शक्ति से नहीं बुद्धि से काम लें : असमिया लोक-कथा
Shakti Se Nahin Buddhi Se Kaam Lein : Lok-Katha (Assam)
किसी गाँव में एक किसान रहता था। वह अपने माता-पिता के साथ रहता था। शादी करने के बाद उसके परिवार में सदस्यों की संख्या बढ़ती गई। अपने परिवार के पालन-पोषण के लिए वह दिन-रात काम किया करता था, फिर भी घर में किसी न किसी चीज की कमी होते रहती थी। कैसे घर की आर्थिक स्थिति को सुधारें, इस विषय पर वह चिंता करता रहता था। एक दिन किसी बुजुर्ग ने उसे सलाह दी कि के वह अपनी आमदनी बढ़ा सकता है। बुजुर्ग की बात उसके मन में बैठ गई। इसके बाद उसने खेती के साथ-साथ गाय भी पालना आरम्भ कर दिया और धीरे-धीरे उसकी आमदनी में वृद्धि होने लगी।
कुछेक महीनों के बाद उसने एक जोड़ा बैल भी खरीद लिया। अब उसे दूसरों से खेत जोतने के लिए बैल भाड़े में लेना नहीं पड़ता था। दूसरी ओर अपने गायों के बछड़ों को भी बड़े प्यार से पालने लगा। जब ये बछड़े बैल बन गये तो इन्हें खेतों के साथ-साथ अन्य कामों में भी लगाने लगा। उसकी आय स्रोत में भी वृद्धि होती चली गई।
उसके पास अब बैलों के दो जोड़े थे। एक जोड़ा जवान बैलों का दूसरे बूढ़े बैलों का। किसान दोनों से समान रूप में काम करवाया करता था। चारों बैल शाम को जब काम से लौटते, मालिक का दिया चारा-पानी खाकर आराम करते हुए एक दूसरे से बातें करते थे। लेकिन ज्यादा दिन तक ऐसा माहौल नहीं रहा। अब जवान बैलों में अपनी शक्ति और जवाँ होने का घमंड आ गया। धीरे-धीरे उन्होंने बूढ़े बैलों को सम्मान करना छोड़ दिया था। बैल काम से लौटने के बाद आनन्द से रात गजारते थे और सबह खुशी-खुशी काम के लिए निकल पड़ते थे। शाम को काम से लौटते वक्त उनके चेहरे पर थकावट के बावजूद खुशी की चमक दिखाई देती थी। बूढ़े बैल सभी अवस्था में समान भाव से रहते थे। युवा बैल को अपनी ताकत पर बहुत घमंड था। सुबह काम को जाते वक्त कोई पूछता कि कहाँ जा रहे हो? दोनों अपन सिंग पूँछ उठाकर ऊँची आवाज में जवाब देते- “खेत जोतने।” लेकिन शाम को घर लौटते वक्त उनके चेहरे से सुबह वाली हेकड़ी का नामोनिशान नहीं रहता। वे अपना मुँह ऐसे लटकाए घर लौटते जैसे उनके शरीर में जान ही न हो। दोनों बूढ़े बैल से भी अधिक बूढ़े दिखाई देते थे। बढे बैल संतोषी होने एवं अपने मालिक के नमक का कर्ज अदा कर पाने की खुशी में अपनी थकान भूल जाते।
जवान बैल अक्सर बूढ़े बैलों के विषय में बात करते रहते थे कि ये दोनों कामचोर हैं, दिनभर मालिक को ठगते हैं। रात को मुफ्त का खाते हैं। मालिक की आँखों में तो जैसे पट्टी बँधी है। ऐसी बातें बूढ़े बैल को प्रायः हर दिन सुनने की आदत हो गई थी फिर एक दिन उनकी सहन शक्ति ने जबाब दे दिया। एक रात एक बूढ़े बैल ने उनसे कहा- “सुनो भाइयो, कल संयोगवश हम चारों को मालिक अपनी खेत में जुताई के लिए ले जाएगा। मैंने मालिक को दूसरे व्यक्ति से बात करते हुए सुना था। वहाँ हम अपनी अपनी क्षमता के अनुसार काम करेंगे और रात को हम फैसला करेंगे कि कौन कितना काम करता है।” यह सुनकर जवान बैल खुश हो गये और तुरंत मंजूरी दे दी।
