शिकारी चाकू (जापानी कहानी) : हारुकी मुराकामी

Shikari Chaku (Japanese Story in Hindi) : Haruki Murakami

1

समुद्र के किनारे दो रफ्टे (rafts) जुड़वां द्वीपों की भांति लंगर डाले हुए थे। वे किनारे से तैर कर जाने के लिए एकदम ठीक दूरी पर थे- पहले तक पहुँचने के लिए ठीक पचास स्ट्रोक और फिर उससे दूसरे तक के लिए तीस स्ट्रोक। चौदह फीट के प्रत्येक वर्गाकार रफ्टे में धातु की एक सीढ़ी और उसके तल पर उसे ढके हुए बनावटी घास की कालीन थी। उस स्थान पर पानी दस या बारह फीट गहरा था और इतना पारदर्शी था कि आप उसके तल में कंकरीट के लंगर तक जाती हुई जंजीरों को लगभग समूचा देख सकते थे। तैराकी का क्षेत्र मूंगे की चट्टानों से घिरा हुआ था और वहाँ लहरें बिलकुल न के बराबर थीं, जिससे रफ्टे बहुत कम हिल रहे थे। वे तेज धूप में जलते एक के बाद एक बीतते कई दिनों से वहाँ लंगर डाले होने के प्रति उदासीन लग रहे थे।

मैं वहाँ खड़े होना और समुद्रतट को निहारना पसंद करता था- लंबा श्वेत समुद्रतट, लाल जीवनरक्षक मीनार, पाम के वृक्षों की हरी पंक्ति- यह एक शानदार दृश्य था, सम्भवतः एक पिक्चर पोस्टकार्ड के लिए कुछ अधिक ही उपयुक्त। दूर दायीं ओर, समुद्रतट काली ऊबड़खाबड़ चट्टानों की पंक्तियों के साथ वहाँ समाप्त होता था जहाँ वह होटल की कॉटेज स्थित थीं जिसमें मेरी पत्नी और मैं ठहरे हुए थे। यह जून के अंत का समय था और टूरिस्ट सीजन की अभी शुरुआत ही थी, और अभी सागरतट पर अथवा होटल में बहुत अधिक लोग नहीं थे।

पास ही में एक अमेरिकी सैन्य अड्डा था और रफ्टे वहाँ लौटते हेलिकॉप्टर्स के उड़ान मार्ग के ठीक नीचे खड़े थे। जहाज किनारे पर प्रगट होते और दोनों रफ्टों के बीच की जगह को दो हिस्सों में बांट देते फिर पाम के वृक्षों के ऊपर होते हुए अदृश्य हो जाते। वे इतना नीचे से उड़ते थे कि आप पायलटों के चेहरों के भाव तक देख सकते थे। फिर भी, सिर पर मंडराते उन हेलिकॉप्टरों को छोड़ कर, समुद्रतट उनींदा सा लगभग शांत था- छुट्टियों में अकेले पड़े रहने हेतु एकदम उचित स्थान।

प्रत्येक कॉटेज सफ़ेद रंग की दो मंजिला इमारत थी जिनमें चार-चार इकाइयां थी, दो भू-तल पर और दो प्रथम तल पर। हमारा कमरा प्रथम तल पर था जहाँ से समुद्र दिखाई देता था। हमारी खिड़की के ठीक दाहिने एक श्वेत चम्पा का गमला था, उसके परे था अच्छे से कटी हुई घास वाला लॉन। सुबह और शाम स्प्रिंकलर घास पर पानी का छिड़काव करते हुए नींद लाने वाली आवाज़ करते। बगीचे के आगे एक स्विमिंग पूल था और पाम के ऊँचे वृक्षों की एक पंक्ति जिनके बड़े-बड़े पत्ते समुद्री हवा में धीरे- धीरे हिलते रहते।

एक अमेरिकी माँ और बेटा, मेरी और मेरी पत्नी वाले कमरे के सामने वाले कमरे में रुके हुए थे। वे हमारे पहुँचने से काफी समय पहले से ही आ चुके लग रहे थे। माँ लगभग साठ की थी और बेटा लगभग हमारी उम्र का, अट्ठाईस अथवा उनतीस वर्ष का। वे दोनों, जितने माँ और बेटों को मैंने देखा था उनके मुक़ाबले, एक दूसरे से बहुत अधिक मिलती जुलती शक्ल के थे- दोनों लम्बे और पतले चेहरों, चौड़े माथों और कसे हुए होंठों वाले। माँ लम्बी थी, उसका खड़े होने का ढंग एकदम सीधा तथा गति चौकन्नी और तेज थी। बेटा भी लम्बा लगता था लेकिन आप पूरे विश्वास से ऐसा नहीं कह सकते थे क्योंकि वह एक ह्वील चेयर तक सीमित था। उसकी माँ, बिला नागा उसके पीछे होती, चेयर को धकेलती हुई।

वे अविश्वसनीय रूप से शांत थे और उनका कमरा अजायबघर की भांति था। वे कभी टी। वी। नहीं चालू करते थे, यद्यपि मैंने दो बार उनके कमरे से संगीत की आवाज आते सुनी थी- मोजार्ट की क्लेयरनेट पर बजायी गयी एक धुन और दूसरी बार आर्केस्ट्रा पर कोई धुन जिसे मैं नहीं पहचानता था। मेरा अनुमान था रिचर्ड स्ट्रॉस। उसके अतिरिक्त कभी कोई आवाज़ नहीं। वे एयरकंडीशनर का उपयोग नहीं करते थे, बल्कि सामने का द्वार खुला रखते थे ताकि ठंडी समुद्री हवा आ जा सके। लेकिन द्वार खुला होने के बावजूद भी मैंने कभी उन्हें बात करते हुए नहीं सुना था। कोई वार्तालाप यदि उनके बीच होता था- कभी-कभी उन्हें बात करनी ही पड़ती रही होगी- तो वह फुसफुसाहटों में ही होता रहा होगा। इसका असर मेरे और मेरी पत्नी के ऊपर भी पड़ा था और हम जब भी कमरे में होते बहुत धीमी आवाज में बात करते थे।

हम अक्सर उन माँ-बेटे से रेस्टोरेंट में टकरा जाते थे, अथवा लॉबी में, अथवा बगीचे में टहलने के रास्ते पर। होटल छोटी और आरामदायक सी जगह थी, इसलिए मेरा अनुमान था कि हम टकराते रहेंगे, हम चाहें अथवा न चाहें। हम जब पास से गुजरते, एक दूसरे को सिर हिलाते। माँ और बेटे का अभिवादन में सिर हिलाने का ढंग अलग-अलग था।

