सियार की बुद्धिमानी (उड़िया बाल कहानी) : जगन्नाथ महांति/ଜଗନ୍ନାଥ ମହାନ୍ତି
Siyar Ki Buddhimani (Oriya Children Story) : Jagannath Mohanty
'बसना' नामक गाँव का नारु बेहेरा एक गरीब किसान था। पहाड़ की तलहटी के जंगलों में उसकी जमीन थी। वह रोज सुबह उठकर अपने हल- बैल लेकर पौ फटने से पहले ही अपने खेत पर चला जाता था । किरण फूटने से पहले ही वह अपने काम पर जुट जाता था ।
नारु के हाथ में हमेशा एक सोटा रहता था। लेकिन उसके बैल थे बड़े ढीठ | वे हमेशा एक-दूसरे से खींचा-तानी करते रहते थे। सीत टेढ़ा -तिरछा हो जाता था। नारु बैलों की हरकतों से कभी-कभी क्रोधित हो जाता था। सोटे चलाते, चिल्लाते उसकी हालत खराब हो जाती थी। एक दिन बिगड़ कर बोला, 'भेड़िया इन्हें खा जाता तो मुझे खुशी होती ।'
जंगल के झुरमुट में भेड़िया उसकी बात सुन रहा था। उसके साथ एक सियार भी था । उसने भी नारु की बात सुनी। दोनों नारु की बात सुन कर खूब हँसे । भेड़िया बोला, 'आओ, किसान के पास चलें और उसको उसी की बात की याद दिलाएँ ।'
लेकिन दोनों बैलों में उसके बाद बहुत सुधार आ गया और हल खींचने लगे। बारह बजा । नारु ने बैलों को खोल दिया। दोनों घर की तरफ भागने लगे। भेड़िया ने उनका रास्ता रोका। भेड़िया को सामने देखकर नारु भी डर गया। उसने बैलों को दूसरी तरफ हाँक दिया । भेड़िये ने जोर से कहा, 'कहाँ ले जा रहे हो? तुम उन्हें बचा नहीं सकते। वे तो मेरे हैं।'
नारु चुप था। उसके तेवर से वह डर गया था। उसका शरीर काँपने लगा । रुआँसा होकर बोला, 'जी, ये बैल तो मेरे हैं। तुम मेरा रास्ता क्यों रोक रहे हो ? मैंने तो तुम्हारा कुछ भी नहीं बिगाड़ा ।'
भेड़िया बोला, 'ये बैल तुम्हारे कैसे ? तुमने तो इन्हें मुझे दे दिया है। हल चलाते वक्त जो कहा था क्या वह तुम्हें याद नहीं है। - इन्हें भेड़िया खा जाता तो खुशी होती - क्या तुमने नहीं कहा था ? इसीलिए उन्हें लेने मैं आ गया हूँ । अब तुम्हारी परेशानी हमेशा के लिए मिट जाएगी।'
नारु धैर्य बटोर कर बोला, 'आदमी गुस्से में आकर न जाने क्या-क्या बोल देता है। गुस्सा उतरा कि वह सब भूल जाता है। मेरी बात और किसी ने सुना है? मैंने लिखकर तो नहीं दिया।'
भेड़िया बिगड़ कर बोला, 'ख्याल करो, तुम यह बोले थे या नहीं ? जो अपने वायदे को भूल जाता है, उसे धिक्कार है।'
'इसका गवाह कौन है ?"
भेड़िया ने ठठाकर हँसते हुए कहा, 'गवाह चाहते हो, अच्छा, मेरा गवाह सियार है।'
नारु बड़ी मुसीबत में फँस गया। चोर का गवाह शराबी । उसने पूछा, 'तुम्हारा गवाह कहाँ है?'
सियार वहीं छिपकर बैठा था। अपनी जरूरत जानकर धीरे से सामने आ गया। वह दुःखी होकर बोला, 'हाय, क्या करूँ, ऐसे मामले में मुझे आज गवाह बनना पड़ा। लेकिन मैं तब तक कुछ नहीं बोलूँगा जब तक तुम दोनों राजी नहीं हो जाते कि तुम दोनों मेरी बात मानोगे ।'
भेड़िया बोला कि तुमने तो खुद सुना है कि भेड़िया बैलों को खा जाता तो मुझे खुशी होती ।
नारु ने आपत्ति उठाई। वह बोला, 'मैंने सच में भेड़िये को बैल दे देने की बात नहीं कही। मैंने तो यूँ ही कुछ कह दिया था इन बैलों को डराने के लिए।'
सियार ने नारु को एक तरफ बुला कर कहा, 'दोस्त, गलती मत करो। बैलों पर भेड़िये का हक हो गया है, पर मैं तुम्हारी मदद जरूर करूँगा ।' नारु ने डरते हुए हाथ जोड़कर कहा, 'भाई साहब, मुझे इस आफत से बचाओ । गरीब पर दया करो।'
सियार ने भेड़िये की ओर देखकर कहा, 'क्या सचमुच तुम बैलों की यह जोड़ी पाने की आशा करते हो ? तुम पागल तो नहीं हो गये हो।'
'मैं पागल हूँ क्या तुमने खुद नहीं सुना है कि इसने क्या कहा है !'
