सियार देवता का रहस्य (बांग्ला कहानी) : सत्यजित राय
Siyar Devta Ka Rahasya (Bangla Story in Hindi) : Satyajit Ray
'टेलीफोन किसने किया था, फेलुदा?'
यह सवाल करते ही मेरी समझ में आया कि मैंने बेवकूफी की है, क्योंकि फेलुदा योगाभ्यास के समय बातचीत नहीं करता है। फेलुदा ने कुल मिलाकर छह महीनों से व्यायाम छोड़कर योगाभ्यास करना शुरू किया है। सुबह वह आधे घण्टे तक तरह-तरह का आसन करता है। यहाँ तक कि कुहनी के बल अपने सिर को नीचे कर पैरों को शून्य में उठाकर शीर्षासन भी करता है। फेलुदा का शरीर एक महीने के अन्दर और भी अधिक मजबूत हो गया है; इसलिए यह मानना ही होगा कि योगासन से बहुत ही फायदा हुआ।
सवाल करने के बाद ही मैंने पीछे की तरफ मेज पर रखी घड़ी में वक्त देख लिया। साढ़े सात मिनट के बाद फेलुदा ने योगासन समाप्त कर उत्तर दिया -
'तू उसे पहचान नहीं सकेगा।'
इतनी देर के बाद इस तरह का जवाब पाकर बड़ा ही गुस्सा आया। जहाँ तक पहचानने की बात है, बहुतों को नहीं पहचानता हूँ, मगर नाम बतलाने में दोष ही क्या है? और अगर नहीं पहचानता हूँ तो पहचान क्या कराई नहीं जा सकती? मैंने गम्भीरता के साथ कहा, 'तुम पहचानते हो?'
फेलुदा ने भिगोया हुआ चना खाते-खाते कहा, 'पहले पहचानता नहीं था। मगर अब जान-पहचान हो गई है।'
कुछ दिन पहले हमें पूजा की छुट्टी मिल चुकी है। बाबूजी तीन दिन पहले काम से जमशेदपुर गए हुए हैं। घर पर अभी फेलुदा, मैं और माँ हैं। अबकी हम पूजा के अवसर पर कहीं बाहर नहीं जाएँगे। इसके लिए मुझे कोई खास दुख नहीं है, क्योंकि पूजा के अवसर पर मुझे कलकत्ता ही अच्छा लगता है, खासकर फेलुदा अगर मेरे साथ रहे। आजकल शौकिया जासूस के नाम से उसे काफी प्रसिद्धि प्राप्त हो चुकी है, फलस्वरूप बीच-बीच में रहस्य का पता लगाने के लिए उसकी बुलाहट होती है और इसमें कोई आश्चर्य की बात भी नहीं है। इसके पहले मैं हर रहस्य के मामले में फेलुदा के साथ रहा हूँ। डर लगता है, नाम अधिक फैल जाने के कारण वह एक दिन एकाएक कहीं यह न कह बैठे कि तुझे अपने साथ नहीं लूँगा। मगर अभी तक ऐसी बात नहीं हुई है। मेरा विश्वास है कि वह जो मुझे अपने साथ रखता है उसके पीछे एक कारण है। सम्भवत: उसके साथ एक कच्ची उम्र के लड़के को देखकर अनेकों उसे जासूस समझते ही नहीं। यह एक बहुत बड़ी सुविधा है। जासूस अपने-आपको जितना छिपाकर रख सके, उसके लिए यह बात उतनी ही लाभदायक है।
'फोन किसने किया, यह बात जानने की तुझे बेहद इच्छा हो रही है?'
यह है फेलुदा का एक तौर-तरीका। वह जब समझता है कि किसी चीज को जानने के लिए मैं बहुत आग्रहशील हूँ तो उस बात को तत्काल न कहकर पहले एक ससपेन्स की सृष्टि करता है। यह बात चूंकि मैं जानता हूँ इसलिए विशेष उत्साह न दिखाते हुए मैंने कहा, 'फोन के साथ अगर किसी रहस्य का मामला जुड़ा हुआ हो तो जानने की इच्छा अवश्य ही होती है।'
बनियान पर अपनी हरी धारीदार कमीज को पहनते हुए फेलुदा ने कहा, 'उस आदमी का नाम है नीलमणि सान्याल। रोलैण्ड रोड में रहता है। बहुत जरूरी काम से मुझे बुला भेजा है।'
'यह नहीं बताया कि जरूरत क्या है?'
'नहीं। यह बात फोन पर कहना नहीं चाहता। आवाज से पता चला कि घबराया हुआ है।'
'कब जाना होगा?'
'टैक्सी से जाने में लगभग दस मिनट लगेंगे। नौ बजे एपॉयन्टमेंट है। इसलिए अब दो मिनट के अन्दर निकल जाना चाहिए।'
टैक्सी से नीलमणि सान्याल के मकान की ओर जाते हुए मैंने कहा, 'बहुत तरह के शैतान आदमी हुआ करते हैं। मान लो, नीलमणि सान्याल किसी मुसीबत में न हो और उसने तुम्हें किसी फन्दे में डालने के लिए बुलाया हो!'
फेलुदा ने सड़क की ओर से बिना आँख हटाए कहा, 'वह रिस्क तो रहता ही है। तब इतना जरूर है कि उस तरह का आदमी अपने घर पर बुलाकर फन्दे में नहीं डालेगा, क्योंकि यह उसके लिए भी खतरे से खाली नहीं होगा। इस तरह के कामों के लिए कम रुपये में ही किराये के गुंडे मिल जाते हैं।'
एक बात कहना भूल गया हूँ : फेलुदा पिछले साल ऑल इण्यिा राइफल कम्पटीशन में फर्स्ट आया है। मात्र तीन महीने तक बन्दूक चलाने की शिक्षा पाने के बाद उसका निशाना इतना पक्का हो गया कि आश्चर्य लगता है। अब फेलुदा के पास बन्दूक और रिवाल्वर दोनों हैं, तब इतना जरूर है कि किताब के जासूस की तरह वह हमेशा रिवाल्वर लेकर नहीं घूमता है। सच कहूँ, अब तक फेलुदा को इन दो हथियारों में से एक की भी जरूरत नहीं पड़ी है। फिर भी कोई यह नहीं कह सकता कि कभी जरूरत होगी ही नहीं।
टैक्सी जब मैडम स्क्वायर के पास आई तो मैंने पूछा, 'वे क्या करते हैं, यह बात तो मालूम है?'
फेलुदा ने कहा, 'वे पान खाते हैं, शायद कान से कुछ कम सुनते हैं, 'वो' शब्द का कुछ अधिक प्रयोग करते हैं और जुकाम से कुछ परेशान हैं। इसके अलावा मुझे अधिक जानकारी नहीं है।'
इसके बाद मैंने उससे कुछ और पूछताछ नहीं की।
नीलमणि सान्याल के घर पहुँचने पर टैक्सी का किराया एक रुपया सत्तर पैसा चुकाना पड़ा। दो रुपये का एक नोट निकालकर फेलुदा ने टैक्सीवाले को दिया और अपने हाथ की भंगिमा से उसे समझा दिया कि खुदरा वापस करने की जरूरत नहीं है। हम टैक्सी से उतरकर पोर्टिको के नीचे से होते हुए सामने के दरवाजे के पास पहुँचे और कॉल बेल दबाई।
दोमंजिला मकान है, बहुत बड़ा नहीं और न पुराना ही। सामने की तरफ एक बगीचा भी है, लेकिन उसमें ऐसा कोई पेड़-पौधा नहीं है जो आकर्षक लगे।
दरबाननुमा एक व्यक्ति ने फेलुदा से विजिटिंग कार्ड ले लिया और हमें बैठक में बैठने को कहा। कमरे के अन्दर जाकर जब हमने चारों तरफ दृष्टि दौड़ाई तो हम विस्मय-विमुग्ध हो गए। सोफा, टेबल, गुलदस्ता, तसवीरों और काँच की आलमारी में सजी हुई खूबसूरत चीजों ने एक खासा आकर्षक वातावरण तैयार कर दिया है। लगता है, बहुत पैसा खर्च कर और दिमाग लगाकर इन चीजों को खरीदकर सजाया गया है।
फेलुदा ने खुद ही उठकर जब पंखे का रेगुलेटर घुमाया, ठीक उसी क्षण एक भले आदमी ने कमरे के अन्दर प्रवेश किया। पहनावे के रूप में स्लीपिंग सूट के पाजामे पर एकतरफा बटनदार अद्धी का कुरता, पाँवों में हिरन के चमड़े का चप्पल और दोनों हाथों की उँगलियों में कई अँगूठियाँ। कद मंझला, दाढ़ी-पूंछ मुड़ी हुई, सिर पर बहुत ही कम बाल, रंग मोटे तौर पर गोरा और आँखें नींद से बोझिल जैसी। देखने से लगता है, अभी नींद से जगकर आ रहे हैं। उम्र कितनी होगी? पचास से ज्यादा नहीं।
'आपका ही नाम प्रदोष मित्तिर है?' भले आदमी ने पूछा, 'आप इतने यंग हैं, यह बात मालूम नहीं थी।'
फेलुदा ने 'हें-हें' करते हुए मेरी ओर इशारा किया और कहा, 'यह मेरा चचेरा भाई है। बड़ा ही अक्लमन्द लड़का है। आप अगर चाहें तो हम लोगों की बातचीत के दौरान उसे मैं बाहर भेज दे सकता हूँ।'
मेरा कलेजा धड़कने लगा। मगर भले आदमी ने एक बार मेरी ओर सरसरी निगाह डालते हुए कहा, 'रहने दीजिए, कोई हर्ज नहीं है।' उसके बाद फेलुदा की ओर मुड़कर बोले, वो—आप लोग कुछ लीजिएगा? चाय या कॉफी?'
