शरीफ आदमी (कहानी) : गुरुदत्त

Sharif Aadmi (Hindi Story) : Gurudutt

सारस्वतजी! देखिए, इस शरीफ आदमी की बात सुन लीजिए और इसका कुछ भला कर दीजिए । "

यह कहनेवाला निगम के निर्माण विभाग का सुपरिंटेंडेंट रघुनंदन अग्रवाल था और उसने यह आग्रह किया था नगर निगम के चीफ इंजीनियर के पी. ए. जयदेव सारस्वत से ।

जयदेव सारस्वत का नगरपालिका के आभ्यंतरिक प्रबंध करनेवाले से इंजीनियर प्रभाशंकर सारस्वत की माँग पर कि उसे कोई ईमानदार शरीफ व्यक्ति पी . ए. के रूप में कार्य करने के लिए चाहिए, स्थानांतरण कर दिया गया था

और उक्त सिफारिश निर्माण विभाग के सुपरिंटेंडेंट ने सारस्वत के आने पर पहली बार ही की थी । उसे इस विभाग में आए अभी पंद्रह दिन ही हुए थे।

उक्त वार्तालाप के एक दिन पूर्व ही नगर में एक कम्युनिटी हॉल के निर्माण तथा फर्नीचर लगाने के लिए टेंडर आए थे और वे टेंडर इंजीनियर साहब के पी . ए. की परिरक्षा में थे। टेंडर अगले दिन खुलनेवाले थे।

जयदेव ने उस व्यक्ति को देखा, जिसकी विभाग के सुपरिंटेंडेंट ने सिफरिश की थी । एक सिर से पाँव तक खद्दरधारी – टोपी, कुरता और धोती - सब दूध - समान श्वेत , पहने व्यक्ति को देख जयदेव ने सामने रखी कुरसी पर बैठने को कह दिया । सुपरिंटेंडेंट अपनी बात कह अपनी मेज पर चला गया ।

जयदेव इंजीनियर साहब के कमरे में था और इंजीनियर साहब वहाँ नहीं थे। जयदेव के संकेत करने पर वह खद्दरधारी कुरसी को मेज के सामने से खिसकाकर जयदेव के समीप लाकर बैठ गया और अपनी इस हरकत की सफाई में बोला, " मैं तनिक ऊँचा सुनता हूँ । इस कारण समीप आ गया हूँ , जिससे आपको कष्ट न हो । "

जयदेव को इस व्यक्ति का कुरसी समीप ले जाना ठीक प्रतीत नहीं हुआ । परंतु कारण सुन आश्वस्त हो पूछने लगा, " आपका शुभ नाम ? "

इस प्रश्न का उत्तर देने के स्थान पर खद्दरधारी ने कहा, " मैं आपसे एक निवेदन करने आया हूँ । "
" हाँ , फरमाइए । "
" मैं आपको इंपीरियल में सायं पाँच बजे चाय का निमंत्रण दे रहा हूँ और इसी के मान लेने की आपके समक्ष सिफारिश की गई है । "

" चाय का निमंत्रण स्वीकार करने के लिए तो अग्रवाल साहब को कष्ट देने की आवश्यकता नहीं थी । वह तो मान जाता , परंतु यह तो पूछा ही जाएगा कि आमंत्रित करनेवाले कौन भद्र पुरुष हैं और किस उपलक्ष्य में यह निमंत्रण है ? "

" हाँ , यह तो बता ही रहा हूँ । मैं सेठ सदाशंकर भुटानी हूँ और इस निमंत्रण का उपलक्ष्य तो चाय पीते हुए ही वर्णन करूँगा। पंडितजी, वहाँ का कार्यक्रम अति रोचक है । शब्दों में वर्णन नहीं किया जा सकता । "
" और कौन - कौन से लोग वहाँ आमंत्रित हैं ? "
" हाथ कंगन को आरसी क्या ! आइएगा तो स्वयं की देख लीजिएगा । आप निमंत्रण स्वीकार करिए और मैं आपका अधिक समय न लेते हुए आपसे छुट्टी लूँगा । "

जयदेव अभी विचार ही कर रहा था कि इस प्रकार के निमंत्रण को स्वीकार करे अथवा न, कि सेठ ने कह दिया, " धन्यवाद है । मैं आपकी प्रतीक्षा होटल के पोर्च में पाँच बजे करता हुआ मिलूँगा । अन्य आनेवालों का भी स्वागत करना है । "

