Sher Aur Bandar : Aesop's Fable

शेर और बंदर : ईसप की कहानी

एक बार की बात है। जंगल के राजा शेर और बंदर में विवाद हो गया। विवाद का विषय था – ‘बुद्धि श्रेष्ठ है या बल’ ।

शेर की दृष्टि में बल श्रेष्ठ था, किंतु बंदर की दृष्टि में बुद्धि। दोनों के अपने-अपने तर्क थे। अपने तर्क देकर वे एक-दूसरे के सामने स्वयं को सही सिद्ध करने में लग गये।

बंदर बोला, “शेर महाराज, बुद्धि ही श्रेष्ठ है। बुद्धि से संसार का हर कार्य संभव है, चाहे वह कितना ही कठिन क्यों न हो? बुद्धि से हर समस्या का निदान संभव है, चाहे वह कितनी ही विकट क्यों न हो? मैं बुद्धिमान हूँ और अपनी बुद्धि का प्रयोग कर किसी भी मुसीबत से आसानी से निकल सकता हूँ। कृपया यह बात मान लीजिये।”

बंदर का तर्क सुन शेर भड़क गया और बोला, “चुपकर बंदर, तू बल और बुद्धि की तुलना कर बुद्धि को श्रेष्ठ बता रहा है। बल के आगे किसी का ज़ोर नहीं चलता। मैं बलवान हूँ और तेरी बुद्धि मेरे बल के सामने कुछ भी नहीं। मैं चाहूं, तो इसी क्षण इसका प्रयोग कर तेरे प्राण ले सकता हूँ।”

बंदर कुछ क्षण शांत रहा और बोला, “महाराज, मैं अभी तो जा रहा हूँ। किंतु मेरा यही मानना है कि बुद्धिं बल से श्रेष्ठ है। एक दिन मैं आपको ये प्रमाणित करके दिखाऊंगा। मैं अपनी बुद्धि से बल को हरा दूंगा।”

“मैं उस दिन की प्रतीक्षा करूंगा, जब तुम ऐसा कर दिखाओगे। उस दिन मैं अवश्य तुम्हारी इस बात को स्वीकार करूंगा कि बुद्धि बल से श्रेष्ठ है। किंतु, तब तक कतई नहीं।” शेर ने उत्तर दिया।
इस बात को कई दिन बीत गए। बंदर और शेर का आमना-सामना भी नहीं हुआ।

एक दिन शेर जंगल में शिकार कर अपनी गुफ़ा की ओर लौट रहा था। अचानक वह पत्तों से ढके एक गड्ढे में जा गिरा। उसके पैर में चोट लग गई। किसी तरह वह गड्ढे से बाहर निकला, तो पाया कि एक शिकारी उसके सामने बंदूक ताने खड़ा है। शेर घायल था। ऐसी अवस्था में वह शिकारी का सामना करने में असमर्थ था।

तभी अचानक कहीं से शिकारी पर पत्थर बरसने लगे। शिकारी हड़बड़ा गया। इसके पहले कि वो कुछ समझ पाता, एक पत्थर उसके सिर पर आकर पड़ा। वह दर्द से तिलमिला उठा और अपने प्राण बचाने वहाँ से भाग गया।

शेर भी चकित था कि शिकारी पर पत्थरों से हमला किसने किया और किसने उसके प्राणों की रक्षा की। वह इधर-उधर देखते हुए ये सोच ही रहा था कि सामने एक पेड़ पर बैठे बंदर की आवाज़ उसे सुनाई दी, “महाराज, आज आपके बल को क्या हुआ? इतने बलवान होते हुए भी आज आपकी जान पर बन आई।”

बंदर को देख शेर ने पूछा, “तुम यहाँ कैसे?”
“महाराज, कई दिनों से मेरी उस शिकारी पर नज़र थी। एक दिन मैंने उसे गड्ढा खोदते हुए देखा, तो समझ गया था कि वह आपका शिकार करने की फ़िराक में है। इसलिए मैंने थोड़ी बुद्धि लड़ाई और ढेर सारे पत्थर इस पेड़ पर एकत्रित कर लिए, ताकि आवश्यकता पड़ने पर इनका प्रयोग शिकारी के विरुद्ध कर सकूं।”

बंदर ने शेर के प्राणों की रक्षा की थी। वह उसके प्रति कृतज्ञ था। उसने उसे धन्यवाद दिया। उसे अपने और बंदर में मध्य हुआ विवाद भी स्मरण हो आया। वह बोला, “बंदर भाई, आज तुमने सिद्ध कर दिया कि बुद्धि बल से श्रेष्ठ होती है। मुझे अपनी गलती का अहसास हो गया है। मैं समझ गया हूँ कि बल हर समय और हर परिस्थिति में एक सा नहीं रहता, लेकिन बुद्धि हर समय और हर परिस्थिति में साथ रहती है।”

बंदर ने उत्तर दिया, “महाराज, मुझे प्रसन्नता है कि आप इस बात को समझ गए। आज की घटना पर ध्यान दीजिये। शिकारी आपसे बल में कम था, किंतु बावजूद इसके उसने अपनी बुद्धि से आप पर नियंत्रण पा लिया। उसी प्रकार मैं शिकारी से बल में कम था, किंतु बुद्धि का प्रयोग कर मैंने उसे डराकर भगा दिया। इसलिए हर कहते हैं कि बुद्धि बल से कहीं श्रेष्ठ है।”

सीख : बुद्धि का प्रयोग कर हर समस्या का निराकरण किया जा सकता है। इसलिए बुद्धि को कभी कमतर न समझें।

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