'नहीं। हम अभी चाय पीकर ही आ रहे हैं।'
'ठीक है, फिर वक्त, बरबाद न कर यही बता रहा हूँ कि मैंने आपको क्यों बुलाया है। तब हाँ, इसके पहले मैं अपना परिचय बता दूँ। आप समझ ही रहे होंगे कि मैं शौकीन आदमी हूँ। इसका भी अन्दाज लग गया होगा कि मेरे पास थोड़ा-बहुत पैसा भी है। कहने पर आपको इस पर यकीन न होगा कि मैं न तो नौकरी करता हूँ और न व्यवसाय हाँ। बपौती जायदाद का एक भी पैसा मुझे नहीं मिला है।'
नीलमणि बाबू ने रहस्य की सृष्टि करने की मुद्रा बनाकर चुप्पी साध ली।
‘फिर क्या लॉटरी का पैसा मिला है?'
'जी?'
'फिर क्या लॉटरी वगैरह से पैसा मिला है?'
'एजैक्टली!' भले आदमी बच्चे की तरह चिल्ला उठे, ‘ग्यारह साल पहले रेंजर्स लॉटरी में जीतने के कारण एक ही बार में लगभग ढाई लाख रुपए मिल गए। उसके बाद उसी रुपये से—कुछ तो रुपये के जोर से और कुछ भाग्य के जोर से—अच्छी तरह से रह रहा हूँ। आठेक साल पहले मैंने यह मकान बनवाया है। हो सकता है, आप सोचें कि इस तरह निठल्ला रहकर जीवन कैसे जीता हूँ मगर दरअसल मैं एक काम करता हूँ—बस एक ही काम—और वह है नीलामी से सब चीजें खरीदकर घर सजाना।' ।
भले आदमी ने अपने दाहिने हाथ को उठाकर चारों तरफ सजी हुई चीजों की ओर इशारा किया। उसके बाद बोले—
'जो घटना घटी है, उससे मेरी इन आर्टिस्टिक चीजों का कोई रिश्ता है या नहीं, कह नहीं सकता, मगर मेरे मन में सन्देह हो रहा है कि रिश्ता हो भी सकता है। यह जो...'
नीलमणि बाबू ने अपने कुरते की जेब में हाथ डालकर कागज के कुछ टुकड़े बाहर निकाले और फेलुदा की ओर बढ़ा दिए। फेलुदा के साथ-साथ मैंने भी उन कागज के टुकड़ों को देखा। कागज के तीन टुकड़े हैं, उनमें से हरेक में लिखावट के बदले लकीरों के जरिये छोटे चित्र बने हुए हैं। उन चित्रों में से कुछ साफ-साफ समझ में आते हैं—जैसे, उल्लू आँख, साँप, सूर्य। मुझे ये चित्र पहले से दिखे जैसे लग रहे थे कि तभी फेलुदा ने कहा, 'यह सब तो हियरोग्लिफ्रिक जैसा लगता है।'
भले आदमी ने सकते में आकर कहा, 'जी?'?
फेलुदा ने कहा, 'पुराने जमाने में इजिप्शियनों ने जिस लिखावट की ईजाद की थी, यह उसी तरह के जैसा लग रहा है।'
'यह बात है?'
'हूँ। मगर इस लिखावट को पढ़ ले, ऐसा आदमी कलकत्ते में है या नहीं, कहना मुश्किल है।'
भले आदमी का चेहरा थोड़ा बुझ गया और बोले, 'फिर? जो चीज हर दो दिन के बाद डाक के जरिये मेरे नाम से आती है, उसका अगर अर्थबोध न हो तो बहुत ही परेशानी में डालने वाली बात होगी। मान लीजिए, यह सब अगर सांकेतिक धमकियाँ हों—कोई मेरी हत्या करना चाहता हो और मुझे डरा रहा हो...'
कुछेक क्षण चुप रहने के बाद फेलुदा ने कहा, 'आपके यहाँ जो-जो चीजें सजी हुई हैं, उनके बीच कोई इजिप्शियन चीज है?'
नीलमणि बाबू ने हँसकर कहा, 'मेरी कौन-सी चीज कहाँ की है, यह बात मैं भी अच्छी तरह नहीं जानता। खरीदता इसलिए हूँ कि मेरे पास पैसा है। दूसरी बात है, और-और लोगों को खरीदते देखता हूँ, इसलिए मैं भी खरीदता हूँ।'
'मगर आपकी इतनी चीजों के बीच ऐसी कोई चीज नहीं है जिसे फालतू कहा जाए? इन चीजों को जो भी देखेगा, आपको पूरे तौर पर पारखी ही कहेगा।'
भले आदमी ने मुसकराकर कहा, 'जानते हैं, बात क्या है? इन मामलों में अगर कोई चीज ऐसी होती है जिसकी जानकारी सभी को हो, तो उसकी कीमत ज्यादा होती है। पैसा जब है तो मैं वैसी चीज क्यों न खरीदूं जो सबसे बेहतरीन हो। बहुतेरे बड़े-बड़े ग्राहकों से ऊँची बोली बोलकर नीलामी में मैंने ये सब चीजें खरीदी हैं। इसलिए मेरे पास अगर बेहतरीन चीजें हैं तो इसमें कोई अचरज की बात नहीं।'
'आपको यह पता है या नहीं कि आपके पास मिस्र की कोई चीज है?'
नीलमणि बाबू सोफे से उठकर काँच की एक आलमारी की ओर गए और उसके ऊपर के ताक से बित्ते-भर की लम्बी एक मूर्ति उतारकर फेलुदा को दी। हरे पत्थर की मूर्ति है, उस पर विविध रंगों के चमकते नग जड़े हुए हैं। दो-चार जगहों में सोना भी है। मगर आश्चर्य की बात यह है कि मूर्ति का शरीर यद्यपि आदमी की तरह है मगर उसका चेहरा सियार के जैसा है। 'इसे मैंने दसेक दिन पहले एराटुन ब्रदर्स की नीलामी में खरीदा है। शायद यह...'
फेलुदा ने मूर्ति पर एक बार सरसरी निगाह दौड़ाकर कहा, 'एनूबिस।'
'एनूबिस? यह एनूबिस क्या है?'
फेलुदा ने मूर्ति को सावधानी से उलट-पुलटकर उसे नीलमणि बाबू के हाथ में वापस करते हुए कहा, 'एनूबिस था प्राचीन मिस्र का 'गॉड ऑफ द डेड' —मृत आत्माओं का देवता।...आपको यह बेहतरीन चीज मिली है।'
'मगर'...भले आदमी की आवाज में भय का पुट था, 'इस मूर्ति से इन चिट्ठियों का कोई सम्बन्ध है? मैंने इसे खरीदकर कोई गलती की है? इसे छीन लेने के लिए कोई धमकियाँ दे रहा है?'
फेलुदा ने सिर हिलाकर कहा, 'यह कहना मुश्किल है। चिट्ठियों का आना कब से शुरू हुआ है?'
'पिछले सोमवार से।'
'यानी मूर्ति खरीदने के बाद से ही?'
'हाँ।'
'लिफाफे आपके पास है?'
'नहीं, फेंक दिए। रखना ही सम्भवत: उचित था। मगर लिफाफे बिलकुल मामूली थे, मामूली टाइपराइटर से ही पता लिखा गया था। एलगिन रोड पोस्ट ऑफिस की मुहर थी।'
'ठीक है।' फेलुदा उठकर खड़ा हो गया, 'मुझे ऐसा नहीं लगता है कि अभी कोई कार्रवाई की जाए। सेफसाइड में रहने के लिए इतना ही कीजिएगा कि मूर्ति को आलमारी में रखने के बजाय अपने हाथ के पास रखिएगा। हाल में एक आदमी के घर से इस तरह की चीजों की चोरी हो गई है।'
‘ऐसी बात है?'
'हाँ। एक सिंधी सज्जन के घर से। जहाँ तक मुझे मालूम है, चोर अब तक पकड़ा नहीं जा सका है।'
हम कमरे से निकलकर बाहर लैंडिंग में चले आए।
फेलुदा ने कहा, 'आपसे मजाक कर सकता हो, ऐसा कोई व्यक्ति आपको याद आ रहा है?'
भले आदमी ने सिर हिलाकर कहा, 'कोई नहीं। पुराने मित्रों से बहुत दिनों से सम्पर्क टूट चुका है।'
‘और शत्रु?'
भले आदमी कुछेक क्षणों तक चुप रहे, उसके बाद उन्होंने कहा, 'धनी आदमी का शत्रु हमेशा ही है, लेकिन शत्रु कहकर कोई अपना परिचय नहीं देता। आमने-सामने मुलाकात होने पर सभी सम्मान के साथ बातचीत करते हैं।'
'आपने बताया था कि मूर्ति आपने नीलामी में खरीदी है।'
'हाँ। एराटुन ब्रदर्स की नीलामी में।'
'उस पर और किसी को लोभ था?'
यह बात सुनकर वे अचानक तनिक उत्तेजना में आ गए और हाथ मलने लगे। उसके बाद बोले, 'आपने यह बात पूछकर मेरी चिन्ता के एक नये पहलू को उजागर कर दिया। नीलामी के दौरान एक सज्जन से मेरी कई बार होड़ लग चुकी है। उस दिन भी यही बात हुई थी।'
'वे कौन है?'
'प्रतुल दत्त।'
'क्या काम करते हैं?'
