सयाना मटोले : आदिवासी लोक-कथा

Sayana Matole : Adivasi Lok-Katha

इंद्रवती नदी के पास एक राज्य था जिसका राजा विलासी और अन्यायी था। प्रजा उस राजा से बहुत दुखी थी। उसी राज्य में नदी के तट पर एक छोटा-सा गाँव था। उस गाँव में एक किसान रहता था। किसान था बूढ़ा। उसके परिवार में कुल दो व्यक्ति थे, वह बूढ़ा किसान और उसकी बूढ़ी पत्नी। बूढ़ा-बुढ़िया की कोई संतान नहीं थी। वे दोनों इंद्रवती नदी के तट पर खेती करते और तरबूज़ उगाते। एक दिन बुढ़िया एक तरबूज़ तोड़कर लाई। उसे भूख लगी थी। उसने सोचा कि चलो, इसी तरबूज़ को खा लिया जाए। बुढ़िया ने तरबूज़ काटने के लिए जैसे ही चाकू उठाया वैसे ही तरबूज़ से एक आवाज़ आई।

‘दाई-दाई, चाकू सँभलकर चलाना वरना मैं कट जाऊँगा।’

बुढ़िया चाकू चलाते-चलाते रुक गई। उसने इधर देखा, उधर देखा। आस-पास कोई नहीं था। बुढ़िया को लगा कि ये उसका भ्रम था। उसने फिर चाकू सँभला।

‘दाई-दाई, चाकू सँभलकर चलाना वरना मैं कट जाऊँगा। फिर आवाज़ आई।

अब बुढ़िया डर गई। उसने तरबूज़ को एक ओर रखा और अपने पति की प्रतीक्षा करने लगी। थोड़ी देर बाद उसका पति आ गया।

‘देखो, मैं कितना सुंदर तरबूज़ लाई हूँ। हम दोनों मिलकर इसको खाएँगे।’ बुढ़िया ने कहा।

‘तो फिर काटो इसे।’ किसान ने कहा।

‘नहीं, तुम काटो। मेरा तो हाथ दुख रहा है।’ बुढ़िया ने असली बात छिपाते हुए कहा। उसे लगा कि उसका पति उसकी बात सुनकर उसकी खिल्ली उड़ाएगा।

‘ठीक है, मैं ही काटता हूँ।’ यह कहते हुए किसान ने चाकू उठाया और जैसे ही तरबूज़ के ऊपर चलाना चाहा वैसे ही तरबूज़ से एक आवाज़ आई।

‘दादा-दादा, चाकू सँभलकर चलाना वरना मैं कट जाऊँगा।’

यह सुनकर किसान चकित रह गया। किसान ने भी इसे अपना भ्रम समझकर तरबूज़ को काटने का दुबारा प्रयास किया तो फिर वही आवाज़ आई, ‘दादा-दादा, चाकू सँभलकर चलाना वरना मैं कट जाऊँगा।’

‘ये कैसा चमत्कार है? ये तरबूज़ तो बोलता है।’ किसान कह उठा। इस पर बुढ़िया ने बता दिया कि उसे भी ऐसी ही आवाज़ सुनाई पड़ी थी। किसान को लगा कि इस तरबूज़ के भीतर अवश्य कोई है। उसने तरबूज़ को धीरे-धीरे चारो ओर से छील डाला। फिर बहुत सावधानी से तरबूज़ के दो टुकड़े किए। जैसे ही तरबूज़ के दो टुकड़े हुए वैसे ही तरबूज़ के भीतर से एक गोल-मटोल लड़का लुढ़क कर बाहर आ गया।

‘अरे, तुम कौन हो? इस तरबूज़ के अंदर क्या कर रहे थे?’ किसान ने लड़के से पूछा।

‘दादा, मैं तरबूज़ के अंदर पैदा हुआ लेकिन आपने मुझे तरबूज़ से बाहर निकाला इसलिए अब मैं आपका बेटा हूँ। अब मैं आप लोगों के साथ रहूँगा और आप लोगों की सेवा करूँगा। अब आप लोग मेरा कोई नाम रख दीजिए।’ उस गोल-मटोल लड़के ने कहा।

