सौदा बेचने वाली (कहानी) : सआदत हसन मंटो
Sauda Bechne Wali (Hindi Story) : Saadat Hasan Manto
सुहैल और जमील दोनों बचपन के दोस्त थे...... उन की दोस्ती को लोग मिसाल के तौर पर पेश करते थे। दोनों स्कूल में इकट्ठे पढ़े। फिर इस के बाद सुहैल के बाप का तबादला होगया और वो रावलपिंडी चला गया। लेकिन उन की दोस्ती फिर भी क़ायम रही। कभी जमील रावलपिंडी चला जाता और कभी सुहैल लाहौर आ जाता।
दोनों की दोस्ती का अस्ल सबब ये था कि वो हुस्न पसंद थे। वो ख़ूबसूरत थे। बहुत ख़ूबसूरत लेकिन वो आम ख़ूबसूरत लड़कों की मानिंद बद-किर्दार नहीं थे। इन में कोई ऐब नहीं था।
दोनों ने बी ए पास किया। सुहैल ने रावलपिंडी के गार्डेन कॉलेज और जमील ने लाहौर के गर्वनमैंट कॉलेज से बड़े अच्छे नंबरों पर। इस ख़ुशी में उन्हों ने बहुत बड़ी दावत की। इस में कई लड़कीयां भी शरीक थीं।
जमील क़रीब क़रीब सब लड़कीयों को जानता था, मगर एक लड़की को जब उस ने देखा, जिस से वो क़तअन ना-आश्ना था, तो उसे ऐसा महसूस हुआ कि उस के सारे ख़ाब पूरे होगए हैं। उस ने उस लड़की के मुतअल्लिक़, जिस का नाम जमीला था, दरयाफ़्त किया तो मालूम हुआ कि वो सलमा की छोटी बहन है। सलमा के मुक़ाबले में जमीला बहुत हसीन थी। सलमा की शक्ल ओ सूरत सीधी सादी थी लेकिन जमीला का हर नक़्श तीखा और दिलकश था। जमील उस को देखते ही उस की मोहब्बत में गिरफ़्तार होगया।
उस ने फ़ौरन अपने दिल के जज़्बात से अपने दोस्त को आगाह कर दिया। सुहैल ने उस से कहा। “हटाओ यार...... तुम ने इस लड़की में क्या देखा है जो इस से बुरी तरह लट्टू होगए हो”? जमील को बुरा लगा: “तुम्हें हुस्न की परख ही नहीं......अपना अपना दिल है...... तुम्हें अगर जमीला में कोई बात नज़र नहीं आई तो इस का ये मतलब नहीं कि मुझे दिखाई न दी हो”।
सुहैल हंसा “तुम नाराज़ होरहे हो...... लेकिन मैं फिर भी यही कहूंगा कि तुम्हारी ये जमीला बर्फ़ की डली है, इस में हरारत नाम को भी नहीं...... औरत का दूसरा नाम हरारत है”।
“हरारत पैदा कर ली जाती है”।
“बर्फ़ में”?