'शायद वकील थे। रिटायर हो चुके हैं। उस दिन हम दोनों में अन्त-अन्त तक होड़ लगी रही। उसके बाद जब मैंने बारह हजार कहा तो वे चुप हो गए। याद है, नीलामी के बाद जब मैं बाहर आकर गाड़ी पर बैठा, अचानक उनसे मेरी आँखें मिल गईं। उनकी दृष्टि मुझे कतई अच्छी नहीं लगी।'
'आइ सी!'
हम नीलमणि बाबू के घर से बाहर निकल आए। गेट की तरफ चहल-कदमी करते हुए फेलुदा ने पूछा, 'इस मकान में आप लोग बहुत-से आदमी रहते हैं?'
नीलमणि बाबू ने हँसकर कहा, 'आप क्या कह रहे हैं, साहब! मेरे जैसा अकेला आदमी आपको कलकत्ते में शायद ही मिलेगा। ड्राइवर, माली, दो पुराने विश्वसनीय नौकर और मैं—बस इतने ही जने हैं!'
फेलुदा के इसके बाद वाले प्रश्न की उन्होंने कतई प्रत्याशा नहीं की थी
'इस घर में क्या कोई लड़का रहता है?'
एक क्षण तक वे अवाक् खड़े रहे, उसके बाद एक कहकहा लगाते हुए कहा, 'देख रहे हैं न! मैं तो भूल ही गया था। दरअसल आदमी कहने से मैं बालिगों के बारे में सोच रहा था। दसेक दिनों से मेरा भांजा झंटु यहाँ आकर ठहरा हुआ है। उसके पिताजी व्यवसाय करते हैं। यह अभी उस दिन की ही बात है कि वे जापान चले गए। झंटु को मेरे पास छोड़ गए हैं। वह बेचारा यहाँ आते ही इनफ्लूयेंजा की चपेट में आ गया है।'
उसके बाद एकाएक फेलुदा की ओर देखते हुए बोले, 'आपको बच्चों की बात कैसे याद आई?'
फेलुदा बोला, 'बैठक में एक आलमारी के कोने से एक पतंग झाँक रही थी। उसी को देखकर...'
नीलमणि बाबू का नौकर टैक्सी लाने गया था। टैक्सी रोड़े-बिछी सड़क से कड़-कड़ आवाज करती हुई पोर्टिंको के नीचे आकर खड़ी हुई। फेलुदा ने टैक्सी में बैठने के समय कहा, 'अगर कोई सन्देहजनक बात हो तो मुझे फौरन सूचित कीजिएगा। अभी ऐसा नहीं लगता कि कोई कार्रवाई की जाए।'
घर वापस जाते वक्त मैंने फेलुदा से कहा, 'सियार देवता का चेहरा कितना डरावना लगता है!'
फेलुदा ने कहा, 'आदमी के धड़ में किसी भी चीज का सिर जोड़ देने से वह डरावना लगने लगता है। यह बात सिर्फ सियार के साथ ही नहीं है।'
मैंने कहा, 'पुराने इजिप्शियन देवता मूर्ति घर में रखना तो बड़ा ही खतरनाक है।'
'तुमसे यह किसने कहा?'
'वाह! तुम्हींने तो कहा था।'
'बिलकुल नहीं। मैंने यही कहा था कि जिन पुरातत्त्ववेत्ताओं ने मिट्टी खोदकर प्राचीन इजिप्शियन मूर्तियाँ बाहर निकाली हैं उनमें से कुछेक की हालत बदतर हो गई है।'
'हाँ-हाँ—वह जो एक गोरा था, उसकी तो मौत हो ही गई थी। क्या तो था उसका नाम?'
'लॉर्ड कारनारवन।'
'और उसका कुत्ता?'
'कुत्ता उसके साथ नहीं था। कुत्ता विलायत में था। साहब इजिप्ट में था। तूतनखामेन की कब खोदकर मूर्तियाँ निकालने के कुछ दिन बाद ही कारनारवन भयंकर बीमारी की चपेट में पकड़कर मर गया। उसके बाद खबर मिली कि जिस वक्त साहब की मृत्यु हुई, ठीक उसी वक्त बिना किसी बीमारी के, रहस्यमय ढंग से हजारों मील दूर उसका कुत्ता भी मौत के मुँह में समा गया।'
प्राचीन इजिप्ट की किसी चीज पर जैसे ही मेरी नजर पड़ती है, फेलुदा से सुनी हुई इस अजीब घटना की मुझे याद आ जाती है। सियार देवता की एनबिस की मूर्ति भी किसी आदम के जमाने के इजिप्शियन बादशाह की कब्र से आई है। नीलमणि बाबू क्या यह सब नहीं जानते? जान-सुनकर विपत्ति को बुलाने के पीछे कौन-सा मजा है, यह बात मेरी समझ में नहीं आती।
दूसरे दिन भोर पौने छह बजे हमारे घर में अखबार के बण्डल के गिरने के साथ ही टेलीफोन घनघना उठा। मैं फोन उठाकर 'हेलो' कहकर दूसरी तरफ की बात सुनने की प्रतीक्षा कर ही रहा था कि तभी फेलुदा ने फोन मेरे हाथ से ले लिया। एक-एक कर तीन बार ‘हुँ', दो बार 'ओ' और एक बार 'अच्छा, ठीक है, कहकर उसने फोन को नीचे रख दिया और भर्राई आवाज में कहा, 'एनबिस गायब हो गया है। अभी तुरन्त चलना है।'
सुबह ट्रैफिक कम रहने के कारण नीलमणि सान्याल के घर पहुँचने में सात मिनट लगे। टैक्सी से उतरते ही देखा—नीलमणि बाबू अपने चेहरे पर बेचैनी का भाव लिए मकान के बाहर हम लोगों की प्रतीक्षा में खड़े हैं। फेलुदा पर नजर पड़ते ही बोले, 'नाइटमेयर के बीच से गुजरा हूँ जनाब। इस तरह का हाँरिबिल अनुभव मुझे कभी न हुआ था।'
हम इस बीच बैठक में आ चुके थे। भले आदमी ने हमारे बैठने के पहले ही बैठकर अपनी कलाइयाँ दिखाई। देखा, आदमी जहाँ घड़ी पहनते हैं, उससे ठीक नीचे रस्सी का दाग लगा हुआ है और उनके दोनों हाथ लाल हो गए हैं।
फेलुदा ने कहा, 'बात क्या है?'
भले आदमी ने दम लेकर भर्राई आवाज में कहना शुरू किया, 'आपके कहे अनुसार कल मूर्ति को सोने के कमरे में ले जाकर तकिये के नीचे रख दिया था। अब लगता है, वह जहाँ थी, वहीं अगर पड़ी रहती तो कम-से-कम शारीरिक यातना तो नहीं भोगनी पड़ती। खैर! मूर्ति को सिर के नीचे रखकर मैं मजे में सोया हुआ था कि तभी-पता नहीं, रात के कितने बजे होंगे—बहुत ही बुरी हालत में मेरी नींद टूट गई। देखा, किसीने कसकर मेरा मुँह अंगोछे से बांध दिया है। गले से आवाज निकलने के रास्ते को बन्द देखकर मैंने अपने हाथ से अड़चन डालने को कोशिश की और ठीक उसी वक्त मेरी समझ में यह बात आई कि अपने से अधिक शक्तिशाली व्यक्ति के शिकंजे में फंस गया हूँ बात की बात में मेरा हाथ पीछे की ओर उमेठ दिया। उसके बाद फिर तकिये के नीचे से मूर्ति लेकर चलता बना।'
भले आदमी दम लेने के लिए कुछ क्षण तक खामोश रहे। उसके बाद बोले, 'शायद तीन घण्टे तक हाथ-बँधे जैसी हालत में पड़ा रहा। पूरे शरीर में झिनझिनी समा गई थी। सुबह मेरा नौकर नंदलाल जब चाय लेकर आया तो मुझे उस हालत में देखकर उसने डोरी खोल दी और मैंने फौरन आपको फोन किया।'
देखा, फेलुदा के चेहरे का भाव बदल गया है। वह सोफा छोड़कर खड़ा हो गया और बोला, 'एक बार आपका कमरा देखना चाहता हूँ और जरूरत पड़ी तो आपके मकान की तसवीरें लूँगा।' कैमरा भी फेलुदा के झक्कीपन में शुमार है।
नीलमणि बाबू हमें दोमंजिले के अपने सोने के कमरे में ले गए। कमरे के अन्दर घुसते ही फेलुदा ने कहा, 'खिड़की में सलाख नहीं हैं?'
