Sewika Aur Bhedia : Aesop's Fable
सेविका और भेड़िया : ईसप की कहानी
दोपहर का समय था। घर पर सेविका छोटे बच्चे को खाना खिलाकर सुलाने की कोशिश कर रही थी। लेकिन बच्चा सो नहीं रहा था, बल्कि रोये जा रहा था।
तंग आकर सेविका बच्चे को डराने के लिए बोली, “रोना बंद करो। नहीं तो मैं तुम्हें भेड़िये के सामने डाल दूंगी।”
उसी समय एक भेड़िया उस घर के पास से गुजर रहा था। सेविका की बात सुनकर वह बड़ा ख़ुश हुआ।
सोचने लगा, “वाह क्या बात है!! आज का दिन तो शानदार है। बिना मेहनत के ही भोजन मिलने वाला है। यहीं बैठ जाता हूँ। जब सेविका बच्चे को मेरे सामने डालेगी, तो आराम से खाऊंगा।”
वह खिड़की के पास दुबककर बैठ गया और लार टपकाते हुए इंतज़ार करने लगा।
उधर बच्चा सेविका की भेड़िये के सामने डाल देने वाली बात सुनकर डर गया और चुप हो गया। भेड़िया इंतज़ार करता हुआ सोचने लगा कि ये बच्चा रो क्यों नहीं रहा है। जल्दी से ये रोये और जल्दी से सेविका इसे मेरे सामने डाल दे।
लेकिन बहुत देर हो जाने पर भी बच्चे की रोने की आवाज़ नहीं आई। भेड़िया बेचैन हो उठा और खिड़की से घर के अंदर झांकने लगा।
भेड़िये को अंदर झांकते हुए सेविका ने देख लिया। उसने झटपट खिड़की बंद की और सहायता के लिए शोर मचाने लगी, “बचाओ बचाओ भेड़िया भेड़िया।”
सेविका को शोर मचाता देख भेड़िया डरकर भाग गया।
सीख : शत्रु द्वारा दी गई आशा पर विश्वास नहीं करना चाहिए।