शीराज़ का एक आदमी : कश्मीरी लोक-कथा

Shiraz Ka Ek Aadami : Lok-Katha (Kashmir)

यह बहुत पुरानी बात है कि एक बार एक शीराज़ी काश्मीर घूमने गया। वहाँ जा कर वह अपने किसी दोस्त से मिलने गया और उसके घर तीन दिन ठहरा।

इस दोस्त को अपनी मेहमाननवाज़ी पर बहुत घमंड था। सो उसने अपने मेहमान की खातिर करने के लिये शाम को एक बहुत शानदार दावत का इन्तजाम किया।

जब वे खाना खा रहे थे तो उसको यह आशा थी कि उसका मेहमान उसके खाने की तारीफ करेगा। शीराज़ी ने भी यह भाँपते हुए कि उसका दोस्त उससे क्या आशा कर रहा था कुछ देर बाद बोला — “तुम्हारा खाना बहुत अच्छा था बहुत ही अच्छा था पर हमारे देश के खाने से इसका कोई मुकाबला नहीं था।”

फिर कुछ और बातें हुईं और दोनों उठ गये। शीराज़ी का दोस्त शीराज़ी की इस बात पर इतना परेशान हुआ कि रात को उसे नींद नहीं आयी। सारी रात वह उसको उससे भी अच्छा और मँहगा खाना खिलाने के बारे में सोचता रहा।

सुबह होने से पहले ही वह उठा और अपने रसोइये को बुला कर उसको ऐसा खाना बनाने का हुकुम दिया जो उसने सोचा कि वह खाना उसके दोस्त के देश में खिलाये जाने से यकीनन ज़्यादा अच्छा होगा।

सब चीज़ों के बनाने के लिये उसने उसको बड़ी बारीकी से समझाया ताकि उसका दोस्त यह कह सके कि कम से कम वह खाना उसके देश में खिलाये जाने के बराबर का था। और अगर ऐसा हुआ तो उसने रसोइये को दस रुपये इनाम देने का वायदा किया। पर उसकी यह कोशिश भी भी बेकार ही गयी। उसका उस दिन का खर्चा और तैयारियाँ उसके खाने को उसके दोस्त के देश के खाने के मुकाबले तक का न ला सकीं। उस दिन भी शीराज़ ने उस खाने को अपने देश के खाने से नीचा बताया।

इसमें रसोइये का कोई दोष नहीं था। इससे अच्छा खाना तो न कोई बना सकता था और न किसी को खिला सकता था।

शीराज़ के काशमीरी दोस्त ने सोचा कि शायद उसका यह रसोइया कुछ अच्छा खाना नहीं बना पाया सो उसने तीसरे दिन एक और अच्छे रसोइये को बुलाया और उससे पहले दो दिनों से भी ज़्यादा और ज़्यादा अच्छा खाना बनाने के लिये कहा। साथ में उसने उससे यह भी कहा कि अगर उसके मेहमान को उसका खाना पसन्द आया तो वह उसको बीस रुपये इनाम के देगा।

इस पर भी शीराज़ी ने यही कहा — “दोस्त हमारे देश में जैसा खाना बनता है यह उसके मुकाबले का नहीं है।”

तीन दिन बाद शीराज़ी अपने देश वापस चला गया। कुछ साल गुजर गये। एक दिन शीराज़ी का काश्मीरी दोस्त घूमते घूमते शीराज़ी के देश पहुँच गया। वहाँ वह शीराज़ी के घर ठहरा। शीराज़ी उसको देख कर बहुत खुश हुआ और उसकी बड़ी आवभगत की। उसने भी अपने दोस्त अपने घर में कम से कम तीन दिन रुकने की प्रार्थना की जो उसके दोस्त ने मान ली।

हाथ मुँह धो कर कपड़े बदलने के बाद दोनों दोस्त पाइप पीने बैठे और बातें करने लगे। इस बीच खाना बन कर तैयार हुआ। शीराज़ का दोस्त इस आशा में बैठा रहा कि देखें इसके घर में कैसा खाना बन कर आता है। किस तरह शीराज़ का खाना मेरे खाने से ज़्यादा अच्छा है।

आखिर खाने का समय हुआ और खाना लगा। काश्मीरी का गुस्सा और आश्चर्य तो सातवें आसमान पर पहुँच गया जब उसने देखा कि वहाँ तो उसके सामने केवल चावल की एक बड़ी प्लेट थी जिस पर इधर उधर कुछ सब्जियाँ पड़ी हुई थीं।

पहले तो उसको लगा कि वह सपना देख रहा है फिर उसने यह पक्का करने के लिये अपनी आँखें मलीं कि वह वाकई सपना देख रहा है या नहीं। उसने देखा कि वह सपना नहीं देख रहा। चावल और सब्जी से भरी हुई प्लेट अभी तक उसके सामने ही थी। उसने फिर से अपनी आँखें मलीं अपनी उँगलियाँ भी चटकायीं पैर फैलाये पर उसके सामने अभी भी वही प्लेट रखी हुई थी।

इसमें अब उसे कोई शक नहीं रह गया था। तो यह था उसका खाना जो उसने उसकी मेहमानदारी में तैयार करवाया था? उसने सोचा कि शायद यह खाना उसने जल्दी में तैयार करवाया होगा इसलिये ऐसा होगा। कल को वह उसके लिये और शानदार खाना तैयार करवायेगा।

कल भी आया फिर तीसरा दिन और फिर चौथा दिन। इन सारे दिनों में वही खाना उसके सामने लाया गया। आखिरी दिन जब शीराज़ी के दोस्त ने खाना खाया तो उससे शीराज़ी से यह पूछे बिना न रहा गया कि उसकी दावतें शीराज़ी के खाने से किस तरह से नीची थीं।

शीराज़ी बोला — “हम शीराज़ के लोग बहुत सादे से लोग हैं। हम अपने देश और अपने घर में मेहमानों का स्वागत करते हैं। तुमने हमको देखा हमारे साथ खाना खाया – परसों भी कल भी और आज भी। हम लोग हमेशा इसी तरह से रहते हैं।

पर जो खाना तमने मुझे खिलाया वह केवल एक दिन के लिये तो ठीक था पर कोई भी आदमी वैसा खाना हमेशा नहीं खा सकता क्योंकि इस तरह से खिलाने वाले की जेब भी बहुत जल्दी खाली हो जायेगी और मेहमान का पेट भी बहुत जल्दी खराब हो जायेगा।

दोनों ही हालतें खराब होंगी। इसीलिये मैंने तुमसे वहाँ यह कहा था। मुझे यकीन है कि तुम मेरी बात की सच्चाई को समझ रहे होगे।”

काशमीरी दोस्त उसकी बात समझ गया और उसको बहुत बहुत धन्यवाद दिया।

(सुषमा गुप्ता)

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