शेर आरोही चोर : कोरियाई लोक-कथा
Sher Aarohi Chor : Korean Folk Tale
बहुत दिन पहले की बात है। एक छोटे से गांव में एक गरीब औरत रहती थी । उसका पति धन कमाने के लिए विदेश गया हुआ था । औरत अपने एक साल के बच्चे के साथ अपनी झोंपड़ी में अकेली रहती थी । उस औरत ने एक गाय पाल रखी थी । गाय सवेरे-शाम दूध देती थी। इसी दूध की आय से औरत अपना और बच्चे का पेट पालती थी ।
उस गांव में एक दिन एक चोर आया । जब उसने पता लगाया, तब उसे मालूम हुआ कि इस गांव में सिर्फ उसी औरत के घर में एक गाय है । उसने उस गाय को चुराने का निश्चय कर लिया । यह काम दिन में नहीं हो सकता था, इसीलिए वह रात्रि के आगमन का इन्तजार करने लगा। देखते-देखते दिन ढल गया और चारों ओर अन्धकार की कालिमा फैलने लगी । चोर मौका पाते ही औरत की झोंपड़ी के पिछवाड़े में दुबक गया और चोरी करने का मौका देखने लगा ।
उसी गांव के पास वाले जंगल में एक शेर रहता था। कई दिनों से कोई शिकार उसके हाथ नहीं लगा था, इसीलिए वह भूखा था । अन्त में लाचारीवश उसने सोचा, जंगल में शिकार के पीछे भागने से अच्छा तो यही है कि औरत की गाय को ही अपना शिकार बना लूं । उसका पति विदेश में है और वह घर में अकेली ही रहती है । इससे अच्छा अवसर और कब मिलेगा ।
यह सोचकर वह औरत के घर के बगल की झाड़ी में छिपकर रात्रि के अन्धेरे का इन्तजार करने लगा । उसने सोचा, जब सब लोग सो जाएंगे तब में गाय पर टूट पड़हूंगा और उसे लेकर जंगल में चला जाऊंगा ।
इस प्रकार एक शिकार के पीछे दो-दो शिकारी दांव देख रहे थे ।
उधर औरत को कुछ मालूम नहीं था । उसने रात का भोजन खाया और बच्चे को सुलाने लगी। परन्तु वह नन्हा सा बच्चा जोर-जोर से रोता जा रहा था। मां ने उसे बहुत मनाया, पर उसकी रुलाई बन्द नहीं हुई । अन्त में मां ने बच्चे को डराने के उद्देश्य से कहा, "चुप हो जा बेटे, नहीं तो बड़ा शेर तुझे उठा ले जायेगा ।" परन्तु इसका असर भी बच्चे पर कुछ नहीं पड़ा । वह चिल्ला-चिल्ला कर रोता रहा ।
अन्त में उसके रोने से तंग आकर मां ने कहा, "चुप हो जा मेरे लाल ! शांत हो जा ! मैं तुझे 'कोकम' दूंगी।" 'कोकम' का नाम सुनते ही बच्चे ने एकदम रोना बंद कर दिया। कोरियायी भाषा में 'कोकम' और कुछ नहीं होता, मां का दूध होता है । इसके बाद मां बच्चे को दूध पिलाने लगी । बच्चा चुप हो गया ।
शेर ने मां-बच्चे की बातें बड़े ध्यान से सुनीं । उसने मन ही मन सोचा, जो बच्चा शेर के नाम से नहीं डरता, वह कोकम से इतना डरता है । शायद कोकम कोई बहुत बड़ा और शक्ति- शाली जानवर होगा जो किसी भी समय यहां आ सकता है । इसलिए यहां अधिक देर तक रहना खतरे से खाली नहीं है । इस प्रकार शेर घर के बगल की झाड़ी से निकला और जैसे ही वह जंगल की ओर मुड़ा, वैसे ही कोई भारी वस्तु उसकी पीठ पर गिरी । उसी समय उसके गले में कुछ उलझ गया और आंधी के समान उसकी पीठ पर मार पड़ने लगी। शेर ने सोचा, हो न हो, यह वही 'कोकम' जानवर है। शेर उसके बोझ से दबा था और बड़े वेग से जंगल के रास्ते में भागा जा रहा था ।
किन्तु असली बात कुछ और ही थी । औरत की झापड़ी के पिछवाड़े में दुबके हुए चोर ने शेर को गाय समझ लिया था और जैसे ही शेर भागने के लिए उठा, वैसे ही चोर ने उस पर रस्सी का फंदा फेंककर उसका गला फंसाया था और उसके बाद वह स्वयं उसकी पीठ पर सवार हो गया था ।
दोनों शिकारी धोखे में थे। शेर समझता था कि 'कोकम' उसकी पीठ पर सवार है और वह उस पर बेंत बरसा रहा है और चोर समझता था कि वह गाय पर सवार है और उसे मार रहा है ।
इस अजीब हालत में उस शेरवाहिनी चोर की दौड़ रात-भर जारी रही । रात-भर दौड़ते-दोड़ते शेर इतना थक गया था और 'कोकम' से इतना भयभीत हो गया था कि सवरे होते वह निर्जीव- सा अथवा पालतू जानवर का सा व्यवहार करने लगा था ।
उधर चोर भी इतना थक गया था कि जब सवेरा हुआ तब भी उसे ख्याल नहीं आया कि वह किसकी पीठ पर सवार है । परन्तु जैसे ही उसने गांव में प्रवेश किया वैसे ही गांव वाले उसकी मस्ती को देखकर अचरज में पड़ गये। सब लोग उसको घूर घूरकर देखने लग गये थे ।
सब लोगों को अपनी ओर घूरते देखकर चोर ने अपनी सवारी की ओर देखा । शेर को देखते ही उसके रौंगटे खड़े हो गए । परन्तु वह साहसी था । उसने अपना डर भीतर ही दबा लिया और पहले जैसी शान से अपने घर का रास्ता पकड़ा। जब वह अपने द्वार पर पहुंच गया, तब बड़े ठांठ से शेर की पीठ से उतरा और शेर को जंगल का रास्ता दिखा कर घर में चला गया ।
जब शेर को मालूम हुआ कि उसकी पीठ पर एक आदमी रात- भर सवार था तो वह बहुत शर्मिन्दा हुआ। वह अपना काला- सा मुंह लेकर जंगल के भीतरी भाग में चला गया और उस दिन से उसने कभी भी गांव में आने का साहस नहीं किया ।
परन्तु इस अजीब घटना ने गांव वालों में चोर का प्रभाव अत्यधिक बढ़ा दिया था। उस दिन से उसने यह डींग मारनी शुरू कर दी थी कि जंगल का वह शेर उसका साथी है और वह उसकी पीठ पर सवारी करने की सामर्थ्य रखता है ।
(साभार : एशिया की श्रेष्ठ लोककथाएं : प्रह्लाद रामशरण)