‘ठीक है, तुम गोल तरबूज़े के भीतर से निकले हो और देखने में भी गोल-मटोल हो इसलिए हम तुम्हें मटोले कहकर पुकारा करेंगे।’ किसान ने कहा।

‘ठीक है दादा!’ मटोले ने कहा।

इसके बाद किसान उसकी पत्नी और मटोले तीनों साथ-साथ रहने लगे। मटोले अपने पिता के काम में हाथ बँटाने लगा। वह पिता के साथ खेत जाता, बैलों को चराने ले जाता और तरबूज़े की बेलों की देखभाल करता। मटोले के आ जाने से किसान और उसकी पत्नी का जीवन सुखमय हो गया। संतान की कमी भी पूरी हो गई।

एक दिन मटोले बैलों को चरा रहा था। उसी समय उधर दो सिपाही निकल आए। उन सिपाहियों ने मटोले के बैलों को देखा तो उनके मन में लालच आ गई। उन्हें लगा कि यदि वे इन सुंदर बैलों को अपने राजा को देंगे तो राजा ख़ुश होकर उन्हें ढेर सारा ईनाम देगा। यह सोचकर सिपाहियों ने मटोले को धक्का दिया और उससे उसके बैलों को छीन कर चल दिए। मटोले ने उन्हें रोकने का बहुत प्रयास किया लेकिन उन्होंने मटोले की एक न सुनी। मटोले दुखी होकर भागा-भागा अपने पिता के पास घर पहुँचा।

‘दादा, राजा के सिपाही हमारे बैल छीन कर ले गए।’ मटोले ने अपने पिता से कहा।

‘जाने दे बेटा, दुखी मत हो। राजा अत्याचारी है। उससे हमारे बैल वापस नहीं मिल सकेंगे। तू अब उन बैलों को भूल जा।’ किसान ने कहा।

‘नहीं दादा, मैं तो बैल वापस लाकर रहूँगा। मैं जा रहा हूँ राजा के पास।’ मटोले ने पाँव पटकते हुए कहा।’

‘कोई लाभ नहीं है, बेटा! राजा कहीं तुझे जेल में न डाल दे। तेरे पिता ठीक कहते हैं, तू बैलों को भूल जा।’ बुढ़िया ने भी मटोले को समझाया।

‘नहीं, मैं तो अपने बैल वापस लाकर रहूँगा।’ मटोले ने कहा और बैल लाने राजधानी की ओर चल पड़ा। उसके माता-पिता ने उसके लिए गुड़ और चना बाँध दिया ताकि भूख लगने पर वह खा सके।

मटोले जा रहा था कि रास्ते में उसे किसी के रोने-कराहने की आवाज़ सुनाई दी। उसने इधर-उधर देखा, कोई नहीं दिखा। फिर उसने ज़मीन की ओर देखा। एक नन्हीं चींटी रो रही थी, कराह रही थी।

‘चींटी-चींटी, क्या हुआ? क्यों रो रही हो?’ मटोले ने चींटी से पूछा।

‘मैं आज सुबह भोजन की तलाश में अकेली ही निकल पड़ी। भोजन मिला नहीं और अब भूख के मारे मेरे प्राण निकले जा रहे हैं। मेरे साथी दूसरी ओर गए हुए हैं इसलिए कोई मेरी सहायता करने नहीं आ सकता है। आज मैं भूख से मर जाऊँगी।’ चींटी ने रोते हुए कहा।

‘नहीं तुम भूख से नहीं मरोगी। लो ये गुड़ खा लो।’ मटोले ने पोटली में से गुड़ निकाल कर चींटी को दे दिया। गुड़ खाकर चींटी के जान में जान आई।

‘धन्यवाद मटोले भाई! तुमने मेरे प्राण बचाए हैं मगर ये तो बताओ कि तुम अकेले कहाँ जा रहे हो?’ चींटी ने पूछा।

‘मैं बूढ़े माँ-बाप का बेटा, चरा रहा था मैं दो बैल
आए राजा के दो सैनिक, छीन ले गए मेरे बैल
अब मैं चला पास राजा के, अपने बैल छुड़ाने को
अब प्यारे बैलों को फिर से वापस लाने को...।’ मटोले ने कहा।

