सैयद और सईद : कश्मीरी लोक-कथा

Sayyad Aur Saeed : Lok-Katha (Kashmir)

एक बार की बात है कि एक गरीब गाँव वाला था जो जंगल से लकड़ी काट कर और उसको बाजार में बेच कर अपना और अपने परिवार का गुजारा करता था।

सुबह सुबह वह लकड़ी काटता था फिर उनके गट्ठ बनाता था फिर शाम को उनको सबसे पास वाले बाजार ले जा कर बेच आता था।

इस गरीब आदमी की शादी हुई और उसके दो बेटे हुए। बड़े बेटे का नाम उसने सैयद रखा और छोटे वाले का नाम उसने रखा सईद। पर जब उसके ये दोनों बेटे छोटे ही थे तभी उनकी माँ मर गयी और उस लकड़हारे ने दूसरी शादी कर ली। उसकी दूसरी पत्नी उसकी पहली पत्नी से ज़्यादा होशियार थी।

एक दिन उसने अपने पति से कहा — “आप मुझसे और अपने दोनों बेटों से क्यों नहीं कहते कि हम भी लकड़ी काटने में आपकी सहायता करें। हम लोग बहुत कम पैसों में रह रहे हैं। पर अगर मैं और हमारे ये दोनों बेटे भी हमारी सहायता करेंगे तो हम लोग ज़्यादा पैसा कमा पायेंगे।”

आदमी ने कहा — “यह तो बिल्कुल ठीक है।”

सो इस प्लान के अनुसार अब चारों रोज सुबह सुबह लकड़ी काटने जाने लगे। उन्होंने सबने इतनी मेहनत करके काम किया कि कुछ ही महीनों में उनके पास काफी पैसा जमा हो गया। इसके अलावा उन्होंने जाड़ों के लिये काफी सारी लकड़ी भी जमा कर ली। वह लकड़ी उन्होंने घर के पास ही एक जगह ठीक से लगा कर रख दी।

कुछ ही दिन बाद बहुत ज़ोर से बारिश शुरू हो गयी। उसी समय तीन यात्री जंगल से गुजरे। बारिश से बचने के लिये उन तीनों ने एक पेड़ के खोखले हिस्से में शरण ली।

बारिश ने हवा ठंडी कर दी थी सो उन यात्रियों ने लकड़ियों के उस ढेर में से कुछ लकड़ी ली जो उस लकड़हारे ने इकट्ठी करके रखी थी और उससे एक बहुत बड़ी आग जलायी। पूरे दो दिन तक वे वहाँ ठहरे और उस उतनी बड़ी आग को बनाये रखा। जब बारिश खत्म हो गयी तो उन्होंने अपनी यात्रा फिर से शुरू कर दी। लकड़हारा भी अपनी लकड़ी को देखने के लिये बाहर आया तो उसके आश्चर्य का तो ठिकाना ही न रहा जब उसने देखा कि उसकी लकड़ी तो वहाँ थीं नहीं उनकी जगह केवल राख पड़ी है।

तभी उसकी पत्नी और बेटे भी वहाँ आ गये। उसने उनसे कहा — “भगवान नहीं चाहता कि हम लोग अमीर बनें। अब हम क्या करें? अब हम क्या करें? हमारी तो सारी लकड़ियाँ जल गयीं।” यह बोलते बोलते उसने एक डंडा राख में घुमाया।

पत्नी ने राख में पड़ी किसी चमकती चीज़ को देख कर पूछा — “वह क्या है? देखो न वह क्या है। वहाँ देखो वहाँ देखो।”

इस पर उन सबने राख के पूरे के पूरे ढेर को देखा तो उनको उसमें चाँदी के कई टुकड़े मिले। इस बात के डर से कि कहीं उनको रास्ते मंे कोई आदमी न मिल जाये और उनसे वे चाँदी के टुकड़े न छीन ले उन्होंने वे चाँदी के टुकड़े अपनी अपनी काँगड़ियों में रख लिये उनको कोयलों से ढक लिया और घर को चल दिये। किसी को उनके ऊपर कोई शक न हो इसलिये लकड़हारे ने अपने दोस्तों और पड़ोसियों को अपने खजाने के बारे में बता दिया। कुछ समय बाद उसने लकड़ी काटने का काम छोड़ दिया और व्यापार करने लगा। व्यापार में उसकी बहुत तरक्की हुई। आखिर वह एक बहुत बड़ा आदमी बन गया।

इस बीच उसके दोनों बेटे भी स्कूल जाने लगे और बहुत पढ़ लिख गये।

एक दिन वह सौदागर अपने दोनों बेटों के साथ किसी मेले से लौट रहा था कि रास्ते में उनको एक जमींदार मिला जो एक पिंजरा ले जा रहा था।

उस पिंजरे में एक बहुत सुन्दर चिड़िया बन्द थी जो बहुत मीठा गाती थी। बेटों ने जब उस चिड़िया को देखा और उसका मीठा गाना सुना तो अपने पिता से उसे खरीदने के लिये कहा।

सौदागर ने जमींदार से पूछा — “यह चिड़िया तुम कितने में बेचोगे?”

जमींदार बोला — “दो मुहर में।”

सौदागर जमींदार को दो मुहर दे कर बोला — “लो यह लो दो मुहरें और यह चिड़िया मेरे बच्चों को दे दो।”

जमींदार ने सौदागर से दो मुहरें लीं और चिड़िया का पिंजरा बच्चों को थमा कर चला गया। सैयद और सईद ने पिता को उनके लिये चिड़िया खरीदने के लिये धन्यवाद दिया। वे चिड़िया को बहुत प्यार करते थे। स्कूल से लौटने के बाद वे उसके साथ खेलते थे। कुछ समय बाद उस चिड़िया ने एक अंडा दिया। दोनों बेटे उस अंडे को बहुत देर तक देखते रहते थे। क्योंकि वे चाहते थे कि उनके पास वैसी ही एक चिड़िया और हो जाये।

एक दिन वे लोग उस पिंजरे को साफ करने के लिये नदी के किनारे ले गये और यह काम ठीक से होना चाहिये इसलिये उन्होंने चिड़िया को बाहर निकाल कर सैयद के हाथ में दे दिया गया और उसके अंडे को एक पत्थर पर सँभाल कर रख दिया।

जब सईद पिंजरे को साफ कर रहा था तो एक आदमी ने जो नदी के दूसरे किनारे पर नहा रहा था वह सब देखा जो नदी के इस किनारे पर हो रहा था।

उसने यह भी देखा जो शायद सौदागर और उसके बेटों ने ध्यान नहीं दिया कि जिस पत्थर पर अंडा रखा था वह चाँदी का हो गया था। उस आदमी को यह देख कर बहुत आश्चर्य हुआ। उसने सोचा कि इस अंडे की शायद यही खासियत होगी यह जिसको छुए उसको चाँदी का बना दे।

उसने ऐसी बातें पहले सुनी भी थीं पर उसको उन बातों पर विश्वास नहीं था। पर यहाँ तो सबूत मौजूद था सो इसमें शक की कोई गुंजायश ही नहीं थी। उसने सोचा कि किसी तरह से वह उस अंडे को ले लेगा।

वह आदमी वहीं से चिल्लाया — “हे हे! क्या तुम यह अंडा मुझे बेचोगे? मैं इससे कुछ दवा बनाना चाहता हूँ।”

सौदागर बोला — “नहीं। अभी मैं इतना गरीब नहीं हूँ कि मुझे इसको बेचने की जरूरत पड़े। मैं तुमको इसे खुशी से दे देता अगर मेरे बेटे ऐसी ही दूसरी चिड़िया के लिये इतने उत्सुक न होते।”

पर उस आदमी ने उससे उसकी प्रार्थना सी करते हुए कहा — “मेहरबानी करके इसे मुझे दे दीजिये। मैं आपको इसका एक रुपया दूँगा।”

सौदाागर बोला — “अफसोस मैं इसे तुम्हें नहीं दे सकता।”

आदमी ने देखा कि यह सौदागर तो इतनी जल्दी मानने वाला नहीं है सो उसने फिर कहा — “मैं आपको इसके पाँच ... दस ... बीस ... सौ ... चलिये एक हजार रुपये तक दे दूँगा।”

सौदागर बोला — “नहीं। पर हाँ अगर तुम मुझे दस हजार रुपये दो तो मैं तुमको इसे दे दूँगा।”

आदमी मन ही मन खुश हो कर बोला — “एक अंडे को लिये इतने पैसे बहुत ज़्यादा हैं पर जब आप इससे कम में देने के लिये तैयार ही नहीं हैं तो मैं आपको इसके दस हजार ही दे दूँगा क्योंकि इससे बनी दवा के बिना तो में मर जाऊँगा।”

इस तरह यह सौदा पक्का हो गया। वे सब वहाँ से सौदागर के घर की तरफ को चले। वहाँ जा कर उस आदमी ने सौदागर को पैसा दिया और सौदागर ने उसको वह अंडा दे दिया।