इतना कह भुटानी हाथ जोड़ नमस्ते कह विदा माँगते हुए खड़ा हो गया । जयदेव ने खड़े होकर हाथ मिलाते हुए कहा, " यदि इंजीनियर साहब ने कोई आवश्यक काम न बताया तो आने का यत्न करूँगा। "

भुटानी ने धन्यवाद किया और कमरे से निकल गया । सारस्वत विचार कर रहा था कि यह बहरा तो प्रतीत नहीं होता था । परंतु चाय पार्टी पर निमंत्रण किस उपलक्ष्य में है और उसके साथ इसका क्या संबंध है ? इसमें कुछ भी न समझते हुए वह इस बात के लिए अपने को चतुर मान रहा था कि उसने वचन नहीं दिया । अपने कथन में बचाव का मार्ग रख लिया है ।

इंजीनियर साहब चार बजे कार्यालय में आए और बोले, "मिस्टर जयदेव ! कल साढ़े नौ बजे से पहले आ जाना । टेंडर खुलेंगे और तुम्हें टेंडरों को लेकर वहाँ उपस्थित रहना चाहिए । "
" जी , मैं उपस्थित हो जाऊँगा। " ।
इतना कह इंजीनियर साहब चल दिए और जयदेव विचार करने लगा कि वह चाय पर जाए अथवा न जाए?

जयदेव कभी इंपीरियल होटल में गया नहीं था और जा सकता भी नहीं था । वह वहाँ व्यय करने के लिए दाम नहीं रखता था । इससे मन में इतने उच्च श्रेणी के होटलों को भीतर से देखने की उत्सुकता को दबा नहीं सका और सवा चार बजे कार्यालय से निकल , बस में सवार हो, होटल इंपीरियल के सामने जा उतरा । अभी नियत समय में पंद्रह मिनट शेष थे। वह समय से पहले अपने दर्शन भुटानी साहब को देना नहीं चाहता था ; इस कारण सड़क पर टहलता हुआ समय व्यतीत करता रहा । जब उसकी कलाई पर घड़ी में चार बजकर पचपन मिनट हुए तो वह होटल की ओर चला और होटल की ड्योढ़ी पर पाँच बजने में एक मिनट रहते पहुँच गया ।

भुटानी वहाँ अकेला खड़ा था । वह जयदेव को देख उसकी ओर बढ़कर हाथ मिलाते हुए नमस्कार कर बोला,
" बहुत-बहुत धन्यवाद है । आइए , मैं आपको भीतर स्थान पर बैठा आऊँ । मैं एक अन्य व्यक्ति की प्रतीक्षा में हूँ । उसके लिए पुन: आ जाऊँगा। "

भुटानी सारस्वत को लेकर भीतर रिसेप्शन हॉल में चला गया । भुटानी उसे हॉल के एक कोने में ले गया और एक मेज पर वे दोनों जा बैठे । वहाँ एक लड़की पहले ही बैठी थी । जयदेव को उस लड़की से परिचय कराते हुए भुटानी ने कहा, " प्रमिला! तुम तो इनको जानती ही हो । यह यहाँ बैठेंगे । मैं तनिक देसाई साहब को देखता हूँ । "

मेज पर केक , पेस्टरी, देसी मिठाई , सैंडविचेज इत्यादि खाने का सामान लगा हुआ था । चाय के लिए प्याले भी लगे थे। दूध - चीनी भी रखी थी । केवल चाय का पॉट नहीं था ।

जयदेव ने देखा, चार कुरसियाँ थीं । इससे उसे अनुमान लगाने में देर नहीं लगी कि केवल एक अन्य व्यक्ति आनेवाला है । दो तो वहाँ थे ही वह स्वयं और प्रमिला । सेठ भुटानी बाहर चौथे व्यक्ति की प्रतीक्षा में गया था ।

जयदेव लड़की और अपने में एक कुरसी छोड़ बैठ गया, परंतु वह लड़की उठ उसके समीप की कुरसी पर आ बैठी और बोली, “ आपका बहुत - बहुत धन्यवाद है कि आपने निमंत्रण स्वीकार कर लिया है । "

