शैतान : क़ुरआन-कथा

Shaitan : Quran-Katha

खुदा ने दोजख में दो सूरतें पैदा की। उनमें एक शेर की थी, दूसरी गिद्ध की। उन दोनों के योग से एक फरिश्ता पैदा हुआ। खुदा ने उसका नाम रखा–'अज़ाज़ील'। अज़ाज़ील ने वहाँ पर एक हजार साल तक मस्तक नमाया, फिर हरेक ज़मीन पर एक-एक हज़ार साल मस्तक नमाते हुए वह सबसे ऊपर की सातवीं ज़मीन पर आया तो खुदा ने उसको हरे पत्थर के दो पंख दिए। इन पंखों से उड़कर वह पहले आसमान पर पहुँचा और वहाँ जाकर उसने एक हज़ार साल तक फिर मस्तक नमाया तो खुदा ने खुश होकर उसे 'खाशअ' (डरने वाला) की उपाधि दी। फिर उसने दूसरे आसमान पर जाकर एक हज़ार वर्ष तक मस्तक नमाया तो खुदा ने उसको 'आबिद्' (प्रार्थना करने वाला) की उपाधि प्रदान की। इसी प्रकार एक-एक हज़ार वर्ष सिज़दा करके उसने 'सालह', 'वली' की उपाधियाँ भी प्राप्त की; फिर उसने खुदा के तख्त अर्श के पास पहुँचकर मस्तक नमाया। आकाश और पृथ्वी पर कहीं बाल-भर भी ऐसी जगह न रही, जिस पर उसने मस्तक न नमाया हो! कहते हैं कि उसे इस कार्य के करने में पूरे छ: सौ हज़ार साल लगाने पड़े। इसके बाद उसने खुदा से प्रार्थना की-"मुझे 'लोहे महफूज़' देखने की आज्ञा दी जाए।"

खुदा ने उसकी प्रार्थना स्वीकार कर ली और 'इस्त्राफील' फरिश्ते को उसके साथ लोहे महफूज़ दिखलाने के लिए भेज दिया। वहाँ जाकर उसने उसमें यह लिखा पाया कि एक खुदा का बन्दा छ: सौ हज़ार साल तक तो खुदा को मस्तक नमाएगा, लेकिन एक बार मस्तक न नमाने पर 'इबलीस' (शैतान) बना दिया जाएगा। यह पढ़कर अज़ाज़ील को बड़ा दुःख हुआ और वह छ: सौ हज़ार साल तक रोता फिरा। जब वह दुःख को कुछ भूला तो जन्नत में एक नूर की मेज़ रखकर फरिश्तों को शिक्षा देने का काम करने लगा। जब एक हज़ार साल तक वह इस काम को बड़ी मेहनत से करते रहे तो खुदा ने खुश होकर उन्हें जन्नत-खजांची के पद पर नियुक्त कर दिया।

अभी अजाजील को इस पद पर नियुक्त हुए कुछ हजार वर्ष ही हुए थे कि अचानक खुदा को सूचना मिली कि ज़मीन पर रहने वाले जिनों (राक्षसों) ने बलवा कर दिया है। सूचना पाकर खुदा ने अज़ाज़ील को चार हज़ार फरिश्तों का सेनापति बनाकर बलवा शान्त करने के लिए ज़मीन पर भेज दिया। वहाँ पहुँचकर अज़ाज़ील ने अपनी बुद्धिमत्ता से ऐसा प्रबन्ध किया कि ज़मीन पर जल्दी ही शान्ति स्थापित हो गई। उनकी इस दक्षता को देखकर खुदा बहुत ही प्रसन्न हुआ; और इसके बदले उनको कुछ विशेष अधिकार भी मिल गए।

जब आदम का पुतला बना पड़ा था तो एक दिन अज़ाज़ील बहुत से फरिश्तों के साथ सैर करते हुए उधर से निकले। पुतले को देखकर अज़ाज़ील ने आश्चर्य के साथ कहा-"यह क्या है?"