माँ जोर से स्वीकार करने के ढंग से सिर हिलाती जबकि बेटा मुश्किल से सिर को थोड़ा सा टेढ़ा करता। यद्यपि इन दोनों तरह से सिर हिलाने का तात्पर्य लगभग एक सा था: दोनों अभिवादन वहीं प्रारम्भ हो कर वहीं समाप्त हो जाते थे, उसके आगे कुछ नहीं। हमने कभी उनसे बोलने का प्रयत्न नहीं किया। मेरे और मेरी पत्नी के बीच आपस में ही बात करने के लिए बहुत कुछ था- जब हम घर वापस पहुंचेंगे तो क्या हम नए अपार्टमेंट में शिफ्ट होंगे, हम अपनी नौकरियों के बारे में क्या करेंगे, बच्चे अभी चाहिए अथवा नहीं। यह हमारे तीसरे दशक की अंतिम गर्मियां थीं।

माँ और बेटा नाश्ते के पश्चात, हमेशा लॉबी में बैठते थे और अखबार पढ़ते थे- दोनों ही बहुत सधे ढंग से एक पन्ने से दूसरे को पढ़ते हुए आखिरी तक जाते, जैसे वे किसी ऐसी कठिन प्रतियोगिता में सम्मिलित हों कि अखबार पढ़ने में कौन अधिक समय लगाता है। किसी-किसी दिन अखबार नहीं होता था बल्कि विशाल आकार की मोटी जिल्द वाली किताबें होती थी। वे आपस में माँ बेटे कम और एक बुजुर्ग दम्पति अधिक लगते थे, जो काफी समय पहले ही एक दूसरे से बोर हो गए हों।

2

रोज लगभग दस बजे सुबह मैं और मेरी पत्नी एक बार सागरतट की शीतलता का आनंद लेने के लिए बाहर जाते थे। हम अपने को सन ब्लॉक से ढँक कर अपनी चटाइयों पर लेटे रेत पर पड़े रहते। मैं वॉकमैन पर स्टोन्स अथवा मर्विन गे को सुनता जबकि मेरी पत्नी ‘गान विथ द विंड’ का पेपर बैक संस्करण पढ़ती रहती। उसका दावा था कि उस पुस्तक से उसने जीवन के बारे में बहुत कुछ सीखा है। मैंने इसे कभी नहीं पढ़ा था इसलिए मुझे कोई अनुमान लगाना कठिन था कि उसका क्या मतलब है। हर दिन सूरज धरती पर से निकलता, रफ्टों के बीच से धीरे-धीरे अपना रास्ता तय करता- हेलिकॉप्टरों की विपरीत दिशा में- आराम से दूर क्षितिज में डूब जाता।

प्रतिदिन अपराह्न में दो बजे, माँ और बेटा समुद्रतट पर प्रगट होते थे। माँ हमेशा हलके रंग के सादे कपड़े पहनती और चौड़े किनारों वाला स्ट्रा हैट लगाती थी। बेटा कभी भी हैट नहीं पहनता था, इसकी जगह वह धूप का चश्मा पहनता, सूती पैंट और हवाइयन कमीज के साथ। वे पाम के पेड़ों के नीचे छाया में बैठते, हवा उनके चारों ओर बहती रहती, और वे कुछ न करते हुए बस दूर समुद्र को देखते रहते। माँ फोल्डिंग बीच-चेयर पर बैठती लेकिन बेटा कभी भी ह्वील चेयर से बाहर नहीं निकलता था। थोड़ी- थोड़ी देर में वे जगह बदलते रहते ताकि छाया में बने रहें। माँ के पास एक चांदी के रंग का थर्मस था जिस से वह कभी-कभी अपने लिए पेपर कप में ड्रिंक उड़ेल लेती अथवा क्रेकर्स चबाती।

किसी दिन वे आधे घंटे बाद वापस चले जाते; अन्य दिनों में वे देर तीन बजे अपराह्न तक बैठे रहते। जब मैं तैरने जाता, मैं उन्हें अपने को देखता हुआ महसूस करता। रफ्टों से पाम के वृक्षों की पंक्ति काफी दूर थी इसलिए मैं इस बात की कल्पना भी कर रहा हो सकता था। अथवा संभवतः मैं आवश्यकता से अधिक संवेदनशील हो रहा था, लेकिन जब भी मैं रफ्टे के पास होता, मुझे एक अलग तरह की अनुभूति होती कि उनकी आंखें मेरी दिशा में लगी हुई थी। कभी-कभी चांदी के रंग का थर्मस धूप में एक चाकू की भांति चमक जाता।

3

एक के बाद एक उत्साह विहीन दिन गुजर रहे थे जिनमें एक को दूसरे से अलग पहचानने को कुछ नहीं था। आप एक को दूसरे से बदल सकते थे और कोई न पहचान पाता। सूरज पूरब में उगता, पश्चिम में अस्त होता, जैतून जैसे हरे रंग वाले हेलीकॉप्टर नीची उड़ान भरते और मैं बीयर के कैन के कैन पी जाता और रोज अपने मन भर तैरा करता।

हमारे होटल में रहने के अंतिम दिन के अपराह्न में मैं एक आखिरी बार तैरने के लिए बाहर गया। मेरी पत्नी हलकी नींद ले रही थी इसलिए मैं अकेले ही समुद्रतट पर चला गया। उस दिन शनिवार था और वहाँ सामान्य से अधिक लोग थे। धूप में सांवले हो गए उभरे पुट्ठों और टैटू वाली बांहों वाले युवा सैनिक वॉलीबाल खेल रहे थे। किनारे पर बच्चे पानी से खेल रहे थे, रेत के घर बना रहे थे और हर लहर के साथ ख़ुशी से किलकारियां भर रहे थे। लेकिन पानी में लगभग कोई नहीं था, रफ्टे सुनसान थे, सूरज सिर के ऊपर था और रेत गर्म। दो बज चुके थे, लेकिन माँ और बेटा अभी भी प्रगट नहीं हुए थे।

मैं तब तक चलता रहा जब तक पानी मेरे सीने तक नहीं आ गया, फिर धीरे-धीरे तैरता हुआ बायीं तरफ वाले रफ्टे की ओर चल पड़ा। धीरे-धीरे पानी का प्रतिरोध अपनी हथेलियों पर महसूस करते हुए, मैं अपने स्ट्रोक्स गिनता हुआ, तैरता रहा। पानी बहुत ठंडा था और यह मेरी धूप खायी त्वचा पर बहुत अच्छा महसूस हो रहा था। इतने साफ पानी में तैरना, मैं रेतीले तल पर स्वयं अपनी परछाई देख सकता था, जैसे वह आसमान में गोते लगाती कोई चिड़िया हो। जब मैंने चालीस स्ट्रोक गिन लिए, मैंने ऊपर देखा, निश्चय ही, रफ्टा बिलकुल मेरे आगे था। ठीक दस स्ट्रोक के बाद मेरे बाएं हाथ ने इसको छुआ। मैं वहाँ एक मिनट तक अपनी सांसें व्यवस्थित करता, पानी पर तिरता रहा फिर सीढ़ी का डंडा पकड़ा और ऊपर चढ़ गया।