भुटानी साहब ने कहा कि आप मुझे जानती हैं ? "
" बहत भली- भाँति । "
" परंतु मैंने आपको पहले कभी नहीं देखा? "
" इसीलिए तो धन्यवाद करती हूँ कि आज तो आप देखने आए हैं । मैं तो आपको कॉलेज में देखती रहती थी । "
जयदेव मुसकराया और बोला, “ परंतु कॉलेज में तो चार हजार विद्यार्थी पढ़ते थे? "
" हाँ! " प्रमिला ने बात बीच में टोककर कहा, " कुछ आपमें विशेषता थी, जिससे मेरी दृष्टि आप पर टिकी थी ।
पिछले मास मैंने बी .ए. पास किया है और सेठजी मेरा विवाह करने का विचार कर रहे हैं । इस कारण मैंने आपको चाय पर आमंत्रित करने का प्रस्ताव किया है । "

जयदेव कॉलेज में देखी लड़कियों के रूप -रंग को स्मरण करने लगा था । वह स्मरण नहीं कर सका था कि इस रूप- राशि की लड़की उसने कभी देखी थी ।

जयदेव को विचार में निमग्न देख प्रमिला ने कहा, “ सेठजी ने एक अन्य को आपकी प्रतिस्पर्धा के लिए बुलाया है और वह भी आपकी भाँति नहीं जानता है कि कोई अन्य भी आ रहा है । "
" पर मैं तो यह भी नहीं जानता था कि यहाँ आपके दर्शन होंगे । "
" इससे कुछ हानि नहीं हुई । अब तो आप जान ही गए हैं और चाय का उद्देश्य भी जान गए हैं । सेठजी के मन में वह दूसरे साहब बसे हैं और मेर मन में ... " लड़की कहते - कहते रुक गई । बेयरा आया था और जानना चाहता था कि चाय लाए अथवा अभी ठहरे ।

प्रमिला ने हाथ के संकेत से चाय लाने के लिए कह जयदेव से कहा, " मुझे उसमें रुचि नहीं है । इस कारण मैं समझती हूँ कि हमें तो चाय पीनी चाहिए । "
" पर सेठजी ? "
" वह अपनी ड्यूटी निभा रहे हैं । वह देसाई साहब को लेकर ही आएँगे । "

जयदेव अविवाहित था । उसके माता- पिता इलाहाबाद में रहते थे और उसे कह रहे थे कि उसे दस- बारह हजार रुपया शीघ्रातिशीघ्र एकत्र करना चाहिए, जिससे वे उसके विवाह का प्रबंध कर सकें । वह मन में कल्पना कर रहा था कि इसके साथ विवाह से पहले कितने दाम के आभूषण तथा वस्त्र बनवाने पड़ेंगे ?

उसे पुनः विचारमग्न देख प्रमिला ने कहा, " हम तो अपना पेट भरें । देसाई आएगा तो हम पेट भर चुके होंगे । तब हम बैठे रहेंगे । बहुत मजा रहेगा । "
इतना कह वह पेस्टरी को काँटे से काटकर मुख में डालने लगी ।
जयदेव ने कहा भी , " भुटानी साहब की प्रतीक्षा कर लेते तो ठीक होता। "
" देसाई- भुटानी एक - दूसरे का साथ देंगे और हम उनको खाता देखेंगे । " इतना कहते- कहते प्रमिला हँस पड़ी ।
जयदेव ने उसके मुक्तासम श्वेत दाँत देखे तो मुग्ध हो उसके मुख पर देखने लगा ।
प्रमिला ने कहा, " खाइए ! "

जयदेव के भी मुख में लार टपक रही थी और उसने भी हाथ उठा रसगुल्लों पर चलाना आरंभ किया । वह विचार कर रहा था कि उसे नौकर हुए एक वर्ष हो चुका है और एक वर्ष में वह दो सहस्र से कम ही बचा सका है । अतः माँ की माँग के अनुसार वह पाँच- छह वर्ष में दस- बारह सहस्र रुपया एकत्र कर सकेगा । यह जानने के लिए यह लड़की उसे कितना धनी समझती है, उसने कहा , “ परंतु विवाह में आर्थिक स्थिति का भी तो ध्यान रखना आवश्यक है ? "

" भुटानीजी की आर्थिक स्थिति ऐसी है कि आपको आठ घंटे नित्य की चक्की पीसने से छुट्टी मिल सकेगी । "
" तो कितने घंटे नित्य चक्की पीसने से काम चल सकेगा? "

