माफ कर दो। तुम तो मुझसे बहुत गुस्सा होगी न?”
बर्फ की लड़की धीरे से बोली — “नहीं लैल। वह गुस्सा नहीं था जो मेरे दिल में भरा हुआ था, वह तो प्यार था। अब मुझे पता चला कि दुनियाँ में कहीं प्यार तो है ही नहीं।”
लैल बोला — “ओ बर्फ की लड़की तो तुम्हारे भी दिल है? तुम भी मुझसे प्यार करती हो?”
बर्फ की लड़की बोली — “हाँ मैं तुमसे बहुत प्यार करती हूँ। मैं तुमसे प्यार करना कभी नहीं छोड़ूँगी लैल, कभी नहीं।”
उसी समय उसने आसमान की तरफ देखा तो बोली — “हमको जल्दी करनी चाहिये। यारीलो की किरनें मुझे बहुत डरा रही हैं। मुझे उनसे बचा लो लैल, क्योंकि उनसे मुझे बहुत तकलीफ पहुँचती है।”
लैल कुछ गुस्सा सा हो गया क्योंकि वह यह समझ ही नहीं पा रहा था कि वह बर्फ की लड़की कह क्या रही थी।
लैल बोला — “प्रिय बर्फ की लड़की, हम अपना प्यार दिन की रोशनी से हमेशा के लिये नहीं छिपा सकते।”
जब वह यह सब बोल रहा था तो सूरज की चमकती हुई किरनें आसमान में और ऊपर चढ़ती जा रही थीं। सुबह का धुँधलका गायब होता जा रहा था और जमीन पर पड़े बर्फ के आखिरी टुकड़े भी पिघलते जा रहे थे।
कि तभी सूरज की एक किरन बर्फ की लड़की पर पड़ी। दर्द से चिल्लाते हुए वह बर्फ की लड़की लैल से दूर हट गयी और फुसफुसाते हुए लैल से प्रार्थना की कि वह उसके लिये अपनी बाँसुरी आखिरी बार एक बार फिर से बजा दे।
लैल ने अपने काँपते होठों पर बाँसुरी रखी और उसे बजाना शुरू किया। जैसे ही उसने बाँसुरी बजाना शुरू किया बर्फ की लड़की की आँखों से आँसू बह निकले।
उसके चेहरे का रंग उतर गया। उसके पैर नीचे से पिघलने लगे। धीरे धीरे उसका शरीर भीगी हुई जमीन में धँसता चला गया केवल उसके सिर का लिली के फूलों का ताज ही जमीन पर रखा रह गया। बस।
धीरे से एक सफेद कोहरे का बादल उठा और उठ कर साफ आसमान में जा कर गायब हो गया।
यह देख कर लैल चिल्लाया — “ओ बर्फ की लड़की, मेरी प्यारी बर्फ की लड़की, तुमने मुझसे सूरज से अपनी रक्षा करने के लिये कहा था पर मैंने नहीं सुना और अब मेरी आँखों के सामने सामने तुम वसन्त की आखिरी बर्फ की तरह से पिघल गयीं। मुझे माफ कर दो, ओ बर्फ की लड़की मुझे माफ करदो।”
पर उसका रोना तो किसी ने सुना ही नहीं।
किसी ने नहीं, मतलब सिवाय एक दुखी माँ के जो लिली से भरी झील में रहती थी और दूसरे उस बूढ़े लाल नाक वाले पिता पाले ने जो दूर उत्तरी बर्फ में रहता था।
(साभार सुषमा गुप्ता जी, जिन्होंने लोक-कथाओं पर उल्लेखनीय काम किया है.)