मैं वहाँ किसी और को पहले से ही मौजूद पा कर आश्चर्यचकित रह गया, सुनहले बालों वाली एक मोटी महिला। जब मैं तट से चला था तो रफ्टे पर कोई नहीं था इसका अर्थ था वह वहाँ तभी पहुंची होगी जब मैं इस तरफ तैर रहा था। महिला एक छोटी सी बिकनी पहने हुए थी- उन फड़फड़ाती लाल झंडियों की भांति जो जापानी किसान अपने खेतों में बैनर की तरह यह सूचना देने के लिए फहराते हैं कि उन्होंने अभी-अभी रासायनिक दवाओं का छिड़काव किया है- और वह मुंह के बल पड़ी हुई थी। वह इतनी मोटी थी कि स्विम सूट जितना छोटा था उससे भी छोटा लग रहा था। वह कुछ देर पूर्व ही वहाँ पहुँची प्रतीत हो रही थी क्योंकि उसकी त्वचा का रंग पीला था- धूप से सांवले होने के एक भी चिन्ह के बिना।

उसने एक क्षण के लिए मुझे देखा और अपनी आँखें फिर बंद कर ली। मैं रफ्टे के दूसरे किनारे पर पानी में पैर लटकाये हुए बैठ गया और किनारे की ओर देखने लगा। माँ और बेटा अभी भी अपने पाम वृक्षों के नीचे नहीं थे। वे और भी कहीं नहीं थे। ऐसा संभव नहीं था कि मैं उन्हें देखने में चूक गया होऊं। धातु की ह्वीलचेयर, सूरज की रोशनी में चमकती हुई एक निश्चित निशान थी। मैं उनके बिना निराश सा महसूस कर रहा था, मानो तस्वीर का एक टुकड़ा गायब था। संभवतः वे होटल छोड़ कर वहाँ वापस लौट गए थे जहाँ से वे आये थे- वह चाहे जहाँ भी रहा हो। लेकिन जब मैंने उन्हें कुछ देर पहले होटल के रेस्टोरेंट में देखा था तो मुझे ऐसा आभास नहीं हुआ था कि वे जाने की तैयारी कर रहे हैं। वे आराम से नित्य का अपना विशेष भोजन करते रहे थे और फिर बाद में उन्होंने एक-एक कप कॉफी भी पी थी- हमेशा के रूटीन की तरह।

मैं भी सुनहले बालों वाली महिला की भांति पेट के बल लेटा नन्ही लहरों के रफ्टे से टकराने की आवाजें सुनता हुआ दस मिनट तक धूप सेंकता रहा। मेरे कानों में पानी की बूँदें तेज धूप में गर्म हो गयीं थी।

‘लड़के, गर्मी बहुत है,” रफ्टे के दूसरी ओर से महिला ने कहा। उसकी आवाज ऊँची और सैक्रीन जैसी थी।

“जी, निश्चय ही,” मैंने जवाब दिया।

“क्या तुम बता सकते हो इस वक्त क्या समय हुआ है?”

“मेरे पास घड़ी नहीं हैं, लेकिन इस समय दो बज कर तीस मिनट होने चाहिए, हो सकता है, दो चालीस ?”

“सच में?” उसने कहा और आह सी भरी, मानो यह वह समय न हो जिसकी वह अपेक्षा कर रही थी। संभवतः वह समय के सम्बन्ध में किसी तरह की परवाह नहीं करती थी।

वह उठ बैठी। उसके शरीर पर पसीने की बूंदें ऐसे लग रहीं थी जैसे खाने पर बैठी मक्खियां। चर्बी की परत उसके कानों के नीचे से ही प्रारम्भ हो गयी थी और धीरे-धीरे उसके कन्धों तक फ़ैल गयी थी। फिर एक परत उसकी गुदगुदी बांहों तक। उसकी कलाइयाँ और टखने तक चर्बी की उन परतों में खो गए से लग रहे थे। मुझे अनायास ही ‘मिशेलिन मैन’ की याद आ गयी। इतनी भारी होने के बावजूद, महिला मुझे अस्वस्थ नहीं लग रही थी। वह कुरूप नहीं थी। बस उसकी हड्डियों पर मांस ही बहुत अधिक था। मेरे अनुमान से वह अपने चौथे दशक के उत्तरार्ध में थी।

“तुम यहाँ काफी दिनों से रहते हुए लग रहे हो, तुम धूप में इतने सांवले जो हो गए हो।”

“नौ दिन।”

“क्या शानदार सांवलापन है,” उसने कहा। जवाब देने की बजाय मैंने अपना गला साफ किया। जब मैं खांसता, मेरे कानों में पानी आवाज़ करता।

“मैं सैनिक होटल में रह रही हूँ,” उसने कहा।

मैं उस जगह के सम्बन्ध में जानता था। यह समुद्रतट से आगे बिलकुल सड़क के किनारे ही थी।

“मेरा भाई नेवी में ऑफिसर है और उसी ने मुझे यहाँ आने के लिए आमंत्रित किया है। नेवी उतनी ख़राब नहीं है, तुम जानते ही हो। उनके पास वह सब कुछ वहीं अड्डे पर ही उपलब्ध है जिसकी जुर्रत होती है, साथ में इस तरह के रिसार्ट की सुविधा। जब मैं कालेज में थी, तब यह सब ऐसे नहीं था। वह वियतनाम युद्ध का समय था। उस समय परिवार में किसी सैनिक सदस्य का होना, बड़ा असुविधाजनक होता था। तुम्हें छुपना पड़ता था। लेकिन उसके बाद से दुनिया वास्तव में बदल गयी है।”

मैंने अस्पष्टता से सिर हिलाया।

“मेरा पूर्व पति भी नेवी में था,” वह कहती रही “एक फाइटर पायलट। वह वियतनाम में दो वर्ष तक तैनात था फिर वह यूनाइटेड के लिए पायलट बन गया। तब मैं यूनाइटेड में परिचारिका थी, और इसी कारण हम मिले थे। मैं स्मरण करने का प्रयत्न कर रही हूँ किस वर्ष में हमारा विवाह हुआ था, उन्नीस सौ सत्तर के आसपास। किसी तरह, लगभग छः वर्ष पहले। यही हमेशा होता है।”

“क्या होता है ?”