‘ठीक है, मैं भी तुम्हारे साथ चलती हूँ।’ चींटी ने कहा और मटोले के साथ हो ली।

कुछ दूर जाने पर मटोले को एक सियार दिखाई दिया। वह शिकारी के जाल में फँस गया था और जाल से निकलने के लिए छटपटा रहा था। यह देखकर मटोले को सियार पर दया आई। उसने सियार को जाल से मुक्त कर दिया।

‘धन्यवाद मटोले भाई! तुमने मेरी जान बचाई अन्यथा आज शिकारी मुझे मार डालता। लेकिन ये तो बताओ कि तुम इस चींटी के साथ कहाँ जा रहे हो?’ सियार ने मटोले को धन्यवाद देते हुए पूछा।

‘मैं बूढ़े माँ-बाप का बेटा, चरा रहा था मैं दो बैल
आए राजा के दो सैनिक, छीन ले गए मेरे बैल
अब मैं चला पास राजा के, अपने बैल छुड़ाने को
अब प्यारे बैलों को फिर से वापस लाने को...।’ मटोले ने कहा।

‘ठीक है, मैं भी तुम लोगों के साथ चलता हूँ।’ सियार ने कहा और मटोले के साथ हो लिया।

मटोले, चींटी और सियार आपस में बातें करते जा रहे थे कि उन्हें एक आवाज़ सुनाई दी। कोई सहायता के लिए पुकार रहा था। मटोले ने देखा कि दावानल (जंगल की आग) एक गुफ़ा में फँस गई है। मटोले गुफ़ा के पास गया। उसने गुफ़ा के दरवाज़े पर कुछ सूखी लकड़ियाँ रख दीं। दावानल उन लकड़ियों को जलाती हुई गुफ़ा से बाहर निकल आई। गुफ़ा से बाहर आकर दावानल के जान में जान आई।

‘मटोले भाई, तुम बहुत दयालु हो। तुमने मेरी जान बचाई। किंतु ये तो बताओ कि तुम चींटी और सियार के साथ जा कहाँ रहे हो?’ दावानल ने पूछा।

‘मैं बूढ़े माँ-बाप का बेटा, चरा रहा था मैं दो बैल
आए राजा के दो सैनिक, छीन ले गए मेरे बैल
अब मैं चला पास राजा के, अपने बैल छुड़ाने को
अब प्यारे बैलों को फिर से वापस लाने को...।‘ मटोले ने कहा।

‘ठीक है, मैं भी तुम्हारे साथ चलती हूँ।’ दावानल ने कहा और मटोले के साथ हो ली।

मटोले, चींटी, सियार और दावानल अभी राजधानी के पास पहुँचे ही थे कि उन्हें किसी के सुबकने की आवाज़ सुनाई दी। मटोले ने देखा कि एक जलस्रोत सुबक रहा है।

‘तुम क्यों सुबक रहे हो? तुम्हें क्या कष्ट है? क्या मैं तुम्हारी सहायता कर सकता हूँ? मटोले ने जलस्रोत से पूछा।

‘देखो, राजा ने अपने आदमियों से मेरे ऊपर ये ढेर सारी मिट्टी डलवा दी है जिससे मैं सूख जाऊँ और फिर राजा यहाँ अपने लिए एक महल बनवा सके। जबकि मैं यहाँ आस-पास के सभी मनुष्यों और पशु-पक्षियों की प्यास बुझाता हूँ।’ जलस्रोत ने कहा।

जलस्रोत की बात सुनकर मटोले को जलस्रोत के साथ होने वाले अन्याय पर बहुत क्रोध आया। उसने जलस्रोत पर डाली गई सारी मिट्टी निकालकर अलग फेंक दी। इससे जलस्रोत बहुत ख़ुश हुआ।

‘मटोले भाई, तुमने मेरा जीवन बचाया इसके लिए तुम्हें बहुत-बहुत धन्यवाद! पर ये तो बताओ कि तुम ये चींटी, सियार और दावानल के साथ कहाँ जा रहे हो? जलस्रोत ने पूछा।

