सयाने की सीख : बुंदेली लोक-कथा

Sayane Ki Seekh : Bundeli Lok-Katha

बहुत दिनों की बात है, किसी नगर में एक सेठ रहता था। नाम तो उसका गरीबचंद था लेकिन उस नगर में सबसे अधिक संपन्न वही था। उसका नाम इसलिए था कि उसमें घमंड बिल्कुल नहीं था। वह उदार भी था, लोगों की भलाई के कामों में खुले हाथ मदद करता लेकिन अपने खुद के और अपने घर के खर्चों की बारीकी से जाँच कर कम से कम में काम चलाने को कहता। इससे उसके परिवार के लोग और नौकर रुष्ट रहते पर बाकी लोग उससे बहुत प्रसन्न रहते। उसका एकमात्र पुत्र माँ के लाड़-प्यार में पला। वह फिजूलखर्च और आलसी था। व्यवहारकुशल न होने का कारण वह अपने पिता की चिंता का कारण था।

समय के साथ व्यापारी वृद्ध, कमजोर और बीमार रहने लगा। उसका अंतिम समय आया तो उसने पुत्र को शपथ दिलाई कि लल्ला जीवनभर पाँच सीखों का पालन करना। वे पाँच सीखें थीं। १. बिना परखे कुछ न मानना, २. पुरानों को भुलाकर नयों पर भरोसा मत करना, ३. अपना रहस्य किसी को नहीं बताना। यह सीख देने के बाद सेठ का देहांत हो गया। घर-परिवार की रीति के अनुसार दिन की शोक अवधि बीतने के बात पुत्र ने काम-काज संभाला। वह चुपचाप अपने आसपास के कारिंदों पर नजर रखता. किसी से कुछ न कहता। पिता की पहली सीख के मुताबिक वह उन्हें परखता रहता।

लल्ला ने देखा कि जो लोग उसके पिता के निकट आने से हिचकते थे, वे खुद को उसका हितैषी बताते हैं। अपनी अनदेखी से पुराने नौकरों को दु:ख हुआ, कुछ ने असंतोष व्यक्त किया, कुछ चुपचाप अपना काम करते रहे। लल्ला ने हितैषी बनने वालों और असंतोष व्यक्त करने वालों को बुलाकर कहा कि वे उसके खास हैं और उन्हें सबसे बड़ी जिम्मेदारियाँ दी जा रही हैं। यह कहकर लल्ला ने उन्हें ऐसे काम दिए जिनमें उन्हें महत्व तो मिले लेकिन जिनमें धन का आदान-प्रदान न हो। इसके बाद लल्ला ने उन्हें जाने दिया और कुछ दिन बाद उनमें से एक-एक को बुलाकर कहा कि वे उसे बताये जा रहे रहस्य को गोपनीय रखें, किसी से न कहें और उनके दोनों के अलावा कोई इस बात को नहीं जानता है। यह कहकर लल्ला ने उनको बाकी नौकरों के बारे में एक-एक कल्पित बातें अकेले में बताई।

अगले दिन लल्ला ने बाकी सेवकों को एक-एक कर बुलाया और उनको भी एक-एक बात बताई। कुछ दिनों बाद लल्ला के चारों ओर कानाफूसी होने लगी। लल्ला के कानों में वे बातें कहकर कोई न कोई उसे आगाह करता जो उसने पहले असन्तोषी और नए हितैषी नौकरों से रहस्य के रूप में कहीं थीं। कई दिन निकल जाने पर भी लल्ला को वे बातें कहीं सुनाई नहीं दी जो उसने संतोषी और सामान्य रहने वाले सेवकों को गुप्त रखने की हिदायत देते हुए बताई थीं। इससे लल्ला को पता चल गया कि कौन कितने पानी में है, किस पर कितना भरोसा करना है। उसने पिता की तीन सीखों को आजमा लिया था।

अपना रहस्य किसी को न बताने की सीख को परखने के लिए लल्ला ने अपनी पत्नी, भाई और करीबी दोस्त को चुना। उसने पत्नी से एकांत में कहा कि उसे व्यापार में बहुत घाटा लगा है पर साख बनी रहे इसलिए वह इस रहस्य को किसी से न कहे। भाई को अकेले में बताया कि दोस्त ने दगा कर दी है इससे बहुत घाटा हुआ है पर वह किसी से न कहे। फिर अपने दोस्त के पास जाकर कहा कि वह उसके साथ एक नया धंधा करना चाहता है, यह बात वह किसी से न कहे।

कुछ दिन बाद लल्ला के पास उसके ससुर ने संदेश भेजा कि कोई मदद चाहिए हो निस्संकोच ले सकता है। लल्ला ने कहा कि आवश्यकता होने पर अवश्य बताएगा कि वे उसके पिता की तरह हैं। पत्नी ने रात को सोते समय दोस्त से सतर्क रहने की सलाह दी। लल्ला ने सहमति व्यक्त कर दी। अगले दिन भाई ने उससे कहा कि धंधा बदलने के लिए यह समय ठीक नहीं है। लल्ला समझ गया कि उसके पिता की सभी सीखें सही है। उसने पुराने और ईमानदार सेवकों में महत्वपूर्ण कार्य विभाजन कर अपना व्यवसाय संभाला और बहुत उन्नति की। जब भी कोई उससे उसकी सफलता का रहस्य पूछता वह कहता सयानों की सीख।

(साभार : आचार्य संजीव वर्मा)

  • बुंदेली कहानियां और लोक कथाएँ
  • मुख्य पृष्ठ : भारत के विभिन्न प्रदेशों, भाषाओं और विदेशी लोक कथाएं
  • मुख्य पृष्ठ : संपूर्ण हिंदी कहानियां, नाटक, उपन्यास और अन्य गद्य कृतियां