" चक्की नहीं पीसनी होगी । राज्य करना होगा । जब तक भुटानी साहब जीवित हैं , खाना , पीना और मौज उड़ाना होगा । वह अभी बहुत वर्ष तक जीएँगे । तब तक हम इतना जमा कर लेंगे कि जीवन भर चक्की पीसनी नहीं पड़ेगी । "
" परंतु मैं तो बहुत ही निर्धन माता -पिता का लड़का हूँ । "
" यह सब मुझे ज्ञात है । "
" ओह, तो बहुत देर से मेरे पीछे लगी हैं! "
" हाँ । और चाहती हूँ कि अब आप मेरे पीछे लग जाएँ । "

दोनों चाय पी रहे थे और ‘ सैंडविचस मुख में डाल घोल -घोल भीतर निगल रहे थे। जयदेव मन में एक विशेष प्रकार की गुदगुदी अनुभव कर रहा था । जब वह दूसरे व्यक्ति के आने के भय से प्रतीक्षा करने लगा था । वह विचार कर रहा था कि कहीं किस्मत बनती - बनती बिगड़ न जाए ।

वे खा -पीकर पेट भर चुके थे कि भुटानी मुख पर परेशानी के लक्षण प्रकट करता हुआ आया और बोला , " मिस्टर सारस्वत! क्षमा करेंगे, आपको बहुत देर तक प्रतीक्षा करनी पड़ी है । "

जयदेव मुसकराता हुआ भुटानी के मुख पर देख रहा था । उत्तर प्रमिला ने दिया, " दादा! हम तो पेट भर चुके हैं । आप बैठिए, मैं चाय बना देती हूँ । "

इस पर भुटानी दीर्घ श्वास ले बैठ गया । प्रमिला ने भुटानी के लिए चाय बनाते हुए कहा, " मैंने इनसे चाय का उद्देश्य वर्णन कर दिया है और यह मेरे विचार से सहमत हैं । "
" क्या सहमति कर ली है ? "
" देसाई, शंटिड आउट है । "
" ओह ! "
" हाँ , दादा ! "

जब भुटानी पेट भर चुका और तीन प्याले चाय ले चुका तो बैरा प्लेटें उठाकर ले गया । भुटानी ने कहा , " मैं यहाँ से आपको अपने घर ले चलूँगा और प्रमिला को चाहिए कि आपको अपना परिचय भली- भाँति दे सके । "

बिल प्रमिला ने दिया । तीन आदमी के खाने का पच्चीस रुपए बिल आया और प्रमिला ने अपने पर्स से तीन दस दस के नोट निकाल ट्रे में रख दिए और वह उठ पड़ी, अर्थात् पाँच रुपए टिप दी थी । जयदेव अवाक् मुख देखता रह गया ।

तीनों एक अमेरिकन मोटरगाड़ी में सवार हो जोरबाग को चल दिए । वहाँ एक दोमंजिली कोठी में जाकर मोटर ठहरी । सेठजी, जो पिछली सीट पर प्रमिला के साथ बैठे थे, गाड़ी से उतरे और आगे की सीट का दरवाजा खोल , जयदेव को उतर , कोठी में चलने का निमंत्रण देने लगे ।

प्रमिला तो उतर सीधी नीचे की मंजिल पर एक कमरे में चली गई थी । सेठजी उसके पीछे-पीछे उसी कमरे का दरवाजा खोल जयदेव को भीतर जाने का निमंत्रण देने लगा । जयदेव भीतर गया तो सेठजी ने द्वार बंद करने से पहले कह दिया, “ आप अपना परिचय बढ़ाएँ । मैंने ड्राइवर को कह दिया है कि वह आपको गाड़ी में आपके लॉज में छोड़ आएगा । "

जयदेव का मस्तिष्क चकरा रहा था । अकस्मात् वह अपने को आकाश में उड़ता अनुभव कर रहा था । द्वार बंद होते ही प्रमिला ने देव का हाथ पकड़ सोफा पर बिठाकर कहा, " अब बताइए, आप इस कमरे में आकर रहना चाहेंगे अथवा ऐसा ही नया लॉज बनवाना होगा ? "
" मेरा मस्तिष्क चक्कर खा रहा है । " जयदेव ने कहा, "मैं समझ नहीं रहा कि क्या कहूँ । "
" तो ठीक है । आपको कहने की आवश्यकता नहीं । मैं अब स्वयं निश्चय कर लूँगी। "