अब जैसा कि होना चाहिये था आदमी को अंडा खरीदने के बाद सबसे पहले नदी के किनारे उस पत्थर के पास जाना चाहिये था जो उस अंडे के छूने से चाँदी का बन गया था। पर उसने सोचा कि अब उसको इसकी कोई जरूरत नहीं है।

जैसा कि उसने इस बात को बाद में साबित भी कर दिया। क्योंकि हर पत्थर जो उस अंडे ने छुआ वही चाँदी का बन गया। इसके कुछ दिनों बाद एक योगी इस आदमी से मिला जिसने उस अंडे को देखा तो कहा कि यह तो बड़ा कीमती अंडा है। पर वह चिड़िया कहाँ है जिसने इसको दिया है। अगर हो सके तो तुम उस चिड़िया को पाने की कोशिश करो।

क्योंकि जो कोई भी उसका सिर काटेगा पकायेगा और खायेगा वह दुनियाँ का सबसे अमीर राजा होगा। चिड़िया का सिर उस आदमी की छाती में रहेगा जो उसे खायेगा।

जब वह आदमी सुबह उठेगा तो उसको अपने नीचे दस हजार मुहरें मिलेंगीं। उसको चिड़ियों और जानवरों की भाषा भी समझ आने लगेगी।

उस चिड़िया की छाती भी बहुत खास है। जो उसको पकायेगा और खायेगा वह राजा बन जायेगा। पर वह उतना बड़ा राजा नहीं बनेगा जितना कि उसका सिर खाने वाला बनेगा।

जब आदमी ने योगी से यह सब सुना तो वह तो तुरन्त ही सौदागर के घर की तरफ चल दिया। वहाँ जा कर उसने सौदागर से उस चिड़िया को बेचने की प्रार्थना की। उसने उसको जो भी वह चाहे उसकी वही कीमत देने का वायदा किया।

पर सौदागर ने उससे यह कह कर जाने के लिये कहा कि वह उसे किसी हालत में भी नहीं बेचेगा चाहे उसको उसके बदले में सारी दुनियाँ दे दी जाये। इसलिये वह जा सकता था।

पर आदमी तो उस चिड़िया को लेने के लिये उतने ही पक्के इरादे से आया था जितने पक्के इरादे से वह पिछली बार उससे अंडा खरीदने आया था।

सो जब उसने सौदागर का जवाब सुना तो अपने मन में कहा “मुझे मालूम है मुझे क्या करना है। मैं उसे इस सौदागर की पत्नी से खरीदूँगा। मैं अभी जा कर उससे मिलता हूँ।”

सो वह एक अक्लमन्द बूढ़ी स्त्री के पास गया और इस बारे में उससे सलाह की। उसने उससे यह भी कहा कि अगर वह उसको सौदागर की पत्नी से मिलवा देगी तो वह उसको बहुत सारा इनाम देगा। उस अक्लमन्द बुढ़िया ने हामी भर दी।

वह सौदागर के घर गयी और यह देख कर कि वह घर में नहीं था वह उसके घर में घुसी और उसकी पत्नी से बातें करने लगी। सौदागर की पत्नी उसको देख कर बहुत खुश हुई और कुछ देर बात करने के बाद उसने उससे फिर आने के लिये कहा। इस तरह से उन दोनों की अच्छी दोस्ती हो गयी। आखिर सौदागर की पत्नी ने उससे अपने पास ही रहने के लिये कहा।

इस सारे समय में बुढ़िया उससे उस आदमी के बारे में उससे बहुत अच्छी अच्छी बातें करती रही जिसने उसे वहाँ भेजा था। और इस तरह से उसने बेचारे सौदागर की पत्नी के मन में उससे मिलने की इच्छा पैदा कर दी।

बुढ़िया ने उससे यह भी कहा कि वह आदमी भी उससे मिलने के लिये कितना उत्सुक था। जब सौदागर की पत्नी यह पक्का कर लिया कि फलाँ दिन उसका पति घर में नहीं रहेगा तो वह दिन उस आदमी से मिलने के लिये तय कर लिया गया।

अपना उद्देश्य ज़्यादा आसानी से पूरा करने के लिये और अपना बहुत दिनों का सोचा हुआ प्लान पूरा करने के लिये उसने अपने पति से कहा कि वह कुछ दिनों के लिये बाहर हो आये। फिर उसने उससे पूछा “आप वहाँ से क्या क्या अच्छी चीज़ें खरीदेंगे?” “कहाँ कहाँ जायेंगे?”

सौदागर ने जवाब दिया — “हाँ मैं जाऊँगा और अच्छी चीज़ें भी खरीदूँगा। यह मेरी बेवकूफी थी कि यह मैंने पहले नहीं किया।” और कुछ दिन में ही वह कुछ लोगों के साथ अपनी यात्रा पर रवाना हो गया।

तब उस सौदागर की पत्नी ने बुढ़िया से कहा — “जाओ और जा कर उस आदमी से कह दो जो मुझसे मिलना चाहता है कि वह मुझसे कल सुबह बारह बजे आ कर मिल ले।”

बुढ़िया वहाँ से चली गयी और जा कर उस आदमी को सौदागर की पत्नी का सन्देश दिया। वह आदमी भी यह सुन कर बहुत खुश हो गया।

उसने बुढ़िया से कहा — “उनको मेरा आदर देना और कहना कि वह अगर मेरे लिये अच्छा खाना बनाने का इरादा रखती हों तो मेरे लिये एक सुन्दर सी चिड़िया पका दें और उसको मेरे लिये अलग से रख दें।

उनको यह भी कहना कि मेरा दिल उस सुन्दर चिड़िया पर आ गया है जो उनके पास है और अगर वह मेरे लिये उन्होंने पका कर अलग नहीं रखी तो मैं बहुत नाउम्मीद हो जाऊँगा।”

अगली सुबह बारह बजे से पहले ही वह चिड़िया और दूसरे अच्छे खाने तैयार रखे थे और सौदागर की पत्नी तो बड़ी उम्मीदें लगाये बैठी थी कि यह अजनबी किस तरह का आदमी होगा और वह उससे क्यों मिलना चाह रहा था।

इसी समय सैयद ओर सईद दोनों स्कूल से घर आये और जैसे कि रोज वे भूखे होते थे उस दिन भी थे सो रोज की तरह से ही वे खाने के लिये अपनी माँ की तरफ दौड़े।

उसने उनसे कहा कि खाना तैयार था। वे खाने के कमरे में जायें और जो उनको अच्छा लगे वह खाना खा लें। सिवाय उस सुन्दर चिड़िया के और कुछ और चीज़ों के जो उसने खास करके अपने खास मेहमान के लिये बनायी थीं।

वे तुरन्त ही वहाँ चले गये और सारी प्लेटों की तरफ देखा। और जैसे कि बच्चे करते हैं वे वे सारे खाने भी चखना चाहते थे जिनको खाने के लिये उनको मना किया गया था। सो उन्होंने कई प्लेटों में से खाना ले लिया। कुछ खाना उनको बहुत अच्छा लगा तो उन्होंने उन प्लेटों का सारा खाना खत्म कर दिया।

जिस प्लेट में वह कीमती चिड़िया बनी रखी थी वह भी उन खत्म हुई प्लेटों में से एक प्लेट थी। सैयद ने उसका सिर खा लिया था और सईद ने उसकी छाती। जब उन्होंने खाना खा लिया तो उन्होंने सोचा कि उनकी माँ उन पर नाराज होगी और उन्हें पीटेगी सो वे वहाँ से भाग गये।

आखिर मेहमान आये। कुछ देर के बाद सौदागर की पत्नी उस आदमी को खाने के कमरे में ले गयी जहाँ सारा खाना लगा हुआ था।

उसको एक कुरसी पर बिठाते हुए उसने उसके आगे कुछ खाना परोसा तो वह आदमी बोला — “मुझे बहुत ज़्यादा भूख नहीं है। यह तो आपकी बहुत मेहरबानी है कि आपने इतना सब बनाया पर अगर आप मुझे वह चिड़िया दे सकें जो मैंने आपसे अपने बनाने के लिये कहा था तो मैं उसी को खा कर सन्तुष्ट हो जाऊँगा। वह तो मैं खा ही सकता हूँ।”

सो सौदागर की पत्नी ने वह प्लेट जिसमें चिड़िया पकी रखी थी उसमें की बची हुई चिड़िया उसके सामने रख दी।

वह बोला — “अरे यह आपने क्या किया इसमें तो आधी चिड़िया भी नहीं है। इसका सिर और इसकी छाती किसने खायी।”

वह परेशान होते हुए बोली — “पता नहीं।”

आदमी बोला — “जरूर ही किसी ने खाना छुआ है।” और गुस्से में भर कर घर छोड़ कर चला गया। उसके इस तरह अचानक घर छोड़ कर चले जाने से सौदागर की पत्नी तो बहुत दुखी हुई। क्या यही वह आदमी था जिससे मिलने के लिये उसने इतने दिन इन्तजार किया था।

