सौतेली माँ : पंजाबी लोक-कथा

Sauteli Maan : Punjabi Lok-Katha

एक राजा और उसकी दो रानियाँ थीं। दोनों ही अधिकतर आपस में ही लड़ती-झगड़ती रहती थीं। बड़ी रानी के एक पुत्र और एक पुत्री थे, जबकि छोटी रानी का एक ही पुत्र था। जब बड़ी रानी की मृत्यु हो गई तब छोटी रानी मनमानियाँ करने लगी। वह बड़ी रानी के पुत्र और पुत्री दोनों से अच्छा व्यवहार नहीं करती थी,क्योंकि वे दोनों उसे एक आँख नहीं भाते थे।

बड़ी रानी का पुत्र और पुत्री अपनी सौतेली माँ से बहुत तंग आ गए थे, क्योंकि छोटी रानी उन्हें भरपेट खाना तक भी नहीं दिया करती थी, परन्तु राजा अपनी पत्नी को अच्छा समझ कर उसकी प्रत्येक बात खुशी-खुशी मानता था।

एक दिन रानी अपने पति से रूठ गयी। जब राजा राजदरबार से वापस आया, तो वह अपनी रूठी हुई रानी को देखकर हैरान हो गया। राजा ने पूछा, "क्या बात है, तुम आज इस तरह से क्यों लेटी हुई हो ?" पहले तो रानी ने कहा, "नहीं, ऐसी तो कोई बात नहीं है। राजा ने दूसरी बार पूछा तो रानी ने फिर उससे कहा, "कुछ नहीं। राजा ने फिर तीसरी बार पूछा, “बता तो दो कि क्या बात है ?” रानी ने कहा, यदि तुम मेरी बात मानोगे, तो मैं अपने रूठने का कारण बता दूंगी। राजा ने उसकी यह शर्त मान ली। अब छोटी रानी ने कहा, 'बड़ी रानी के पुत्र को काट कर यदि उसे स्वाद से खाया जाए, तो हम सभी के लिए यह बहुत ही शुभ होगा, ऐसा मुझे किसी पण्डित ने बताया है। राजा ने रानी की यह बात सच मान कर एक दिन अपने पुत्र को काट दिया और उसके टुकड़े-टुकड़े करके कुछ गोश्त कुत्तों को डाल दिया और कुछ को मसाले में डाल कर राजा रानी दोनों ने ही एक साथ बैठ कर खा लिया। बड़ी रानी की पुत्री ने अपने भाई का गोश्त खाते देखकर रोना शुरू कर दिया। सौतेली माँ ने उसे दरवाजे की तरफ खड़ा कर दिया और उसे भी अपने भाई का वही गोश्त खाने के लिए कहा, परन्तु लड़की ने अपने भाई का गोश्त खाने से बिल्कुल ही इन्कार कर दिया। कारण यह था कि भाई और बहन का आपस में बहुत स्नेह था। वह यह सब देख न सकी। उसने फिर से रोना शुरू कर दिया और रोते-रोते उसने अपने भाई की हड्डियों को इकट्ठा करना शुरू कर दिया। उसने उन्हें एकत्र करके एक बर्तन में रख लिया और बर्तन को एक कोठरी में रख दिया। अब जब भी उसे अपने भाई की याद आती, तो वह उस कोठरी में जाकर भाई की उन हड्डियों को देख लेती थी। उसे ऐसा लगता मानो उस समय उसका भाई ही उस बर्तन में बैठा हुआ है। उसने उन हड्डियों को बहुत दिनों तक ऐसे ही रखे रखा। एक दिन उस बहन की किस्मत बदल गई। उसने देखा कि जिस बर्तन में हड्डियाँ रखी हुई थी, वहाँ अब हड्डियों के स्थान पर एक सुन्दर तोता बैठा हुआ है। अब जाकर उस बहन को पता चल गया कि वास्तव में यह तोता ही उसका अपना भाई है। जब उसने तोते को बाहर निकाला तो तोता सीधे आकाश में उड़ गया और बहन निराश होकर फिर से रोने लग गई।

तोता उड़ कर बाज़ीगरों के घर गया और उनके घर की मुँडेर पर बैठ कर यों कहने लगा :

पिता ने तो मुझे काटा, सौतेली माँ ने खा लिया,
सदके उस बहन के, जिसने मटके में डाल दिया।

यह सुनकर बाज़ीगर हैरान हो गया और कहने लगा, "तोते ! तुम यही गीत एक बार फिर से मुझे सुनाओ।" तोते ने कहा, "यदि तुम मुझे सुइयाँ दोगे तो, मैं सुनाऊँगा।" बाजीगर ने तोते को सुइयाँ दे दी, तो तोते ने फिर से कहना आरम्भ कर दिया :

पिता ने तो मुझे काटा, सौतेली माँ ने खा लिया,
सदके उस बहन के, जिसने मटके में डाल दिया।

यह कह कर तोता सुइयों को मुँह में डाल कर, टपरीवासियों के घर की मुँडेर पर जा बैठा। वह सुइयों को दीवार पर रख कर फिर से कहने लगा :

पिता ने तो मुझे काटा, सौतेली माँ ने खा लिया,
सदके उस बहन के, जिसने मटके में डाल दिया। टपरीवासी तोते का यह गीत सुनकर बहुत प्रसन्न हो उठे। उन्होंने तोते से कहा, "हे तोते ! तुम बहुत सुन्दर गाते हो। कृपा करके एक बार फिर से यह गीत हमें सुनाओ।” इस पर तोते ने कहा, “तुम मुझे काफी सारे ब्लेड दे दो, फिर मैं तुम्हें गीत सुनाऊँगाा।" ।

