शेर, खरगोश और हयीना : केन्या लोक-कथा
Sher Khargosh Aur Hyena : Kenya Folk Tale
एक बार की बात है कि सिम्बा शेर अपनी गुफा में अकेला रहता था।
जब वह जवान था तब तो उसे वहाँ अकेला रहना कुछ ज़्यादा बुरा नहीं लगता था पर इस कहानी से पहले उसकी टाँग में इतनी ज़ोर से चोट लग गयी कि वह अपने लिये खाना ही नहीं ला सका। तब उसको लगा कि एक ज़िन्दगी में एक साथी का होना कितना जरूरी होता है।
उसकी हालत तो बहुत ही खराब हो जाती अगर सूंगूरू बड़ा खरगोश एक दिन उसकी गुफा में उससे मिलने नहीं आता तो।
जब सूंगूरू बड़े खरगोश ने सिम्बा शेर की गुफा में झाँका तो उसको लगा कि शेर बहुत भूखा है। वह तुरन्त ही अपने बीमार दोस्त की देखभाल और उसके आराम का इन्तजाम करने के लिये दौड़ गया।
बड़े खरगोश की अच्छी देखभाल से सिम्बा शेर धीरे धीरे अच्छा हो गया और उसकी ताकत भी वापस आ गयी।
सूँगूरू बड़ा खरगोश भी अब अपने दोनों के लिये छोटे छोटे शिकार पकड़ कर लाने लगा था और उन शिकारों की वजह से बहुत जल्दी ही शेर की गुफा के दरवाजे पर हड्डियों का ढेर भी जमा होने लगा।
एक दिन न्यान्गौ हयीना अपने लिये खाना ढूँढ रहा था कि उसको हड्डियों की खुशबू आयी। वह खुशबू उसको सिम्बा शेर की गुफा तक ले आयी। पर क्योंकि वे हड्डियाँ गुफा के अन्दर से भी देखी जा सकतीं थीं इसलिये वह उन हड्डियों को बिना शेर के देखे नहीं चुरा सकता था।
अपनी जाति के और हयीनाओं की तरह क्योंकि वह हयीना भी एक कायर था इसलिये उसने सोचा कि अगर उसको वह स्वादिष्ट खाना खाना है तो उसको सिम्बा शेर से दोस्ती बनानी चाहिये। सो वह उस गुफा में अन्दर घुसा और खाँसा।
खाँसने की आवाज को देखने के लिये कि यह आवाज कहाँ से आयी सिम्बा शेर बोला — “कौन शाम को यह भयानक आवाज कर रहा है?”
शेर की बोली सुन कर हयीना के पास जितनी हिम्मत थी वह भी जाती रही फिर भी वह बोला — “यह मैं हूँ तुम्हारा दोस्त न्यान्गौ हयीना।
मैं तुमसे यह कहने आया हूँ कि जंगल के जानवर तुमको बहुत याद कर रहे हैं। और हम सब तुम्हारे अच्छे हो कर अपने बीच में जल्दी आने की दुआ मना रहे हैं। ”
शेर गुर्राया — “निकल जाओ यहाँ से। तुम झूठ बोल रहे हो क्योंकि अगर तुम मेरे दोस्त होते तो बजाय इन्तजार करने के मेरी तबियत का हाल बहुत पहले ही पूछते। वह सब तो तुमने किया नहीं और अब आये हो मुझे याद करने। चले जाओ यहाँ से। ”
हयीना बेचारे ने अपनी पूँछ अपने पिछले पैरों के बीच में दबायी और भाग लिया वहाँ से। पीछे से वह बड़ा खरगोश खड़ा खड़ा हँस रहा था।
हयीना वहाँ से चला तो गया पर वह उन हड्डियों के ढेर को नहीं भूल सका जो शेर की गुफा के दरवाजे पर पड़ा था।
हयीना ने सोचा — “मैं फिर वहाँ जाने की कोशिश करूँगा। ” सो कुछ दिन बाद एक दिन जब बड़ा खरगोश शाम का खाना पकाने के लिये नदी पर पानी लेने गया था तब हयीना ने फिर एक बार शेर के घर आने की सोची।
वह जब शेर के घर आया तो शेर अपनी गुफा के दरवाजे पर ही सो रहा था। न्यान्गौ हयीना धीरे से बोला — “दोस्त, मुझे ऐसा लग रहा है कि तुम्हारी टाँग का घाव बहुत ही धीरे धीरे भर रहा है क्योंकि तुम्हारा दोस्त सूंगूरू बड़ा खरगोश तुम्हारी देखभाल ठीक से नहीं कर पा रहा है। ”
