सेनोतला की जिद : मणिपुरी लोक-कथा
Senotala Ki Jid : Manipuri Lok-Katha
फुंकम गाँव में एक धनी व्यक्ति रहता था। उसकी एक रूपवती कन्या थी।
धनी व्यक्ति के घर बहुत सारी गाय-भैसें थीं, अतः उसने अपनी पुत्री का नाम
सेनोतला रख दिया। इसका अर्थ होता है--ग्वालिन ।
सेनोतला जब युवती हुई तो उसके सौंदर्य की चर्चा चारों ओर फैल
गई। सभी युवक उसकी बातें करके अपना समय बिताने लगे । इन युवकों में
पोंखुम और रानहाओ नाम के युवक भी थे। पोंखुम धनी परिवार में पैदा
हुआ था और रानहाओ निर्धन परिवार में । दोनों में एक अंतर और था,
पोंखुम थोड़ा मूर्ख था, जबकि रानहाओ बुद्धिमान । इसके अलावा दोनों युवक
समान रूप से सुंदर थे। हाँ, रानहाओ मणिपुर का एक विशेष वाद्य 'पेना'
बजाने में बहुत कुशल था।
पोंखुम ओर रानहाओ दोनों ही सेनोतला से विवाह करना चाहते थे।
एक दिन फुंकम गाँव में मेले का आयोजन हुआ। आस-पास के सभी लोग
मेला देखने गए। पोंखुम तथा रानहाओ भी वहाँ पहुँचे । जब मेला समाप्त हो
गया तो वे दोनों सेनोतला के घर पहुँच गए। उसके पिता ने इन दोनों युवकों
का आदर-सत्कार किया और बैठने को आसन दिया।
फिर वह इन दोनों से उनके परिवार और माता-पिता के बारे में बातें
करने लगा। दोनों युवकों ने सेनोतला के पिता से खूब बातें कीं। इस
बातचीत में सेनोतला का पिता समझ गया कि ये दोनों उसकी पुत्री से विवाह
करने के इच्छुक हैं। वह प्रसन्न हुआ और सोचने लगा कि पोंखुम के साथ
अपनी पुत्री का विवाह कर देगा। लेकिन सेनोतला के पिता के सामने समस्या
आई कि वह रानहाओ को किस प्रकार मना करे ? उसने एक उपाय किया।
वह घर के भीतर से दो भाले और दो ढाल निकालकर लाया । उन्हें पोंखुम
और रानहाओ को देते हुए बोला कि वह उन दोनों का नृत्य देखना चाहता
है। दोनों युवक नृत्य दिखाने के लिए तैयार हो गए। पहले पोंखुम ने नृत्य
करना प्रारंभ किया। वह बहुत थोड़ी देर नाच सका और हाँफते हुए बैठ
गया। उसके बाद रानहाओ ने नृत्य किया । उसने बहुत देर तक शिकार और
युद्ध संबंधी नृत्य दिखाया। सब लोग उसके नृत्य पर मोहित हो गए।
अब सेनोतला के पिता के सामने और भी समस्या आ गई। वह
सोचता था कि पोंखुम, रानहाओ से अच्छा नृत्य करेगा तथा इसी बहाने वह
अपनी पुत्री का विवाह पोंखुम से कर देगा। किंतु अब कया किया जाए?
उसने सेनोतला से ही पूछने का निर्णय किया। वह घर में गया और अपनी
बेटी से बोला, “बेटी, तुम्हें किस युवक का नृत्य अच्छा लगा ?”
“पिताजी, मुझे रानहाओ का नृत्य बहुत अच्छा लगा ।”
“तुम किसके साथ विवाह करना चाहती हो?” सेनोतला के पिता ने
पूछा।
“मैं तो रानहाओ के साथ ही विवाह करूँगी।” सेनोतला ने उत्तर
दिया।
उसका पिता मन से यह नहीं चाहता था कि उसकी पुत्री किसी निर्धन
व्यक्ति की त्नी बने । वह समझाते हुए बोला, “बेटी, तुम्हारा विचार ठीक तो
है, किंतु रानहाओ बहुत निर्धन है। तुम उसके साथ सुखपूर्वक नहीं रह
सकोगी ।”
सेनोतला पर पिता के समझाने का कोई प्रभाव नहीं पड़ा । वह बोली,
“पिताजी, यदि मैं विवाह करूँगी तो रानहाओ के साथ अन्यथा जीवन-भर
कुँआरी ही रहँगी।” सेनोतला का पिता अपनी बेटी के सामने तो कुछ नहीं
बोल सका लेकिन उसने अपने मन में सोचा कि एक-दो दिन बाद किसी दूसरे
ढंग से समझाने पर सेनोतला मान जाएगी।
एक दिन सेनोतला के पिता ने उसके सामने एक थाली में मांस, दूसरी
में उबले हुए सरसों के पत्ते और तुंबे में शराब रख दी। सेनोतला उस समय
कपड़ा बुन रही थी। उसका पिता उससे बोला, “बेटी, बहुत थक गई हो, कुछ खा
लो।” सेनोतला ने तीनों चीजें ध्यान से देखीं। वह अपने पिता की
चतुराई समझ गई। उसने चुपचाप सरसों के उबले हुए पत्तोंवाली थाली उठा
ली और भोजन कर लिया। यह देखकर उसके पिता को बहुत आश्चर्य
हुआ। वह बोला, “बेटी, केवल उबला हुआ हंगाम (सरसों के पत्ते) खाने से
तुम्हारा शरीर कैसे स्वस्थ रहेगा ?”
सेनोतला बोली, “पिताजी, मुझे यही भोजन बहुत पसंद आया। मैं
आज से इसी प्रकार का खाना खाऊँगी।”
सेनोतला का पिता अच्छी तरह समझ गया कि उसकी बेटी रानहाओ
से ही विवाह करना चाहती है। वह बोला, “बेटी सेनोतला, मैं तुम्हारी
इच्छा-शक्ति के सामने हार गया। अब मैं तुम्हारा विवाह रानहाओ के साथ
ही कर दूँगा ।”
सेनोतला का विवाह धूमधाम से रानहाओ के साथ हो गया।
(देवराज)