शौकीन धोबी (उड़िया बाल कहानी) : जगन्नाथ रथ/ଜଗନ୍ନାଥ ରଥ

Shaukeen Dhobi (Oriya Children Story) : Jagannath Rath

बेचैनपुर नाम के गाँव में एक बी रहता था, जिसका नाम शौकीन था । सचमुच वह एक शौकीन आदमी था। हमेशा पान खाना, फूल की माला पहनना, बीड़ी-सिगरेट पीना उसकी आदत सी बन गयी थी । इसके बिना उसे चैन नहीं मिलता था। उसके कपड़े भी साफ-सुथरे रहते। कभी किनारेदार धोती पहनता तो कभी धोती के साथ मलमल का कुर्ता । सिर्फ पहनावे में ही नहीं, खान-पान तौर तरीके, बातचीत में भी उसका ढंग निराला था। मौज-मस्ती की जिन्दगी ने उसे निकम्मा बना दिया था। काम-काज से बचकर रहता था। उसके जीवन में एक ही बात रह गई थी कि आराम से जीओ, खीर - खिचड़ी, पुलाव पकवान, चाट चटनी जो भी मिले समय पर खाओ और खेलो-सोओ। उसके घर की हालत बिगड़ गयी थी। दो जून बासी रोटी का भी ठिकाना न था । बिना डोले एक दाना भी मिलने वाला न था । इसलिए मजबूरन वह गाँव के अच्छी हैसियत वालों के कपड़े साफ करता था । शौकीन साहब खुद कपड़े नहीं ढोते थे। उसने एक गधा पाल रखा था। कपड़े लेने पहुँचाने के लिए वह गधे पर सवार होकर चलता था । उसकी गृहस्थी इसलिए चलती थी कि उसकी पत्नी बड़ी अच्छी औरत थी । वरना जाने कब की साहब की मिट्टी खराब हो चुकी होती ।

एक बार भयानक आँधी आयी और लगातार दो हफ्ते तक लोग अपनी- अपनी जगह से हिल नहीं सके। आँधी-तूफान ने सब कुछ तहस-नहस करके रख दिया। धोबी की आमदनी ठप्प हो गयी। घर में कुछ था ही नहीं । उसके बाल-बच्चे भूख के मारे तड़पने लगे। जब बारिश कुछ थमी तो धोविन बोली, 'अजी, बच्चे पिछले तीन रोज से भूखे हैं। ऐसे हाथ-पैर धरे बैठने से कैसे होगा। घर में एक दाना भी नहीं है। लो यह बकरी, ले जाओ और बाजार में बेचकर कुछ सामान लाओ। इससे हफ्ते भर को दाना-पानी तो मिल ही जाएगा।'

पत्नी की बात सुनकर धोबी बोला. 'बोलना तो आसान होता है, पर करना कितना कठिन । बाजार यहाँ पास में तो है नहीं, पूरे दस किलोमीटर दूर है। इतनी दूर जाना क्या आसान है !'

धोबिन बोली, 'तो क्या बच्चे ऐसे ही मरेंगे ?'

शौकीन ने बीवी के और बच्चों के चेहरे देखकर सोचा कि वह ठीक कह रही है। अगर वह नहीं जाएगा तो सचमुच बच्चे भूख से तड़पकर मर जाएँगे। कहा, 'अच्छा, जाऊँगा । पर सवेरे बिना कुछ खाए-पिए कैसे जा सकता हूँ। ऊपर से बीड़ी, पान, खैनी भी चाहिए ।' धोबिन सब कुछ का जुगाड़ करने को राजी हो गयी। उस दिन उसे रात भर नींद नहीं आयी । शौकीन सोचता रहा कि वह बाजार कैसे जाएगा !

दूसरे दिन सुबह उसके कहने के अनुसार धोबिन ने खाना तैयार कर दिया । शौकीन ने भरपेट खाना खाया। बीड़ी, पान, खैनी आदि का इंतजाम भी हो गया। अब सवाल उठा-शौकीन साहब चलेंगे कैसे ? वह तो पैदल चलने वाले आदमी न थे। गधे पर सवार होकर चलते हैं। गधे पर चलेंगे तो बकरी कैसे जाएगी ? सोचते-सोचते एक अक्ल सूझी। वह गधे पर बैठ जाएँगे और गधे की दुम में बकरी बाँध दी जाएगी। गधे के पीछे-पीछे बकरी चलेगी। बकरी के गले में एक घंटी बाँधी जाएगी जो चलने के साथ-साथ टन् - टन् की आवाज देगी। उससे यह पता चलेगा कि बकरी पीछे-पीछे आ रही है। पीछे मुड़कर देखने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी। सचमुच शौकीन धोबी ने ऐसा ही किया। उसने बकरी की गर्दन में घंटी बाँध दी और बकरी को गधे की दुम में। एक पान खाया। बाकी पान, बीड़ी, तम्बाकू अंगोछे के किनारे में बाँध दिया। अंगोछा सिर पर बाँधकर शौकीन बाजार की तरफ बढ़ा। गधे की चाल कौन नहीं जानता? गधा कदम गिन गिनकर चलता था। और उसके पीछे-पीछे चलती बकरी की गर्दन की घंटी टन् - टन् बजती रहती थी।

