सर-एट-कंबोन-ही-ई-पी : असमिया लोक-कथा
Sir-At-Kambon-He-E-P : Lok-Katha (Assam)
एक समय की बात है, दूर एक पहाड़ी पर ‘लंगकीरबीपी’ नामक एक छोटा-सा गाँव था। वहाँ सर-एट नाम का कार्बापो (कार्बी युवक) और कंबोन नामक कार्बीपी (कार्बी युवती) नामक पति-पत्नी रहते थे। दोनों में काफी प्रेम था। वे दोनों सुखपूर्वक अपना जीवन यापन कर रहे थे। कंबोन बहुत सुंदर थी। वह कढ़ाई, बुनाई के कामों में बहुत ही सिद्धहस्त थी। सर-एट देखने मैं लंबा-चौड़ा, हृष्ट-पुष्ट, बलवान होने के साथ शारीरिक रूप से काफी सुंदर और सुडौल था। जितना वह सुंदर, गोरा-चिट्टा था उतना ही अपने काम के प्रति भी गंभीर था। वह जंगली जानवरों का शिकार और खेती-बाड़ी करके अपनी पत्नी और बच्चों का भरण-पोषण करता था। सर-एट जंगलों में शिकार के लिए निकल जाता और पत्नी दिन भर घर के कामों में उलझी रहती। चावल बिनकर खाना पकाती। पहाड़ की झाड़ियों से हानजंग (सब्जियाँ) तोड़कर उबालती। ओखली में धान कूटती। मुर्गियाँ, सुअर, भेड़-बकरियों को दाना खिलाती, झरने से पानी भरकर लाती, अपने बच्चों को अपनी ममता भरी निगरानी में रखती। बच्चों को निंदिया सताती तो ओसो-केपादोक आलुन (कार्बी लोरी गीत) सुनाकर उन्हें सुलाती और अपने बच्चों के सुख-दुख में हमेशा साथ देती। इस प्रकार दोनों पति-पत्नी का जीवन शांतिपूर्वक व्यतीत हो रहा था।
ही-ई-पी (राक्षसी) की बुरी नजर हमेशा से सर-एट पर थी। वह उसके साथ विवाह करना चाहती थी। इसके लिए कंबोन को रास्ते से हटाना जरूरी था। वह कछ न कछ “षडयंत्र करके अपने मकसद में कामयाब होना चाहती थी। जब भी कभी सर-एट जंगल में शिकार के लिए निकल जाता, तो ही-ई-पी कंबोन को मछली पकड़ने के नदी पर जाने का आग्रह करती। कंबोन को वह बिल्कुल भी पसंद नहीं थी। इसलिए वह कुछ न कुछ बहाना बनाकर उसे टालने का प्रयास करती थी। इसी तरह आए दिन ही-ई-पी कंबोन को नदी में चलने को कहती परंतु कंबोन हर बार उसे साफ मना कर देती। वह कह देती कि कढ़ाई-बुनाई का काम करना है।
एक दिन ही-ई-पी मना करने के बाद भी अपने घर वापस नहीं गई। जब कंबोन ने अपनी व्यस्तता की बात बताई तो वह कहने लगी- “तुम हमेशा से कढ़ाई-बुनाई और करघे के काम में ही लगी रहती हो। और तुम्हारा काम कभी पूरा नहीं होता।” यह कहते हुए उसने कंबोन के हाथों से जबर्दस्ती करघा छीन लिया। “तुम्हारा काम आज मैं पूरा कर दूंगी।”- यह कहते हुए वह जल्दी-जल्दी हाथ चलाने लगी और कंबोन के आधे-अधूरे कामको उसने तुरंत निपटा लिया। अब कंबोन के पास भी कुछ भी बहाना नहीं बचा था। वह सोचने लगी कि किस तरह ही-ई-पी से छुटकारा मिलेगा? ही-ई-पी कंबोन को मछली पकड़ने के लिए चलने को कहने लगी, लेकिन उसने खराब तबीयत का हवाला देकर साफ मना कर दिया। इसी तरह ही-ई-पी रोज अकेली कंबोन के पास आती। काम निपटाती और मछली पकड़ने के लिए साथ चलने का आग्रह करती। लाख मना करने पर भी आखिरकार एक दिन ही-ई-पी उसे जबरदस्ती मछली पकड़ने के लिए नदी में ले जाने में कामयाब हो गई।