उधर सैयद और सईद घर से निकल कर चलते रहे चलते रहे, दूर और तेज़ जब तक कि वे एक बड़े से मैदान में नहीं आ गये। वहाँ उन्होंने रात को आराम करने का विचार किया हालाँकि वहाँ डरने की हर चीज़ मौजूद थी।

वहाँ बहुत सारे जंगली जानवर रहते थे। पर ये दोनों नौजवान तो किसी से डर नहीं रहे थे क्योंकि उस चिड़िया का सिर और छाती खा कर वे बहुत हिम्मत वाले हो गये थे।

वे उस चिड़िया के गुणों से तो अभी भी बिल्कुल अनजान थे पर फिर भी वह कोई भी साहसिक काम करने का साहस रखते थे ऐसा उन्होंने महसूस किया।

उस रात वे सुरक्षित रूप से बड़ी गहरी नींद सोये। सुबह को जब वे उठे तो बड़े भाई सैयद ने वहाँ दस हजार मुहरें देखीं जहाँ वह सोया था। यह देख कर उनको बहुत खुशी हुई। उन्होंने वे सोने की मुहरें उठायीं और अपनी यात्रा फिर से शुरू की।

उस मैदान के दूसरे किनारे पर पहुँच कर वे एक ऐसी जगह पहुँच गये जहाँ दो सड़कें मिलती थीं। उनमें से एक सड़क की तरफ एक पत्थर रखा था जिस पर लिखा था “इस तरफ मत जाना नहीं तो पछताओगे।”

सैयद उन दोनों में से ज़्यादा हिम्मत वाला था क्योंकि उसने चिड़िया का सिर खाया था सो उसकी इच्छा थी कि वह वह खतरे वाला रास्ता ले। उसने सईद से कहा कि वह उसके साथ चले पर सईद नहीं माना।

वह बोला — “नहीं। मैं मौत से इतनी जल्दी मिलने वाला नहीं हूँ। मैं यह रास्ता नहीं लूँगा।”

पर सैयद ने तो उधर जाने का इरादा बना रखा था सो दोनों भाई वहाँ से अलग अलग रास्ते चल दिये। सैयद खतरे वाली सड़क से गया और सईद साधारण सड़क से गया।

सईद की किस्मत

छोटा भाई सईद उस साधारण सड़क पर चलते चलते एक शहर में आ पहुँचा जो समुद्र के किनारे था। वहाँ उसने एक बहुत बड़े सौदागर और जहाज़ के मालिक के पास नौकरी कर ली। अभी सईद को उस सौदागर के यहाँ नौकरी किये हुए बहुत दिन नहीं हुए थे कि सौदागर ने उससे पूछा कि क्या वह समुद्र देखना पसन्द करेगा। सईद बोला — “हाँ हाँ क्यों नहीं।” क्योंकि वह बाहर घूमने और नयी नयी जगह देखने का बहुत शौकीन था। सो वह सौदागर के साथ चल दिया।

कुछ दिन तक तो सब कुछ बहुत शान्त रहा सब कुछ बहुत शानदार था। उस यात्रा में सौदागर ने पैसा भी बहुत कमाया। एक सुबह बहुत ही बुरी हवा चल पड़ी और इतनी तूफानी हो गयी कि जहाज़ पानी में इधर उधर उछलने लगा और आखिरकार टूट गया। जितने भी लोग उस जहाज़ पर थे सब डूब गये सिवाय सईद के। सईद एक लकड़ी के तख्ते के सहारे तैरता तैरता एक अकेले टापू के किनारे जा कर लग गया।

बेहोश और नाउम्मीद सा वह वहीं किनारे पर जा कर लेट गया और बोला — “उफ़ मैं पैदा ही क्यों हुआ? मेरी माँ ने जो खाना खाने से मुझे मना किया था वह मैंने क्यों खाया? फिर मैं घर से क्यों भागा? मैंने अपने भाई का साथ भी क्यों छोड़ा?

वह भी ज़्यादा अच्छा होता अगर मैं इस बेकार की जगह में धीरे धीरे मरने की बजाय सौदागर के साथ ही मर जाता।” तभी सब रोगों की एक दवा नींद उसके ऊपर छा गयी और वह सो गया। रात भी हो गयी थी।

वह सुबह तक आराम से सोता रहा। जब वह सुबह नींद से जागा तो उसने अपने चारों तरफ देखा कि वह किस तरह की जगह थी। तभी उसको एक जहाज़ पास से गुजरता हुआ दिखायी दे गया।

वह वहीं से चिल्लाया और उसने अपना हाथ भी हिलाया ताकि वह उन जहाज़ वालों को वहाँ अपनी उपस्थिति बता सके। किस्मत से उन्होंने उसको देख भी लिया। जहाज़ का कैप्टेन जहाज़ को उस टापू के पास ले आया और उसको अपने जहाज़ में बिठा कर अपने साथ ले चला।

जहाज़ को जहाँ जाना था वह वहाँ सुरक्षित रूप से पहुँच गया। वहाँ जा कर सईद ने जहाज़ के कैप्टेन और मल्लाहों को धन्यवाद के साथ विदा कहा और वहाँ से चला गया।

कुछ समय तक तो वह शहर में ही इधर उधर घूमता रहा और अपने देश शहर पिता और भाई के बारे मे पूछताछ करता रहा पर किसी से उनके बारे में कोई पता नहीं चला।तो उसने सोचा कि अब इस शहर में रहने से कोई फायदा नहीं सो वह बराबर के देश चल दिया जिसके बारे में उसने कई मजेदार बातें सुन रखी थीं। कुछ दिनों में ही वह वहाँ पहुँच गया और उसे वाकई मजेदार पाया। उस देश की राजधानी इतनी ऊँची चहारदीवारी से घिरी हुई थी कि उस पर चढ़ना मुश्किल था। उसमें केवल एक ही दरवाजा था जिसको हमेशा बन्द रखा जाता था। इस तरह से उसकी सुरक्षा का पूरा इन्तजाम था। ऐसा क्यों था यह हम तुम्हें अभी बतायेंगे।

इस शहर का यह रिवाज था कि इस राज्य के मन्त्री लोग हर दिन अपना एक राजा चुनते थे और हर रात उसको मार देते थे। इस बुरे रिवाज की वजह से लोग वहाँ से झु ंडों में शहर छोड़ छोड़ कर भागने लगे।

इसलिये मन्त्रियों ने एक बार आपस में बैठ कर इसके लिये प्लान बनाने की सोची ताकि शहर खाली न हो जाये। वे इस नतीजे पर पहुँचे कि सब तरफ यह नोटिस भेज दिया जाये कि जो लोग इस शहर से चले गये हैं वे सब लोग शहर वापस लौट आयें और वहाँ आ कर अपना राजा चुन लें जो उनके देश पर जीवन भर राज करेगा। सो जब सईद इस शहर के दरवाजे पर पहुँचा तो वहाँ बहुत सारे ताकतवर लोग खड़े हुए थे।

प्रधान मन्त्री ने आगे आते हुए कहा — “पुराने रिवाज को देखते हुए कि दिन में राजा चुन लिया जाये और रात को उसे मार दिया जाये यह आपके लिये ठीक नहीं है।

इसलिये अब हमने आप सबको यहाँ इसलिये बुलाया है ताकि आप लोग अपना राजा अपने आप चुन लें जो हमारे ऊपर अपनी ज़िन्दगी भर राज करेगा। अब यह मामला आप लोगों के हाथ में है सो बोलें अब हमारा राजा कौन होगा।”

लोग चिल्लाये — “दरवाजा बन्द कर दो। फिर जो भी सबसे पहले शहर में घुसेगा वही हमारा राजा होगा।”

लोगों ने ऐसा ही किया उन्होंने शहर का दरवाजा बन्द कर दिया। हर आदमी अपने साथियों से बाहर के किसी भी आदमी का नाम लेने से डरता था कि कहीं ऐसा न हो कि उनका अपना आदमी नाराज हो जाये और वह उसको मार दे।

सो जब सईद इस शहर में आया तो शहर का दरवाजा बन्द था। इसलिये यह पहला आदमी था जो दरवाजा बन्द होने के बाद शहर में घुसा था सो लोगों ने इसे ही अपना राजा चुन लिया। इसको बड़ी इज़्ज़त के साथ अन्दर ले जाया गया और राजा के सिंहासन पर बिठाया गया। लोग बहुत ज़ोर से चिल्लाये — “यही हमारा राजा है। हमारा राजा अमर रहे।”

सैयद की किस्मत

अब सैयद की कहानी सुनो। सैयद अपने रास्ते पर बढ़ चला। उसके ऊपर रास्ते पर लिखी हुई चेतावनी का कोई असर नहीं था वह निडर हो कर आगे चलता चला जा रहा था। वह जहाँ भी सोता था वहीं उसे अगली सुबह दस हजार मुहरें मिल जाती थीं। इस तरह से वह रोज अमीर पर अमीर होता जा रहा था। उसके पास अब इतना धन हो गया था कि उसको ले कर चलने के लिये उसे कई मजदूर रखने पड़े।

अभी तक उसको कहीं कुछ नहीं हुआ वह सुरक्षित था सो उसको लगने लगा कि सड़क के शुरू होने पर जो कुछ लिखा हुआ था वह सब ऐसे ही लोगों को डराने के लिये लिखा था। चलते चलते वह एक बहुत ही सुन्दर बागीचे के दरवाजे पर आ पहुँचा जिसमें बहुत तरह के बहुत सुन्दर और प्यारे फूल लगे हुए थे। वह उस बागीचे में चला गया तो उसने वहाँ एक घर देखा। उस घर की दीवारें चाँदी की बनी हुई थीं। उसके खम्भे सोने के बने हुए थे और वह पूरा का पूरा घर धूप में इतना चमक रहा था कि उसकी तरफ देखना भी मुश्किल था।

उसी बागीचे में उसको एक बुढ़िया मिल गयी तो उसने उससे पूछा — “यहाँ कौन रहता है? कौन रहता है यहाँ? कोई देवदूत? या फिर कोई पवित्र आदमी ?”