भले आदमी ने सिर हिलाकर कहा, 'मत कहिए! विलायती तरीके का मकान है न; और मेरे साथ बात यह है कि मैं खिड़की बन्द कर सो ही नहीं पाता।'
फेलुदा ने खिड़की से गरदन बढ़ाकर नीचे की ओर देखते हुए कहा, 'बहुत आसान बात है—पाइप है, कार्निश है। कोई भी जवान आदमी खिड़की से कमरे के अन्दर आ सकता है।'
उसके बाद फेलुदा ने कमरे के चारों तरफ भलीभाँति देखकर और तसवीरों को उलट-पुलटकर देखते हुए कहा, 'अब मकान के बाकी हिस्से को भी घूम-फिरकर देखना चाहता हूँ।' नीलमणि बाबू ने पहले दोमंजिला दिखाया। बगल के कमरे में एक खाट पर बारह-तेरह साल के एक लड़के को गले तक रजाई ओढ़कर पड़े देखा। उसकी आँखें बड़ी-बड़ी हैं और देखने से लगता है कि उसका स्वास्थ्य ठीक नहीं है। समझ गया, यही झंटु है नीलमणि बाबू ने कहा, 'कल ही डॉक्टर बोस झंटु की नींद की दवा दे गए हैं। इसीलिए रात में उसके कानों में कोई आवाज नहीं पहुँची थी।'
दोमंजिले के और दो कमरों को देखकर और एक मंजिले के कमरों पर सरसरी निगाह दौड़ाकर हम बाहर चले आए। नीलमणि बाबू के कमरे की खिड़की के नीचे कई फूलों के टब देखे, जिनमें पाम जैसे पेड़ लगे हुए है। फेलुदा यह देखने लगा कि टबों के अन्दर कुछ है या नहीं। शुरू के दो टबों में उसे कुछ भी न मिला। तीसरे के पत्तों के अन्दर टटोलने पर टीन का एक छोटा डिब्बा मिला। उसके ढक्कन को खोलकर नीलमणि बाबू की ओर बढ़ाते हुए कहा, 'इस मकान का कोई आदमी सुंघनी का सेवन करता है?'
नीलमणि बाबू ने सिर हिलाकर 'ना' जताया। फेलुदा ने डिब्बे को अपनी पैन्ट की जेब में रख लिया।
अबकी नीलमणि बाबू ने बहुत ही उदासी-भरे स्वर में कहा, 'मिस्टर मित्तिर, और कोई बात नहीं—एक मूर्ति चली गई, न होगा तो दूसरी खरीद लूँगा—मगर एक डाकू मेरे घर पर आकर मुझपर जोर-जुल्म करके चला जाए, यह बात बरदाश्त के बाहर है। आपको इसका कोई-न-कोई रास्ता निकालना ही होगा। आप अगर उस आदमी को पकड़वा दें तो मैं आपको वो—यानी और क्या...'
'पारिश्रमिक?'
'हाँ-हाँ। पारिश्रमिक यानी रिवार्ड दूंगा।'
फेलुदा ने कहा, 'रिवार्ड कोई बड़ी बात नहीं है। अगर आप देना चाहते हैं तो दीजिएगा। मगर मैं इस काम की जिम्मेदारी जो अपने माथे पर ले रहा हूँ उसका प्रधान कारण यह है कि इस तरह की खोज-बीन के पीछे एक चैलेंज है, आनन्द है।'
यह बात सुनकर मुझे लगा, 'बड़ी-बड़ी जासूसी कहानियों में जासूस लोग जिस तरह की बातें कहते हैं, फेलुदा ने भी वैसी ही बातें कही हैं।
इसके बाद लगभग दस मिनटों तक फेलुदा ने नीलमणि बाबू के ड्राइवर गोविंद, नौकर नंदलाल और पाँच तथा माली नटवर से बातें की। सभी ने बताया कि रात में उन्होंने कुछ अस्वाभाविक घटते हुए नहीं देखा है। बाहरी आदमी में सिर्फ डाक्टर बोस रात को नौ बजे झंटु को देखने आए थे। नीलमणि बाबू सम्भवत: एक बार मुखर्जी के दवाखाने से दवा लेने के लिए बाहर निकले थे।
लौटती बार मैं जरा अनमना था। अचानक ध्यान में आया, टैक्सी हमारे घर के रास्ते को छोड़कर कहीं दूसरी ओर ही जा रही है। फेलुदा को गम्भीर पाकर उससे मैंने कुछ और पूछताछ नहीं की। टैक्सी फ्री स्कूल स्ट्रीट के एक मकान के सामने रुकी। देखा, मकान के सदर दरवाजे के ऊपर साइनबोर्ड पर बड़े-बड़े रुपहले अक्षरों में लिखा हैएराटुन बदर्स—ऑक्शनियर्स। यही नीलामी की दुकान है।
मैंने कभी नीलामघर नहीं देखा था। पहली बार देखकर मैं अचम्भे में आ गया। इतनी तरह की अजूबा चीजें एक साथ कभी देखने का मौका नहीं मिला था।
फेलुदा का काम दो मिनटों में निपट गया। प्रतुल दत्त का पता है—सेवेन बाइ वन, लवलक स्ट्रीट। मैंने मन-ही-मन सोचा, प्रतुल दत्त के घर पर जाने पर भी फेलुदा को अगर निराश होना पड़ा तो फिर उसके लिए कहीं जाने का रास्ता नहीं रह जाएगा। इसका मानी यही कि फेलुदा को हार स्वीकार करनी पड़ेगी। और तब मेरी क्या हालत होगी, मालूम नहीं; क्योंकि अब तब फेलुदा को कहीं हार स्वीकार नहीं करनी पड़ी है। वह किसी मामले में हर तरफ से निराश होकर मुँह लटकाए बैठा हो—इस दृश्य की मैं कल्पना तक नहीं कर सकता। मुझे उम्मीद है, जल्द ही उसे किसी सुराग का पता चल जाएगा। हालाँकि मुझे अभी अँधेरा ही अँधेरा दीख रहा है।
दोपहर के समय खाना खाते-खाते मैंने कहा, 'इसके बाद?'
उसने चावल के ढेर पर एक गड्ढा बनाकर उसमें एक कटोरा मूंग की दाल डाली और कहा, 'इसके बाद मछली। फिर चटनी, फिर दही।'
'उसके बाद?' ‘उसके बाद पानी पीकर मुँह धोऊँगा। फिर एक बीड़ा पान खाऊँगा।'
'उसके बाद?'
‘उसके बाद एक जगह फोन कर आधे घण्टे तक नींद लेता रहूँगा।'
इन सबों में टेलीफोन ही मेरे लिए सबसे दिलचस्प खबर है, इसीलिए मैं उसीके इन्तजार में बैठा रहा।
डायरेक्टरी से मैंने प्रतुल दत्त का नम्बर खोजकर निकाल दिया था। नम्बर डायल कर 'हेलो' कहने के समय फेलुदा ने अपनी आवाज को बिलकुल बदलकर एक बूढ़े आदमी की जैसी आवाज बना ली। फोन पर जो बातें हुईं, उनमें से एक ही तरफ की बातें मैं सुन सका था। उसको यहाँ ज्यों-का-त्यों लिख रहा हूँ
'हेलो, मैं नाकतल्ला से बोल रहा हूँ।'
'जी, मेरा नाम है जयनारायण बागची। मुझे प्राचीन कारुकार्य के शिल्पों के प्रति गहरी दिलचस्पी है। इसपर मैं एक पुस्तक लिखने जा रहा हूँ।'
'...'
'हाँ...जी हाँ। आपके संग्रह के बारे में सुन चुका हूँ। मेरा आपसे यही अनुरोध है कि कृपया मुझे अपनी कुछ चीजें देखने का अवसर प्रदान करें...'
'...'
'नहीं-नहीं! मैं पागल हूँ क्या!'
'...'
'अच्छा !'
'...'
'हाँ-जरूर।'
'...'
‘अनेकानेक धन्यवाद। नमस्कार।'
टेलीफोन से बातचीत करना समाप्त कर फेलुदा ने कहा, 'उनके घर पर सफेदी हो रही है। इसलिए चीजों को हटाकर रख लिया है। तब हाँ, शाम को चलें तो देखने का मौका मिलेगा।'
मैं एक बात कहे बिना चुप नहीं रह सका।
'प्रतुल बाबू ने अगर सचमुच एनबिस की मूर्ति की चोरी की होगी तो उसे वे हमें दिखाएँगे नहीं।
फेलुदा ने कहा, 'अगर तेरी तरह बेवकूफ होंगे तो दिखा भी सकते हैं। सम्भावना इस बात की है कि दिखाएँगे नहीं। मैं मूर्ति नहीं, उस आदमी को देखने जा रहा हूं।'
फैलुदा ने जैसा कहा था, टेलीफोन करने के बाद ही वह अपने कमरे में सोने के लिए चला गया। फेलुदा में एक आश्चर्यजनक क्षमता है और वह यह कि अपनी जरूरत के अनुसार वह किसी भी समय थोड़ी देर तक सो ले सकता है। सुना है, नेपोलियन में भी यह क्षमता थी। वह लड़ाई के मैदान में जाने के पहले घोड़े की पीठ पर बैठे-बैठे नींद लेकर अपने बदन को तरो-ताजा कर लिया करता था।
मेरे पास करने के लिए कोई खास काम नहीं था, इसीलिए फेलुदा के आले से इजिप्शियन आर्ट की एक पुस्तक निकालकर मैं उसे उलट-पुलट कर देख रहा था। तभी किंग-किंग कर फोन बज उठा।
मैं दौड़ता हुआ बैठक के अन्दर गया और फोन उठा लिया। 'हेलो!'
कुछ देर तक किसी की आवाज नहीं आई, हालाँकि यह बात मेरी समझ में आ गई थी कि कोई फोन पकड़े हुए है।
मेरी छाती धड़कने लगी। लगभग दस सेकेण्ड के बाद एक गम्भीर और कर्कश आवाज सुनाई पड़ी 'प्रदोष मित्तिर हैं?' मैंने थूक निगलकर कहा, 'वे सो रहे हैं। आप कौन बोल रहे हैं?'
फिर कई मिनटों तक चुप्पी रेंगती रही। उसके बाद सुनाई पड़ा, 'ठीक है। आप उनसे कह दीजिएगा कि मिस्र के देवता को जहाँ जाना था, वहीं चला गया है। प्रदोष मित्तिर इस मामले में दखलन्दाजी करने नहीं आएं, क्योंकि उससे किसी का कोई उपकार नहीं होने जा रहा है। बल्कि अनिष्ट होने की ही ज्यादा सम्भावना है।'
उसके बाद खट् से फोन रखने की आवाज आई, फिर चुप्पी छा गई।
पता नहीं, मैं कब तक फोन पकड़े और साँस रोके बैठा रहा। अचानक फेलुदा की आवाज कानों में आई और मैंने रिसीवर को यथास्थान रख दिया।
'कौन फोन कर रहा था।?'