कंबोन को ही-ई-पी के साथ मछली पकड़ने के लिए जाना ही पड़ा। दोनों नदी में जाकर मछली पकड़ने लगे। कंबोन (कार्बीपी) एक किनारे से झिंगा मछली, पूठी मछली, न्हढंग, सिंगकी, बोरोक मछली पकड़ने लगी, दूसरी तरफ से ही-ई-पी साँप, केकड़ा, चींटी, और जहरीले कीड़े पकड़कर अपनी बुरुक (बाँस से बनी टोकरी जिसमें मछली रखी जाती है) के अंदर डालने लगी। मछली पकड़ते-पकड़ते जब सूरज ढलने लगा तो कंबोन ही-ई-पी से कहने लगी- “हमें सरज की रोशनी बझने से पहले घर लौटना चाहिए, क्योंकि बच्चे मेरा इंतजार कर रहे हैं। और मैंने यह भी सुना है कि जंगल में कई हिंसक पशु भी विचरण करते हैं।”
ही-ई-पी कहाँ मानने वाली थी? कंबोन के लाख कहने पर भी उसने उसे घर वापस जाने नहीं दिया। जंगल में नदी किनारे रोके रखा। ही-ई-पी कहने लगी- “अभी तक मेरा बुरुक मछली से भरा नहीं है, मुझे और मछली चाहिए। आओ नदी के दूसरे छोर पर चलते हैं।”
ही-ई-पी कंबोन को और मछली पकड़ने के बहाने नदी के किनारे-किनारे लेकर चलने लगी। कंबोन उससे जल्दी छुटकारा पाने के लिए और मछलियाँ पकड़ने लगी। ही-ई-पी की टोकरी मछली से भर गई। उसी समय नदी की धारा के साथ एक इंगलेट आथे (एक प्रकार का फल) बहता हुआ आता दिखाई दिया। उसे देखकर ही-ई-पी कंबोन से कहने लगी- “क्यों न इस फल के पेड़ की खोज की जाए? और खूब सारा फल घर लेकर जाया जाए। बच्चे भी खुश हो जाएँगे।”
कंबोन का मन बेचैन हो रहा था। वह तुरंत घर पहुँचना चाहती थी। इसलिए वह ही-ई-पी को मना करती हुई कहने लगी- “घर में सिर्फ बच्चे ही हैं, वे भी अकेले, वे मेरा इंतजार कर रहे होंगे। हमें चलना चाहिए।”
ही-ई-पी ने उसकी एक न सुनी। लाचार कंबोन करती तो करती भी क्या। ही-ई-पी उसे जबर्दस्ती इंगलेट आथे के फलों के पेड़ की तलाश में लेकर चली गई। काफी दर चलने पर उन्हें आखिरकार एक बडा गाँव दिखाई दिया। वहाँ इंगलेट के बहुत पेड़ दिखाई दिए। ही-ई-पी उस पेड़ पर चढ़ने लगी पर कुछ ऊपर चढ़ने पर उसके पैर फिसल गए और वह धड़ाम से नीचे गिर पड़ी। वह कंबोन से कहने लगी- “कंबोन तुम पेड़ पर चढ़ो। मैं तुम्हारी मदद करती हूँ। तुम मेरे सर और कंधे पर अपनी टाँगे रखती हुई इस पेड़ पर चढ़ जाना।” इस तरह वह कंबोन को पेड़ पर चढ़ने में मद्दत करती है और उसे पेड़ के एकदम ऊपरी छोर पर पहुँचा देती है।