साथ के फरिश्तों ने बतलाया-"यह खुदा ने बनाया है।"

उन्होंने पूछा-"क्यों?"

इस प्रश्न का उत्तर फरिश्ते सन्तोषजनक न दे सके तो अज़ाज़ील हज़रत आदम के मुँह में घुसकर उनके पेट में पहुंच गए। वहाँ उनको गर्मी महसूस होने लगी तो तुरन्त ही बाहर आ गए। बाहर आकर बोले-"अगर मैं इससे अधिक शक्तिशाली हुआ तो इसे बर्बाद करके ही छोडूंगा और यह मुझसे अधिक शक्तिशाली हुआ तो मैं इसकी आज्ञा का उल्लंघन करूँगा"-यह कहकर और उस पुतले पर थूककर वह चले गए।

खुदा को यह समाचार मिला तो वह बहुत नाराज़ हुए और जिब्राईल को हुक्म दिया कि हमारे पुतले को साफ कर आओ।

जिब्राईल वहाँ आया तो उसने उस लगे हुए थूक को साफ करके उस से एक कुत्ता बना दिया। कुत्ते की उत्पत्ति थूक से हुई है, इसी कारण मुसलमान लोग कुत्ते की परछाई को भी अशुद्ध मानते हैं।

जब चीजों के नाम बतलाने में सब फरिश्तों की परीक्षा हो रही थी तो हज़रत अज़ाज़ील भी उनमें शामिल थे और दूसरे फरिश्तों की तरह उन चीज़ों के नाम न बतला सकने के कारण वह भी परीक्षा में फेल हो चुके थे। सब फरिश्ते फेल हो चुके तो खुदा ने आदम को पैदा करने के प्रस्ताव का विरोध करने और पुतले के ऊपर थूकने के लिए सज़ा के तौर पर सब फरिश्तों से कहा-"आदम को मस्तक नमाओ!"

और सब फरिश्तों ने तो हुक्म सुनते ही बिना किसी हिचक के फौरन मस्तक नमा दिया, लेकिन अज़ाज़ील महाशय अपनी जगह ही अकड़े खड़े रहे।

अल्लाह-तुमने मस्तक क्यों नहीं नमाया?

अज़ाज़ील-हुजूर ने ही हुक्म दे रखा है कि मेरे सिवाय किसी और को मस्तक न नमाओ।

अल्लाह-मैं अब हुक्म देता हूँ कि आदम को मस्तक नमाओ।

अज़ाज़ील-आप अपना पहला हुक्म क्यों रद्द करते हैं?

अल्लाह-मेरी मर्जी!

अज़ाजील-आख़िर आपकी ऐसी मर्जी क्यों?

अल्लाह-मैं इस बात को बतलाने के लिए तैयार नहीं।

अज़ाज़ील-तो, जब तक आप कोई ख़ास वजह न बतलाएँ मैं हर्गिज़ आदम के सामने झुकाने के लिए तैयार नहीं!

अल्लाह-तो आज्ञा का उल्लंघन करोगे?

अज़ाज़ील-अगर आपके ख्याल में यही आज्ञा का उल्लंघन है तो ऐसा ही समझिए!

अल्लाह-आदम तुमसे बड़ा है।

अज़ाज़ील-किस लिहाज़ से? अगर उम्र के लिहाज़ से कहते हैं तो मैं उससे बहुत बड़ा हूँ।

अल्लाह-नहीं, जिस्म के लिहाज़ से।

अज़ाज़ील-अच्छा, तो आप मेरा और उसका मुकाबला ही करा दीजिए!

अल्लाह-देख, इसको मैंने अपने हाथों से बनाया है।

अलाज़ील-मुझे आपने अपनी कुदरत से पैदा किया है; और कुदरती चीज़ बनावटी चीज़ से हमेशा ही अच्छी होती है।

अल्लाह-यह प्रार्थना ज्यादा करेगा!