मैंने फोन से जो कुछ सुना था, बता दिया। फेलुदा गम्भीर चेहरा लिए, भौंहें सिकोड़कर सोफे पर बैठते हुए बोला, 'इस्स—तू अगर मुझे बुला लेता!'
'मैं क्या करता? कच्ची नींद में जगा देने से तुम बिगड़ उठते हो।'
'उस आदमी के गले की आवाज किस तरह की थी?'
'गम्भीर और घर्घराती जैसी।'
'हु...! खैर, अभी चलकर एक बार प्रतुल दत्त का चेहरा देख आऊँ। लग रहा था, थोड़ी रोशनी दिखाई पड़ रही है; अब फिर धुंधलापन तैरने लगा है।'
छह बजने में जब पाँच मिनट बाकी थे, हम प्रतुल दत्त के मकान के फाटक के सामने टैक्सी से नीचे उतरे। मैं यह दावे के साथ कह सकता हूँ कि हमारे पिताजी भी इस वक्त हमें देखकर पहचान नहीं सकते थे। फेलुदा एक साठ साल के बूढ़े के भेष में सजा हुआ है। खिचड़ी दाढ़ी, आंखों पर मोटे काँच का चश्मा, बदन पर काले रंग का बन्द गले का कोट, घुटने तक उठी हुई धोती और मोजे के ऊपर बाटा के भूरे रंग के केड्स जूते। आधा घण्टे तक कमरे का दरवाजा बन्द कर उसने मेकअप किया और बाहर निकलकर कहा, 'तेरे लिए दो-तीन चीजें रखी हुई हैं, चटपट पहन ले।'
मैंने अवाक् होकर कहा, 'मुझे भी मेकअप करना है?'
'बेशक।'
दो मिनटों में ही मेरे सिर पर छोटे-छोटे बालों वाला एक विग और नाक पर एक चश्मा लग गया। उसके बाद फेलुदा ने एक पेन्सिल से मेरे बालों को बिखेर दिया। उसके बाद कहा, 'तू मेरा भांजा है, तेरा नाम है सुबोध—यानी तू शान्त शिष्ट पूँछदार भलामानस है। वहाँ अगर कुछ बोला तो घर लौटते ही तमाचे और थप्पड़ से तेरा स्वागत किया जाएगा।'
प्रतुल बाबू के मकान में सफेदी का काम करीब-करीब खत्म हो चुका है। मकान की डिजाइन देखकर पता चल जाता है कि वह कम-से-कम पचीस-तीस साल पुराना है। नये रंग के कारण खिड़की, दरवाजे, दीवार इत्यादि झिलमिला रहे हैं।
फाटक के अन्दर घुसते ही देखा, बाहर एक खुले बरामदे पर बेंत की कुरसी पर एक मध्यवयस्क आदमी बैठे हुए हैं। हमें अपनी ओर आते देखकर भी वे कुरसी से नहीं उठे। शाम के धुंधलके में भी यह पता चल गया कि उनका चेहरा खासा गम्भीर है।
फेलुदा ने दोनों हाथ जोड़कर और सिर झुकाकर नमस्कार करते हुए अपने नये बुढ़ापे की धीमी आवाज में कहा, 'क्षमा करें, आप ही क्या प्रतुल बाबू हैं? '
भले आदमी ने गम्भीर स्वर में कहा, 'हाँ।'
'मैं ही जयनारायण बागची हूँ। मैंने ही आज दोपहर आपको फोन किया था। यह है मेरा भान्जा, सुबोध।'
'भांजे को अपने साथ क्यों ले आए? इसके बारे में तो आपने फोन पर कुछ कहा नहीं था।'
मेरे सिर पर का विग खुजलाने लगा।
फेलुदा ने अपनी आवाज को अत्यन्त मीठी बनाते हुए कहा, 'वह चित्र बनाना सीख रहा है इसीलिए'...भले आदमी कुरसी छोड़कर खड़े हो गए।
'आप लोग मेरी चीजें देखना चाहते हैं, इसमें मुझे कुछ आपत्ति नहीं। तब हाँ, हटाकर रखी हुई तमाम चीजों को खींच-खाँच कर बाहर निकालना पड़ा है। बड़ी ही परेशानी उठानी पड़ी। एक तो यों ही घर पर रात-दिन मिस्त्रियों का झमेला लगा रहता है, इसे ठेलो, उसे हटाओ... चारों तरफ कच्चा रंग है। रंग की गन्ध भी बरदाश्त नहीं होती। सारी झंझटें चुक जाएँ तो साँस लेने का मौका मिले। आइए, अन्दर...'
वह आदमी भले ही अच्छा न लगा हो परन्तु अन्दर जाकर उनकी चीजों को देखते ही मैं आश्चर्यचकित रह गया।
फेलुदा ने कहा, 'देख रहा हूँ आपके पास मिस्र की शिल्प-कला का खासा अच्छा संग्रह है।'
'सो है। कुछ चीजें कैरो में खरीदी हैं, और कुछ यहाँ ऑक्शन में।'
'देखो भैया सुबोध, अच्छी तरह से देख लो।' फेलुदा ने मेरी पीठ में चिकौटी काटकर मुझे चीजों की ओर धकेल दिया। 'तरह-तरह के देवी-देवता हैं, देख लो। यह जो बाज है, वह भी देवता ही है, यह जो उल्लू है—वह भी देवता ही है। देखो, मिस्र में कितनी तरह की चीजों की लोग-बाग पूजा-उपासना किया करते थे।'
प्रतुल बाबू ने सोफे पर बैठकर चुरुट सुलगाया।
न जाने एकाएक मुझे क्या विचार आया कि मैं बोल उठा, 'सियार देवता नहीं है, मामा जी?'
इस सवाल से प्रतुल बाबू को जैसे एक धक्का लगा हो। वे बोले, 'चुरुट की क्वालिटी फील कर गई है। पहले इतना कड़ा नहीं हुआ करता था।'
फेलुदा ने पहले की तरह ही महीन आवाज में कहा, 'हें-हें—मेरा भांजा एनबिस के बारे में कह रहा है। कल ही उसे इसके बारे में बताया था।'
प्रतुल बाबू अचानक झुंझला उठे, 'हुँ! एनूबिस स्टुपिड फूल!'
'जी?' फेलुदा ने अचकचाकर प्रतुल बाबू की ओर देखा, 'एनूबिस को आप मूर्ख कह रहे हैं?'
'एनबिस को नहीं कह रहा हूँ। उस दिन नीलामी के समय...उस आदमी को मैं पहले भी देख चुका हूँ...ही इज ए फूल। उसकी बिडिंग का कोई हिसाब ही नहीं रहता। एक बहुत की खूबसूरत मूर्ति थी। ऐसी एबसर्ड बोली बोला कि उससे ज्यादा बोलना मुश्किल था। पता नहीं, उतना पैसा कहाँ से लाता है!'
फेलुदा ने चारों तरफ एक बार फिर से सरसरी निगाह दौड़ाते हुए उन्हें नमस्कार किया और कहा, 'बहुत-बहुत धन्यवाद। आप बड़े ही भले आदमी हैं। आपका शिल्पों का संग्रह देखकर बेहद खुशी हुई।'
ये सब चीजें दोमंजिले पर थीं। अब हम नीचे की ओर चल दिए। सीढ़ियाँ उतरते हुए फेलुदा ने कहा, 'आपके यहाँ और कौन-कौन...?'
'पत्नी है। लड़का विदेश में रहता है।'
प्रतुल दत्त के घर से निकलने के बाद जब हम टैक्सी के लिए आगे बड़े तो यह बात समझ में आई कि मुहल्ला कितना निर्जन है। अभी सात भी नहीं बजे हैं, फिर भी सड़क पर राहगीर नहीं के बराबर हैं। दो भिखमंगे बच्चे श्यामा संगीत गाते हुए आ रहे हैं। हम जब उनके करीब पहुँचे तो पता चला कि उनमें से एक गीत गा रहा है और दूसरा बाजा बजा रहा है। लड़के का गला बड़ा ही मधुर है। फेलुदा उसके स्वर से स्वर मिला कर गाने लगा
बोलो माँ तारा जाऊँ मैं कहाँ
कोई न मेरा है शंकरी यहाँ...