“तुम जानते हो- एयरलाइंस के लोग अजीब घंटों में काम करते हैं, इसलिए उनके एक दूसरे से सम्बन्ध बन जाते हैं। कार्य के घंटे और जीवनशैली बिलकुल अलग-अलग होती हैं। इसी तरह हमारा विवाह हुआ। मैंने अपनी नौकरी छोड़ दी और वह किसी दूसरी परिचारिका के साथ शुरू हो गया और फिर यह सिलसिला उससे विवाह पर ख़त्म हुआ। यही हर बार होता है।”

मैंने विषय बदलने का प्रयत्न किया। “आप अभी कहाँ रहती हैं ?”

“लॉस एंजिल्स,” उसने कहा। “क्या तुम कभी वहाँ गए हो?”

“नहीं,” मैंने कहा।

“मैं वहाँ पैदा हुई थी। फिर मेरे पिता का तबादला साल्ट लेक सिटी हो गया। तुम वहाँ गए हो कभी?”

“नहीं।”

“मैं उसकी सिफारिश भी नहीं करूँगी,” उसने अपना सिर हिलाते हुए कहा। उसने अपने चेहरे पर के पसीने को हथेली से साफ किया।

यह सोच पाना भी विचित्र लग रहा था कि वह कभी विमान परिचारिका रही होगी। मैंने बहुत सी विमान परिचारिकाओं को देखा है जो पहलवान हो सकती थीं। मैंने कुछ की मांसल बाहें देखी हैं और कुछ के भारी ऊपरी होंठ। लेकिन मैंने किसी को उस जैसा विशालकाय नहीं देखा। हो सकता है यूनाइटेड को इस बात की परवाह न रहती हो कि उसकी परिचारिकायें कितनी भारी थीं। अथवा जब वह उस नौकरी में थी तब वह इतनी मोटी नहीं रही होगी।

मैंने समुद्रतट पर एक नजर डाली। माँ और बेटे का कोई चिन्ह नहीं था। सैनिक अभी भी वॉलीबाल उछालने में व्यस्त थे। लाइफगार्ड अपनी टावर पर खड़ा अपनी काफी बड़ी दूरबीन से किसी चीज को बहुत ध्यान से देख रहा था। दो हेलिकॉप्टर तट पर प्रगट हुए और, दुखांत यूनानी नाटकों के किसी सन्देश वाहक की भांति, अपशकुनी खबरें देते, सिर के ऊपर गरजते रहे और फिर ज़मीन की ओर गायब हो गए, हमने उन हरे रंग की मशीनों को दूर गायब होते हुए देखा।

“मैं शर्त लगाती हूँ कि वहाँ ऊपर से हम शानदार समय बिताते लग रहे होंगे,” महिला ने कहा “यहाँ रफ्टे पर बिना दुनिया की परवाह के हम धूप सेंक रहे हैं।”

“तुम शायद ठीक कह रही हो।”

“यदि तुम काफी उँचाई पर हो तो अधिकांश चीजें सुंदर दिखती हैं,” उसने कहा। वह फिर पेट के बल पलट गयी और उसने अपनी आँखें बंद कर ली।

समय ख़ामोशी से बीत गया। यह समझ कर कि वह यहाँ से जाने का सही समय था, मैं उठ कर खड़ा हो गया और उससे कहा कि मैं वापस जा रहा हूँ। मैंने पानी में गोता लगाया और तैरने लगा। आधी दूरी पार करके मैं रुका और रफ्टे की ओर मुड़ा। वह मुझे देख रही थी और उसने हाथ हिलाया। मैंने भी हलके से हाथ हिलाया। दूर से वह किसी डॉल्फिन जैसी लग रही थी। बस उसे एक जोड़ी पंखों की आवश्यकता थी और वह वापस समुद्र में छलांग लगा सकती थी।

अपने कमरे में आकर मैंने एक झपकी ली फिर जैसे ही साँझ हुई हम हमेशा की भांति नीचे रेस्टोरेंट में गए और डिनर किया। माँ और बेटा वहाँ भी नहीं थे। जब हम रेस्टोरेंट से अपने कमरे में वापस आये, उनका कमरा बंद था। यद्यपि रोशनी फ्रॉस्टेड ग्लास की छोटी खिड़कियों से छन कर बाहर आ रही थी लेकिन मैं कह नहीं सकता था कि कमरे में अभी भी वे लोग ही थे।

“मुझे लगता है शायद वे लोग पहले ही चेक आउट कर गए हैं,” मैंने अपनी पत्नी से कहा “वे बीच पर भी नहीं थे और डिनर में भी नहीं।”

“अंत में हर कोई चेक आउट कर जाता है,” मेरी पत्नी ने कहा। “तुम इस तरह से हमेशा तो नहीं रह सकते।”

“मैं भी यही सोचता हूँ,” मैं सहमत हुआ लेकिन मुझे इस बात का विश्वास नहीं था। मैं माँ और बेटे के ठीक यहीं के अतिरिक्त और कहीं होने की कल्पना नहीं कर पा रहा था।

हमने पैकिंग करना शुरू कर दिया। जब हमने अपने सूटकेस भर दिए और उन्हें अपने बिस्तर के पैताने धकेल दिया, कमरा एकाएक ठंडा और अजनबी लगने लगा। हमारी छुट्टियां ख़त्म हो रहीं थी।

4

मैं जाग गया और मैंने अपनी घड़ी देखी जो बिस्तर की बगल में मेज पर रखी हुई थी। एक बज कर बीस मिनट हुए थे । मेरा ह्रदय जोर-जोर से धड़क रहा था। मैं बिस्तर से बाहर निकला और नीचे कालीन पर पालथी मार कर बैठ गया तथा कुछ देर गहरी सांसें लेता रहा। फिर मैंने अपनी साँस रोकी, कंधे ढीले छोड़ दिए और सीधा बैठा रहा और ध्यान केंद्रित करने का प्रयत्न किया। इस क्रिया को दो तीन बार दोहराने के पश्चात मैं बिलकुल शांत हो गया था। मैंने या तो तैराकी बहुत अधिक कर ली थी अथवा धूप में बहुत अधिक देर तक रह गया था। मैं खड़ा हुआ और मैंने कमरे में चारों ओर देखा। बिस्तर के पैताने हमारे दोनों सूटकेस किसी जंगली जानवर की भांति सिकुड़े बैठे हुए थे। ठीक तभी, मुझे याद आया- कल हम यहाँ नहीं होंगे।