पेड़ के एकदम ऊपरी भाग पर पहुँच जाने के बाद कंबोन ने पेड़ को हल्का-हल्का हिलाना शुरू किया ताकि फल नीचे गिर सकें। ही-ई-पी ने गिरे हुए एक फल का स्वाद चखा और कहने लगी कि यह सड़ा हुआ है। उसी दौरान वह चुपके से जहरीले साँप को पेड़ पर छोड़ देती है ताकि वह कंबोन को डस सके। फिर एक-एक करके जहरीले कीड़े छोड़ती गई।
कंबोन, साँप और जहरीले कीड़ों के काटने के कारण चीखने-चिल्लाने लगी। वह ही-ई-पी को बचाने की गुहार लगाने लगी। दर्द के कारण उसकी आवाज काँपने लगी। इतने में ही-ई-पी ने कहा- “तुम अपने गहने फेंक दो तो फिर शायद मैं तुम्हें बचाने को सोच सकती हूँ।” कंबोन ही-ई-पी निर्देश अनुसार धीरे-धीरे अपने वस्त्र और गहने उतार कर नीचे फेंकने लगी। ही-ई-पी फिर से कई जहरीले कीड़े पेड़ पर छोड़ देती है। कीड़ों की डंक से चीखती हुई कंबोन ही-ई-पी से रोते हुए कहती है- “मुझे छोड़ दो, मुझ पर रहम करो।” चिल्ला-चिल्ला कर उसका गला सूख गया पर ही-ई-पी ने उस पर रत्ती भर रहम नहीं किया। ही-ई-पी कंबोन से बाकी बचे हुए गहनों को जल्दी से नीचे फेंकने की माँग करती है। इतने में कंबोन का मन मस्तिष्क सोचना बंद कर देता है और अब उसके पास फेंकने के लिए कुछ नहीं बचा था। सिर्फ अजिसो (कार्बी जनजाति का पारंपरिक वस्त्र) बचा था। ही-ई-पी कहती है- “मेरा फल का थैला अभी तक भरा नहीं है। तुम पेड़ की डाल को जोर से हिलाओ। अपनी बची-खुची शक्ति को समेटकर कंबोन जैसे ही पेड़ हिलाने की कोशिश करने लगी, ही-ई-पी ने फिर एक जहरीला कीड़ा छोड़ दिया। कंबोन किसी तरह अपनी जान बचाने की कोशिश करने लगी, पर ही-ई-पी इस मौके को चूकना नहीं चाहती थी। उसने भी ठान लिया था कि आज वह कंबोन की जान लेकर रहेगी।
ही-ई-पी एक और साँप पेड़ पर छोड़ देती है। कंबोन को जहरीला साँप काट लेता है। वह दर्द के कारण चीखती-चिल्लाती है। पेड़ के ऊपर ही कंबोन की करुण मौत हो जाती है। मरते-मरते कबोंन, ही-ई-पी से कहती है- “ही-ई-पी मेरे बच्चों और मेरे पति सर-एट का ध्यान रखना ……।” इतना कहने के बाद उसका मृत देह पेड़ से धड़ाम से नीचे गिर पड़ा। उसके मृत शरीर को देखकर ही-ई-पी बहुत खुश हुई। वह अपनी योजना में सफल हो गई थी। अब सर-एट को पाने में कोई बाधा नहीं था। यह सोच कर वह जंगल के बीच चौराहे पर अकेली हँसती रही। आज उसकी खुशी का ठिकाना नहीं था। वह खुद से कहती है- “इतने दिनों से जिसका इंतजार था, आखिरकार वह आज पूरा हो गया।”
ही-ई-पी ने कंबोन के कपड़े और गहने धारण किया। वह मछली पकड़ने का सामान, बुरुक इत्यादि लेकर सर-एट के घर पहुँच गई।
इतने में ही बच्चे के रोने की आवाज सुनाई दी। माँ बच्चे को दूध पिलाया, परंतु दुध पीने के बाद भी बच्चा चुप होने का नाम नहीं ले रहा था। सर-एट ने कहा- “इस बच्चे को कैसे दूध पिला रही हो? यह चुप होने का नाम क्यों नहीं ले रहा है? यह चुप होने के बजाए आखिर रो क्यों रहा है?”