बुढ़िया बोली — “यहाँ एक बहुत सुन्दर लड़की रहती है और मैं उसकी दाई हूँ। तुम इस महल की चमक धमक पर आश्चयकर रहे होगे। मेरी मालकिन के पास इस तरह के कई मकान और बागीचे हैं जो इतने ही अच्छे हैं।”

“क्या तुम्हारी मालकिन घर में हैं? क्या मैं उनसे मिल सकता हूँ?”

“हाँ हाँ क्यों नहीं। उनसे तो कोई भी मिल सकता है बस दस हजार रुपये का सवाल है। जो उनको दस हजार रुपये दे सके वही उनसे मिल सकता है।”

सैयद बोला — “बिल्कुल ठीक। मैं उनको यह पैसे दे दूँगा तुम मुझे उनके पास ले चलो।”

सो वह बुढ़िया उसको अपनी मालकिन के पास ले गयी। उस प्यारी सी लड़की को देख कर तो सैयद इतना आश्चर्यचकित रह गया कि उसके मुँह से बोली ही नहीं निकली।

वह लड़की उसको उसका हाथ पकड़ कर अन्दर ले गयी और उसको बिठाया। फिर बोली — “दाई ने तुम्हें मेरी शर्त तो बता ही दी होगी। हर दिन जब भी तुम मुझसे मिलने आओगे तो तुम मुझे दस हजार रुपये दोगे। और जब तुम्हारा सारा पैसा खत्म हो जायेगा तब तुमको मरवा दिया जायेगा।”

सैयद बोला — “मंजूर है। मैं तुमको दस हजार रुपये नहीं बल्कि दस हजार मुहरें दूँगा।” क्योंकि वह तो उस समय उसकी सुन्दरता के नशे में पागल हो रहा था।

यह सुन कर वह लड़की बहुत खुश हुई। उसने उसको अपने मकान में काफी दिनों तक रखा। सैयद के पास रोज दस हजार मुहरें आती रहीं और वह उनको उस लड़की को देता रहा।

कुछ समय बाद उस लड़की को आश्चर्य हुआ कि यह किस तरह का आदमी है जो रोज इस तरह उसको इतना पैसा देता रहता है। उसने सोचा जरूर ही यह कोई जादूगर होगा सो उसने उसके ऊपर नजर रखनी शुरू की।

उसकी इस सम्पत्ति का राज़ बहुत जल्दी ही खुल गया। जब सैयद सो कर उठा तो उस लड़की ने उसके बिस्तर पर ये मुहरें देखीं तो उसने सोचा कि जरूर ही उसने सुनहरी चिड़िया का सिर खाया होगा। वह ऐसा इसलिये सोच सकी क्योंकि वह खुद भी एक जादूगरनी थी।

जिस पल उसको इस बात का पता चला तो उसने अपने साथी यानी उस लड़के को बरबाद करने की सोची।

एक दिन उसने सैयद से कहा — “मेरे पास अभी अभी एक नयी शराब आयी है आओ उसका स्वाद चखते हैं।” यह कह कर वह अन्दर चली गयी और शराब और प्याले उठा लायी और ला कर उसके सामने रख दिये।

सैयद ने वह शराब खूब जी भर कर पी। वह शराब लड़की ने भी पी पर बहुत थोड़ी सी। यह शराब बहुत तेज़ थी सो जल्दी ही सैयद का क्योंकि उसने यह शराब बहुत सारी पी थी जी घबराने लगा और इतना घबराया कि वह तो बिल्कुल पागल सा हो गया। साथ में उसको बहुत ज़ोर की प्यास भी लगने लगी।

वह चिल्लाया — “मुझे थोड़ा पानी दो मुझे प्यास लगी है।” लड़की ने उसको थोड़ा तरबूज का रस और कुछ अंगूर ला कर दिये। उसने उनको लड़की के हाथों से जल्दी से छीन लिया और जैसे ही उसने तरबूज का रस पिया और अंगूर खाये तो वह तो बीमार पड़ गया। उसने तुरन्त ही जो कुछ उसके पेट में था वह सब उगल दिया।

चिड़िया का सिर जो सैयद ने निगला था सैयद के पेट तक नहीं पहुँच पाया था और न ही वह दूसरे खानों की तरह से पच पाया था। सो वह भी बाहर निकल आया। लड़की को इसी की तो उम्मीद थी सो उसने उसको तुरन्त ही उठा लिया और अपने एक डिब्बे में छिपा कर रख लिया।

अगले दिन जब सैयद सो कर उठा तो उसको यह देख कर बहुत आश्चर्य हुआ कि रोज की तरह से आज उसके बिस्तर पर मुहरें नहीं थीं। उसकी समझ में ही नहीं आया कि ऐसा क्यों हुआ और वह अब क्या करे।

अब क्योंकि वह उस लड़की को दस हजार मुहरें नहीं दे सकता था सो लड़की ने उसको मारने की धमकी दी कि अगर उसने दस हजार मुहरों का शाम तक इन्तजाम न किया तो वह उसको मरवा देगी।

सारा दिन सैयद बहुत परेशान रहा। वह क्या करे। जब शाम हुई तो वह एक कमरे में बन्द हो कर बैठ गया और दरवाजे को ताला लगा दिया।

लड़की ने कुछ देर तक तो इन्तजार किया पर जब वह खुद नहीं आया तो उसने उसको बुलवाया। उसने कहलवा दिया कि उस शाम उसकी तबियत ठीक नहीं है सो उस दिन उसको माफ किया जाये। पर आखिर तो उसको लड़की के पास जाना ही पड़ा।

जब वह वहाँ पहुँचा तो उसने सैयद का बड़ी बेरहमी से स्वागत किया। सैयद बोला — “मेरे पास तुम्हें देने के लिये अब कुछ नहीं है। मुझे नहीं मालूम कि ऐसा मेरे साथ कैसे हुआ कि मेरे पास अब बिल्कुल भी पैसे नहीं है। मैं अपना दुख तुम्हें बता भी नहीं सकता। मैं तो अपने इस मामले पर खुद ही इतना ज़्यादा दुखी हूँ कि मैं तो मुश्किल से चल पा रहा हूँ।”

लड़की बोली — “मुझे खुद भी बहुत दुख है पर यह सब अब और आगे नहीं चल सकता। पर क्योंकि तुमने मुझे इतनी दरियादिली से पैसे दिये हैं इसलिये मैं तुम्हारी मौत का हुकुम हटा लेती हूँ और तुमको जाने देती हूँ।

अब तुम यहाँ से चले जाओ और फिर अपना चेहरा मुझे मत दिखाना जब तक कि तुम्हारे पास बहुत सारा पैसा न हो जाये।” सैयद ने उसको धन्यवाद दिया और वहाँ से चला गया।

बागीचे के दरवाजे से बहर जाते जाते वह बोला — “उफ़ यह तो बहुत बड़ा दुख है। काश मैंने अपने भाई की बात मान कर यह रास्ता न लिया होता। अब तो मेरे लिये वापस जाना भी बेकार है। अब यहाँ से मुझे सीधे जाना चाहिये और देखना चाहिये कि अब मेरी यह किस्मत मुझे कहाँ ले जाती है।”

ऐसा सोच कर वह आगे चल दिया। चलते चलते वह एक जंगल के एक मैदान से गुजरा। मैदान पार करने के बाद उसे तीन आदमी मिले जो अपने गुरू जो एक फ़कीर था की चार चीज़ों के बँटवारे पर बहुत ज़ोर ज़ोर से लड़ रहे थे।

उसने उनसे पूछा — “तुम लोग ऐसे क्यों लड़ रहे हो? क्या बात है।”

वे बोले — “हमारे गुरू जी की चार चीज़ें हमारे पास हैं। उनको हम अपने चारों में कैसे बाँटें। इसी बात पर झगड़ा हो रहा है।”