‘मैं बूढ़े माँ-बाप का बेटा, चरा रहा था मैं दो बैल
आए राजा के दो सैनिक, छीन ले गए मेरे बैल
अब मैं चला पास राजा के, अपने बैल छुड़ाने को
अब प्यारे बैलों को फिर से वापस लाने को...।’ मटोले ने कहा।

‘ठीक है, मैं भी तुम्हारे साथ चलता हूँ।’ जलस्रोत ने कहा और मटोले के साथ हो लिया।

मटोले अपने चारों साथियों सहित राजा के दरबार में पहुँचा।

‘कौन हो तुम? क्या चाहिए तुम्हें?’ राजा ने मटोले से पूछा।

‘मैं बूढ़े माँ-बाप का बेटा, चरा रहा था मैं दो बैल
आए आपके के दो-दो सैनिक, छीन ले गए मेरे बैल
मुझे आपसे न्याय चाहिए, और चाहिए अपने बैल

कृपया दिलवा दें मुझको, चला जाऊँगा लेकर बैल।’ मटोले ने राजा से विनती की।

राजा था अन्यायी। उसके सिपाहियों ने मटोले के दोनों बैल राजा को ही भेट किए थे। राजा को लगा कि मटोले ने अपने राजा से बैल माँगकर अपराध किया है।

‘इन पाँचों को ले जाओ और ले जाकर मुर्गियों के दड़बे में बंद कर दो। यदि कल सुबह तक इन्हें बुद्धि नहीं आई तो मैं कल इन्हें कठोर दंड दूँगा।’ राजा ने अपने सिपाहियों को आज्ञा दी।

सिपाहियों ने मटोले और उसके चारों साथियों को मुर्गियों के दड़बे में बंद कर दिया। जैसा राजा, वैसी उसकी मुर्गियाँ। जैसे ही पाँचों दड़बे में बंद किए गए वैसे ही मुर्गियों ने उन्हें चोंच मारनी शुरू कर दी। मटोले ने मुर्गियों को समझाने का प्रयास किया लेकिन राजा की लाड़ली मुर्गियाँ भला क्यों मानतीं?

‘मटोले भाई, ये मुर्गियाँ ऐसे मानने वाली नहीं हैं। अब तो मैं इन्हें खा ही जाऊँगा।’ सियार ने कहा और एक-एक करके सारी मुर्गियाँ चट कर गया। उसके बाद पाँचों ने आराम से दड़बे में रात व्यतीत की।

सुबह होते ही सिपाही पाँचों का हाल-चाल देखने आए। जैसे ही सिपाहियों की दृष्टि दड़बे में गई वे स्तब्ध रह गए। दड़बे में मुर्गियों के पंख बिछे हुए थे और पाँचों उन पंखों पर आराम से सो रहे थे। सिपाही भागे-भागे राजा के पास गए और राजा को पूरा हाल सुनाया। राजा अपनी प्रिय मुर्गियों के मारे जाने का समाचार सुनकर आगबबूला हो उठा। उसने पाँचों को तत्काल दरबार में बुलवाया।

‘इन पाँचों ने पहले हमसे बैल माँगने का अपराध किया और फिर हमारी मुर्गियाँ मारने का महाअपराध किया। इसलिए इन पाँचों को हाथियों से कुचलवा दिया जाए।’ राजा ने आज्ञा दी।

सिपाही पाँचों को हाथियों के पास ले गए। महावत ने हाथियों को तैयार किया। मटोले ने हाथियों को समझाने का प्रयास किया कि उनका कोई दोष नहीं है, वे उन पाँचों को मत मारें। लेकिन जैसा राजा, वैसे उसके हाथी। वे हाथी पाँचों को कुचलने को उतारू हो उठे।

‘ठहरो, मैं देखती हूँ इन हाथियों को तो।’ कहती हुई चींटी ने सीटी बजाई।

सीटी की आवाज़ सुनते ही कई चींटियाँ वहाँ आ गईं। देखते ही देखते वे चींटियाँ उन्मत्त हाथियों की सूँड़ों में घुस गईं। दूसरे ही पल एक-एक करके सभी हाथी ज़मीन पर गिर पड़े और उनके प्राण निकल गए। हाथियों को गिरकर मरते देखकर सिपाही घबरा गए। वे दौड़कर राजा के पास पहुँचे। राजा को सारा हाल सुनाया। राजा ने पाँचों को दरबार में बुलाया।