खिड़की से झांकती मद्धिम चांदनी में, मेरी पत्नी गहरी निद्रा में सो रही थी। मैं उसकी साँस लेने की आवाज भी बिलकुल नहीं सुन सकता था, और यह एकदम ऐसा था जैसे वह मर गयी हो। कभी-कभी वह इसी तरह सोती है। जब हमारा विवाह हुआ ही था, उसका ऐसे सोना मुझे डरा देता था, अक्सर मैं सोचता कि वह वास्तव में मर गयी है। लेकिन वह केवल खामोश, तल विहीन नींद होती थी। मैंने अपना पसीने से भीगा पाजामा उतार दिया और एक साफ कमीज और शॉर्ट्स पहन लिया। ‘वाइल्ड टर्की’ की एक बोतल, जो टेबुल पर पड़ी थी, को जेब में डाल कर, मैंने चुपचाप दरवाजा खोला और बाहर चला आया। रात्रि की हवा ठंडी थी और आसपास के तमाम पौधों की नम गंध लिए हुए थी। चाँद पूरा था, नीचे दुनिया को एक ऐसे विचित्र रंग से नहलाता हुआ जिसे आप दिन के समय नहीं देख सकते। यह किसी विशेष कलर-फ़िल्टर से हो कर देखने जैसा था, ऐसा जो कुछ चीजों को उसके मुकाबले अधिक रंगीन बना दे, जैसी वे वास्तव में हैं और शेष को किसी शव की भांति बदरंग और शुष्क छोड़ दे।

मुझे बिलकुल नींद नहीं आ रही थी। यह ऐसे था मानो नींद का कभी अस्तित्व ही नहीं था। मेरा मस्तिष्क एकदम स्पष्ट और एकाग्र था। सन्नाटा छाया हुआ था। न हवा, न कीट-पतंगे, न ही रात्रि के पक्षियों की आवाज। दूर बस लहरों की आवाज मात्र और उन्हें भी सुनने के लिए मुझे ध्यान लगाना पड़ रहा था।

मैंने कॉटेज का एक चक्कर धीरे-धीरे लगाया फिर घास पर चलने लगा। चांदनी में लॉन, जो गोलाकार था, किसी बर्फ जमें तालाब की भांति लग रहा था। मैंने हलके-हलके कदम रखे, बर्फ टूट न जाये इसका ध्यान रखते हुए। लॉन के आगे पत्थर की संकरी सीढ़ियाँ थी और उसके ऊपर एक बार था जो स्थानीय थीम के अनुसार सजाया गया था। हर शाम, डिनर के पूर्व मैं यहाँ एक वोदका और टॉनिक लिया करता था। रात्रि में इतनी देर से निश्चय ही वह जगह बंद हो चुकी थी। बार के शटर बंद थे और हर मेज की छतरी करीने से मोड़ कर सोते हुए सरीसृप पक्षियों की भांति रखी हुई थी।

ह्वील चेयर वाला युवा वहाँ था, एक मेज पर अपनी कुहनियां टिकाए हुए, दूर पानी की ओर देखता हुआ। दूर से चांदनी में उसकी धातु की ह्वील चेयर किसी अत्यधिक विशिष्ट उपकरण की भांति लग रही थी जिसे रात्रि के इस सबसे गहरे और अँधेरे क्षणों के लिए ही निर्मित किया गया हो।

मैंने उसे पहले कभी अकेले नहीं देखा था। मेरे मस्तिष्क में वह और उसकी माँ सदैव ही एक इकाई की तरह थे- वह अपनी कुर्सी में और उसकी माँ उसे धकेलती हुई। उसे इस तरह देखना अजीब- कुछ हद तक अभद्र- भी लगा। वह नारंगी रंग की एक हवाइयन कमीज, जिसे मैं पहले देख चुका था, और सफ़ेद कॉटन पैंट्स पहने हुए था। वह बिना हिले, बस बैठा हुआ समुद्र को देख रहा था।

मैं कुछ देर खड़ा सोचता रहा कि क्या मुझे उसे जताना चाहिए कि मैं वहाँ था। लेकिन इसके पहले कि मैं निर्णय कर सकूँ, उसे मेरी उपस्थिति का आभास हो गया और वह मुड़ गया। जब उसने मुझे देखा, उसने अपने सामान्य तरीके से हल्का सा सिर हिलाया।

“गुड इवनिंग” मैंने कहा।

“गुड इवनिंग” उसने संक्षिप्त सा उत्तर दिया। यह पहली बार था जब मैंने उसे बोलते सुना था। उसकी आवाज थोड़ी उनींदी सी लग रही थी अन्यथा पूरी तरह सामान्य थी। न बहुत अधिक तेज, न बहुत धीमी।

“आधी रात की सैर?” उसने पूछा।

“मैं सो नहीं पा रहा था,” मैंने कहा।

उसने मुझे ऊपर से नीचे तक देखा और उसके होंठों पर एक हलकी सी मुस्कान आयी। “यहाँ भी वही हाल है” उसने कहा। “अगर बैठना चाहो तो बैठो।”

मैं एक क्षण को हिचकिचाया, फिर उसकी मेज के पास चला गया। एक प्लास्टिक की कुर्सी खींची और उसके सामने बैठ गया। मैं भी मुड़ कर उसी दिशा में देखने लगा जिधर वह देख रहा था। समुद्रतट के आखिर में नुकीली चट्टानें थी जैसे ब्रेड को दो टुकड़ों में तराश दिया गया हो। लहरें उन से नियमित अंतराल में टकरा रहीं थी। स्पष्ट, शानदार, छोटी-छोटी लहरें- एकदम नपीतुली सी। उनसे परे देखने के लिए बहुत कुछ नहीं था।

“मैंने आज तुम्हें समुद्रतट पर नहीं देखा,” मैंने कहा।

“मैं आज पूरे दिन अपने कमरे में आराम कर रहा था,” युवक ने जवाब दिया। “मेरी माँ की तबीयत नहीं ठीक थी।”

“यह जान कर मुझे दुःख हुआ।”

“यह कोई शारीरिक तकलीफ नहीं है। एक तरह की भावनात्मक, तंत्रिकातंत्र संबंधी चीज।”

उसने अपने दाहिने हाथ की मध्यमा उंगली से अपना गाल रगड़ा। रात्रि में देर का समय होने पश्चात भी उसके गाल ऐसे चिकने थे जैसे पोर्सलीन, दाढ़ी बढ़ने का एक भी चिन्ह नहीं। “वह अब ठीक है। वह अब गहरी नींद में सोई हुई है। यह मेरे पैरों जैसी कोई बात नहीं है- एक रात की अच्छी नींद के बाद वह बेहतर हो जाएगी। एकदम ठीक तो नहीं, लेकिन फिर से रोज की भांति सामान्य। अगली सुबह तक वह बिलकुल ठीक होगी।”

वह तीस सेकेंड के लिए चुप रहा या फिर एक मिनट के लिए। मैंने मेज के नीचे अपने पैर फैला लिए और आश्चर्य करने लगा कि क्या उठ कर जाने के लिए यह समय उचित है। यह कुछ ऐसा था मानो मेरा पूरा जीवन किसी वार्तालाप में अलविदा कहने के सही समय के निर्णय पर निर्भर है। लेकिन मैंने अवसर गँवा दिया; जब मैं उसे कहने ही वाला था तभी वह बोल उठा।