“अच्छा मुझे वे चीज़ें दिखाओ।” तीनों ने अपने अपने बोझे खोले और उनमें से एक भद्रपीठ एक थाल एक सुरमे का डिब्बा और एक फटा सा ओढ़ने का कपड़ा निकाला।

उन्हें देख कर सैयद को हँसी आ गयी वह बोला — “ये चीज़ें तो कोई ऐसी कीमती चीज़ें नहीं लगतीं जिनके ऊपर लड़ा जाये।”

वे बोले — “तुम इनकी कीमत नहीं जानते। हम तुम्हें बताते हैं। जो कोई भी इस भद्रपीठ पर बैठेगा यह उसको वहाँ ले जायेगा जहाँ वह जाना चाहेगा। वह जगह कितनी भी दूर क्यों न हो और किसी की भी पहुँच से कितनी भी बाहर क्यों न हो।

यह थाल अपने मालिक को किसी भी समय बहुत तरीके के स्वादिष्ट खाने देगा। जो कोई यह सुरमा आँख में लगायेगा वह दूसरे की आँखों से तो ओझल हो जायेगा पर वह सब कुछ देख पायेगा। इस पुराने कपड़े में चार जेबें हैं। इसकी एक जेब से आप कितने भी पैसे निकाल सकते हैं। इसकी दूसरी जेब चाँदी देती है। इसकी तीसरी जेब सोना देती है। इसकी चौथी जेब जवाहरात देती है।”

जब तीनों ने उन चारों चीज़ों को समझा दिया तो सैयद बोला — “यह तो बड़ी मजेदार बात है। ये तो वाकई बड़ी कीमती चीज़ें हैं। अब तुम लोग अपना झगड़ा खत्म करो। मैं तुम्हें बताता हूँ कि तुमको क्या करना चाहिये।

तुम लोगों को इस आखिरी चीज़ यानी कपड़े के बारे में ज़्यादा चिन्ता करने की जरूरत नहीं। उसको तो तुम मुझे दे दो और भद्रपीठ तुम ले लो सुरमा तुम ले लो और थाल तुम ले लो।”

वे सब बहुत ज़ोर से चिल्लाये — “नहीं कभी नहीं। यह हम कभी नहीं कर सकते। क्योंकि हमारे गुरू ने इसी शर्त पर ये चीज़ें हमको दी हैं कि हम इनको अपने से कभी अलग नहीं करेंगे। सो हम लोगों ने यह कसम खायी है कि हम इन चीज़ों को कभी अपने से अलग नहीं करेंगे। नहीं नहीं तुम हमको अकेला छोड़ दो। हमारी तो बस केवल यही एक उम्मीद है कि हममें से एक जल्दी ही मर जायेगा और तब हम लोगों को ये चीज़ें बाँटने में कोई परेशानी नहीं होगी। चार चीज़ें दो आदमियों में आसानी से बाँटी जा सकती हैं।”

सैयद बोला — “पर तुम लोग किसी के मरने का इन्तजार क्यों करते हो। तुम लोगों की शक्ल से लगता है कि तुम लोग तो अभी काफी साल जियोगे। मेरी सलाह तो यह है कि इन चीज़ों का तुरन्त ही बँटवारा कर लिया जाये। तुममें से एक दो चीज़ें ले ले और दूसरे दो लोग एक एक चीज़ ले लें।

अच्छा ठीक है। देखो क्या तुम लोग इस बात पर राजी होगे कि मैं ये तीन तीर इतनी दूर फेंकता हूँ जितनी दूर मैं फेंक सकता हूँ। एक तीर अपने सामने दूसरा तीर अपनी बाँयी तरफ और तीसरा तीर अपनी दाँयी तरफ।

जब मैं अपने सामने वाला तीर फेंकूँ तब तुम उसे लाने के लिये दौड़ जाना। जब मैं अपने बाँयी तरफ तीर फेंकूँ तब तुम उसे लाने के लिये दौड़ जाना और जब मैं अपने दाँयी तरफ वाला ती फेंकूँ तब तुम उस तीर को लाने के लिये दौड़ जाना। और जो भी सबसे पहले तीर लायेगा वह दो चीज़ें पायेगा।

“हम राजी हैं।”

इस तरह सैयद ने तीन तीर फेंके और तीनों उनके पीछे दौड़ गये। जब वे तीनों वहाँ से चले गये तो सैयद ने सुरमे की डिबिया थाल और कपड़ा उठाया भद्रपीठ पर बैठा और इच्छा की कि वह उसको वहाँ ले चले जहाँ तीनों आदमी उसके पास न पहुँच सकें और तुरन्त ही वहाँ से गायब हो गया।

जब वे तीनों आदमी तीर ले कर लौट कर आये तो अजनबी और अपनी कीमती चीज़ों को वहाँ न पा कर बहुत दुखी हुए। वे बहुत रोये और बहुत देर तक अपनी चीज़ों के लिये रोते रहे।

वे बोले — “हमारे गुरू जी हमसे नाराज थे क्योंकि हम लड़ रहे थे। वह इस अजनबी के रूप में आये और हमारा खजाना ले गये।”

भद्रपीठ सैयद को उस जगह से बहुत दूर ले गयी जहाँ वे तीन आदमी थे। वहाँ पहुँच कर सबसे पहले उसने थाल से माँग कर खाना खाया।

उस समय उसे उस सुन्दर लड़की की याद आयी वह उसको फिर से देखना चाहता था। सो उसने अपनी सब चीज़ें भद्रपीठ पर रखीं उसके ऊपर बैठा और तुरन्त ही सोने चाँदी के बने महल की छत पर उतर गया।

यहाँ आ कर सबसे पहले उसने अपना खजाना छिपाया फिर वहाँ से सीढ़ियाँ उतर कर महल के कम्पाउन्ड में आया। वहाँ उसको दाई मिल गयी। उसने उससे कहा कि वह उस लड़की को जा कर यह कहे कि वह आ गया है और उससे मिलना चाहता है।

जब उस सुन्दर लड़की ने उसको देखा तो उसने जान लिया कि लगता है कि उसको कहीं से पैसा मिल गया है इसलिये वह लौट कर उसके पास आया है। सो उसने उसका स्वागत किया और उसकी बहुत इज़्ज़त की। उसने उससे उसकी यात्राओं के बारे में पूछा जबसे वह वहाँ से गया था कि उसने कहाँ कहाँ क्या क्या किया। सैयद बोला — “मैं तुम्हारे लिये पैसे लाने के लिये अपने देश गया था क्योंकि मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकता।” हालाँकि सैयद झूठ बोला था क्योंकि वह लड़की को अपनी सम्पत्ति को पाने का राज़ नहीं बताना चाहता था।

हर रोज वह उस फटे कपड़े के पास जाता था और उससे जितना पैसा चाहता ले लेता था। करीब एक महीना इस तरह से चलता रहा कि एक दिन सैयद को लगा कि उसके ऊपर नजर रखी जा रही है।

एक बार उसको लगा कि उसके पीछे एक फुटबाल सीढ़ी पर चढ़ रही थी। एक और समय पर उसको लगा कि छत पर कोई था जो उसको देख रहा था। सो उसने छत पर सोने का निश्चय किया और लड़की को बता भी दिया। उसने लड़की से कहा — “प्रिये मैं आज बाहर छत पर सोना चाहता हूँ। तुम भी चलो न।”

वह राजी हो गयी और दोनों छत पर कई रात सोये जब तक सैयद का शक फिर से नहीं जाग गया। उसने मन में सोचा “कहीं ऐसा न हो कि मेरा यह कपड़ा और दूसरी चीज़ें मुझसे चुरा ली जायें। मैं क्या करूँ। मैं आज रात ही यह जगह छोड़ देता हूँ और कोशिश करता हूँ कि यह लड़की मेरे साथ चले।”

सो उस रात जब वे सोने के लिये छत पर गये तो उसने लड़की को भद्रपीठ दिखाया और उससे उस पर अपने साथ बैठ जाने के लिये कहा तो वह उस पर बैठ गयी। सैयद ने इच्छा की वह उसको इस समाज से कहीं दूर ले चले।

तुरन्त ही भद्रपीठ उनको एक ऐसे टापू पर ले गया जहाँ कोई नहीं रहता था। वहाँ पहुँच कर सैयद ने लड़की से कहा — “प्रिये अब हम लोग यहाँ साथ साथ रहेंगे।”

लड़की बोली — “तुम्हारी इच्छा ही अब मेरी इच्छा है। जब तक तुम मेरे साथ हो मुझे कोई चिन्ता नहीं है।” सैयद को लड़की की यह बात सुन कर बहुत खुशी हुई क्योंकि उसको लगा कि वह लड़की सच बोल रही थी।

धीरे धीरे वह उस लड़की के प्यार में इतना फँस गया कि उसने अपने सारे खजानों के बारे में उसको बता दिया। लड़की ने पूछा — “तुम इतना शानदार खाना रोज कहाँ से लाते हो?”