‘इन पाँचों ने पहले हमसे बैल माँगने का अपराध किया, फिर हमारी मुर्गियाँ मारने का महाअपराध किया और अब हमारे प्रिय हाथियों को मारने का महा से भी महाअपराध किया। इन्हें आग में जीवित जला दिया जाए।’ राजा ने आज्ञा दी।

सिपाहियों ने राजधानी के चौक में लकड़ियाँ इकट्ठी की और आग जला दी।

मटोले और उसके साथियों को उस आग में जीवित जलाने के लिए लाया गया। प्रजा ने यह दृश्य देखा तो त्राहि-त्राहि कर उठी। किंतु राजा के आदेश का विरोध करने का साहस किसी में नहीं था।

मटोले ने आग को समझाने का प्रयास किया लेकिन जैसा राजा, वैसी उसकी आग। आग उन पाँचों को जलाकर भस्म कर देने को आतुर हो उठी।

‘तुम लोग चिंता मत करो, मैं हूँ न!’ जैसे ही पाँचों को आग के पास ले जाया गया वैसे ही जलस्रोत ने कहा।

इसके बाद जलस्रोत ने पलक झपकते ही आग को बुझा दिया। सिपाहियों ने फिर आग जलाई। जलस्रोत ने फिर आग बुझा दी। अंतत: सिपाही थक गए और दौड़कर राजा के पास पहुँचे।

‘महाराज, उन पाँचों को कोई भी दंड देना कठिन है। इसलिए आपसे विनती है कि उन्हें जाने दें।’ सिपाहियों ने राजा से कहा।

‘तुम्हारा साहस कैसे हुआ ऐसी बात कहने का? अरे मूर्खो, यदि उन पाँचों को दंड नहीं दिया जा सकता है तो उनके बदले मटोले के बूढ़े माँ-बाप को पकड़ लाओ और उन्हें दंड दो।’ राजा ने क्रोधोन्मत्त होते हुए आज्ञा दी।

जैसे ही मटोले को राजा की आज्ञा का पता चला, वह चिंतित हो उठा।

‘मटोले भाई, मेरे रहते हुए तुम क्यों चिंता करते हो?’ दावानल ने कहा और उसने देखते-ही-देखते राजा को उसके महल सहित जलाकर ख़ाक कर दिया।

प्रजा ने देखा तो वह बहुत ख़ुश हुई। वह मटोले की जय-जयकार करने लगी। प्रजा ने मटोले को अपना राजा घोषित कर दिया। मटोले ने तो राजा बनने से मना किया लेकिन उसके साथियों ने उसे समझाया कि इस राज्य को तुम्हारे जैसे दयालु और न्यायप्रिय राजा की आवश्यकता है अत: मना मत करो। मटोले अपने साथियों की बात मान गया।

राजा बनने के बाद मटोले ने एक नया महल बनवाया और अपने माता-पिता को भी अपने साथ रहने के लिए बुला लिया। उसने जलस्रोत के आस-पास घाट बनवा दिया ताकि जलस्रोत सदा सुरक्षित रहे। मटोले ने चींटियों के लिए एक बाग़ बनवाया जहाँ वे स्वच्छंद विचरण कर सकें और उस बाग़ में उनके खाने-पीने की समुचित व्यवस्था की। मटोले ने सियार से वादा किया कि जब भी उसे सहायता की आवश्यकता हो, मटोले सदा उसकी सहायता करेगा। इसी प्रकार मटोले ने जंगल के चारों ओर तारों का घेरा बनवा दिया ताकि दावानल फिर किसी गुफ़ा में न फँस सके और जंगल में निश्चिंत होकर घूम सके।

मटोले के राजा बनने के बाद समूचे राज्य में ख़ुशहाली छा गई।

(साभार : भारत के आदिवासी क्षेत्रों की लोककथाएं, संपादक : शरद सिंह)

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