जयदेव देखता रहा । कमरे में कालीन बिछा था , दीवारों पर गांधीजी, जवाहरलाल तथा अन्य महापुरुषों के चित्र लगे थे। सोफासैट था , सेंटर टेबल और कुछ अन्य कुरसियाँ थीं । कमरा वातानुकूलित था । कमरे में एक मेज और

उसके ऊपर शैल्फ में कुछ पुस्तकें थीं ।
प्रमिला बता रही थी, " यह मेरा सिटिंग रूम है और वह मेरी पढ़ाई करने की मेज है । और आइए , इधर मेरा बेड -रूम है । "

जयदेव एक कुमारी के बेड- रूम में जाने में संकोच अनुभव कर रहा था । उसे झिझकते देख प्रमिला ने उसकी बाँह में बाँह डाली और कमरे में ले गई ।

बहुत सुंदर कमरा था । फूल , बूटे और चित्र छत पर बने थे। यह कमरा भी वातानुकूलित था । इस कमरे में भी कालीन बिछा था । उसपर एक पलंग लगा था । प्रमिला ने कहा, " जब आपने यहाँ आना होगा तो एक बेड और लग जाएगा । "

जयदेव लालसा भरी दृष्टि से प्रमिला की ओर देख रहा था । प्रमिला वैसे ही बाँह में बाँह डाले हुए जयदेव को बेड-रूम से बाहर ले जाते हुए बोली, " अभी नहीं । बताइए, कब तक विवाह का प्रबंध होगा ? " ।
" जब कहो । " जयदेव कहनेवाला था कि वह तो तुरंत ही विवाह करने को तैयार है, परंतु बात प्रमिला ने बीच में ही काटकर कह दिया, " तो ठीक है, अपने माता -पिता को बुला लीजिए । फिर विवाह हो जाएगा। "
जयदेव ने धीरज धारण करते हुए कहा, " मैं कल की डाक से लिख दूंगा । "
" देखिए, मैं कल आपकी गेलॉर्ड के बाहर पाँच बजे सायंकाल प्रतीक्षा करूँगी। तब आप बताइएगा कि अपनी माँ को मेरे विषय में क्या लिखा है । "

अगले चौबीस घंटे जयदेव के ऐसे व्यतीत हुए जैसे कि वह शराब के नशे में है । उस दिन वह इच्छा कर रहा था कि चीफ इंजीनियर जल्दी चला जाए तो वह गेलॉर्ड पर समय पर पहुँच सके । उसको यह जान अति प्रसन्नता हुई कि इंजीनियर साहब अपने एक मित्र के साथ मेरठ गए हैं । अतः इस दिन भी सवा चार बजे तक अपना काम समेट सेफ को ताला लगा गेलॉर्ड को चल पड़ा । आज भी वह पंद्रह मिनट समय से पूर्व पहुँचा था और वह प्रमिला की प्रतीक्षा करने लगा था । आज उसे रेस्तराँ के द्वार पर प्रतीक्षा करने में संकोच अनुभव नहीं हुआ ।

ठीक पाँच बजे सेठ भुटानी की गाड़ी में प्रमिला आई । सेठ साहब साथ नहीं थे । उसे अकेली देख जयदेव को बहुत प्रसन्नता हुई । आज वह उससे हाथ मिला भीतर चला गया । इनके लिए एक कोने में मेज रिजर्व थी । दोनों वहाँ जा बैठे । बैठते हुए जयदेव ने पूछा, “ सेठ साहब नहीं आए ? "

" आज उनकी तबीयत ठीक नहीं थी । वह घर से नहीं निकल रहे । "

जयदेव प्रमिला से ठसकर बैठा था और प्रमिला आपत्ति नहीं कर रही थी । इस स्पर्श से वह पूर्ण शरीर में झुनझुनी अनुभव कर रहा था । जब प्रमिला ने कहा कि सेठजी की तबीयत ठीक नहीं है तो जयदेव ने चिंता व्यक्त करते हुए पूछा, " क्या कष्ट है ? "

" उनका ‘टेंडर स्वीकार नहीं हुआ न! "
" कौन सा टेंडर ? "
" वहीं कम्युनिटी हॉलवाला । साढ़े पाँच लाख का काम था और वह इसमें से नकद चालीस पैदा करनेवाले थे। "
" परंतु जहाँ तक मुझे ज्ञात है टेंडर तो भुटानी साहब का ही स्वीकार हुआ है । "
" नहीं जी । आज मध्याह्न इंजीनियर साहब का टेलीफोन आया था कि कोई सुमानी है, उनका ‘टेंडर स्वीकार हुआ है । "