बालीगंज के सर्कलुर रोड से चहल-कदमी करते वक्त हमारी दृष्टि एक भागती हुई टैक्सी पर पड़ी। फेलुदा ने आवाज देकर उसे रोका। जब हम टैक्सी के अन्दर बैठने लगे तो बूढ़े ड्राइवर को फेलुदा की ओर आश्चर्य-भरी दृष्टि से देखते हुए पाया। इस मरियल बूढ़े के गले से नौजवान के गले की जैसी तेज आवाज कैसे निकली थी, शायद वह यही सोच रहा था।
दूसरे दिन सुबह जब टेलीफोन बजा मैं बाथरूम के अन्दर दाँत साफ कर रहा था। इसलिए फेलुदा ने ही फोन का रिसीवर उठाया।
पूछने पर पता चला कि नीलमणि बाबू ने एक सूचना देने के लिए फोन किया था।
कल प्रतुल बाबू के घर में भी डकैती हो गई। यह खबर अखबार में भी छपी है। रुपया-पैसा नहीं गया है, डकैत सिर्फ कुछेक प्राचीन काठकार्य की चीजें ले गए हैं। आठ-दस छोटी-छोटी चीजें। उनकी कीमत कुल मिलाकर बीस-पचीस हजार रुपये से कम न होगी। पुलिस ने खोज-पड़ताल शुरू कर दी है।
प्रतुल बाबू के घर पर सुबह-सुबह पुलिस से साक्षात्कार होना और उनके बीच फेलुदा का परिचित आदमी मिल जाना—कोई आश्चर्य की बात नहीं है। हम जब वहाँ पहुँचे तो सवा सात बज चुके थे। आज मैंने मेकअप नहीं किया है। फेलुदा अपना जापानी कैमरा अपने साथ लाना भूला नहीं था।
हम कुल मिलाकर गेट के अन्दर पहुँचे ही होंगे कि तभी एक प्रसन्न मुख मोटा-सोटा चश्मा लगाए हुआ आदमी—शायद इन्स्पेक्टर या कुछ वैसा ही होगा—फेलुदा पर नजर पड़ते ही उसके पास बढ़ आया और उसकी पीठ पर एक धौल जमाते हुए बोला, 'क्या हाल-चाल है फेलु मास्टर? लगता है, गंध मिलते ही आकर हाजिर हो गए।'
फेलुदा ने विनम्रता के साथ हँसते हुए कहा, 'क्या करूँ, हमारा तो यही काम है।'
'काम मत कहो। काम तो है हम लोगों का। तुम लोगों का यह शौक है। कहो, ठीक कह रहा हूँ न?' — फेलुदा ने इस बात का उत्तर न देकर कहा, 'कुछ पता चला? बर्गलरी केस है?'
'इसके अलावा और क्या हो सकता है? इतना जरूर है कि भले आदमी बहुत ही 'अपसेट' हैं। अपना सिर पीटते हुए बस इतना ही कहते हैं कि कल एक बूढ़ा आदमी एक छोकरे के साथ उनकी चीजें देखने आया था। उनकी धारणा है कि इस बर्गलरी के पीछे दोनों का हाथ है।'
यह बात सुनते ही मेरा गला सूखने लगा। फेलुदा वास्तव में बीच-बीच में बड़ा ही बेढब काम कर बैठता है।
मगर फेलुदा में घबराहट का नामोनिशान नहीं था। वह बोला, 'फिर उस बूढ़े का पता चलते ही चोर पकड़ में आ जाएगा। यह तो बड़ा ही आसान मामला है।'
मोटे पुलिस के अफसर ने कहा, 'बहुत ही अच्छी बात कह रहे हो। एक बारगी उपन्यास के खाँटी जासूस की तरह। वाह!'
उनसे इजाजत लेकर फेलुदा और हम कमरे की ओर बढ़ गए। प्रतुल बाबू को आज भी उसी बरामदे पर बैठे हुए देखा। वे इतने अनमने थे कि हमें देखकर भी जैसे नहीं देख रहे थे।
'किस कमरे से चोरी हुई है, देखोगे?' मोटे पुलिस अफसर ने पूछा।
'चलिए।'
कल शाम हम दोमंजिले के जिस कमरे में गए थे, आज भी हमें उसी के अन्दर जाना पड़ा। किसी और चीज की ओर आँखें दौड़ाए बगैर फेलुदा सीधे बालकॉनी की ओर चला गया। बालकॉनी से झुककर नीचे की ओर देखते हुए बोला, 'हूँ, पाइप से अनायास ऊपर चढ़ा जा सकता है।'
मोटे पुलिस-अफसर ने कहा, 'हाँ, चढ़ा तो जा सकता है। और जानते हो, परेशानी की बात यह है कि दरवाजे का रंग कच्चा रहने के कारण उसे दो दिनों से बन्द नहीं किया जाता था।'
'चोरी किस वक्त हुई है?'
'रात पौने दस बजे।'
‘पहले-पहल इसका पता किसे चला?'
‘इनका एक पुराना नौकर उसी तरफ एक कमरे में बिस्तर बिछा रहा था। आवाज सुनकर वह वहाँ देखने गया। तब कमरे में अँधेरा फैला था। बत्ती जलाने के पहले ही उसपर एक जोरों का घूसा पड़ा और वह बेहोश हो गया। उसी मौके से लाभ उठाकर चोर चंपत हो गया।'
फेलुदा की भौंहों में सिकुड़न पड़ गई। बोला, 'एक बार उस नौकर से बातचीत करना चाहता हूँ।'
नौकर का नाम वंशलोचन है। घूँसे के कारण उसे जिस यातना और भय का सामना करना पड़ा था—उनमें से दोनों चीजें अब तक बरकरार हैं। फेलुदा ने पूछा, 'दर्द कहाँ है?'
नौकर ने कराहते हुए कहा, पेट में।'
'पेट में? ऐसा पेट में मारा था?'
'हाथ में कितनी ताकत थी—बाप रे बाप! ऐसा महसूस हुआ जैसे पेट पर किसी पत्थर की चोट पड़ी हो और उसके बाद ही आँखों के सामने अँधेरा तिर आया।'
'तुम्हें आवाज कब सुनाई पड़ी थी? उस वक्त तुम क्या कर रहे थे?'
'मैंने टाइम नहीं देखा था, बाबू। तब मैं माँजी के कमरे में बिस्तर बिछा रहा था। दो बच्चे मिलकर कीर्तन गा रहे थे और मैं सुन रहा था। माँजी पूजाघर में थीं। वे बोलीं, बच्चे को जाकर पैसा दे दो। मैं जाने-जाने को था ही कि तभी बाबू के कमरे से बरतन गिरने की जैसी आवाज आई। सोचा, कोई वहाँ है नहीं, फिर भी चीजों के गिरने की आवाज क्यों आ रही है? इसलिए मैं देखने गया और कमरे के अन्दर जाते ही...' ।
वंशलोचन इसके बाद कुछ कह नहीं सका।
सब कुछ सुनने के बाद लगा, हमारे जाने के बाद एकाध घण्टे के अन्दर ही चोर वहाँ पहुँचा होगा।
मैंने सोचा, फेलुदा शायद और कुछ पूछताछ करे, मगर अन्तत: वह कुछ नहीं बोला। मोटे पुलिस-अफसर को धन्यवाद देकर हम कमरे से बाहर निकल आए।
बाहर सड़क पर आते ही फेलुदा के चेहरे पर एक परिवर्तन आ गया। इस चेहरे को मैं पहचानता हूँ। फेलुदा को कोई रास्ता दीख गया है और उस रास्ते पर चलते ही रहस्य का समाधान मिल जाएगा।
हमारे निकट से होती हुई टैक्सी गुजर गई, मगर फेलुदा ने उसे नहीं रोका। हम दोनों पैदल चलने लगे। फेलुदा की देखादेखी मैं भी सोचने लगा, परन्तु बहुत आगे तक नहीं बढ़ पाया। प्रतुल बाबू चोर नहीं हैं, इसका साफ-साफ पता चल जाता है, हालाँकि प्रतुल बाबू जवान जैसे दीखते हैं और उनकी आवाज में एक बुलन्दी है। मगर यह बात फिर भी मुमकिन जैसी नहीं लग रही थी कि प्रतुल बाबू एक पाइप से चढ़कर दोमंजिले पर पहुँच सकते हैं। उसके लिए बहुत कम उम्र के आदमी की जरूरत पड़ती। फिर चोर कौन है? और, फेलुदा किस चीज के बारे में इतनी तल्लीनता से सोच रहा है?
कुछ देर तक पैदल चलने के बाद हम नीलमणि बाबू की दीवार के पास पहुँच गए। दीवार को अपनी बाईं ओर छोड़कर फेलुदा आगे बढ़ने लगा।
कुछ दूर के बाद दीवार बाईं ओर मुड़ गई है। फेलुदा मुड़ गया और उसके साथसाथ मैं भी। इस ओर रास्ता नहीं है, घास पर से होकर चलना पड़ता है। मुड़ने के बाद अठारह या उन्नीस कदम चला हूँगा कि फेलुदा एकाएक ठिठककर खड़ा हो गया और दीवार के एक हिस्से को बड़े गौर के साथ देखने लगा। उसके बाद बिलकुल करीब जाकर उस जगह की एक फोटो खींची। देखा, वहाँ एक भूरे रंग की हाथ की छाप है। पूरे हाथ की नहीं, दो उँगलियों और हथेली के कुछ अंश की। मगर उससे पता चल जाता है कि यह बच्चे के हाथ की छाप है।
अब हम जिस रास्ते से वहाँ गए थे, उसी रास्ते से लौटकर फाटक से होते हुए एकबारगी मकान की ओर चले गए।
खबर भेजते ही नीलमणि बाबू हड़बड़ाते हुए नीचे चले आए। हम तीनों जब बैठक के अन्दर बैठ गए तो नीलमणि बाबू ने कहा, 'आपसे कहूँगा तो पता नहीं, आप क्या सोचेंगे मगर हकीकत यही है कि आज मेरा मन कल के बनिस्बत हल्का है। हमारी ही तरह एक और व्यक्ति की दुर्दशा हुई है, यह सोचकर तकलीफ बहुत कुछ कम हो गई है। मगर जब तक एक सवाल का जवाब न मिलेगा, मेरी तकलीफ दूर नहीं होगी। और वह सवाल है—मेरा एनूबिस कहाँ गया? बतलाइए। आप इतने बड़े डिटेक्टिव हैं। एक-एक कर दो डकैतियाँ दो दिनों के दरमियान हो गई और आप पहले की तरह अब भी अँधेरे में हैं।'
फेलुदा एक सवाल कर बैठा –
'आपका भांजा कैसा है?'