सैयद बोला — “अल्लाह देता है मुझे। मुझे बस यह थाल ले कर जाना होता है और अपनी इच्छा बतानी होती है बस इसमें वह खाना आ जाता है।

लड़की ने पूछा — “और इस सुनसान जगह में तुम इतना पैसा कहाँ से लाते हो?”

सैयद बोला — “इस फटे कपड़े से। मैं इसकी जेबों में हाथ डालता हूँ और पैसा सोना चाँदी जवाहरात जो कुछ मैं चाहूँ वह निकाल लेता हूँ।”

“और यह भद्रपीठ हमको कैसे उड़ा कर ले जाता है जैसे कि यह कोई चिड़िया हो?”

सैयद बोला — “यह तो मुझे पता नहीं कि यह कैसे उड़ता है। बस मुझे इतना मालूम है कि इस पर बैठ कर जहाँ की इच्छा करो यह वहीं ले जाता है।

मेरे पास एक और चीज़ है जो तुमने देखी नहीं है। वह है यह सुरमा। इसको आँख में लगाने से आदमी अदॄश्य हो जाता है जबकि वह आदमी सब कुछ देख सकता है।

लड़की बोली — “प्रिय मुझे कितनी खुशी है कि तुमने मुझे ये सब बातें बतायीं। अब हम कितने अमीर हैं और मैं भी कितनी खुशकिस्मत हूँ कि मुझे तुम मिले। तुमने मुझे पहले अपनी इस खुशकिस्मती के बारे में क्यों नहीं बताया। अब तो मेरी अपने घर जाने की बिल्कुल भी इच्छा नहीं है।”

बड़े मीठे शब्द थे। सीधे सादे सैयद के ऊपर ये शब्द अमॄत की तरह पड़े तो वह तो बहुत खुश हो गया। पर अफसोस यह सच नहीं था। ये शब्द कह कर उस लड़की का उद्देश्य था कि वह अपने ऊपर से उसका शक हटा सके।

उसने उससे कभी प्यार नहीं किया और न ही वह उसके साथ कभी रहना ही चाहती थी। उलटे वह तो उसकी सारी सम्पत्ति हड़प कर उसे मार देना चाहती थी। सो उसने उसकी उन चारों चीज़ों को अपने कब्जे में कर लेना चाहा। इस मौके के लिये उसे बहुत देर तक इन्तजार नहीं करना पड़ा।

एक सुबह जब वे लोग समुद्र के किनारे एक साथ टहल रहे थे उसने सैयद से कहा कि वह समुद्र में नहाना चाहती है। सो वह समुद्र में पहले जाये और उसकी गहरायी का अन्दाजा लगा कर आये। सो सैयद समुद्र में चला गया और तैरने लगा।

जब वह समुद्र में तैर रहा था तो लड़की ने थाल लिया सुरमे का डिब्बा लिया फटा कपड़ा उठाया और भद्रपीठ पर बैठी और इच्छा की कि वह उसको उसके शानदार घर ले चले।

बेचारे सैयद को इस सबसे कितना धोखा लगा होगा। वह तो नंगा ठंडा और भूखा ही रह गया था। अपनी किस्मत पर रोता हुआ वह उस टापू पर दौड़ता फिरा। जब शाम हुई तो उसने सोचना शुरू किया कि वह रात के लिये क्या करे।

अगर उसके पास कपड़े भी न हुए और खाना भी न हुआ तो क्या हुआ फिर भी वह कम से कम वहाँ की हवा से बचने के लिये अपने लिये एक झोंपड़ी बना सकता था। और हो सकता है कि कल उसको कोई जहाज़ आता जाता मिल जाये।

इस तरह से उसने अपने आपको तसल्ली दी और एक पेड़ से उसकी टहनियाँ तोड़नी शुरू कर दीं। जब वह पेड़ से टहनियाँ तोड़ रहा था तो उसका ध्यान तीन चिड़ियों पर गया जो तीन अलग अलग पेड़ों पर बैठी थीं। वे एक दूसरे को कुछ बता रही थीं। और वह समझ रहा था कि वे आपस में क्या बात कर रही थीं।

एक चिड़िया बोली — “मेरा वाला पेड़ तो बहुत गुणी पेड़ है। अगर कोई इसकी छाल छील कर उसका चूरा बना ले और फिर इसकी पत्तियों का रस मिला कर उसका एक लड्डू बना ले तो वह लड्डू सिर दर्द में बहुत फायदा करेगा। सिर दर्द वाले को बस उसको एक बार बहुत अच्छी तरह से सूँघना पड़ेगा और उसका सिर दर्द बिल्कुल ठीक हो जायेगा।”

दूसरी चिड़िया बोली — “यह तो बहुत अच्छा है। अब मेरी सुनो। मेरा पेड़ तो तुम्हारे पेड़ से भी बहुत गुणी है। अगर कोई आदमी इस पेड़ की छाल को छील कर उसका चूरा करके इसी पेड़ की पत्तियों के रस को मिला कर उसका लड्डू बना ले तो उससे किसी के ऊपर भी जादू किया जा सकता है। उस लड्डू को बस उसको सुँघाना होगा। जो उसे सूँघेगा वह गधा बन जायेगा।”

तीसरी चिड़िया बोली — “अरे वाह तुम्हारे पेड़ का तो जवाब नहीं। पर ये दोनों ही पेड़ मेरे पेड़ जैसे नहीं हैं जिस पर मैं बैठी हूँ। अगर कोई आदमी इस पेड़ की छाल के साथ भी ऐसा ही करे तो उसके सूँघते ही वह जादू पड़ा गधा या फिर कोई और गधा हो तो वह भी आदमी बन जायेगा।”

सैयद ने उन चिड़ियों की बातों का एक एक शब्द समझ लिया। वह उनकी ये बातें समझ सका क्योंकि उसने एक बार सुनहरी चिड़िया का सिर निगल लिया था। तो तुम सोच सकते हो कि वह इस अच्छी खबर से कितना खुश हुआ होगा।

उसने तुरन्त ही तीनों पेड़ों की छालों को पीस कर और उनमें उनकी पत्तियों का रस मिला कर लड्डू बना लिये जैसा कि चिड़ियों ने कहा था।

उसने उन तीनों लड्डुओं के ऊपर निशान लगा लिये कि किस लड्डू से क्या काम होता था ताकि वह कहीं भूल न जाये। फिर वह लेट गया और सो गया। पर सुबह जब वह उठा तो बहुत दुखी था।

“ओ अल्लाह मुझे बचाओ ओ अल्लाह मुझे बचाओ।” अल्लाह ने उसकी प्रार्थना सुनी।

एक बहुत बड़ी चिड़िया उस जगह पर उड़ती हुई आयी जहाँ वह सो रहा था। सो वह डर के मारे अपने को उससे बचाने के लिये वहाँ से भाग कर एक पेड़ के खोखले तने में घुस गया। चिड़िया ने भी उसको छोड़ा नहीं वह उसके चारों तरफ चक्कर काटती रही और सैयद की तरफ बड़े प्यार से देखती रही।

सैयद ने सोचा “आखिर यह चिड़िया मेरे साथ क्या करना चाहती है। क्या यह मुझे खाना चाहती है।”

वह ऐसा सोच ही रहा था कि वह चिड़िया उस खोखले पेड़ के सामने जमीन पर बैठ गयी और उसकी तरफ देखा। फिर वह बोली — “एक आदमी इस टापू पर आया है। वह बहुत दुख में है बहुत परेशान है। अगर उसने मेरी बात नहीं सुनी तो वह मर जायेगा। मैं उसके बारे में बहुत चिन्तित हूँ।

अगर वह मेरी भाषा समझ रहा है तो वह मेरी टाँग पकड़ ले। मैं उसको ले कर कहीं और जहाँ लोग रहते होंगे उड़ जाऊँगी।”

अब सैयद तो उस चिड़िया ने जो कुछ भी कहा उसका एक एक शब्द समझ रहा था सो यह दिखाने के लिये कि वह उसकी बात समझ रहा था उसने उसकी एक टाँग अपने दोनों हाथों से पकड़ ली। तुरन्त ही चिड़िया ने अपने पंख फैलाये और सैयद को ले कर वहाँ से उड़ चली।

वह मीलों उड़ी और फिर एक बहुत सुन्दर से शहर में सैयद को छोड़ कर वहाँ से उड़ गयी।

चिड़िया को देखने के लिये शहर के बहुत सारे लोग वहाँ इकट्ठे हो गये थे। पर चिड़िया तो उड़ गयी थी वहाँ तो अब केवल सैयद ही खड़ा था सो उन लोगों ने सैयद से ही बहुत सारे सवाल पूछने शुरू कर दिये।

“तुम यहाँ कैसे आये?” “तुम्हारा नाम क्या है?” “तुम कहाँ से आये हो तुम्हारा घर कहाँ है?”