जयदेव विचार करने लगा था कि यह कैसे हो सकता है ? वह जानता था कि टेंडर भुटानीजी का स्वीकार हुआ है और इंजीनियर साहब तो ग्यारह बजे के मेरठ गए हुए हैं । इस कारण उसने निश्चयात्मक भाव में कहा, " जी नहीं । किसी ने गलत टेलीफोन कर दिया है । मैं जानता हूँ कि भुटानीजी का ‘टेंडर स्वीकार हुआ है । "

" परंतु वह तो जिस समय से टेलीफोन सुना है, पलंग पर लेटे हुए हैं । उठकर बैठने पर उनका दिल धड़कने लगता है । "
" तो चाय के उपरांत मैं आपके मकान पर चलूँगा और उनको आश्वासन दिलाऊँगा। "
" इस प्रकार नहीं । यदि संभव हो सके तो उनको ‘टेंडर कागज , जिनके नीचे चीफ साहब के हस्ताक्षर हों , दिखाने से विश्वास कर सकेंगे। "

इस पर जयदेव गंभीर विचार में पड़ गया । फिर कुछ विचार कर उसने घड़ी देखी । उस चाय को वह , जिसकी चुस्कियाँ ले रहा था , छोड़ उठ खड़ा हुअ और बोला, “ यह हो सकता है । अभी सवा पाँच बजे हैं । यदि आप गाड़ी दें तो मैं टेंडर के कागजात लाकर दिखा सकता हूँ । चपरासी छह बजे तक कार्यालय में रहता है । "
" तो जल्दी करिए । मैं आपकी यहाँ ही प्रतीक्षा करूँगी। "

जयदेव भागता हुआ बाहर निकला और सेठ साहब की गाड़ी में कॉरपोरेशन के कार्यालय में चला गया ।
प्रमिला आराम से चाय और कुछ खा - पीकर तथा दाम देकर रेस्तराँ के बाहर आ खड़ी हुई । ठीक छह बजे जयदेव हाथ में एक बड़ा सा लिफाफा लिये हुए आ पहुँचा ।

प्रमिला ने लिफाफा देख लिया । इससे गाड़ी के आते ही वह लपककर गाड़ी में चढ़ गई और उसके गाड़ी में बैठते ही गाड़ी जोरबाग की ओर चल पड़ी ।
मार्ग में प्रमिला ने पूछा, " आपने चाय तो पी ही नहीं ? "
" मैं कार्यालय बंद होने से पहले वहाँ जाना चाहता था । समय बहुत कम था । "
" तो कोठी पर आपके लिए चाय बनवा दूंगी । सेठजी आपके बहुत ही कृतज्ञ रहेंगे । "
" पता नहीं किसने टेलीफोन कर दिया था । " ।
" कुछ भी हो । कागज देखकर उनको तसल्ली हो जाएगी। "

कोठी पर पहुँच प्रमिला ने जयदेव को अपने कमरे में बिठाया और टेंडर वाला लिफाफा ले वह सेठजी के बेड - रूम को जाती हुई बोली, " मैं सेठजी को दिखाकर अभी आती हूँ । तब तक बैरा को चाय लाने के लिए कह देती हूँ । "

प्रमिला गई तो आधे मिनट में ही लौट आई । लिफाफा उसके हाथ में नहीं था । जयदेव ने पूछा, " वह लिफाफा ? "

" सेठ साहब कपड़े पहन स्वयं आ रहे हैं और आपका धन्यवाद भी करेंगे । तब तक मैं चाय के लिए कह आई पाँच मिनट लग गए चाय आने में । इस समय तक प्रमिला के पूछने पर जयदेव ने बताया, “ मैंने माताजी को इलाहाबाद में लिख दिया है और उनको लिखा है कि पिताजी को लेकर यहाँ चले आएँ । "

" बहुत अच्छा किया है । कब तक आ सकेंगी? "
" एक सप्ताह तो लग ही जाएगा । "
" इतने दिन ? आपने तार क्यों नहीं भेज दिया? "
" आपके विषय में व्याख्या से लिखना चाहता था । वह तार में संभव नहीं था । "
" अर्थात् अभी तपस्या करनी पड़ेगी? "