‘कौन, झन्टु? आज वह बहुत अच्छा है। दवा कारगर साबित हुई है। आज बुखार बहुत कम हो गया है।
'अच्छा, एक बात तो बताइए—बाहर से कोई लड़का दीवार लाँघकर यहाँ आता हैं? '
'दीवार लाँघकर? क्यों?'
'आपकी दीवार के बाहरी हिस्से में एक बच्चे के हाथ की छाप दिखाई पड़ी है।'
'छाप का मतलब? किस तरह की छाप है?'
'भूरे रंग की छाप।'
'ताजा छाप है?'
'कहना मुश्किल है। तब इतनी बात जरूर है कि पुरानी नहीं है।'
'मैंने कभी किसी बच्चे को आते नहीं देखा है। एक ही बच्चा यहाँ आता है—और वह भी दीवार लाँघकर नहीं—वह है एक भिखमँगा। अत्यन्त मधुर स्वर में श्यामा संगीत गाता है। तब हाँ, मेरे बगीचे के पश्चिम तरफ तरी का एक पेड़ है। बीच-बीच में मुहल्ले के लड़के दीवार लाँघकर यहाँ न आते हों और पेड़ के फल तोड़कर न खाते हों—इसकी मैं गारन्टी नहीं दे सकता।'
नीलमणि बाबू ने अब पूछा, 'चोर के बारे में और कुछ जानकारी हासिल नहीं हुई है?'
फेलुदा सोफे से उठकर खड़ा हो गया।
'उसके हाथ में गजब की ताकत है। एक ही धूंसे में प्रतुल बाबू के नौकर को बेहोश कर डाला था।'
'फिर यहाँ और वहाँ एक ही चोर ने चोरी की है और इसमें सन्देह की कोई बात नहीं है।'
'हो सकता है। तब देह की ताकत यहाँ वैसी कोई बड़ी बात जैसी नहीं लगती है। एक भयंकर बुद्धि का भी संकेत मिलता है।'
नीलमणि बाबू का चेहरा उतर गया। बोले, 'मुझे उम्मीद है, उस बुद्धि को परास्त करने की बुद्धि आपमें है। और अगर नहीं है तो मुझे अपनी मूर्ति वापस पाने की आशा छोड़नी ही होगी।'
फेलुदा ने कहा, 'दो दिन और इन्तजार कीजिए। आज तक फेलुदा मित्तिर ने हार नहीं मानी है।'
नीलमणि बाबू के मकान के पोर्टिको से गेट तक रोड़े से बिछा रास्ता है। हम जब उस रास्ते के बीच पहुँच चुके होंगे कि तभी खट्-खट् आवाज सुनाई पड़ी और हमने पीछे की ओर मुड़कर देखा। नीलमणि बाबू के दोमंजिले के एक कमरे की खिड़की के पीछे एक छोटा लड़का—शायद झण्टु ही होगा—खिड़की के शीशे पर हाथ से दस्तक दे रहा है।
मैंने कहा, 'है।' फेलुदा ने कहा, 'देख चुका हूँ।'
दोपहर-भर फेलुदा अपनी नीली कापी में अपनी आदत के अनुसार ग्रीक अक्षरों में क्या-क्या अन्टसन्ट लिखता रहा। जानता हूँ, असल में वह अंग्रेजी है, मगर उसके अक्षर ग्रीक हैं, इसलिए कि पढ़कर कोई उसका असली मतलब नहीं समझ सके। मेरी बोलचाल फेलुदा से एकदम बन्द है और वह एक तरह से अच्छा ही है। अभी उसका सोचने का समय है, बोलने का नहीं। बीच-बीच में उसे गीत गुनगुानते देखता हूँ। यह उस भिखमंगे बच्चे के द्वारा गाया गया वही रामप्रसादी संगीत है।
तीसरे पहर पाँच बजे चाय पीकर फेलुदा बोला, 'मैं ज़रा बाहर निकल रहा हूँ। पॉपुलर फोटो से मुझे अपनी तसवीर का एनलार्जमेण्ट ले आना है।'
घर पर मैं अकेला ही रह गया।
दिन छोटे होते जा रहे हैं। इसीलिए साढ़े पाँच बजते न बजते सूर्य डूब गया और अँधेरा रेंगने लगा। पॉपुलर फोटो की दुकान हाजरा रोड के मोड़ पर है। फेलुदा को फोटो लेकर लौटने में बीस मिनट से ज्यादा नहीं लगना चाहिए था। लेकिन इतनी देर क्यों हो रही है? यह जरूर है कि कभी-कभी तसवीर तैयार न रहने के कारण दुकान पर बैठना पड़ता है। मुझे उम्मीद है, वह कहीं दूसरी जगह नहीं गया होगा। मुझे छोड़कर अगर वह इधर-उधर चक्कर लगाता है तो मुझे अच्छा नहीं लगता।
करताल की आवाज मेरे कान में आती है और उसके साथ-साथ परिचित गले का वही गीत—
बोलो माँ तारा जाऊँ मैं कहाँ
कोई न मेरा है शंकरी यहाँ...
वे दोनों लड़के ही हैं। आज हमारे मुहल्ले में भीख माँगने आए हैं।
गीत धीरे-धीरे आगे की ओर बढ़ता आ रहा है। मैं अपने कमरे की खिड़की के पास जाकर खड़ा हो गया। यहाँ से सड़क दिखाई पड़ती है। वे ही लड़के हैं—एक गीत गा रहा है और दूसरा करताल बजा रहा है। कितना मधुर है उस लड़के का स्वर!
अब गीत गाना बन्द कर दोनों लड़के हमारे घर के सामने खड़े हो गए और ऊपर की ओर चेहरा उठाकर बोले, 'माँजी, भीख दीजिए, माँजी!'
पता नहीं मुझे क्या हुआ कि मैंने पचास पैसे का एक सिक्का खिड़की से लड़कों की ओर फेंक दिया। ठन से आवाज करता हुआ वह सिक्का जमीन पर गिर पड़ा। लड़के ने उसे उठाकर झोले में रख लिया और फिर से गीत गाता हुआ वहाँ से रवाना हो गया।
एक बात की वजह से मेरा माथा चकराने लगा। हम लोगों का रास्ता हालाँकि काफी अँधेरा था, फिर भी भिखमँगे बच्चे ने ऊपर की ओर मुँह उठाकर भीख माँगी, तो मुझे लगा कि उसके चेहरे से झण्टु का चेहरा हूबहू मिल रहा है। हो सकता है मैंने देखने में गलती की हो, मगर मन में तो एक खटका पैदा हो ही गया। मैंने तय किया कि फेलुदा के आते ही उससे यह बात कहूँगा।
लगभग साढ़े छह बजे फेलुदा एनलार्जमेन्ट लेकर वापस आया। उसके चेहरे पर एक तनाव था। मैंने जो सोचा था, वही हुआ, उसे दुकान में बैठकर इन्तजार करना पड़ा। बोला, 'अब खुद ही एक डार्करूम तैयार करूँगा और उसी में फोटो का डेवलपिंग-प्रिन्टिंग करूँगा। बंगाली दुकानदारों की बात पर यकीन नहीं किया जा सकता।'
फेलुदा जब अपने बिस्तर पर तसवीरों को फैलाए बैठा था, मैंने उसके पास जाकर उससे भिखमँगे बच्चे की बात बताई। बिना किसी आश्चर्य के उसने कहा, 'इसमें हैरान होने की कौन-सी बात है?'
'हैरान होने की बात नहीं है?'
'उहुँ।'
‘मगर इसे तो भयंकर गड़बड़ ही कहा जाएगा।'
'गड़बड़ है ही। यह बात शुरू ही में मेरी समझ में आ गई थी।'
'तुम क्या यह कहना चाहते हो कि वह लड़का चोरी के मामले में शामिल है?'
'हो भी सकता है।'
'मगर एक बच्चे के घूँसे में क्या इतनी ताकत हो सकती है कि वह एक बड़े आदमी को बेहोश कर दे?'
'मैंने तो यह नहीं कहा कि बच्चे ने घूँसा मारा है।'
'तब ठीक है।'
यों मैंने कह तो दिया कि ठीक है, मगर वास्तव में मुझे ठीक नहीं लग रहा था। पता नहीं, फेलुदा साफ-साफ कुछ क्यों नहीं कह रहा है।
पलंग पर फैली बारह तसवीरों में से एक को फेलुदा बहुत गौर के साथ देख रहा था। करीब जाने पर मैंने देखा, वह आज ही सवेरे नीलमणि बाबू की दीवार से बच्चे के हाथ की छाप की ली गई तसवीर है। एनलार्जमेन्ट के कारण हथेली साफ-साफ दीख रही है। मैंने कहा, 'तुम्हारा कहना है कि तुम हाथ देखना जानते हो। यह तो बताओ कि बच्चे की आयु कितनी है? '
फेलुदा ने कुछ भी जवाब न दिया। वह तन्मय होकर तसवीर की ओर देख रहा था। उसमें बेहद दत्तचित्तता का भाव था।
'तेरी समझ में कुछ आ रहा है?'
उसके आकस्मिक प्रश्न ने मुझे चौंका दिया।
'समझ में क्या आएगा?'
‘सुबह तूने क्या समझा था और अब तेरी समझ में क्या आ रहा है—यही बता।'
'सुबह? यानी जब तुमने तसवीर ली थी?'
'हाँ।'
'क्या समझूंगा? बच्चे का हाथ है—इसके सिवा समझने की और क्या बात है?'