रास्ते में एक पेड़ के तले चार आदमी बैठे थे जो सब के सब ठग थे । शौकीन को गधे की पीठ पर बैठे और उसकी दुम में बंधी बकरी देखकर उन्होंने बकरी मार लेने की सोची। एक ने कहा कि बकरी छीनने की जिम्मेदारी उसकी है। दूसरे ठग ने कहा, 'अगर तुम बकरी छीन लोगे तो मैं उसका गधा छीन लूँगा ।' तीसरे ठग ने वायदा किया कि वह उसके कपड़े छीनेगा। चौथा बोला, 'तो मेरे लिए क्या बचेगा, तुम लोग जब सारा सामान छीन लोगे तो मैं उसके घर से कपड़े मारूँगा।' यही तय करके चारों ने अपना-अपना काम शुरू कर दिया।

पहला ठग कुछ आगे जाकर एक झाड़ी में छुप गया। शौकीन ने झाड़ी पार किया ही था कि ठग ने बकरी की गर्दन से घंटी उतार कर गधे की पूँछ में बाँध दी और बकरी को ले भागा। शौकीन गधे पर डंडे पर डंडा बरसा रहा था और गधा सरपट भाग रहा था । गधे की पूँछ पर बँधी घंटी से टन्- टन् की आवाज आती थी। फिर वह पीछे मुड़कर क्यों देखने लगा ? कुछ दूर जाने के बाद पेशाब करने के लिए धोबी नीचे उतरा तो उसे मालूम हुआ कि बकरी गायब है। वहीं बैठकर माथा पीट-पीट कर रोने लगा ।

दूसरा ठग एक भले आदमी की तरह उसके पास आया और रोने का कारण पूछा। जैसे वह सचमुच में कुछ जानता ही न हो। बोला, 'अरे पागल काहे को रोता है !' धोबी ने रो-रोकर सारा किस्सा सुनाया। ठग ने झूठ-मूठ की सहानुभूति जताई। बोला, 'मैंने रास्ते पर एक आदमी को देखा है। वह भूरे रंग की एक बकरी को खींच-खींच कर ले जा रहा था। क्या मालूम वह तेरी है या नहीं?' शौकीन धोबी खिल उठा और पूछा, 'तुमने उसे कहाँ देखा। वह भूरे रंग की बकरी मेरी है।'

'अब तक लगभग तीन किलोमीटर दूर वह चला गया होगा। ओह, उस बदमाश ने तेरे साथ धोखा किया। उसे धोखाधड़ी के लिए कोई दूसरा नहीं मिला? हाय् `````हाय् उसे इस गरीब इन्सान को ही लूटना था। तुम चिंता मत करो। मैं उसे पकड़ लूँगा । बचकर वह जाएगा कहाँ ?' – ठग बोला ।

उसकी बातों से धोबी को कुछ तसल्ली मिली। उसने उससे विनती की, 'भाई, मेरे लिए कुछ करो'।

'अरे, औरों को मदद करने के लिए ही तो मैं पैदा हुआ हूँ। मुझसे हाथ जोड़ने की जरूरत नहीं। तू न भी बोलता तो मैं खुद-ब-खुद चला जाता। तुम यहीं बैठे रहो। मैं एक घंटे के अंदर ही तुम्हारी बकरी ला रहा हूँ।'

दूसरा ठग गधे पर सवार होकर बकरी ढूँढ़ने चल दिया। जो गया सो गया। धोबी घंटों तक बैठे-बैठे ऊब गया। आखिर वह खुद गधे की तलाश में उस ओर चला जिस ओर दूसरा ठग गया हुआ था ?

गधे की तलाश में चलते वक्त उसकी तीसरे ठग से भेंट हुई। वह एक 'कुएँ की जगत पर बैठकर फूट-फूट कर रो रहा था। शौकीन धोबी ने उसके पास जाकर पूछा, 'अरे भाई इस तरह क्यों रो रहे हो?' पहले तो उसने कोई जवाब नहीं दिया। बार- बार पूछने पर बोला, 'भैया, क्या बताऊँ ? मेरी किस्मत ही ऐसी है। जमींदार साहब की रुपयों की थैली लेकर जा रहा था कि मुझे बड़ी प्यास लगी। इस कुएँ को देख कर रुक गया । झुक कर यही अंदाजा लगा रहा था कि पानी कहाँ है और कैसे पिया जाये कि इतने में कंधे की थैली कुएँ में गिर गयी। आज ही लगान भरने की तारीख है । कचहरी में रुपये जमा करने थे। अगर आज रुपये जमा नहीं हुए तो जमींदार मेरे पूरे खानदान को उजाड़ कर रख देगा। मैं पानी में डूबना नहीं जानता। नहीं तो खुद डूबकर थैली निकाल लेता। अगर कोई थैली निकाल लेगा तो मैं उसे सौ रुपये इनाम दूँगा। क्या तुम डुबकी लगाना जानते हो ?'

