छह मोमबत्तियाँ : फ्रेंच/फ्रांसीसी लोक-कथा
Six candles : French Folk Tale in Hindi
यह लोक कथा भी यूरोप महाद्वीप के फ्रांस देश में कही सुनी जाती है।
मौन्ट डु लौश की ढलान पर एक आदमी रहता था जिसका नाम था मास्टर पियरो । वह चारकोल बनाने का काम करता था।
एक दिन मास्टर पियरो जंगल में आग जला रहा था कि यकायक उसको एक भालू दिखायी दे गया। वह भालू वहाँ इसलिये आया था कि वह मास्टर पियरो से यह कहे कि वह जंगल में धुँआ उड़ाना बन्द कर दे। और यह उसने उससे कहा भी।
परन्तु मास्टर पियरो को यह बात बहुत बुरी लगी और उसने भालू को अपनी कुल्हाड़ी के एक ही वार से मार डाला। मास्टर पियरो ने उसका माँस बहुत दिनों तक खाया।
परन्तु उसको उसके माँस की चिकनाई बिल्कुल भी अच्छी नहीं लगती थी सो उसने उसके माँस की चिकनाई की छह मोटी मोटी मोमबत्तियाँ बनायीं। वह बहुत ही भला आदमी था सो उसने सोचा कि वह उन मोमबत्तियों को क्रिसमस की शाम को जलायेगा।
जब क्रिसमस की शाम आयी तो वह चर्च के लिये अपनी लम्बे सफर पर चल दिया। भालू की चिकनाई की बनी छह मोमबत्तियाँ उसके पास थीं परन्तु यह क्या? दूर दूर तक जहाँ तक भी नजर जाती थी बर्फ की मोटी चादर फैली पड़ी थी जहाँ से रास्ता खोजना भी मुश्किल था।
मास्टर पियरो ने सोचा क्यों न मैं लकड़हारों के कैम्प में जाऊँ। वे लोग पेड़ के तनों की ट्राली तार के ऊपर चलाते हैं। अगर वह ट्राली मुझे मिल गयी तो वह मुझे जल्दी ही चर्च के पास पहुँचा देगी। परन्तु मास्टर पियरो के किस्मत में तो कुछ और ही लिखा था।
जब वह लकड़हारों के कैम्प में पहुँचा तो कैम्प खाली पड़ा था और सभी लोग चर्च गये हुए थे।
हाँ एक बात अच्छी थी कि ट्राली तार पर लगी थी और वह नीचे जाने के लिये तैयार थी। मास्टर पियरो उसमें बैठ गया और ट्राली एक घर्र की आवाज के साथ नीचे की तरफ चल पड़ी। पर यह क्या? ट्राली कच कच कच की आवाज के साथ बीच रास्ते में ही रुक गयी। ट्राली के पहिये जो तार पर चलते थे वे जाम हो गये थे और मास्टर पियरो आसमान में लटके हुए थे।
उनके तीन सौ फीट नीचे सब ओर बर्फ बिछी पड़ी थी और ऊपर काला आसमान था जिसमें झिलमिल तारे टिमटिमा रहे थे। मास्टर पियरो को लगा कि अगर वह वहाँ सुबह तक रहा तो वह जमा हुआ गोश्त बन जायेगा जैसे उसने भालू का जला हुआ गोश्त बना दिया था।
बस फर्क यही था कि भालू का गोश्त खा लिया गया और उसका गोश्त खाना कोई पसन्द नहीं करेगा। लेकिन अब क्या किया जाये?
“ओह, अच्छा याद आया। मेरे पास तो मोमबत्तियाँ हैं। अगर इनमें से मैं एक मोमबत्ती जलाऊँ तो शायद वे लकड़हारे मुझे देख लें और इस मुसीबत से छुटकारा दिला दें।
यह सोच कर उसने पहली मोमबत्ती जलायी पर उससे कोई फायदा नहीं हुआ। लकड़हारों ने उस मोमबत्ती की रोशनी को देखा तो पर उतनी दूर से उसकी रोशनी उनको तारे जैसी लगी।
मास्टर पियरो वहाँ से सहायता के लिये चिल्लाया भी परन्तु उसकी पुकार क्रिसमस की शाम को होने वाली प्रार्थनाओं की आवाज में खो कर रह गयी।
फिर मास्टर पियरो को ध्यान आया कि मैं भी कितना बेवकूफ हूँ कि मैं सहायता के लिये आदमी को पुकार रहा हूँ, मुझे अपने सेन्ट49 को पुकारना चाहिये।
इसलिये उसने एक मोमबत्ती और जलायी और उसे पेड़ के तने पर मजबूती से खड़ा कर दिया और प्रार्थना की — “प्रिय सेन्ट पीटर, ओ पहाड़ों के अच्छे सन्त, तुम स्वर्ग से आओ और मुझे बचाओ।”
इस समय वह सेन्ट जरूर आता पर मुश्किल यह थी कि क्रिसमस की शाम को उसे भी बहुत काम थे इसलिये वह भी मास्टर पियरो की पुकार न सुन सका। इस प्रकार दूसरी मोमबत्ती भी बेकार ही गयी।
अब सेन्ट के आने की उम्मीद भी खत्म हो गयी थी। जैसे जैसे समय निकलता जा रहा था ठंड बढ़ती जा रही थी और मास्टर पियरो को अपनी जान की चिन्ता लग रही थी।
अपनी थकान से लड़ने और उसे दूर करने के लिये उसने तीसरी मोमबत्ती खा ली। उफ़, कितना बुरा डिनर था वह क्रिसमस की शाम का।
ठंड से ठिठुरते हाथों को गर्मी देने के लिये उसने चौथी मोमबत्ती जला ली। यह मोमबत्ती उसके लिये वरदान साबित हुई क्योंकि इस मोमबत्ती की रोशनी में मास्टर पियरो ने देखा कि ट्राली के पहिये जंग लगे तार की वजह से नहीं खिसक रहे हैं और उन्हें केवल चिकना करने की ज़रूरत है।
सो उसने अपनी पाँचवीं मोमबत्ती निकाली और मुस्कुराते हुए सोचा “अरे, मैं भी कितना बेवकूफ हूँ कि मै ंने अपने तार को तो क्रिसमस डिनर खिलाया ही नहीं। मेरी ट्रौली आगे कैसे चलती।”
और उस मोमबत्ती से उसने उस तार को चिकना कर दिया। और लो वह ट्राली तो यह जा और वह जा। तुरन्त ही ट्राली उस तार पर फिसल चली और चर्च पहुँच गयी।
पर वह चर्च में तब पहुँचा जब आधी रात की प्रार्थना खत्म हो रही थी। उसने अपनी छठी मोमबत्ती जलायी। उसकी मोमबत्ती दूसरी मोमबत्तियों के साथ सिर उठाये खड़ी थी।
जैसे ही मास्टर पियरो ने उसे जलाया वह फुसफुसाया — “प्रिय जीसस, यह मोमबत्ती आपको भालू की भेंट है। मैं तो इतना बेवकूफ हूँ कि अगर भालू की चिकनाई मेरे पास न होती तो मैं तो खाली हाथ ही यहाँ आता।”
(साभार सुषमा गुप्ता जी, जिन्होंने लोक-कथाओं पर उल्लेखनीय काम किया है.)