“बहुत तरह के मानसिक विकार होते हैं। यदि उनके कारण समान भी हों तो भी, उनके लाखों भिन्न-भिन्न लक्षण होते हैं। यह एक भूकंप की भांति है- आंतरिक ऊर्जा समान होती है लेकिन परिणाम भिन्न होते हैं यह इस बात पर निर्भर करता है कि भूकंप कहाँ आया है। एक मामले में पूरा द्वीप डूब जाता है, दूसरे में बिलकुल नया द्वीप अस्तित्व में आ जाता है।”

उसने जम्हाई ली। एक लम्बी, औपचारिक किस्म की जम्हाई। लगभग सभ्य, “माफ़ कीजिये” उसने कहा। वह थका हुआ लग रहा था, उसकी आँखें धुंधली सी थी, मानो वह किसी भी क्षण सो सकता था। मैंने अपनी घड़ी की ओर देखा और तब मुझे भान हुआ कि मैंने घड़ी नहीं लगा रखी है- मेरी कलाई पर बस एक सफ़ेद पट्टी है जहाँ मेरी घड़ी हुआ करती थी।

“मेरे लिए मत परेशान होओ” मैं उनींदा सा दिखाई पड़ सकता हूँ लेकिन हूँ नहीं। मुझे रात में बस चार घंटे की नींद पर्याप्त है और मुझे सामान्यतः भोर से ठीक पहले नींद आती है। इसलिए रात्रि के इस समय मैं अधिकतर यहाँ बैठा होता हूँ।”

उसने मेज पर से ऐश ट्रे उठाई और उसे कुछ क्षण तक इस तरह देखता रहा, मानो वह कोई दुर्लभ खोज हो, और फिर वापस रख दिया।

“मेरी माँ को जब भी यह तंत्रिका तंत्र सम्बन्धी समस्या होती है, उसके चेहरे का बायाँ भाग जम सा जाता है। वह अपनी आँखें अथवा अपना मुंह नहीं चला पाती। यदि तुम उसके चेहरे के उस भाग को देखोगे तो तुम्हें वह किसी दरके हुए बर्तन की भांति लगेगा। यह विचित्र है लेकिन जानलेवा या इस तरह का कुछ नहीं है। बस एक रात की नींद और वह ठीक हो जाती है।

मुझे समझ में नहीं आया कि क्या जवाब देना चाहिए, इसलिए मैंने अनिश्चित तरीके से सिर हिलाया। एक दरका हुआ बर्तन?

“मेरी माँ से मत कहना कि मैंने तुम्हें यह बताया है, समझे। कोई उसकी इस दशा के सम्बन्ध में बात करे, उसे इस बात से घृणा है।”

“निश्चय ही,” मैंने कहा “वैसे भी हम कल जा रहे हैं, इसलिए मुझे संदेह है कि मुझे उनसे बात करने का अवसर मिलेगा।”

“यह तो अच्छी बात नहीं हुई,” उसने कहा, जैसे सचमुच ही उसका मतलब यही हो।

“वो तो है, लेकिन मुझे अपने काम पर वापस भी तो जाना है, फिर मैं क्या कर सकता हूँ ?” मैंने कहा।

“तुम कहाँ से आये हो?”

“टोक्यो।”

“टोक्यो,” उसने दुहराया। उसने अपनी आँखें सिकोड़ी और एक बार फिर समुद्र की ओर देखने लगा, मानो यदि वह पर्याप्त एकाग्रता से देखेगा तो टोक्यो की रौशनियां देखने में सक्षम हो जायेगा।

“क्या तुम यहाँ अधिक समय तक रहने वाले हो ?” मैंने पूछा।

“कहना मुश्किल है,” उसने अपनी ह्वील चेयर के हत्थे पर अपनी उंगलियां फिराते हुए कहा। “हो सकता है एक महीना और, हो सकता है दो महीना। जैसा भी हो। मेरी बहन के पति का इस होटल में हिस्सा है, इसलिए हम किसी समय तक रह सकते हैं। मेरे पिता की क्लीवलैंड में टाइल्स की एक बड़ी कंपनी है और मेरे बहनोई ने लगभग उस पर कब्जा सा कर लिया है। मैं उस आदमी को बहुत पसंद नहीं करता, लेकिन मेरा अनुमान है कि आप अपने परिवार का चुनाव नहीं कर सकते, क्या कर सकते हो? मुझे नहीं पता, हो सकता है वह उतना बुरा न हो जितना मैं सोचता हूँ। मेरी तरह के अस्वस्थ लोग थोड़ा संकुचित दिमाग के हो जाते हैं।”

उसने अपनी जेब से एक रुमाल निकाली और धीरे से, कोमलता से अपनी नाक साफ की और रुमाल को जेब में रख लिया। “येनकेन प्रकारेण, उसका बहुत सी कंपनियों में हिस्सा है, संपत्ति में भी बहुत से निवेश हैं। एक चालाक आदमी, बिलकुल मेरे पिता की तरह। इसलिए हम- मेरा परिवार दो तरह के लोगों में विभाजित है: स्वस्थ लोग और अस्वस्थ लोग। क्रियाशील और अक्रियाशील। स्वस्थ लोग टाइल्स बनाने में व्यस्त हैं, अपना धन बढ़ाने में और कर चोरी करने में- किसी से कहना नहीं कि मैंने ऐसा कहा है, ठीक है? और वे अस्वस्थ लोगों का ध्यान रखते हैं। यह एक स्पष्ट श्रमविभाजन है।”

उसने बोलना बंद कर दिया और एक गहरी सांस ली। वह कुछ देर अपनी उंगलियों का अग्रभाग मेज पर बजाता रहा। मैं मौन था, उसके आगे बोलने की प्रतीक्षा करता।

“हमारे लिए हर बात का निर्णय वही लेते हैं। एक महीने यहाँ रहना है, एक महीने वहाँ। हम बारिश की तरह हैं, मेरी माँ और मैं। हम यहाँ बरसते हैं, और अगली बार तुम्हें पता लगता है कि हम कहीं और बरस रहे हैं।”

लहरें चट्टानों से टकरा रहीं थी, अपने पीछे सफेद झाग छोड़ती हुई। जब तक झाग गायब होता, नई लहरें प्रकट हो जातीं। मैं निरुद्देश्य यह प्रक्रिया देख रहा था। चाँद का प्रकाश चट्टानों के बीच अनियमित छवियां निर्मित कर रहा था।

“निश्चय ही, चूंकि यह एक श्रमविभाजन है,” वह आगे कहता रहा “मुझे और मेरी माँ को भी अपनी भूमिकाएं निभानी हैं। यह एक दोहरे रास्ते वाली गली है। इसको वर्णित करना मुश्किल है लेकिन हम उनकी ज्यादतियों का बदला कुछ न कर के चुकाते हैं। यह हमारे अस्तित्व का आधार है। क्या तुम्हें पता है मेरा क्या मतलब है?”