शौकीन धोबी सौ रुपये की लालच में फँस गया। बोला, 'मेरे पास अंगोछा नहीं है। क्या पहनकर पानी में उतरूँ ? मैं तो एक ही डुबकी में थैली निकाल लूँगा।'

ठग बोला- 'मेरा गमछा ले लो। इसे पहनकर उतरो । कोई एतराज तो नहीं?'

'क्यों नहीं... क्यों नहीं?' धोबी ने हामी भरी।

धोबी ने ठग का फटा पुराना गमछा पहना और अपने कपड़े उतार कर कुएँ की जगत पर रख दिया। उसके कुएँ में उतरते ही सारे कपड़े बगल में दबा कर ठग फरार हो गया। धोबी कुएँ में रुपये की लालच में बार-बार डुबकी लगाता रहा। परन्तु थैली - वैली का कुहीं पता ही नहीं चला। काफी देर तक पानी में रहने के कारण उसे सर्दी लग गयी-नाक बहने लगी। आँखें लाल हो गयीं। जाड़े से शरीर ठिठुरने लगा । विवश होकर वह कुएँ से बाहर निकला। उसने देखा, 'न वहाँ कोई आदमी था और न उसके कपड़े। सर्दी के मारे उसे बुखार भी चढ़ गया। उसने वहीं जगत पर बैठकर हाय हाय की पुकार मचाई ।

उस वक्त चौथा ठग वहीं आ पहुँचा। धोबी से आश्वासन भरे शब्दों में बड़े आत्मीय ढंग से पूछा, 'बेटा तुम इस हालत में यहाँ क्यों पड़े हो ?'

धोबी ने सारी राम कहानी सुनाई। ठग ने उसे धीरज बंधाया और बोला- 'तुम्हारे साथ जो हुआ उसे भूल जाओ । जान है तो जहान है। जान बची तो सब कुछ मिल सकता है। अब इतना सोचो कि प्राण कैसे बचेंगे। चलो, मैं तुम्हारे घर छोड़ आता हूँ।'

धोबी काँपते हुए बोला. 'अब तुम्हीं बताओ कि इस हालत में मैं घर कैसे जाऊँ ? ठण्ड के मारे सारा शरीर काँप रहा है। बुखार से माथा गरम है। अगर एक-दो सूखा कपड़ा मिल जाता तो ओढ़कर तुम्हारे सहारे आहिस्ता- आहिस्ता चल पड़ता।'

'अरे भाई, मेरे पास कपड़े कहाँ ? अगर होता तो तुम्हें क्या कहना पड़ता। क्या करूँ, मेरा घर भी आस - पास नहीं है। नहीं तो अपने घर से कपड़े ला देता ।'

धोबी ने उसका समर्थन किया, हाँ-हाँ, तुम्हारा घर तो दूर है। पर मेरा घर यहाँ से नजदीक है। मेरी बीवी से माँग कर कपड़े ला देते तो तुम्हारा बड़ा एहसान मानता ।'

ठग बिलकुल यही चाहता था। उसने सहानुभूति के स्वरों में कहा, 'अरे, क्या कहते हो? जीवन में क्या दुर्गति की ऐसी घड़ी नहीं आती?'

शौकीन बोला, 'लो यह ताबीज । यह दिखाने से मेरी बीवी को विश्वास हो जाएगा और कपड़े दे देगी। ठग ताबीज लेकर धोबी के घर पहुँचा और धोबिन को ताबीज दिखाकर चार-पाँच अच्छे-अच्छे कपड़े चुनकर ले लिए। इधर धोबी ने काफी देर तक उसका इंतजार किया। जब वह न आया तो वह लड़खड़ाते हुए घर की तरफ चल पड़ा। आधीरात को आँगन में कदम रखा। धोबिन उसकी दुर्गति देखकर सिर पटक-पटक कर खूब रोई, खूब चिल्लाई ।

उस दिन से शौकीन धोबी के सारे शौक मटियामेट हो गये ।

उधर चारों ठग अपनी-अपनी शरारत एक-दूसरे को सुनाकर खुश हो रहे थे और बकरी का मांस खाकर मस्ती कर रहे थे ।

यही दुनिया का असली रूप है ।

(संपादक : बालशौरि रेड्डी)

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