ही-ई-पी जवाब देती है- “मैं मछली पकड़-पकड़कर थक गई हूँ, और तुम हो कि ताने ही मारे जा रहे हो! मुझसे अच्छी पत्नी भी मिले कोई तो ढूँढ लो।”
इस पर सर-एट ने कहा,- “तुम बच्चे पर ध्यान दो।”
इस बात पर ही-ई-पी अपनी नाराजगी व्यक्त करती हुई गुस्से से कहती है,- “अगर आपको मुझसे इतनी ही परेशानी है तो दूसरी बीवी ले आइये ना।” वह बनावटी क्रोध प्रकट करती हुई बच्चे को सर-एट की गोद में देते हुए कहती है- “लो, इसे खुद ही संभालो।”
जोर-जोर से रोता हुआ बच्चा अपने पिता की गोद में आते ही चुप हो गया। ही-ई-पी हाक (सब्जी का थैला) में जितनी भी सब्जियाँ थीं, सब निकालकर पका लेती है। दिन भर काम से थका सर-एट खाना खाने के बाद तुरंत सो जाता है। अगले दिन सुबह सूर्योदय होने से पहले ही वह शिकार एवं खेती के लिए ही-ई-पी के साथ निकल जाता है। दोनों बच्चों को घर में छोड़कर चले जाते हैं।
काचे (सर-एट की बेटी) अपने छोटे भाई को बहलाने के लिए बगीचे के कोने में घुमाने ले जाती है। कंबोन वोमु ओक कालिक (एक तरह का विशाल पक्षी) का रूप धारण करके वहाँ आती। जब भी काचे उस पक्षी को आवाज देती तो पक्षी रूपी कंबोन आती। रोने पर वह अपने बच्चे को लोरी गाकर सलाती। आसमान से खाने का सामान नीचे गिरा देती।
सर-एट और ही-ई-पी जंगल से घर वापस आ गए। ही-ई-पी ने बच्चे को दूध पिलाने की कोशिश की पर बच्चे ने पीने से इंकार कर दिया। उस दिन से बच्चे ने ही-ई-पी के पास जाना ही छोड़ दिया। समय बीतता गया। ही-ई-पी परेशान होने लगी। सोचने लगी कि आखिरकार यह बच्चा खाता क्या है? यह दूध पीने का नाम नहीं लेता। यह कैसे जी रहा है? यह सवाल ही-ई-पी के मन को मथता जा रहा था। वह मन-ही-मन सोचने लगी किकल कुछ भी हो जाए, मैं सुबह से जासूसी करूंगी और यह पता लगाउँगी कि आखिरकार ये बच्चे खाते क्या हैं! मैं भी तो देखू कौन है जो चुपके से इन्हें खिला जाता है।
सर-एट रोज जंगल में शिकार के लिए एवं खेती-बाड़ी के लिए जाता था। पहाड़ से लकड़ी, जंगली सब्जी आदि लाकर वह घर की आवश्यकताओं की पूर्ति करता। कभी-कभार कंबोन भी उसके साथ चली जाती। उस दिन उसने ही-ई-पी को साथ चलने को कहा पर वह इंकार करती हुई कहने लगी- “मेरी तबीयत ठीक नहीं है। आज आप शिकार और खेती के लिए अकेले ही जाइए।”
सर-एट ने कहा- “ठीक है तुम घर पर ही आराम करो। बच्चों की देख-भाल भी होगी। तुम्हारा घर में रहना ही ठीक होगा।”