चाय आई तो पीने लगे । इस समय सेठ भुटानी भी आ गया । वह लिफाफा ले आया था । जयदेव ने देखा कि टेंडर की तीनों प्रतियाँ बीच में थीं । उसने ‘टेंडर अपने पास समीप सोफा पर रख लिया और सेठ साहब को अपने पास बैठा पूछने लगा, " तो अब आपको तसल्ली हो गई है ? "
" हाँ , आपका बहुत धन्यवाद है । मैं तो मर चला था । बात यह है कि इस पर मैं दस हजार रुपया पहले ही व्यय कर चुका हूँ । "
" सत्य ? "
" हाँ , पर छोड़ो इस बात को । सब व्यय किया हुआ वसूल हो जाएगा । "

तीनों चाय पीने लगे । चाय समाप्त हुई और प्रमिला जयदेव को मोटर तक छोड़ने आई और पूछने लगी ,
" कार्यालय जाइएगा अथवा घर पर ? "
"मैं अब घर जाऊँगा । "

जयदेव पूछना भूल गया था कि अब वह प्रमिला से कहाँ मिल सकेगा । अतः अगले दिन वह प्रमिला के टेलीफोन की प्रतीक्षा करता रहा । टेलीफोन नहीं आया । प्रमिला की सूचना के बिना तीन दिन व्यतीत हो गए । उस दिन उसके माताजी का पत्र आया । उसमें लिखा था
" जयदेव!

तुम्हारे पत्र से पूरा- पूरा वृत्तांत नहीं मिला । लड़की का चित्र और जाति -बिरादरी लिख भेजो । वह बहुत धनी की लड़की है, इससे वह विवाह के योग्य कैसे हो गई ? उत्तर आने पर दिल्ली आने का कार्यक्रमलिलूँगी । "

यह पत्र मिला तो जयदेव प्रमिला की खोज में चल पड़ा । वह भुटानी के मकान पर पहुँचा तो द्वार पर खड़े एक व्यक्ति ने पूछा, "किससे मिलने आए हो ? "
“ मिस्टर भुटानी से । "
" वह बंबई गए हैं । "
" और प्रमिला देवी? "
" प्रमिला देवी तो यहाँ कोई नहीं । "
" सेठजी की लड़की है न? "
“ सेठजी की कोई लड़की नहीं । "
जयदेव भौंचक्का हो मुख देखता रह गया । उसने पूछ लिया, " भुटानी साहब कब तक आनेवाले हैं ? "
" एक सप्ताह तक आएँगे। "

जयदेव कुछ न समझता हुआ वहाँ से लौट आया । उसने अपनी माताजी के पत्र का उत्तर नहीं दिया । वह भुटानी से मिलना चाहता था । एक सप्ताह व्यतीत होने पर वह भुटानी के घर पर पहुँचा तो भुटानीजी से घर ही भेंट हो गई । भुटानी अपनी मोटर में सवार हो कहीं जा रहा था । सारस्वत को कोठी में प्रवेश करते देख वह गाड़ी - द्वार खोल नीचे उतर आया । भुटानी ने जयदेव से हाथ मिला अभिवादन करते हुए कहा, “ आइए, सारस्वतजी । कैसे आए हैं ? "

" कुछ आपसे काम था । "
" हाँ , बताओ! "
" यहाँ पर ही ? "
" नहीं । गाड़ी में आ जाओ। मैं कनॉट सरकस की ओर जा रहा हूँ । तुम्हें वहाँ कहीं उतार दूंगा और तुम्हारी बात भी सुन लूँगा । "

जयदेव के मन में कुछ शांति हुई। पिछले सप्ताह भर वह कई प्रकार के संशयों से उत्पीडित मन में अशांति अनुभव कर रहा था । वह सेठजी के समीप गाड़ी में बैठ गया । जब गाड़ी चल पड़ी तो जयदेव ने पूछ लिया ,
" प्रमिला आपकी क्या लगती है ? "