सियार बोला, 'हाँ, मैंने सुना है लेकिन यह एक गरीब किसान है। उसका इतना नुकसान मैं नहीं कर सकता। किसान को बैल वापस मिल सकते हैं, लेकिन एक शर्त है, वह हम दोनों को पनीर खिलाएगा।' भेड़िये ने कभी पनीर नहीं खाया था। आश्चर्य से पूछा, 'वह क्या चीज है ?'
सियार बोला, 'अरे, तुमने कभी पनीर नहीं खाया। क्या चीज है पनीर ! नरम और हल्की ! कितनी मीठी ! पूनम के चाँद की तरह बड़ी चीज है। खाते रहो, खाते रहो कभी खत्म ही नहीं होती। किसमत से ही मिलती है।' 'तो मुझे पनीर खिलाओ।' भेड़िया बोला।
संध्या का समय था। पूनम का चाँद आसमान में उग गया था। सियार भेड़िये को घने जंगल के बीच ले गया। उसने सोचा था कि वह भेड़िये को सबक सिखायेगा ।
आखिर भेड़िये ने पूछा, 'अरे, तुमने तो मुझे घुमाते - घुमाते तंग कर दिया। पहले बताओ, पनीर कहाँ है?'
तब तक दोनों जंगल पार कर एक गाँव के छोर पर आ चुके थे । चाँद चाँदी की थाली की तरह चमक रहा था। गाँव के छोर पर एक कुआँ था । कुएँ के अंदर साफ पानी में चाँद की छाया खूब दिख रही थी ।
सियार ने भेड़िये से कहा, 'यार, जरा झाँक कर देखो, कुएँ के अंदर क्या है । वह देखो, पानी के सतह पर सफेद पनीर पड़ा है। किसान ने बड़े जतन से यहाँ पनीर छुपाकर रखा है।'
भेड़िये ने कुएँ की जगत पर सामने वाली टाँगें जमा कर कुएँ के अन्दर झाँका । उसके मुँह से लार टपकने लगी। बोला, 'सचमुच एक बढ़िया चीज है। सच में मुलायम स्वादिष्ट पनीर के सामने बैल का मांस कुछ भी नहीं ।' भेड़िया ने होंठ चाटे । वह बोला, 'सियार भैया तुम अंदर जाओ। इस रहट में दो बाल्टियाँ लगी हैं। तुम एक बाल्टी में बैठ जाओ। दूसरी बाल्टी मैं पकड़ यहीं बैठता हूँ।'
सियार एक बाल्टी में बैठकर अंदर गया ।
सियार देर तक बाहर नहीं निकला। बहाना करके बोला, 'पनीर बहुत भारी है। अकेले उठाना मुश्किल है। मैं तो अकेले उठा नहीं पाता। तुम भी अंदर आ जाओ। दोनों उठाएँगे। यहीं दोनों थोड़ा खाएँगे। हल्का हो जाने पर ऊपर ले जायेंगे।'
खाने की बात सुनकर भेड़िया सब्र नहीं कर सका। वह झम से दूसरी बाल्टी पर बैठ कर कुएँ के अंदर जा पहुँचा । भेड़िये के रहट से नीचे चले जाने से रस्सी में फँसी दूसरी बाल्टी ऊपर चढ़ गयी। सियार बाल्टी से कूद कर कुएँ के ऊपर खड़ा हो गया।
भेड़िया परेशान होकर बोला, 'अरे, मैं तो तुम्हारी मदद के लिए कुएँ के अंदर आया और तुम ऊपर चले गये। क्या तुम पागल हो गये हो ।'
सियार हँसते हुए बोला, 'इसी का नाम दुनिया है। दूसरों की चीज लूटना चाहो तो खुद लूट लिए जाओगे । बेचारे गरीब किसान का एक जोड़ी बैल मारकर खा जाना चाहते थे न ? खाओ, अब खूब पनीर खाओ ।
मीठा पनीर खाओ
सियार का गुन गाओ।'
(संपादक : बालशौरि रेड्डी)