उधर हर दिन की तरह काचे बगीचे के कोने में जाकर वोमु ओक कालिक (पक्षी) को पुकारा। कंबोन पक्षी का रूप धारण करके अपने बच्चों के पास आई। बच्चों को खाना दिया। छोटे बच्चे को लोरी गाकर सुलाया। जी भरकर प्यार किया। कंबोन को जब भनक लगी कि ही-ई-पी उसके बच्चों पर नजर रख रही है तो वह पूरी सावधानी से लुक-छिपकर वह अपने बच्चों की देखभाल करती रही, उन्हें खिलाती-पिलाती रही।
दुष्ट ही-ई-पी ने छुपकर सारा दृश्य देख लिया। उसे यह शंका पहले ही हो गई थी। वह मन ही मन कहने लगी- “आखिर यह कंबोन ही है जो पक्षी का रूप धारण करके अपने बच्चों का पालन-पोषण कर रही है।”
अब ही-ई-पी की निगरानी और तेज हो गई। वह कंबोन की प्रतीक्षा में थी। वह कैसे भी हो उस पक्षी रूपी कंबोन से पार पाना चाहती थी। एक दिन वह बच्चों से पहले बगीचे में गई। बिल्कुल काचे की मधुर आवाज का नकल करते हुए पुकारने लगी- “ओ पाई (मां) ….. ओ पाई….” – पक्षी (वोमु ओक कालिक) रूपी कंबोन भी धोखा खा जाती है। वह जैसे ही जमीन पर उतरी ही-ई-पी ने उसे लंबे बाँस के डंडे से मारना शुरू किया। वह तब तक मारती रही जब तक वह पक्षी अधमरा नहीं हुआ। बेरहम ही-ई-पी ने उसके शरीर से सारे पंख उखाड़ लिए और उसे एक पतीले में डालकर उबालने लगी। बुदबुद की आवाज के साथ पक्षी ने उबलना शुरू किया। मांस तैयार हो गया। उसने बच्चों को खाने में पक्षी का मांस परोस दिया। दोनों ने बड़े प्रेम से मांस-भात खाया। जब ही-ई-पी की खाने की बारी आई और उसने पहला कौर मुँह में डाला तो उसे उसका स्वाद बहुत ही कड़वा लगा। वह उसे खा नहीं पाई। बचा हुआ मांस वह बगीचे में ले गई और जमीन खोदकर दफना दिया।
इधर काचे रोज की तरह बगीचे में जाकर पक्षी को पुकारती है, अपनी माँ को याद करती है, परंतु वह नहीं आती। जिस जगह पर कंबोन ही-ई-पी ने कंबोन रूपी पक्षी का मांस दफनाया था, वहाँ तीन दिन बाद एक संतरे का पेड़ उग आया। उसी पेड़ के नीचे बैठकर अब काचे हर रोज अपने छोटे भाई को लोरी सुनाती।
दिन बीतते गए। काचे बच्चे को बहलाती रही और जब भी कभी वह रोने लगता तो उसी संतरे के पेड़ के नीचे लेकर जाती और वह बच्चा चुप हो जाता। इतने में ही-ई-पी को पता चल जाता है कि बगीचे में जाते ही बच्चा चुप हो जाता है। काचे ने उसे बताया कि संतरे के पेड़ के नीचे जाते ही वह चुप हो गया। ही-ई-पी काचे की बात से आश्चर्यचकित हो गई। वह पूछने लगी कि पेड़ कहाँ है? काचे ऊँगली से इशारा करके बताती है कि वहाँ है। ही-ई-पी कहती है- “संतरे का पेड़ कहाँ है, मुझे तो दिखाई नहीं दे रहा है?”