" मेरे एक मित्र की लड़की है । बस दिल्ली में कुछ दिन के लिए आई हुई थी । अब अपने पिता के पास बंबई चली गई है । "
" वह मुझसे विवाह करने की बात कह रही थी । "
" हो सकता है । वह कइयों से विवाह का प्रस्ताव कर चुकी है । यह उसके मनोरंजन का ढंग है । "
" परंतु आपने मुझे उस दिन इंपीरियल होटल में किसलिए चाय पर बुलाया था? "
" वह प्रमिला के कहने पर ही था । "
"मैं तो उसे जानता नहीं था । "
" मगर वह तो आपको जानती प्रतीत होती थी । प्रमिला ने मुझे कहा था कि जयदेव सारस्वत , जो चीफ इंजीनियर के पी.ए.हैं , के साथ चाय पीने को जी चाहता है। मैं आपको बुला लाया था । "
" तो यह सब स्वप्न था ? "
" हाँ, यह जगस्वप्ना है । ऐसा ही हमारे ऋषि-मुनि कहते हैं । "

जयदेव मौन हो गया । उसके मन के महल धराशायी हो चुके थे । गाड़ी अभी विजय चौक में ही पहुंची थी कि उसने कह दिया, " मुझे यहाँ उतार दीजिएगा। "

अगले दिन वह कार्यालय में सुपरिंटेंडेंट से जाकर कहने लगा, “ कुछ दिन हुए कि आपने एक शरीफ आदमी की सहायता करने के लिए कहा था । "

सुपरिंटेंडेंट भूल गया था । इस पर जयदेव ने सेठ साहब की पोशाक और हुलिया वर्णन कर दिया । इस पर सुपरिंटेंडेंट मिस्टर अग्रवाल को स्मरण आ गया । उसने कहा, " सारस्वत! मिस्टर भुटानी के विषय में कह रहे हैं ? "

" हाँ , सर! "
" तो उसका क्या हुआ ? "
" आपने कहा था कि वह शरीफ आदमी है । "
" तो क्या वह नहीं था ? "
"मुझे तो वह महाबदमाश मालूम हुआ है । "

" तो तुम मेरे कहने का मतलब क्या समझते थे, सारस्वतजी ? धनी शरीफ होते हैं । इनमें कुछ बदमाश भी होते हैं । उन्हें शरीफ बदमाश कहते हैं । "

जयदेव ने बताया नहीं कि उसने क्या बदमाशी की है । रघुनंदन अग्रवाल ने भी पूछा नहीं और कह दिया, " हम गरीब लोग तो शरीफ हो नहीं सकते । यदि अपने साथ बहुत ही रियायत करूँ तो इतना कह सकता हूँ कि हम सरलचित्त हैं । यद्यपि दूसरे हमें मूर्ख समझते हैं । "

सारस्वत इंजीनियर साहब के कमरे में चला गया । वहाँ वे अपनी मेज पर भुटानी के टेंडर की दो प्रतियाँ सामने रख दोनों में मुकाबला कर रहा था । एक प्रति तो ठेकेदार भुटानी को भेज दी गई थी ।

जयदेव अपनी मेज पर बैठने लगा तो इंजीनियर साहब ने जयदेव को बुलाकर पूछा, " तनिक देखो । टेंडरों के नीचे यह पंक्ति पहले भी थी क्या ? "

जयदेव ने देखा कि टेंडर टाइप किया हुआ था और उसी मशीन और रंग में यह पंक्ति नई टाइप की हुई थी । उसने भी ‘टेंडर स्वीकृति से पहले देखा था । वहाँ यह पंक्ति पहले नहीं थी । उसमें लिखा था कि उक्त रेटों से महँगाई के कारण पच्चीस प्रतिशत अधिक होंगे ।
इसका मतलब था कि सवा लाख रुपए के लगभग टेंडर की राशि बढ़ गई थी ।

जयदेव को समझ आ गया कि शरीफ आदमी ने उसे किसलिए चाय पिलाई थी । उसके पाँव तले से जमीन खिसकती हुई प्रतीत हो रही थी । इस पर भी उसने दिल कड़ा कर कहा , " सर , टाइप इत्यादि की छपाई- स्याही तो वैसी ही प्रतीत होती है ।

इंजीनियर ने टेंडर लपेट लिफाफे में बंद कर अपनी मेज के दराज में रख लिये । उसने कह दिया, " समझ नहीं आ रहा था कि टेंडर स्वीकार करते समय यह मेरी दृष्टि में क्यों नहीं आया । "
जयदेव का दिल धक - धक धड़क रहा था । परंतु वह अपनी मूर्खता को स्वीकार नहीं कर सका ।