शठ पत्नी : डॉन जुआन मैनुअल
(प्रिंस डॉन जुआन मैनुअल (1282-1349) को स्पेनिश गद्य का जनक और प्रथम कथाकार माना जाता है। डॉन जुआन ने अपनी कहानियों के लिए ‘पंचतन्त्र’, ‘ईसप’, ‘अलिफ लैला’ आदि से काफी मदद ली है। ‘एल कोंदे ल्यूकानोर’ उसका विख्यात कथा संग्रह है।)
बहुत साल पहले की बात है, एक गाँव में एक मूर रहता था, जिसका एक बेटा था। यह युवक भी अपने पिता की तरह योग्य था, लेकिन वे गरीब थे। उसी गाँव में एक और मूर रहता था; वह भी काफी योग्य था, लेकिन अमीर भी था। उसकी एक बेटी थी, वह बड़ी ही अशिष्ट और गरममिजाज थी।
एक दिन युवक अपने पिता के पास पहुँचा और कहने लगा, चूँकि वह अपनी जिन्दगी इस तरह गरीबी में नहीं गुजारना चाहता, इसलिए वह किसी अमीर औरत से शादी करना बेहतर समझता है। पिता मान गया। तब युवक ने पिता से कहा कि वह अमीर मूर की गर्ममिजाज बेटी से शादी करना चाहता है। जब पिता ने यह सुना, तो उसे बड़ी हैरानी हुई और बोला, “नहीं, यह नहीं हो सकता, क्योंकि कोई भी अक्लमन्द आदमी, भले ही वह कितना गरीब क्यों न हो, उससे शादी नहीं करना चाहेगा!” लेकिन लड़के का इरादा मजबूत था।
पिता उस भले, अमीर आदमी से मिलने गया और उसने उसे वह सारी बातें बता दीं, जो उसके और बेटे के बीच हुई थीं और उसने गुजारिश की कि चूँकि उसके लड़के में इतना साहस है कि वह अमीर आदमी की बेटी से शादी कर सके, इसलिए उसे भी मंजूरी देनी चाहिए। जब अमीर आदमी ने यह बात सुनी, तो वह बोल उठा, “हे भगवान्! मैंने अगर ऐसा किया, तो मेरी दोस्ती झूठी साबित हो जाएगी! तुम्हारा बेटा तो इतना अच्छा है! मैं नहीं चाहूँगा कि उसे कोई दुख हो, या वह मर ही जाए! पर अगर तुम्हारा लड़का चाहता है, तो मैं उसे उसको दे दूँगा।”
शादी हो गयी और दुलहिन अपने पति के घर आ पहुँची। मूरों में यह रिवाज है कि दूल्हे-दुलहिनों के लिए रात का खाना तैयार करके उसे सजाकर रख दिया जाता है और उन्हें दूसरे दिन तक के लिए घर में अकेला छोड़ दिया जाता है। यही किया गया। लेकिन दूल्हे और दुलहिन के माता-पिता को इस बात की बड़ी चिन्ता थी कि वे अगले दिन या तो दूल्हे को मरा हुआ पाएँगे या जख्मी।
दूल्हा-दुलहिन अकेले थे। वे मेज पर बैठ गये। लेकिन इससे पहले कि दुलहिन कुछ कहती, दूल्हे ने अपने कुत्ते को ढूँढ़ा और गुस्से से चिल्लाया, “ऐ कुत्ते, हमारे लिए पानी लाओ!”
पर कुत्ते ने वैसा नहीं किया। युवक को और गुस्सा आने लगा। अब उसने और भी कठोर आवाज में कुत्ते को पानी लाने का आदेश दिया। लेकिन कुत्ता अब भी नहीं हिला। अब युवक तमतमाकर मेज से उठा। उसने अपनी तलवार निकाली और उसकी ओर लपका। आखिर युवक ने उसे पकड़ लिया और उसका सिर काट दिया।
इस प्रकार, गुस्से से भरकर और खून से लथपथ वह मेज पर लौटा। अब उसे एक बिल्ली नजर आ गयी। उसने बिल्ली को आदेश दिया कि वह उसके लिए पानी लेकर आए। जब वह नहीं लायी, तो वह उठा, उसने बिल्ली को टाँग से पकड़ा और उसे दीवार पर दे मारा।
और तब पहले से भी ज्यादा गुस्से से भरकर वह मेज पर लौटा। तब उसने अपने आसपास सिर घुमाकर देखा, अब उसे अपना घोड़ा नजर आ गया-उसका अकेला घोड़ा! गुस्से से चिल्लाकर उसने उसे पानी लाने का हुक्म दिया।
लेकिन घोड़ा नहीं हिला। युवक ने उसका भी सिर काट डाला।
और वह गुस्से से तमतमाता, उबलता और खून से लथपथ मेज पर लौट आया। और कसम खाने लगा कि उसके घर में हजारों घोड़े हों और आदमी और औरतें हों, जो उसका आज्ञापालन नहीं करते, तो वह उन सबको मार डालेगा। तब वह बैठ गया। उसने अपनी पत्नी को बड़ी कड़ी नजर से देखा और तीखी आवाज में, तलवार ऊँची करके बोला, “उठो और मेरे लिए पानी लाओ!”
पत्नी ने सोचा कि अगर उसने उसका कहा नहीं माना, तो वह उसके टुकड़े कर देगा, वह तेजी से उठी और पानी ले आयी।
“भगवान का शुकर है कि तुमने वैसा ही किया जैसा मैंने कहा,” वह बोला, “नहीं तो मैंने तुम्हारे साथ भी वही कर दिया होता, जो दूसरों के साथ किया!”
बाद में उसने कहा कि वह उसे खाने को कुछ दे और उसने फौरन कहा माना... और वह जब भी कुछ कहता, इतनी तीखी आवाज में और तलवार ऊँची करके कहता कि पत्नी को लगता कि वह अभी उसका सिर धड़ से अलग कर देगा।
दूसरे दिन सवेरे, जब माता-पिता और सम्बन्धी लोग द्वार पर आये और उन्हें कोई आवाज सुनाई नहीं दी, तो उन्होंने सोच लिया कि दूल्हा या तो मारा गया है, या जख्मी होकर पड़ा है।
जब दुलहिन ने उन्हें द्वार पर देखा, तो वह पंजों के बल चलकर बाहर आ गयी और डर से अधमरी हुई कहने लगी, “पागलो, गद्दारो! यहाँ क्या कर रहे हो? तुम्हारी यहाँ कुछ भी बोलने की हिम्मत कैसे हो रही है! चुप! नहीं तो हम सब मारे जाएँगे!”
यह सुनकर वे सभी उस युवक की प्रशंसा करने लगे, जिसने इतनी गर्ममिजाज औरत को सीधा करके रख दिया था।
कुछ दिन बाद की बात है। एक दिन युवक के ससुर ने वैसा ही करना चाहा, जैसा दामाद ने किया था और उसने उसी दिन एक मुर्गे को मार डाला; पर उसकी बीवी बोल उठी, “जनाव कापुरुष जी, अब इससे कुछ नहीं होगा। अब तुम सैकड़ों घोड़े मार डालो, चाहे हजारों, अब सब बेकार है... हम-तुम तो एक-दूसरे को अच्छी तरह पहचान-जान चुके हैं...”