सैयद ने उनके इन सब सवालों का ठीक ठीक जवाब दे दिया। उसके जवाबों ने वहाँ के लोगों के दिलों को इतना छू लिया कि वे उसके लिये कपड़े और खाना ले कर आ गये और उसको अपने घर रहने के लिये कहा जब तक उसका कोई और इन्तजाम न हो जाये। उसके वहाँ पहुँचने के कुछ दिनों बाद ऐसा हुआ कि वहाँ के राजा की बेटी के बहुत ज़ोर से सिर में दर्द हुआ जो किसी तरह से ठीक ही नहीं हो रहा था।

शहर के सारे डाक्टर बुलाये गये पर कोई भी उसके सिर दर्द का इलाज न कर सका। उसे कई दवाइयाँ खिलायी गयीं पर कोई दवा काम नहीं की। उसका वह भयानक सिर दर्द चलता रहा। अब राजा को अपनी बेटी की ज़िन्दगी की चिन्ता होने लगी सो उसने सारे राज्य में मुनादी पिटवा दी कि जो कोई राजकुमारी का सिर दर्द ठीक कर देगा वह उसे अपना आधा राज्य दे देगा और अपनी बेटी की शादी उससे कर देगा।

सैयद को यह सुन कर बहुत खुशी हुई। अब उसको अपने सामने इज़्ज़त शान और ताकत का रास्ता खुलता दिखायी दिया। वह तुरन्त ही महल की तरफ चल पड़ा।

महल के दरवाजे पर पहुँच कर उसने चौकीदार से कहा कि वह राजा को खबर दे कि दरवाजे पर एक आदमी खड़ा है जो महल में आने की इजाज़त चाहता है। वह कहता है कि वह राजकुमारी का सिर दर्द ठीक कर देगा।

राजा ने जब सैयद का यह सन्देश सुना तो चौकीदार से कहा कि उस आदमी को तुरन्त यहाँ ले कर आओ।

सैयद राजा के पास गया तो राजा ने सैयद से पूछा — “ओ लड़के क्या तुम्हारे पास मेरी बेटी के सिर के दर्द की दवा है? मेरे राज्य के कई डाक्टरों ने उसको कई दवाइयाँ दे कर देख लीं पर उसे किसी से भी फायदा नहीं हुआ। तुम्हारे पास उनकी दवाओं से अच्छी ऐसी कौन सी दवा है जो तुम यह दावा करते हो कि तुम उसका सिर दर्द ठीक कर दोगे?”

सैयद बोला — “योर मैजेस्टी मेरे पास बहुत अच्छी दवा है। आप राजकुमारी जी को बुलायें। अल्लाह ने चाहा तो पाँच मिनट के अन्दर अन्दर वह ठीक हो जायेगी।”

“अल्लाह तुम्हारी भाषा सफल करें।” कह कर राजा ने अपनी बेटी को बुलाया।

राजकुमारी बहुत ज़ोर ज़ोर से कराहती हुई वहाँ आयी। वह बहुत कमजोर और परेशान दिखायी दे रही थी। सैयद ने उसको उस पेड़ की चूरा की गयी छाल का लड्डू देते हुए कहा जिस पर पहली चिड़िया बैठी थी —“इसे ज़ोर से सूँघो।”

राजकुमारी ने उसको ज़ोर से सूँघा तो तुरन्त ही उसका सिर दर्द चला गया। राजा राजकुमारी और जितने भी लोग वहाँ मौजूद थे सभी यह जादू देख कर आश्चर्यचकित रह गये।

राजा ने सैयद से पूछा कि वह कौन था। उसके राज्य में कब आया था। और वहाँ वह आया ही क्यों था। सैयद ने उसको सब कुछ बता दिया। उसकी कहानी सुन कर राजा को उसमें बहुत रुचि हो गयी। यहाँ तक कि उसने अपने नौकरों को अपने महल में ही उसके लिये कमरे तैयार करने का हुकुम दिया।

समय आने पर उसने अपनी बेटी की शादी उससे कर दी और दहेज में आधा राज्य भी दे दिया। धीरे धीरे सैयद पूरे राज्य पर ही राज करने लगा क्योंकि राजा अब बूढ़ा हो चला था और अपनी इस ज़िन्दगी से छुटकारा पाना चाहता था।

अपनी इस इज़्ज़्त मिलने और अमीर बनने में सैयद उस सुन्दर लड़की को नहीं भूला था जिसने उसके साथ इतना बुरा व्यवहार किया था।

उससे उसकी बदला लेने की बड़ी इच्छा थी। उसकी वह इच्छा इतनी बढ़ी कि वह अपने ससुर के पास गया और उससे प्रार्थना की कि वह उसको जाने दे ताकि वह उन डाकुओं को सजा दे सके जिन्होंने रास्ते में उसकी सारी सम्पत्ति हड़प ली थी।

राजा पहले तो उसको यह इजाज़त देने से कुछ हिचकिचाया पर जब सैयद ने उससे बार बार प्रार्थना की तो उसने उसको इजाज़त दे दी।

सैयद ने अपने साथ बहुत सारे आदमी लिये बहुत सारा पैसा लिया और सीधा उस लड़की के घर चल दिया जिसने उसको धोखा दिया था।

उससे मिलने पर उसने उससे कहा — “प्रिये मैं तुम्हें कहाँ कहाँ नहीं ढूँढता रहा। तुम मुझे इस तरह बरबाद होने के लिये वहाँ क्यों छोड़ आयीं। अगर अल्लाह की मेहरबानी मेरे ऊपर नहीं होती तो मैं आज यहाँ नहीं होता।”

लड़की बोली — “यह तो मेरा सबसे बड़ा पाप था। मैं बेवकूफ थी मैं डर गयी थी और जो भी मैंने तुम्हारे साथ किया मैं तुमसे उसके लिये बहुत शरमिन्दा हूँ। मैं तुमसे प्रार्थना करती हूँ कि तुम मुझे माफ कर दो।”

ये शब्द उस लड़की ने काँपते हुए कहे क्योंकि अब उसे उससे डर लगने लगा था। उसने सोचा “मैं दो बार तो बच चुकी हूँ पर कौन जानता है कि अब यह मेरे साथ क्या करेगा।”

एक रात जब वह लड़की सो रही थी तो सैयद ने वह लड्डू निकाला जो गधा बना देता था और उसकी नाक के नीचे लगा दिया। धीरे धीरे उसका शरीर एक गधे के शरीर में बदलने लगा। जैसे ही उसका शरीर गधे के शरीर में बदला उसने रेंकना शुरू कर दिया।

सैयद को यह देख कर बहुत खुशी हुई। उसने अपना बदला उससे ले लिया था। उसने घर की सारी चाभियाँ ढूँढीं उसके सारे कमरे आलमारियाँ और बक्से खोले और अपना सामान ढूँढा। उसको अपना सब सामान भी मिल गया और चिड़िया का सिर भी। उनको उसने गट्ठ में बाँधा और अपने नौकरों को दे दिया और उनसे अगले दिन वहाँ से चलने के लिये तैयार रहने के लिये कहा। वह गधा भी उसने उन्हीं की देखभाल में रखवा दिया।

जब बूढ़ी दाई ने उसको अगले दिन जाते देखा तो पूछा — “तुम इतनी जल्दी क्यों जा रहे हो?”

वह बोला — “तुम्हारी मालकिन ने मेरा सारा सामान लूट लिया। अब मैं यहाँ रुक कर क्या करूँ।” कह कर वह वहाँ से भाग गया।

दाई बोली — “नहीं कभी नहीं। मेरी मालकिन ऐसा नहीं कर सकती। जरूर यह काम किसी दूसरे ने किया होगा। या फिर अगर मेरी मालकिन ने तुम्हारा यह पैसा लूटा है तो वह मजाक में लूटा होगा। और इसमें कोई शक नहीं है कि वह उसे तुम्हें जल्दी ही लौटा देगी।

तुम मत जाओ मैं तुमसे प्रार्थना करती हूँ। मेरी मालकिन जब आयेगी और उसे पता चलेगा कि तुम छोड़ कर चले गये हो तो वह बहुत नाराज होगी।”

सैयद बोला — “मैं अब कुछ नहीं कर सकता मैं जा रहा हूँ।” दोपहर तक सैयद चलता रहा और दोपहर को उसने कुछ बड़े पेड़ों के नीचे आराम किया जो एक सुन्दर नदी के किनारे लगे हुए थे।

उसने अपने पास खड़े एक नौकर से कहा कि वह उसको थोड़ा पानी ला कर दे। जब नौकर पानी लाने जा रहा था तो एक गाँव वाला चिल्लाया — “यह पानी तुम अपने मालिक को मत देना। यह बहुत ही तेज़ जहर है। तुम्हारे मालिक या कोई और भी इसका एक घूँट भी बरदाश्त नहीं कर पायेगा। यहाँ से कुछ दूर ऊपर की तरफ चले जाओ वहाँ तुम्हें पीने के लायक पानी मिल जायेगा।”

सो वह नौकर नदी के ऊपर की तरफ चल दिया। इधर सैयद ने देखा कि उसके नौकर को पानी लाने में देर हो रही है। इस देरी की वजह न जानते हुए सैयद उससे बहुत गुस्सा था और बहुत जल्दी में था।

सो उसने उससे पूछा — “तुमने इतनी देर कहाँ लगा दी?”

