सींगोंवाला सिकंदर : उज़्बेक लोक-कथा

Seengonwala Sikandar : Uzbek Folk Tale

पुराने समय में सिकंदर नाम का एक बादशाह राज करता था। उससे सारे नाई डरते थे, क्योंकि वह अपने बाल कटवाने के बाद नाई को मरवा देता था। बहुत-से नाइयों ने अपने प्राण गंवाये, पर कोई भी यह राज न जान पाया कि आखिर सिकंदर नाइयों को मरवाता क्यों है । एक दिन सिकंदर समरकंद आया। वहाँ भी उसने बहुत से नाइयों को जान से मरवा डाला। कुछ नाई अपने प्राण बचाकर भाग निकले। शहर में एक भी नाई न रहा। बहुत ढूंढ़ने के बाद एक बूढ़ा मिला जो कभी युवावस्था में बाल काटने का काम किया करता था । वजीर ने उसे महल में बुलाकर हुक्म दिया:

"तुम्हें बादशाह के बाल काटने होंगे।"

"बड़ी खुशी से काटूंगा," बूढ़ा बोला। उसे मालूम न था कि बादशाह सिकंदर अपने बाल कटवाने के बाद नाई को जिंदा नहीं छोड़ता था ।

बूढ़ा सिकंदर के बाल काटने लगा, तो अचानक उसने देखा कि बादशाह के सिर में सींग हैं । बूढ़ा चुप रहा। अपना काम खत्म करके वह जानेवाला ही था कि अचानक सिकंदर ने आवाज दी :

"जल्लाद !"

"ग़रीबपरवर, मुझ पर रहम कीजिये ! मेरे बहुत-से बेटे पोते हैं, आप मेरी जान लेकर क्या करेंगे ?"

सिकंदर को बूढ़े पर दया आ गयी, पर उसने उससे वचन ले लिया कि वह कभी भी किसी को नहीं बतायेगा कि सिकंदर के सिर में सींग हैं।

बहुत दिन बीत गये। अपना दिया हुआ वचन याद करके बूढ़ा चुप रहा। पर इस राज को छिपाये रखने के कारण उसको नींद नहीं आती थी। वह हमेशा परेशान रहने लगा और उसका पेट भी फूलने लगा - पहले एक तरबूज जितना हुआ, फिर एक बड़े घड़े जितना और उसके बाद एक ढोल जितना ।

बूढ़े के लिए अब राज और ज्यादा देर छिपाये रखना असंभव हो गया। वह शहर से भागकर पहाड़ पर चला गया। पहाड़ में एक सुनसान जगह में एक सूखा कुआँ था । बूढ़ा कुएँ के पास पहुँचा और चारों ओर देखने लगा। जब उसने देखा कि वहाँ पानी की तलाश में कोई नहीं आ रहा है तो वह कुएं में मुंह करके तीन बार चिल्लाया,

"सिकंदर के दो सींग हैं !"
"सिकंदर के दो सींग हैं !"
"सिकंदर के दो सींग हैं !"

बूढ़े ने इतना ही कहा कि उसका पेट ठीक हो गया और उसकी सारी परेशानी खत्म हो गयी।
बूढ़ा खुशी-खुशी अपने घर लौट आया।

थोड़े दिनों के बाद उस सूखे कुएं में से बहुत सुंदर और ऊंचा नरकल उग आया ।

पहाड़ों में भेड़ें चरानेवाले गड़रिये को वहाँ से गुजरते समय वह नरकल दिखाई दे गया । गड़रिया बहुत खुश हुआ। उसने नरकल के डंठल से एक बांसुरी बनायी। गड़रिये ने बांसुरी पर अपने प्यारे गाने की धुन बजानी चाही। उसने कितनी ही कोशिश क्यों न की, पर बांसुरी में से हर बार तरह-तरह के सुर में एक ही आवाज़ निकलती :

"सिकंदर के दो सींग है !"

एक पल में यह गूंजती हुई आवाज अपने तख्त पर बैठे बादशाह सिकंदर के कानों में भी पड़ी। उसने बूढ़े नाई को फ़ौरन पकड़कर लाने का हुक्म दिया।

डर के मारे काँपते हुए बूढ़े को घसीटकर दरबार में लाया गया। उसी समय फिर पहाड़ की तरफ़ से आवाज आती सुनाई दी :

"सिकंदर के दो सींग हैं !"

सिकंदर ने सोचा :

"मेरे देश में दुश्मन की फ़ौज घुस आयी है और वे लोग ही मेरा नाम बिगाड़ रहे हैं।"

उसने अपनी फ़ौज को पहाड़ों में भेजा ।

सिंकदर के सैनिकों ने गड़रिये को पकड़ लिया और उसे उठाकर दरबार में ले आये । अपना कोई दोष न देखकर गड़रिये ने सोंचा : “ शायद, बादशाह मेरा संगीत सुनना चाहता है !" और वह गुस्से से पागल हो रहे बादशाह के सामने चुपचाप खड़ा रहा ।"

"बता," सिकंदर ने बूढ़े से कहा, "कसम तोड़ने की तेरी हिम्मत कैसे हुई ?"

"अगर आप मेरी जान बख्शें तो बताऊं !" बूढ़ा गिड़गिड़ाकर बोला ।

"ठीक है, बता! " बादशाह बोला ।

बूढ़े ने पूरा क़िस्सा बादशाह को सुना दिया। उसके बाद गड़रिये की बारी आयी ।

गड़रिये ने बताया किस प्रकार वह पहाड़ में सूखे कुएं के पास पहुँचा, किस प्रकार उसने उसमें नरकल देखकर उसके डण्ठल से बाँसुरी बनायी और किस प्रकार उसकी हर कोशिश के बावजूद बाँसुरी में से एक ही स्वर निकलता रहा।

सिकंदर ने बाँसुरी के टुकड़े-टुकड़े कर दिये और बूढ़े और गड़रिये को अपने देश से निकाल दिया । पर एक आदमी ने यह बात दूसरे के कान में कही, दूसरे ने तीसरे के कान में। इस तरह पीढ़ी दर पीढ़ी लोगों को मालूम होता रहा कि सिकंदर के सींग थे ।

इस कहानी को पढ़कर आपको भी मालूम हो गया कि सिकंदर के सींग थे ।

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