'छाप का रंग देखने से कुछ मतलब नहीं निकलता है?'
'रंग तो भूरा था।'
'इसका क्या मतलब निकलता है?'
'यही कि बच्चे के हाथ में भूरा रंग लगा हुआ था।'
'इसका कुछ मानी है? ठीक-ठीक बताओ।'
'पेण्ट हो सकता है।'
'कहाँ का पेण्ट?'
मुझे एकाएक यह बात याद आ गई। 'प्रतुल बाबू के दरवाजे का रंग।'
'एग्जैक्टली। उस दिन तुम्हारी शर्ट की आस्तीन में भी लग गया था। तू जाकर देख सकता है कि अब भी लगा हुआ है।'
'मगर...' मेरा सिर चकराने लगा था, 'जिसके हाथ की छाप है वही क्या प्रतुल बाबू के घर के अन्दर घुसा था?'
हो सकता है। अब यह बता कि तसवीर देखने से तेरी समझ में क्या बात आई है? '
बहुत सोचने के बाद भी मैं यह बता नहीं सका कि कोई नई बात मेरी समझ में आई है।
फेलुदा ने कहा, 'तू बता देता तो मुझे ताज्जुब होता। ताज्जुव ही नहीं, शॉक भी लगता; क्योंकि तब मुझे मानना पड़ता कि तेरी और मेरी बुद्धि में कोई अन्तर नहीं है।'
'तुम्हारी बुद्धि क्या बता रही है?'
‘बता रही है कि यह एक संगीन मामला है। भयंकर बात। एनूबिस जितना भयंकर होता है उतनी ही भयंकर।'
दूसरे दिन सवेरे फेलुदा ने पहले नीलमणि सान्याल को फोन किया।
'हेलो, आप कौन बोल रहे हैं—मिस्टर सान्याल? आपके रहस्य का पता चल गया है...मूर्ति अब भी मिली नहीं है, तब वह कहाँ है इसका मोटे तौर पर अन्दाज लगा लिया है...आप क्या घर पर ही रहिएगा? ...बुखार बढ़ गया है?...किस अस्पताल में लेकर जा रहे हैं...? ओह अच्छा। फिर बाद में मिलूंगा...'
फोन रखकर फेलुदा ने एक दूसरे नम्बर में डायल किया। फुसफुसाकर क्या बातचीत हुई, अच्छी तरह सुन नहीं सका। तब हाँ, यह जरूर ही समझ गया कि फेलुदा पुलिस को फोन कर रहा है। फोन रखकर उसने मुझसे कहा, 'अभी तुरन्त बाहर चलना है। तैयार हो जा।'
एक तो सुबह यों ही ट्रैफिक कम रहता है, उसपर फेलुदा ने ड्राइवर से टॉप स्पीड में गाड़ी चलाने को कहा। देखते न देखते हम नीलमणि बाबू के घर के रास्ते पर आ गए।
हम जब गेट के करीब पहुँचे, नीलमणि बाबू अपनी काले रंग की एम्बेसडर गाड़ी पर सवार होकर बहुत तेजी के साथ दूसरी दिशा की ओर रवाना हो गए। सामने ड्राइवर और पीछे नीलमणि बाबू के अतिरिक्त और कोई आदमी दिखाई नहीं पड़ा।
'और जोर से।' फेलुदा चिल्ला उठा। टैक्सी ड्राइवर ने भी उत्तेजना में आकर एक्सिलेटर को अपने पैर से दबा दिया।
सामने की गाड़ी एक भद्दी गों-गों आवाज करती दाहिनी ओर मुड़ गई। अब फेलुदा ने एक ऐसा काम किया, जैसा इसके पहले उसने नहीं किया था। कोट के अन्दर हाथ डालकर अचानक उसने अपना रिवाल्वर बाहर निकाल लिया और खिड़की से नीचे झुककर नीलमणि बाबू की गाड़ी के पिछले टायर को निशाना बनाकर गोली दाग दी।
लगभग एक ही साथ रिवाल्वर और टायर फटने की आवाज कानों में आई। नीलमणि बाबू की गाड़ी सड़क के एक किनारे तिरछी होकर एक लैंपपोस्ट से टकरा गई।
हम लोगों की गाड़ी जैसे ही नीलमणि बाबू की गाड़ी के पास खड़ी हुई, दूसरी दिशा से पुलिस की जीप भी आ गई।
नीलमणि बाबू गाड़ी से उतरकर विरक्ति के साथ इधर-उधर ताक रहे थे। फेलुदा और मैं टैक्सी से उतरकर नीलमणि बाबू की ओर चले गए। पुलिस की गाड़ी आकर रुक चुकी है। उससे वही मोटा अफसर नीचे उतरा। नीलमणि बाबू अचानक बोल पड़े, 'यह सब क्या हो रहा है?'
फेलुदा ने गम्भीरता के साथ कहा, 'क्या मैं यह जान सकता हूँ कि आपके साथ गाड़ी में ड्राइवर के अलावा और कौन-कौन है?'
'और कौन रहेगा?' वे चिल्ला उठे, ‘बताया ही था कि मैं अपने भांजे को साथ लिए अस्पताल जा रहा हूँ।'
अब फेलुदा बिना कुछ बोले सीधे नीलमणि बाबू की गाड़ी के पास चला गया और दरवाजे के हैण्डल को पकड़कर जोरों से खींचा। दरवाजा खुल गया। दरवाजे को खोलते ही एक बच्चा गाड़ी के अन्दर से तीर की तरह बाहर निकला और फेलुदा पर झपटकर उसका गला दबोचने लगा। मगर फेलुदा सिर्फ योगाभ्यास नहीं करता, उसने कुश्ती की भी शिक्षा पाई है। बच्चे की कलाइयों को पकड़कर उसे एक अजीब तरीके से सिर की तरफ से घुमाकर सड़क पर पटक दिया। बच्चे के मुँह से दर्द के कारण एक चीख निकल पड़ी और उस चीख को सुनकर मैं भय से काँप उठा।
क्योंकि वह एक बच्चे के गले की आवाज नहीं थी। वह एक वयस्क आदमी के गले की विकट और जोरदार चीख थी। यही आवाज उस दिन मुझे टेलीफोन पर सुनाई पड़ी थी।
इसी बीच पुलिस ने आकर नीलमणि बाबू की गाड़ी के ड्राइवर और बच्चे को पकड़ लिया था।
फेलुदा अपनी कमीज का कॉलर ठीक करते हुए बोला, 'दीवार पर हाथ की छाप देखते ही बात मेरी समझ में आ गई थी। कच्ची उम्र के लड़कों के हाथ में इतनी रेखाएँ नहीं हुआ करती हैं। उनका हाथ और भी अधिक कोमल हुआ करता है। लेकिन आकार जब छोटा है तो उसका एक ही मतलब निकल सकता है। दरअसल यह एक बौने के हाथ की छाप है। बच्चा और कुछ नहीं, बल्कि एक बौना है। आपके शागिर्द की उम्र कितनी है, नीलमणि बाबू?'
'चालीस!' नीलमणि बाबू के गले से ठीक से आवाज नहीं निकल रही है।
'बहरहाल आपने बड़ी अक्लमन्दी से काम निकाला था। पहले अपनी चीज की चोरी की घटना खड़ी कर मुझे बुलवाया और उसके बाद अपने आदमी से दूसरे की चीज की चोरी कराई। आपके घर पर जिसे कल देखा था, वह क्या वही भिखमँगा बच्चा है?'
नीलमणि बाबू ने सिर हिलाकर हामी भरी।
'इसका मानी तो यही है कि असल में वह आपका भांजा नहीं है। उसे आपने चोरी के मामले में मदद पहुँचाने के लिए घर पर लाकर रखा है।'
नीलमणि बाबू सिर झुकाकर खामोश खड़े रहे।
फेलुदा कहने लगा, लड़का गीत गाता था और बौना खंजड़ी बजाता था। जब चोरी का वक्त आता, खंजड़ी भिखारी के हाथ में थमा देता था और तब वही बजाता रहता था। बौना होने के कारण ही उसकी देह में इतनी ताकत है। एक ही घूँसे में वह एक जवान को घायल कर सकता है। वण्डरफुल! आपकी अक्ल की तारीफ किए बिना रहा नहीं जाता, नीलमणि बाबू!'
नीलमणि बाबू ने एक लम्बी साँस लेकर कहा, 'मिस्र की प्राचीन चीजों के प्रति मुझमें एक नशा छा गया था। उसके बारे में मैंने गहरा अध्ययन किया है। यही वजह है कि प्रतुल बाबू से मैं रश्क किया करता था।'
फेलुदा ने कहा, 'लालच बुरी बला है। आप और आपका बौना दोनों पकड़ में आ गए।...खैर, अब मैं एक अन्तिम अनुरोध करना चाहता हूँ।'
'क्या?'
'मेरा पुरस्कार।'
नीलमणि बाबू फटी-फटी आँखों से फेलुदा की ओर देखने लगे।
'पुरस्कार!'
'एनूबिस की मूर्ति सम्भवत: आपके पास ही है।'
नीलमणि बाबू ने बेवकूफ की तरह अपने दाहिने हाथ को कुरते की जेब के अन्दर डाला।
जब हाथ बाहर निकाला तो देखा—बित्ते भर लम्बे काले पत्थर पर मणिमुक्ता जड़ी चार हजार साल पुरानी मिस्र देश के स्यारमुखी देवता एनूबिस की मूर्ति है।
फेलुदा ने हाथ बढ़ाकर उसे ले लिया और कहा, 'थैंक यू।'