सियार और लोमड़ी : बुंदेली लोक-कथा

Siyar Aur Lomdi : Bundeli Lok-Katha

एक गाँव से आस-पास सियार (लिड़इया)और लोमड़ी (लुखरिया) जैसे अनेक छोटे छोटे जंगली जानवर रहते थे।रात में वे गाँव के एकदम नजदीक, घूरों (वह स्थान जहाँ देसी कम्पोस्ट खाद बनाने के उद्देश्य से ग्रामीण गोबर और पशुशाला का झाड़न डालते हैं) तक आ जाते हुआ हुआ, खों खों आदि तरह तरह की आवाजें निकालते, उछल कूद मचाते।

एक दिन एक सियार को घूरे पर एक कागज मिल गया।

सियार को चाल सूझी।उसने लोमड़ी आदि सभी जानवरों को कागज दिखाकर धमकाया कि, "देखो, मैंने इन सब घूरों का पट्टा करा लिया है इसलिए इन पर अब मेरा अधिकार है।अब यदि तुम लोगों को यहाँ घूमना, फिरना या खेलना-कूदना है, तो तुम्हें मुझे यहाँ का राजा मानना होगा और हर कार्य मे मेरा हुक्म मानना होगा।"

कागज देखकर सब भयभीत हुए और फिर सियार का कहा हुआ मानने पर सहमत हो गए।

अब प्रतिदिन वह सियार घूरे पर कुछ ऊँचें स्थान पर बैठता तथा लोमड़ियों और जानवरों को तरह तरह के आदेश देता; सब उनका पालन करते।

काफी दिनों के बाद एक दिन यही शासन क्रम चल रहा था।सियार किसी गलती के लिए एक लोमड़ी को डाँट रहा था, कि इसी बीच गाँव के कुत्तों के एक दल ने भोंकते हुए, उन जानवरों पर आक्रमण कर दिया।

जानवर राजगद्दी की ओर देखते हुए बचाओ बचाओ चिल्लाये पर सियार राजा दुम दबाकर भाग खड़े हुए।

पहले से ही विनय की मुद्रा में उनके सामने खड़ी उस लोमड़ी ने उनसे कहा, "लिड़े ददा आप क्यों भाग रहे हैं, आप तो राजा हैं, आपका तो पट्टा है?

सियार भागते भागते बोला, "अरे लुखरिया तोय पड़ी है पट्टा की पर मोय पड़ी सरपट्टा की।"

(साभार : डॉ आर बी भण्डारकर)

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