काचे अब समझदार हो चुकी थी। उसने ही-ई-पी को जवाब देते हुए कहा- “बच्चा रो रहा था इसलिए उसे फुसलाने के लिए मैंने यूँ ही कह दिया कि यहाँ संतरे का पेड़ है।”
ही-ई-पी के सामने यह पेड़ अदृश्य था। काचे रोज अपने भाई के साथ संतरे के पेड़ की छाँव में बैठती। जब फल पक जाते तो काचे उसे तोड़कर बुरुक (थैला) में छुपा लेती। इसी तरह संतरे के रूप में कांबोन बच्चों की रक्षा करने लगी। यदि घर में कोई न हो तो वह घर की साफ-सफाई, बच्चों के लिए खाना बनाना इत्यादि घर के सारे कामों को निपटाने लगी। सब काम निपटाने के बाद वह फिर से बुरुक में छिप जाती।
दिन-प्रतिदिन तरह घर की सुंदरता में भी चार चाँद लगते गए। सर-एट के मन में सवाल आने लगे कि कौन है जो हमारे घर को इतना सुंदर बना रहा है? कौन है जो पहले की तरह ही सब कुछ यथास्थान पर संभाल कर रख देता है। पहले की तरह ही शांतिपूर्ण तरीके से जीवन व्यतीत हो रहा है।
सर-एट ने निश्चय किया कि कल वह शिकार पर नहीं जाएगा। वह देखेगा कि उनकी गैर-मौजूदगी में कौन घर को चमकाता है। ही-ई-पी पानी भरने तालाब की ओर चल दी। बच्चे बगीचे में चले गए। घर सुनसान हो गया। सर-एट घर के एक कोने में छुपकर बैठ गया। घर शांत होते ही बुरुक से कंबोन निकली। हमेशा की तरह घर में झाडू लगाया, घर का सारा काम निपटाकर ज्योंहि कंबोन (बुरुक) के अंदर छुपने वाली थी, सर-एट ने तुरंत उसका हाथ पकड़ लिया। कंबोन उसे फटकार लगाते हुए कहने लगी”संभलकर तुम्हारी पत्नी (ही-ई-पी) आ जायेगी, मुझे जाने दो।”
सर-एट कंबोन से पूछता है कि ऐसी भी क्या मजबूरी आ गई कि तुम्हें इस अवस्था में अलग-अलग वेश धारण करके आना पड़ रहा है? वह अपने ही घर में? इस पर कंबोन ने अपने पति (सर-एट) को सारा वृतांत कह सुनाया कि किस तरह बहला-फुसलाकर ही-ई-पी ने यह साजिश रचकर उसकी हत्या की। कंबोन की आपबीती सुनकर सर-एट कहा”इतनी बेरहमी से ही-ई-पी ने तुम्हारी हत्या की है, मैं भी उसे इसी तरह तड़पा-तड़पाकर कर मारूँगा।”
वह शपथ लेता है कि वह ही-ई-पी को वह मार कर ही दम लेगा। जब ही-ई-पी घर लौटकर आई तो उसने देखा कि सर-एट दाव में धार दे रहा है। इस पर ही-ई-पी पूछती है- “बच्चों के पिता आज आप इस दाव में इतनी तेज से धार क्यों दे रहे हैं? इतना धार किसलिए?”
सर-एट बोलता है- “नदी किनारे जंगल का रास्ता साफ करना है।”
ही-ई-पी सर-एट की बातों पर विश्वास कर लेती है अगले दिन हमेशा की तरह सर-एट और ही-ई-पी नहाने के लिए नदी की ओर निकल पड़े। ही-ई-पी नदी में नहाने लगी। जैसे ही वह पानी के अंदर डुबकी लगाती है, सर-एट उसका सर धड़ से अलग करने का प्रयास करता है, वैन-वोन की आवाज आती है और वह झुक जाती है। वह सर-एट से सवाल करती है”यह आवाज कहाँ से आ रही है?”
सर-एट कहता है- “बारिश आने वाली है, यह आवाज बादलों से आ रही है। तुम जल्दी जल्दी नहा लो।”
ज्योंही ही-ई-पी ने दूसरी डुबकी लगानी चाही सर-एट ने फुर्ती से धारदार दाव से ही-ई-पी का सिर उसके धड़ से अलग कर दिया। इस प्रकार दुष्ट ही-ई-पी से छुटकारा पाने के बाद दोनों पहले की तरह शांतिपूर्ण जिंदगी जीने लगे। दुष्ट ही-ई-पी को उसकी किए की सजा मिल गई।
(इस कहानी के आधार पर कार्बी जनजाति में यह कहावत है प्रचलित है- chorisi cholong manthuAlang pong अर्थात् जैसी करनी वैसी भरनी)
(साभार : डॉ. गोमा देवी शर्मा)