सिम्बा शेर गुर्राया — “क्या मतलब है तुम्हारा? मुझे तो सूंगूरू खरगोश का धन्यवाद देना चाहिये कि मुझे अपनी बीमारी के बुरे दिनों में उस बेचारे की वजह से भूखा नहीं मरना पड़ा। जबकि तुम और तुम्हारे कोई भी साथी तो मुझे देखने तक नहीं आये। ”
हयीना उसको विश्वास दिलाता हुआ बोला — “पर जो कुछ मैंने तुमसे कहा है वह सच है। सारे जंगल में यह बात सभी जानते हैं कि सूंगूरू बड़ा खरगोश तुम्हारा इलाज ठीक से नहीं कर रहा है ताकि तुम्हारा घाव देर से भरे।
क्योंकि जब तुम ठीक हो जाओगे तो वह तुम्हारे घर में जो नौकर की तरह काम कर रहा है वहाँ से निकाल दिया जायेगा। और यह नौकर की जगह तो उसके लिये बड़ी आरामदायक जगह है।
मैं तुमको पहले से बता रहा हूँ कि सूंगूरू बड़ा खरगोश यह सब तुम्हारे अच्छे के लिये नहीं कर रहा है। ”
उसी समय सूंगूरू बड़ा खरगोश नदी से घड़े में पानी भर कर ले आया। उसने अपना घड़ा नीचे रखा और हयीना से बोला — “उस दिन की घटना के बाद तो मुझे तुमको यहाँ शाम को देखने की बिल्कुल ही उम्मीद नहीं थी। इस समय तुमको क्या चाहिये?”
सिम्बा शेर बड़े खरगोश से बोला — “मैं तुम्हारे बारे में न्यान्गौ की कहानियाँ सुन रहा हूँ। वह कह रहा है कि तुम सारे जंगल में बहुत ही होशियार और चालाक डाक्टर हो।
उसने मुझसे यह भी कहा कि जो दवा तुम देते हो वे किसी और के पास नहीं हैं। पर साथ में वह यह भी कह रहा था कि तुम मेरा घाव और पहले ठीक कर सकते थे अगर यह तुम्हारी भलाई में होता तो। क्या यह सच है?”
सूंगूरू खरगोश ने एक पल के लिये सोचा कि यह सब क्या हो रहा है। वह जानता था कि उसको यह मामला बहुत ही सँभाल कर सुलझाना है क्योंकि उसको पक्का शक था कि यह न्यान्गौ हयीना उसके साथ कोई चाल खेलना चाहता है इसी लिये उसने यह सब सिम्बा शेर से कहा है।
सो उसने हिचकिचाते हुए शेर को जवाब दिया — “हाँ और ना। आप तो जानते हैं कि मैं एक बहुत छोटा सा जानवर हूँ और कभी कभी वे दवाएँ जिनकी मुझे जरूरत पड़ती है बहुत बड़ी होती हैं और मैं उनको नहीं ला सकता हूँ जैसा कि सिम्बा शेर जी आपके साथ हुआ है। ”
अब शेर को यह जानने की इच्छा हुई कि उसके साथ क्या हुआ है तो वह बैठा हो गया और सूँगूरू बड़े खरगोश से पूछा — “क्या मतलब? क्या हुआ है मेरे साथ? मुझे साफ साफ बताओ। ”
बड़ा खरगोश बोला — “अब यही ले लें। मुझे आपके घाव पर लगाने के लिये हयीना की पीठ की खाल के एक टुकड़े की जरूरत थी ताकि वह जल्दी से भर जाये पर मैं इतना छोटा सा जानवर, मैं भला उसकी खाल कैसे लाता। ”
यह सुनते ही इससे पहले कि हयीना वहाँ से भागे शेर न्यान्गौ हयीना पर टूट पडा, और उसकी पीठ से सिर से ले कर पूँछ तक एक लम्बी सी पट्टी फाड़ कर अपनी टाँग के घाव पर बाँध ली।
जैसे ही शेर ने हयीना की पीठ से वह पट्टी फाड़ी उसके शरीर के जो बाल खिंच गये थे वे सारे के सारे बाल खड़े ही रह गये। तबसे आज तक न्यान्गौ और दूसरे हयीना के बाल लम्बे खुरदरे और खड़े हुए होते हैं।
इस घटना के बाद तो सूंगूरू बड़ा खरगोश डाक्टर की हैसियत से बहुत ही मशहूर हो गया क्योंकि हयीना की खाल की पट्टी बाँधने के बाद तो सिम्बा शेर की टाँग का घाव बहुत ही जल्दी भर गया था। पर न्यान्गौ हयीना अपना मुँह दूसरे जानवरों के बीच में बहुत दिनों तक नहीं दिखा सका।
(साभार : सुषमा गुप्ता)