दूसरे दिन चारों बैल बड़े खुश दिखाई दे रहे थे। चारों बैलों को खुश देखकर मालिक ने कहा- “आज बहुत दिनों के बाद तुम चारों के चेहरों में खुशियाँ झलक रही हैं। क्या बात है? एक बूढ़े बैल ने मन में ही उतर दिया- “मालिक आज आपके खेतों में हम चारों अपनी-अपनी शक्ति का प्रदर्शन करेंगे। शायद यह बात चारों के मन में भी खेल रही थी। मालिक ने चारों को बड़े प्यार से उनके बदन पर हाथ फेरते हुए कहा- “चलो अब खेत में चलते हैं।” चारों ने अपने-अपने सिर हिलाया और मस्त चाल में मालिक के आगे चलने लगे।
मालिक ने बैलों को हलवाहों के हवाले कर दिया और वह दसरा काम करने लगा। दो जोड़े बैलों को जोतकर हलवाहे खेत की अलग-अलग क्यारियाँ जोतने लगे। चारों बैल एक दूसरे को देख सकते थे। दोनों हलवाहों के हाथों में छड़ी थी। दोनों ने धीरे से अपने-अपने बैलों को एक-एक छड़ी मारी और बैल अपनी-अपनी रफ्तार में निर्दिष्ट मार्ग पर आगे बढ़ने लगे। शुरू-शुरू में युवा बैल बड़ी तेजी से हल खींच रहे थे। जैसे-जैसे दिन चढ़ता गया उनकी रफ्तार कम होने लगी। हलवाहे ने जोर से दोनों की पीठ पर छड़ी मारी। थोड़ी देर के लिए उनकी चाल बढ़ गई पर तुरंत ही सुस्त पड़ गए। यह क्रम दिन ढलने तक जारी रहा। दूसरी ओर बढे बैल की गति दिन भर एक समान थी। हलवाहा बीच-बीच में अर्र.. अर्र..चच्च…चच्च.. की आवाज से हाँक लगाता। उसे छड़ी चलाने की जरूरत ही नहीं पड़ी। बूढ़े बैल सुबह जिस रफ्तार से चल रहे थे शाम तक उसी रफ्तार में थे।
शाम होने पर सब अपने-अपने स्थान पर आ गए। बूढ़े बैलों के चेहरों पर थकान का नामोनिशान नहीं था। दूसरी ओर युवा बैल बड़े ही क्लांत दिखाई दे रहे थे और साथ में दोनों दर्द से कराह भी रहे थे। रात को एक बूढ़े बैल ने पूछा- “भाई लोग कैसे हो?”
“ठीक है”, बड़ी धीमी और सुस्त आवाज में एक युवा बैल ने जवाब दिया। थोड़ी देर बाद फिर युवा बैल ने कहा- “आप लोग जीत गये भैया, पर यह रहस्य बता दें कि आप लोग सुबह से शाम तक एक ही रफ्तार में कैसे काम करते रहते हैं? थकते भी नहीं और काम भी ज्यादा कर लेते हैं।” बूढ़े बैल ने मुस्कुराते हुए कहा- “भाई इसका रहस्य यही है कि बल के साथ-साथ बुद्धि से भी काम करना चाहिए। आप लोगों ने विजयी होने के लिए सुबह से ही अपनी युवा शक्ति का प्रदर्शन किया, जो ज्यादा देर तक टिक नहीं पाया। अगर आप लोग एक ही समय में शक्ति का प्रदर्शन न कर उसे संयम के साथ दिन भर प्रयोग करते तो न मार पड़ती न प्रतियोगिता हारते। और दूसरी ओर हम लोगों ने अपने शक्ति को सुबह से शाम तक एक ही रूप में प्रयोग किया और इसलिए हलवाहे को हमारे उपर छडी चलाने का मौका ही नहीं मिला।”
थोड़ी देर सोचने के बाद कुछ गंभीर भाव से युवा बैल बोला- “इसका अर्थ यह हुआ कि हमें अपनी शक्ति का घमंड नहीं करना चाहिए, सदैव बुजुर्गों का सम्मान करना चाहिए। हमने आप सबका सम्मान नहीं किया। आप हमें माफ कर दें।”
बूढ़े बैलों ने कहा- “चलो ठीक है, और याद रखना सदैव शक्ति से नहीं बल्कि बुद्धि से काम लेना चाहिए।” इसके बाद सब एक दूसरे का दुःख बाँटते हुए मिल-जुलकर रहने लगे।
(साभार : डॉ. गोमा देवी शर्मा)