सीनेरू की कथा (ईदू मिशमी जनजाति) : अरुणाचल प्रदेश की लोक-कथा
Sineru Ki Katha : Folk Tale (Arunachal Pradesh)
सीनेरू ईदू मिशमी समुदाय के पहले इगु (पुजारी) माने जाते हैं। वे प्रसिद्ध, सिद्ध तथा शक्तिशाली इगु थे एवं उनकी प्रसिद्धि दूर-दूर तक फैली हुई थी। एक बार तिब्बत में महामारी फैली। पेचिश से लोग मर रहे थे। पूरे तिब्बत की लगभग आधी आबादी इससे प्रभावित हो रही थी, तो ऐसे में सीनेरू को वहाँ के लोगों को रोगमुक्त करने के लिए बुलाया गया। सीनेरू अपनी बूढ़ी माँ जवान पत्नी तथा बच्चों को छोड़कर तिब्बत चले गए। जाने से पहले वह इशुरू नामक बाज को अपना खबरी बनाकर घरवालों की पल-पल की खबर देने का जिम्मा दे गए । तिब्बत में महामारी इतनी भयंकर रूप में फैली हुई थी कि सीनेरू को वहाँ वर्षों तक रुकना पड़ा। फिर एक दिन उनके खबरी बाज इशुरू ने आकर उन्हें दु:खद समाचार सुनाया। उसने बताया कि उनका आ यानी बच्चा नहीं रहा। यह सुनकर वे बहुत दुःखी तो हुए, किंतु अपने दुःख से बड़ी अपनी जिम्मेदारी को समझते हुए उन्होंने इशुरू से कहा, “बच्चे तो मैं और मेरी पत्नी फिर पैदा कर सकते हैं और पत्नी भी दूसरी ब्याह कर ला सकता हूँ, किंतु मेरा यहाँ रहना ज्यादा जरूरी है। यहाँ के लोगों को मेरी जरूरत है । अत: तुम जाओ और कोई नई खबर हो तो ले आना। " इशुरू वापस लौट गया।
कुछ वर्ष बाद इशुरू फिर लौटकर आया। इस बार वह सीनेरू की माता की मौत की खबर लाया था । सीनेरू अपनी माता की मौत की खबर पाकर गहरे सदमे में चले गए। कुछ दिनों तक तो वे सदमे में रहे, फिर उन्होंने वहाँ के लोगों से कहा, "पत्नी और बच्चे तो मुझे दोबारा मिल जाएँगे, किंतु माँ दोबारा नहीं मिल सकती, इसलिए मुझे जाना होगा।" यह कहकर सीनेरू वहाँ से अपने घर के लिए निकल पड़े। लौटते समय आथो पोपू नामक स्थान पर सीनेरू एक पत्थर पर बैठकर घंटों रोते रहे। मान्यता है कि आज भी उस पत्थर पर सीनेरू के आँसू विद्यमान हैं और उनके हाथों के निशान भी उस पत्थर पर देखने को मिलते हैं।
सीने अपने गाँव में प्रवेश करते ही वहीं फाटक पर बैठकर तप करने लगे । तप करते-करते वे अवचेतनावस्था में चले गए और उस अवस्था में अपनी माता को उन्होंने देखा । उसके बाद उन्होंने इशुरू को घर जाकर मुरगा अथवा मुरगी पकड़ने का प्रयास कर, यह देखने को कहा कि वहाँ कोई आत्मा है या नहीं ? थोड़ी देर में इशुरू लौटा और बताया कि वहाँ एक बूढ़ी औरत ने मुरगी की रक्षा करते हुए मुझे भगाया। यह सुनते ही सीनेरू समझ गए कि उनकी माँ की रूह आस-पास ही भटक रही है। वे तुरंत घर पहुँचकर या (किसी की मृत्यु पर किया जानेवाला रिवाज ) करने लगे। पूरे पाँच दिन तक लगातार या करने के बाद सीनेरू अपनी माँ को मृत्युलोक से वापस लाने में कामयाब हुए। माँ लौट तो आई, परंतु बड़े भयंकर रूप में। उसने गले तथा कानों में आंजीपोम्ब्रा (केंचुआ) का हार तथा बालियाँ धारण की हुई थी। पूरा शरीर बदबूदार था। वह किसी पक्षी की तरह सी-सी करते हुए आसोका (द्वार) से घर के अंदर प्रवेश करने का प्रयास करने लगी, किंतु सीनेरू की पत्नी वहीं बैठकर कपड़ा बुन रही थी। अपनी सास को गंदे और भयंकर रूप में देखकर घबराहट में चिल्लाते हुए उसने आब्रीपा ( कपड़े बुनने का औजार) से मारकर उसे भगा दिया। पेड़ पर बैठा उल्लू यह सब देख रहा था। उसने प्रस्ताव रखा कि माँ को मैं ऐसे झरने के पास ले जाऊँगा और उन्हें साफ कर दूँगा ।
कुछ देर बाद उल्लू अकेला लौट आया। माँ उसके साथ नहीं थी। सीनेरू के पूछने पर उसने बताया कि माँ उस झरने के पासवाली पहाड़ी से गिरकर मर गई। उसे पीशु और प्रावु (पक्षियों के नाम ) खा गए होंगे।
इस बात की पुष्टि करने के लिए सीनेरू मक्खी का रूप धारण कर उस झरने के पास अपनी माँ को खोजने लगे। किंतु माँ कहीं नहीं मिली। पेथ्रो और पाली (पक्षियों के नाम) से पूछने पर उन्होंने बताया कि हम तो दिन भर पानी पीने को इधर-उधर उड़ते फिरते हैं, हमने आपकी माँ को कहीं नहीं देखा। हाँ, किंतु उल्लू के मुँह से बदबू आ रही थी । यह सुनते ही सीनेरू सब समझ गए। उनको समझ में आ गया कि उल्लू उनकी माँ को खा गया। फिर इस बात की पुष्टि के लिए वे उल्लू के पास गए तो उसके मुँह से बदबू आ रही थी और उसके बदबूदार मुँह के आसपास मक्खियाँ भिनभिना रही थीं। मारे गुस्से के सीनेरू ने उल्लू को मार दिया और उसकी चोंच को खोलकर देखा, तो उसमें सीनेरू को अपनी माँ के केश मिले।
उसके बाद सीनेरू एक थाल में खाना रखकर या करने लगे । लगातार पाँच दिन तक या करने के बाद माँ की आत्मा मक्खी के रूप में लौटी। माँ को मक्खी के रूप में देखकर सीनेरू बहुत दु:खी हुए और कहने लगे, "मेरी माँ अब मेरी माँ नहीं रही। उसका रूप बदल गया। वह तो अब केवल एक मक्खी है, जो बस इधर-उधर उड़ती फिरेगी। मौत ने हमें सदा के लिए अलग कर दिया। अब हमारी दुनिया अलग-अलग हो गई।" यह कहते हुए सीनेरू ने या करना आरंभ किया तथा माँ की रूह को समझाने लगे कि "तुम्हारी और हमारी दुनिया अलग है। इसलिए अब तुम इनसानी दुनिया में कभी न लौटना । " बस उस दिन से ईदू मिशमी समुदाय ने किसी की भी मृत्यु के बाद या करना आरंभ किया।
(साभार : मेडिको मिञ्जो)