टपरीवासियों ने ऐसा ही किया। उन्होंने ढेर सारे ब्लेड तोते को दे दिए। तोते ने फिर उन्हें गीत सुनाया :

पिता ने तो मुझे काटा, सौतेली माँ ने खा लिया,
सदके उस बहन के, जिसने मटके में डाल दिया।

यह कह कर तोते ने सुइयों और ब्लेडों को अपने पंजों में जकड़ा और उड़ कर सुनार की छत पर जा बैठा और फिर से गाने लगा :

पिता ने तो मुझे काटा, सौतेली माँ ने खा लिया,
सदके उस बहन के, जिसने मटके में डाल दिया।

सुनार को भी यह गीत बहुत ही मधुर और अच्छा लगा। उसने तोते को कहा, "प्यारे गंगाराम ! एक बार फिर से हमें यही गीत सुना दो।" यह सुनकर तोता कहने लगा, "जब आप मुझे सोने के आभूषणों की एक गठरी दे दोगे, तब मैं यह गीत सुनाऊँगा। सुनार ने ऐसा ही किया, उसने तोते को आभूषणों की एक गठरी दे डाली। तोता फिर से गुनगुनाने लग गया :

पिता ने तो मुझे काटा, सौतेली माँ ने खा लिया,
सदके उस बहन के, जिसने मटके में डाल दिया।

यह कह कर वह वहाँ से सुइयाँ, ब्लेड और आभूषणों की गठरी लेकर उड़ गया और फिर राजमहल की मुँडेर पर जाकर बैठ गया। वह वहाँ वही गीत गाने लगा। उस तोते का वह गीत सुनकर सौतेली माँ बहुत प्रसन्न हो उठी और खुशी-खुशी तोते से कहने लगी "प्यारे तोते ! तुम तो बहुत अच्छा गाते हो। यही गीत हमें एक बार फिर से सुनाओ न।" यह सुनकर तोते ने कहा, "पहले तुम अपना मुँह ऊपर की ओर खोलो, फिर मैं गीत सुनाऊँगा।" रानी ने अपना मुँह आकाश की ओर करके जब खोला, तो तोते ने शीघ्रता से उसके मुँह में सारी सुइयाँ गिरा दी, जो सीधे उसके कण्ठ के भीतर से होती हुईं उसके पेट में चली गईं। तोता गाता हुआ वहाँ से उड़ा और उड़ते हुए राजदरबार की ओर चल पड़ा और वहाँ जाकर गाने लगा।

पिता ने तो मुझे काटा, सौतेली माँ ने खा लिया,
सदके उस बहन के, जिसने मटके में डाल दिया।

राजा को यह गीत बहुत पसन्द आया। उसने बड़े प्यार से तोते से कहा, "तुम फिर से एक बार यही गीत सुनाओ।” यह सुनकर तोते ने कहा, "पहले तुम अपना मुँह आसमान की ओर करके खोलो और आँखें बंद कर लो।" राजा ने ऐसा ही किया। तोते ने पहले से ही एकत्र किए सारे ब्लेड राजा के मुँह में गिरा दिए। इस प्रकार वहीं पर तड़पते-तड़पते राजा की मृत्यु हो गई। तोता वहाँ से उड़ा और आभूषणों की पोटली उठा कर वहाँ जाकर बैठ गया, जहाँ लड़कियाँ करोशिए से कढ़ाई-सिलाई का अपना काम कर रही थीं। उनमें से कुछ लड़कियाँ चरखा कात रही थीं। उन लड़कियों में उसकी बहन भी बैठी हुई थी। तोते ने गाना शुरू कर दिया :

पिता ने तो मुझे काटा, सौतेली माँ ने खा लिया,
सदके उस बहन के, जिसने मटके में डाल दिया।

यह सुनकर उसकी बहन ज़ोर-ज़ोर से रोने लग गई, परन्तु दूसरी लड़कियों को यह गीत अच्छा लगा। उन्होंने तोते को फिर से यही गीत गाने को कहा। तोते ने कहा, "पहले तुम मेरी बहन को चुप कराओ, फिर मैं तुम्हें यही गीत सुनाऊँगा।" लड़कियों ने तोते की बहन को बड़ी कठिनाई से चुप कराया। तोते ने फिर से अपना वही गीत गाना शुरू कर दिया :

पिता ने तो मुझे काटा, सौतेली माँ ने खा लिया,
सदके उस बहन के, जिसने मटके में डाल दिया।

यह कह कर उसने आभूषणों की पोटली अपनी बहन के पास गिरा दी और स्वयं उड़ गया। जब उसकी बहन घर आई, तब तोता वहाँ नहीं था। उसने अन्दर जाकर देखा तो उसका भाई खाना खा रहा था। पहले तो लड़की उसे अपने भाई का कोई भूत समझ कर सहम गई, परन्तु जब उसने पूछा तो उसके भाई ने उसे सारी घटना सुनाई और कहा कि मैं ही तेरा भाई हूँ और मैं ही वह तोता था, जिसे सौतेली माँ और पिता (राजा) ने मारा था। यह सुनकर उसकी बहन खुशी से झूम उठी और अपने भाई की गले लगा कर मिली।

इसके बाद दोनों बहन-भाई इकट्ठे रहने लगे। कुछ समय बाद जब राजा बन चुके भाई का सारा कार्य अच्छी तरह से चलने लगा तो उसने अपनी बहन का विवाह एक सुन्दर राजकुमार के साथ कर दिया। इसके बाद उस राजा ने स्वयं भी एक राजकुमारी से विवाह कर लिया और खुशी-खुशी अपना बाकी जीवन व्यतीत करने लगा।

साभार : डॉ. सुखविन्दर कौर बाठ

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