“हाँ, कुछ-कुछ,” मैंने जवाब दिया “लेकिन निश्चित तौर पर मैं नहीं कहता कि मैं समझ गया हूँ।”

वह धीमे से हँसा। “परिवार एक विचित्र चीज होती है,” उसने कहा “एक परिवार को अपनी शर्तों पर जीना पड़ता है अन्यथा सिस्टम काम नहीं करेगा। उस अर्थ में मेरे बेकार पैर एक बैनर की भांति हैं जिसे मेरा परिवार यहाँ वहाँ लहराता रहता है। मेरे बेजान पैर वह धुरी हैं जिसके चारों ओर चीजें घूमती हैं।”

वह फिर से मेज बजा रहा था। झुंझलाहट में नहीं- बस अपनी उंगलियां चलाता हुआ और चीजों के संदर्भ में अपने समय क्षेत्र में विचार करता हुआ।

“इस सिस्टम की मुख्य विशेषता है कि कमी और बड़ी कमी की ओर आकर्षित होती है और अतिरेक और अधिक अतिरेक की ओर। जब डिबुसी किसी ओपेरा की रचना के समय आगे नहीं बढ़ पा रहा था, तब उसने इस तरह कहा था: ‘मैंने अपने दिन शून्य का पीछा करते हुए गुजारे- शून्य- ही यह सृजित करता है।’ मेरा काम वह रिक्ति, वह शून्य सृजित करना है।”

वह वापस अपने अनिद्रित मौन में डूब गया, उसका मस्तिष्क दूर किसी और क्षेत्र में भटक रहा था। संभवतः अपने भीतर की रिक्ति में। अंत में उसकी चेतना अपने आसपास के वर्तमान में लौटी, जिस बिंदु से उसने प्रस्थान किया था उससे थोड़ा अलग हट कर। मैंने अपने गाल रगड़ने का प्रयत्न किया। दाढ़ी की खुरदुराहट ने मुझे एहसास दिलाया कि समय अभी भी गतिशील था। मैंने अपनी जेब से ह्विस्की की छोटी बोतल निकाली और उसे मेज पर रख दिया।

“क्या पीना चाहोगे? यद्यपि मेरे पास ग्लास नहीं हैं।”

उसने सिर हिलाया। “धन्यवाद, लेकिन मैं पीता नहीं हूँ। मैं जानता हूँ कि यदि मैं पियूं तो क्या प्रतिक्रिया होगी, इसलिए मैं नहीं पीता। लेकिन मुझे औरों के पीने से कोई समस्या नहीं है। तुम शौक से पियो।”

मैंने बोतल को उलटा किया और ह्विस्की को धीरे-धीरे अपने गले में फिसलने दिया। मैंने गरमाहट का आनंद लेते हुए अपनी आंखें बंद कर लीं। वह मेज की दूसरी ओर से यह प्रक्रिया देखता रहा।

“यह एक विचित्र सवाल हो सकता है, लेकिन क्या तुम चाकुओं के बारे में कुछ जानते हो?”

“चाकू?”

“चाकू। समझे, शिकारी चाकू।”

मैंने कैम्पिंग करते समय चाकुओं का प्रयोग किया था। मैंने उसे बताया, लेकिन मैं उनके संबंध में अधिक नहीं जानता था। इससे उसको थोड़ी निराशा सी हुई। लेकिन अधिक समय के लिए नहीं।

“कोई बात नहीं,” उसने कहा ” मेरे पास एक चाकू है, मैं चाहता था कि तुम उसे बस एक बार देखो। मैंने इसे एक माह पूर्व एक कैटलॉग देख कर खरीदा था। लेकिन मैं चाकुओं के संबंध में बिलकुल प्रारंभिक बात भी नहीं जानता। मैं नहीं जानता कि यह किसी काम का है कि मैंने अपने पैसे व्यर्थ ही गवाएँ। इसीलिए मैं चाहता था कि इसे कोई देखे और मुझे बताए कि वह क्या सोचता था। यदि तुम्हें कोई परेशानी न हो तो।”

“नहीं, मुझे कोई परेशानी नहीं होगी।” मैंने उससे कहा।

शरमाते हुए उसने अपनी जेब से पांच इंच लंबा खूबसूरत नक्काशी किया हुआ चाकू निकाला और उसे मेज पर रख दिया।

“चिंता मत करो मैं इससे किसी को हानि पहुंचाने की, अथवा स्वयं को हानि पहुंचाने की कोई योजना नहीं बना रहा हूँ। यह बस उस एक दिन की बात है जब मैंने सोचा कि मेरे पास एक तीव्र धार वाला चाकू होना चाहिए। मुझे स्मरण नहीं क्यों। मैं बस चाकू के लिए मरा जा रहा था। बस इतनी सी बात थी। इसलिए मैंने कुछ कैटलॉग देखे और एक का ऑर्डर कर दिया। कोई नहीं जानता कि मैं हर समय अपने साथ यह चाकू रखता हूँ- मेरी माँ भी नहीं। तुम एक मात्र व्यक्ति हो जो यह जानता है।”

“और मैं कल टोक्यो जा रहा हूँ।”

“वह भी ठीक है,” उसने कहा, और मुस्कराया। उसने चाकू उठाया और उसे अपनी हथेली पर रख लिया, उसका वजन अनुमानित करते हुए, मानो उसका कोई बहुत बड़ा महत्व हो। फिर उसने उसे मेज के पार मेरी ओर बढ़ा दिया। चाकू में विचित्र सा वजन था। मानो मैं किसी जीवित वस्तु को पकड़े हूँ जिसकी अपनी मर्जी है। पीतल के हत्थे में लकड़ी जड़ी हुई थी और धातु एकदम ठंडी थी, तब भी जब कि वह पूरे समय उसकी जेब में थी।

“आगे बढ़ो और उसे खोलो।”

मैंने हत्थे के ऊपरी हिस्से के एक गहरे स्थान को दबाया और खटाक से भारी ब्लेड खुल गयी। पूरी फैली हुई, यह तीन इंच लंबी थी। ब्लेड खुल जाने के बाद चाकू और भारी लग रहा था। केवल वजन ही वह बात नहीं थी जिसने मेरा ध्यान खींचा, बल्कि यह भी कि चाकू मेरी हथेली में एकदम सही फिट हो रहा था। मैंने इसे दो चार बार घुमाने का प्रयत्न किया, ऊपर-नीचे, दाएं-बाएं, लेकिन इसका संतुलन एकदम ठीक रहा, मुझे इसे गिरने से बचाने हेतु कभी कस कर नहीं पकड़ना पड़ा। जब मैंने उसे हवा में चलाया, इस्पात की ब्लेड और उसपर खुदे खाँचो ने एक तीव्र अर्धचंद्राकार घेरा बनाया।

“जैसा कि मैंने कहा, मैं चाकुओं के बारे में अधिक नहीं जानता,” मैंने उससे कहा, “लेकिन यह एक शानदार चाकू है। इस की अनुभूति शानदार है।”

“लेकिन क्या एक शिकारी चाकू के रूप में यह बहुत छोटा नहीं है?”