अज़ाज़ील-यह तो जब करेगा, तब करेगा; मैं तो छ: लाख साल तक कर चुका हूँ! इतनी तो शायद इसकी उम्र भी न हो!

अल्लाह-यह तुमसे इल्म में बढ़ा है। देखो, जिन चीज़ों के नाम तुम नहीं बतला सके थे, वे इसने बतला दिए थे।

अज़ाज़ील-वे तो आपने रटा दिए थे। रटाकर आप मुझसे चाहे जो पूछ लीजिए?

अल्लाह-बस तुम ज़्यादा हुज्जत मत करो।जो-कुछ मैं कहता हूँ, उसे सुन लो।

अज़ाज़ील-आप क्या कहते हैं?

अल्लाह-मैं तुमसे यही कहता हूँ कि आदम तुमसे श्रेष्ठ है।

अज़ाज़ील-यह कैसे हो सकता है, हुजूर ? कहाँ एक फरिश्ता और कहाँ सड़ी मिट्टी से बना आदमी!

अल्लाह-अच्छा, चुप हो आओ। तुम बड़े पाज़ी हो!

अज़ाज़ील-इसमें पाज़ीपन की क्या बात है, हुजूर?

अल्लाह-यह पाज़ीपन नहीं तो क्या है कि मैं मस्तक नमाने को कह रहा हूँ, और तू इधर-उधर की बक-झक कर रहा है।

अज़ाज़ील-आप तो नाराज़ होने लगे, सरकार! आपने ही तो कहा था कि जान पर खेल जाना, मगर मेरे सिवाय किसी को मस्तक न नमाना; फिर मैं आपकी धमकी से कैसे आदम को मस्तक नमा दूँ? और आपकी आज्ञा का उल्लंघन करने वाला बनूँ? क्या आप मुझे आजमा रहे हैं?

अल्लाह-अबे नालायक! देख, अब तू हद से आगे बढ़ा जा रहा है। इधर-उधर की बातें बनाकर नास्तिकों-जैसा आचरण कर रहा है। अब तू मुझे केवल दो शब्दों में यह बतला कि तू मेरे हुक्म को मानेगा या नहीं?

अज़ाज़ील-हुजूर, मेरी निगाह में आपके हुक्म की बहुत ज्यादा कीमत है; लेकिन अब भी तो मैं आपका ही हुक्म मान रहा हूँ। मैं जान गया हूँ, आज आप मुझे आजमा रहे है, लेकिन मैं आपकी आज़माइश में फेल होने वाला नहीं। आप दो शब्दों में जवाब माँगते हैं; और मैं एक ही शब्द में जवाब दिए देता हूँ कि जब तक मेरे दम में दम है, मैं सिवाय आपके और किसी के भी सामने मस्तक नहीं नमा सकता।

अल्लाह-बस-बस, तू इबलीस' है! फौरन मेरे दरबार से निकल जा!

अजाजील-आज तक मैंने आपका कोई हक्म टाला जो आप मझे 'इबलीस' (हुक्म न मानने वाला) कह रहे हैं ? आप तो सचमुच ही बिगड़ गए,मैं तो अब तक यही समझता था कि आप मेरा इम्तहान ले रहे हैं और मेरे पास हो जाने पर आप मुझे कोई पद प्रदान करेंगे।

अल्लाह-चुपचाप यहाँ से चला जा। अब मैं कुछ सुनना नहीं चाहता। बस, आज से तेरा नाम 'शैतान' है।

अज़ाज़ील-अच्छा, चला जाता हूँ, लेकिन इतना जरूर कहूँगा कि आपने मुझे गुमराह किया है तो मैं भी हमेशा आपके बन्दों को गुमराह करता रहूँगा।

अल्लाह-शौक से गुमराह करना, लेकिन याद रख-जो बन्दे तेरी पैरवी करेंगे, उन सबके लिए दोज़ख में ही स्थान होगा।

अज़ाज़ील-अच्छा, तो सलाम अलयकुम!

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