नौकर बोला — “मालिक जब मैं वहाँ से पानी ले रहा था तो एक गाँव वाले ने मुझसे वहाँ से पानी लेने मना किया। उसने कहा वहाँ का पानी जहरीला है। उसने यह भी कहा कि मैं नदी के ऊपर की तरफ जाऊँ और आपके पीने के लिये वहाँ से पानी ले कर आऊँ। मुझे इसी लिये देर हो गयी सरकार।”

सैयद बोला — “यह तो बड़ी अजीब सी बात है। गाँव के किसी आदमी को बुलाओ और इसकी वजह पता लगाओ।” गाँव के कई लोगों को बुलाया गया और उनसे वहाँ के पानी के जहरीले होने की वजह पूछी गयी पर कोई भी उसकी ठीक वजह न बता सका। सारे गाँव वाले बस इतना ही जानते थे कि उस नदी में एक खास जगह का पानी जहरीला था।

सो सैयद ने वहाँ उस जगह को खोदने का हुकुम दिया। उसने गाँव से कुछ मजदूर बुलवाये और उनको उस जगह को खोदने पर लगा दिया। वहाँ की खुदी हुई मिट्टी उसने गधे पर लदवा कर दूर गड़वा दी। इस तरह उस नदी का पानी साफ करवा दिया गया। लोग उसके इस काम से बहुत खुश हुए।

गधे ने पूछा — “तुमने मुझे इतना नीचा काम करने के लिये क्यों दिया। क्या तुम्हारे लिये यही काफी नहीं था कि तुमने मुझे जानवर में बदल दिया। यह और बोझा मेरे सिर पर क्यों।”

सैयद ने उसकी किसी बात का जवाब नहीं दिया। अगले दिन उसने फिर अपनी यात्रा शुरू की और सीधा अपने ससुर के राज्य में ही जा कर रुका। उसको देख कर शहर में बहुत खुशियाँ मनायी गयीं। उसने वहाँ बहुत अक्लमन्दी से राज्य किया और जल्दी ही वहाँ का बहुत लोकप्रिय राजा हो गया।

कुछ समय बाद जब वह बहुत लोकप्रिय हो गया और उसकी बहुत इज़्ज़त हो गयी जो एक सुन्दर और नीच लड़की को आकर्षित कर ले तो उसने उस गधे को फिर से लड़की में बदलने का निश्चय किया।

सो उसने उसको दूसरा लड्डू सूँघने के लिये दिया। दूसरा लड्डू सूँघते ही वह फिर से सुन्दर लड़की बन गयी। उसने पूछा — “प्रिय तुमने मेरे साथ ऐसा क्यों किया।”

सैयद बोला — “क्योंकि मैं तुम्हें पाठ पढ़ाना चाहता था। अब तुम मेरी ताकत के बारे में जानो और जानो कि मेरे खिलाफ जाना कितना खतरनाक है। साथ में मेरा प्यार भी देखो। मैंने तुम्हारे लिये तुम्हारे लायक एक घर बनवा रखा है। तुम वहाँ जा कर रहो और जो तुम्हें चाहियेगा वह तुम्हें वहाँ मिल जायेगा।”

वह लड़की राजी हो गयी और फिर हमेशा के लिये सैयद की वफादार रही।

सैयद और सईद मिले

अब सैयद ने अपने भाई को ढूँढने में अपनी सारी कोशिशें लगा दीं। उसने अपने कई दूत दुनियाँ भर में भेजे और उसको बहुत सारा इनाम देने का वायदा किया जो भी उसके भाई को ढूँढ कर लायेगा। खुशकिस्मती से इनमें से एक दूत उस देश में जा पहुँचा जहाँ सईद राज कर रहा था। उसने उसे इस तरह से ढूँढा —

एक रात वह एक बूढ़ी विधवा की झोंपड़ी में रुका। उसको सईद से सहायता मिलती थी। उसने उससे पूछा — “माँ तुम अपना गुजारा कैसे करती हो।”

बुढ़िया बोली — “हाँ तुम यह पूछ सकते हो। जैसा कि तुम देख रहे हो मैं तो कुछ कर नहीं सकती पर हमारा राजा बहुत ही न्यायपूर्ण और अच्छा है। वह रोज बूढ़ों गरीबों और बीमार लोगों को दान देता है। अगर वह यह दान न देता तो हममें से बहुत लोग मर जाते। अल्लाह का शुक्र है राजा का शुक्र है।”

“तुम्हारा राजा कौन है। क्या वह इसी देश का है। उसके माता पिता कहाँ रहते हैं।”

बुढ़िया बोली — “यह तो मुझे पता नहीं। लोगों का कहना है कि वह कहीं दूर देश से आया है। जब वह अपने भाई के साथ आ रहा था तो वह रास्ते में उससे बिछड़ गया। वह अपने भाई को बहुत प्यार करता था। उसने चारों तरफ अपने बहुत सारे दूत भेजे पर उसको अपने भाई और पिता के बारे में कोई खबर नहीं मिली।”

“क्या मैं तुम्हारे राजा से मिल सकता हूँ।”

“हाँ हाँ क्यों नहीं। राजा हर समय सबकी सुनता है। जो भी चाहे उसके पास कभी भी जा सकता है और उससे बात कर सकता है।”

सो अगले दिन सुबह जैसे ही उसने सुना कि राजा जाग गया वह महल गया और प्रार्थना की वह राजा से मिलना चाहता है। नौकर ने सोचा कि वह शायद किसी खास काम से आया होगा सो वह उसको राजा के खास कमरे में ले गया।

वहाँ जा कर दूत ने राजा को बहुत नीचे तक झुक कर आदाब किया और बोला — “आपके भाई सैयद ने मुझे आपके पास भेजा है। अल्लाह ने उनको बहुत दौलत दी है और उनको एक बड़े और ताकतवर राज्य का राजा बना दिया है। पर उनको दिन और रात कभी भी चैन नहीं है जब तक वह आपके बारे में न जान लें।”

जब सईद ने यह सुना तो वह तो भाई के प्रेम में इतना डूब गया कि उसके मुँह से तो बोली ही नहीं निकली।

उसने फिर कुछ देर तक दूत से बातें कीं फिर उसने अपने वजीर को बुलाया और उससे कहा कि वह उस दूत को बहुत बढ़िया कपड़े पहनाये और देखे कि जो उसे चाहिये था वह उसको दे दिया जाये।

उसने वजीर को यह भी बताया कि उसको उसके कितने दिनों से खोये हुए भाई की खबर मिल गयी है। सैयद फलाँ फलाँ राज्य का राजा है और वह उसको तुरन्त ही देखने जाना चाहता है। सो उसकी यात्रा के लिये पूरा इन्तजाम किया जाये।

वजीर इस यात्रा के लिये कुछ अनमना था क्योंकि उस देश को जाने के लिये बीच में और कई देश पड़ते थे जिनके राजा राजा सईद के दुश्मन थे। इसलिये उन्होंने राजा से वहाँ न जाने के लिये कहा और केवल अपना सन्देश भेजने के लिये ही कहा क्योंकि उनको उसका भाई उससे ज़्यादा ताकतवर लगा।

सईद यह सुन कर बहुत नाउम्मीद हुआ हालाँकि यह जान कर खुशी हुई कि उसके वजीर बहुत अक्लमन्द थे। सो उसने दूत को तुरन्त ही अपने भाई के पास लौट जाने के लिये कहा और उसके बारे में सब कुछ बताने के लिये कहा। फिर उसको वापस आ कर उसको सब कुछ बताने के लिये कहा।

एक दो दिन आराम करने के बाद दूत वहाँ से चला गया। वह अपने देश सुरक्षित पहुँच गया। वहाँ जा कर उसने अपने मालिक को बताया कि वह उनके भाई से मिल कर और उनको सुन कर आया है।

सैयद तो यह सुन कर बहुत खुश हो गया उसने दूत को बहुत सारा इनाम दिया।

फिर उसने तुरन्त ही आसपास के देशों को जो उसके और उसके भाई के राज्यों के बीच में पड़ते थे जीतने का प्लान बनाया। उसने अपने भाई को खबर भेजी कि वह अपनी तरफ के देश जीत ले और वह अपनी तरफ के देश जीत लेगा।

क्योंकि वे दोनों ही अमीर और ताकतवर थे इसलिये उन देशों को उन्हें जीतने में कोई परेशानी नहीं होनी चाहिये। और उन्होंने वे सब देश जीत लिये।

इन सब देशों को जीतने के बाद जब ये दोनों भाई मिले तो उनकी खुशी का अन्दाजा कौन लगा सकता है।

(सुषमा गुप्ता)

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