“मैं नहीं जानता,” मैंने कहा ” मेरे अनुमान से यह इस बात पर निर्भर है कि तुम इसे किस चीज के लिए प्रयोग करते हो।”

“सही कहा,” उसने कहा और कई बार अपना सिर हिलाया जैसे स्वयं को विश्वास दिला रहा हो।

मैंने ब्लेड को बंद किया और चाकू उसे वापस दे दिया। युवक ने इसे एक बार फिर खोल लिया और चाकू को सधे हाथों से एक बार फिर घुमाया। फिर मानो वह किसी राइफल से निशाना साध रहा हो, उसने एक आँख बंद की और चाकू का निशाना सीधे चंद्रमा की ओर लगाया। चाँद की रोशनी चाकू के फल से परावर्तित हुई और एक क्षण को झमाके के साथ उसके चेहरे पर कौंध गयी।

“मुझे आश्चर्य होगा यदि तुम मेरे लिए कुछ कर सको,” उसने कहा। “क्या तुम मेरे लिए इससे कोई चीज काट सकते हो?”

“कुछ काटूं ? जैसे क्या ?”

“कुछ भी, जो भी आसपास हो। मैं केवल यह चाहता हूँ कि तुम कोई चीज काटो। मैं इस कुर्सी में अटका हुआ हूँ इसलिए मैं बहुत चीजों तक पहुंच नहीं सकता। मुझे सचमुच अच्छा लगेगा यदि तुम कोई चीज मेरे लिए काटोगे।”

मुझे इनकार करने का कोई कारण समझ में नहीं आया। इसलिए मैंने चाकू लिया और पास के पाम के पेड़ पर उससे दो तीन वार किए। मैंने उसके तने की छाल को तिर्यक काटा। फिर मैंने पूल के पास ही पड़े स्टाइरोफॉम के एक किकबोर्ड को लिया और लंबाई में बीच से उसके दो टुकड़े कर दिए। चाकू मेरी कल्पना से भी अधिक तेज था।

“यह चाकू विलक्षण है,” मैंने कहा।

“यह हाथ से बना हुआ है,” युवक ने कहा “और काफी महंगा भी है।”

मैंने चाकू से चाँद की ओर निशाना लगाया, जैसे उसने लगाया था, और उधर ही ध्यान लगा कर देखता रहा। प्रकाश में यह ऐसा लग रहा था मानो कोई उदंड पौधा धरती के तल को फाड़ कर प्रगट हो रहा हो। कुछ जो शून्यता और अतिरेक को जोड़ता है।

“कुछ और काटो,” उसने मिन्नत की।

मैंने जो भी चीज हाथ में आई उसे काट डाला। ज़मीन पर गिरे नारियल, एक स्थानीय पौधे की विशालकाय पत्तियां, बार के प्रवेश द्वार पर चिपका हुआ मेन्यू। मैंने समुद्रतट पर बह कर आये लकड़ी के टुकड़ों के भी टुकड़े कर डाले। जब काटने के लिए चीजें समाप्त हो गईं, मैं धीमे चलने लगा, जानबूझ कर, मानो मैं ताई ची कर रहा था, चुपचाप रात की हवा को चाकू से काटता हुआ। कुछ भी मेरे रास्ते में नहीं आया था। रात्रि गहरी थी और समय लोचदार। पूर्ण चंद्र का प्रकाश उस गहनता, उस लचक को और बढ़ा रहा था।

जब मैं हवा में चाकू चला रहा था, मैंने एकाएक मोटी महिला के बारे में सोचा, यूनाइटेड की पूर्व होस्टेस। मैं अपने आसपास की हवा में उसके बदरंग, फूले हुए मांस को मंडराते हुए देख सकता था, आकृति विहीन, कुहासे जैसा। वहाँ कुहासे में सब चीजें थी। रफ्टे, समुद्र, आकाश, हेलिकॉप्टरों, पायलटों। मैंने उन सब को दो टुकड़ों में काटना चाहा लेकिन परिपेक्ष्य बंद था, यह सब मेरी ब्लेड की नोक की पहुँच से परे था। क्या यह सब भ्रम मात्र था? अथवा मैं ही भ्रम था? हो सकता है इस सब का कोई अर्थ न हो। कल आएगा। और मैं यहाँ नहीं होऊंगा।

“कभी-कभी मैं यह स्वप्न देखता हूँ,” ह्वील चेयर वाले युवक ने कहा। उसकी आवाज में एक विचित्र प्रतिध्वनि थी, मानो किसी गुफा के छिद्र की तली से उठ रही हो।

“एक तेज चाकू मेरे सिर के कोमल हिस्से में घुसा हुआ है, वहाँ जहाँ स्मृतियाँ रहती हैं। वह वहाँ गहराई में फंसा हुआ है। वह मुझे पीड़ा नहीं पहुंचाता, न ही मुझे बोझिल करता है- वह बस वहाँ फंसा हुआ है। और मैं एक किनारे खड़ा हूँ, इसे देखता हुआ मानो यह सब किसी और के साथ घटित हो रहा हो। मैं चाहता हूँ कि कोई दूसरा चाकू को बाहर खींच ले, लेकिन और कोई नहीं जानता कि चाकू मेरे सिर के भीतर फंसा हुआ है। मैं इसे स्वयं बाहर खींच लेना चाहता हूँ, लेकिन मैं अपना हाथ मेरे सिर के भीतर नहीं पहुँचा सकता। यह सबसे विचित्र बात है। मैं अपने आपको चाकू घोंप सकता हूँ लेकिन उसे निकालने के लिए मैं चाकू तक नहीं पहुँच सकता। और फिर हर चीज अदृश्य होनी शुरू हो जाती है। मैं भी तिरोहित होने लगता हूँ। और केवल चाकू शेष रहता है। बस चाकू वहाँ सदैव रहता है- एकदम अंत तक। समुद्रतट पर पड़ी किसी प्रागैतिहासिक हड्डी की भांति। यह है वह स्वप्न, जो मैं देखता हूँ,”

उसने कहा।

(अंग्रेजी अनुवाद फिलिप गैब्रिएल ‘Hunting knife’ हिंदी अनुवाद इसी पर आधारित है : श्रीविलास सिंह)
ई-मेल : sbsinghirs@gmail.com

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