“बर्फ़ भी तो हरारत ही से पैदा होती है”।
“तुम्हारी ये मंतिक़ अजीब ओ गरीब है...... अच्छा भई जो चाहते हो, सो करो...... मैं तो यही मश्वरा दूंगा कि इस का ख़याल अपने दिल से निकाल दो इस लिए कि वो तुम्हारे लायक़ नहीं है......तुम इस से कहीं ज़्यादा ख़ूबसूरत हो”।
दोनों में हल्की सी चख़ हुई लेकिन फ़ौरन सुलह होगई। जमील, सुहैल के मश्वरे के बग़ैर अपनी ज़िंदगी में कोई क़दम नहीं उठाता था। उस ने जब अपने दोस्त पर ये वाज़ेह कर दिया कि वो जमीला के बग़ैर ज़िंदा नहीं रह सकता तो सुहैल ने उसे इजाज़त दे दी कि जिस क़िस्म की चाहे, झुक मार सकता है।
सुहैल रावलपिंडी चला गया। जमील ने जो जमीला के इश्क़ में बुरी तरह मुबतला था, उस तक रसाई हासिल करने की कोशिश शुरू करदी, मगर मुसीबत ये थी कि उस की बड़ी बहन सलमा उस को मोहब्बत की नज़रों से देखती थी।
उस ने उन के घर आना जाना शुरू किया तो सलमा बहुत ख़ुश हुई। वो ये समझती थी कि जमील उस के जज़्बात से वाक़िफ़ हो चुका है इस लिए उस से मिलने आता है। चुनांचे उस ने ग़ैर मुब्हम अलफ़ाज़ में अपनी मोहब्बत का इज़हार शुरू कर दिया। जमील सख़्त परेशान था कि क्या करे।
जब वो उन के घर जाता तो सलमा अपनी छोटी बहन को किसी न किसी बहाने से अपने कमरे से बाहर निकाल देती और जमील दाँत पीस के रह जाता।
कई बार उस के जी में आई कि वो सलमा से साफ़ साफ़ कह दे कि वो किस ग़रज़ से आता है। इस को उस से कोई दिलचस्पी नहीं, वो उस की छोटी बहन से मोहब्बत करता है।
बेहद मुख़्तसर लमहात जो जमील को जमीला की चंद झलकियां देने के लिए नसीब होते थे, उस ने आँखों ही आँखों में उस से कई बातें करने की कोशिश की और ये बार-आवर साबित हुआ।
एक दिन उसे जमीला का रुक़्क़ा मिला, जिस की इबारत ये थी:
“मेरी बहन जिस ग़लत-फ़हमी में गिरफ़्तार हैं, उस को आप दूर क्यूँ नहीं करते...... मुझे मालूम है कि आप मुझ से मिलने आते हैं लेकिन बाजी की मौजूदगी में आप से कोई बात नहीं हो सकती...... अलबत्ता आप बाहर जहां भी चाहें, मैं आ सकती हूँ”।
जमील बहुत ख़ुश हुआ। लेकिन उस की समझ में नहीं आता था कौन सी जगह मुक़र्रर करे और फिर जमीला को उस की इत्तिला कैसे दे। उस ने कई मोहब्बत नामे लिखे और फाड़ दिए। इस लिए कि उन की तरसील बड़ी मुश्किल थी......आख़िर उस ने ये सोचा कि सलमा से मिलने जाए और मौक़ा मिले तो जमीला को इशारतन वो जगह बता दे, जहां वो उस से मिलना चाहता है।
क़रीब क़रीब एक महीने तक वो सलमा से मिलने जाता रहा मगर कोई मौक़ा न मिला। लेकिन एक दिन जब जमीला कमरे में मौजूद थी और सलमा उसे किसी बहाने से बाहर निकालने वाली थी, जमील ने बड़ी बे-रब्ती से बड़बड़ाते हुए कहा। “लौरंस गार्डन......पाँच बजे”।
जमीला ने ये सुना और चली गई। सलमा ने बड़ी हैरत से पूछा “ये आप ने क्या कहा था”?
“तुम ही से तो कहा था”।
“क्या कहा था”?
“लौरंस गार्डन...... पाँच बजे”
......मैं चाहता था कि तुम कल लौरंस गार्डन मेरे साथ चलो। मेरा जी चाहता है कि एक पिक्निक हो जाए।
सलमा ख़ुश हो गई और फ़ौरन रज़ामंद होगई कि वो जमील के साथ दूसरे रोज़ शाम को पाँच बजे लौरंस गार्डन में ज़रूर जाएगी। वो सैंडविचज़ बनाने में महारत रखती थी, चुनांचे उस ने बड़े प्यार से कहा “चिकन सैंडविचज़ का इंतिज़ाम मेरे ज़िम्मे रहा”।
उसी शाम को पाँच बजे लौरंस बाग़ में जमील और जमीला सैंडविच बने हुए थे। जमील ने उस पर अपनी वाल्हाना मोहब्बत का इज़हार किया तो जमीला ने कहा। “मैं इस से ग़ाफ़िल नहीं थी। पर क्या करूं, बीच में बाजी हाइल थीं”।
“तो अब क्या किया जाए”?
“ऐसी मुलाक़ातें ज़्यादा देर तक जारी नहीं रह सकेंगी”।
“ये तो दुरुस्त है......कल मुझे सिर्फ़ इस मुलाक़ात की पादाश में तुम्हारी बाजी के साथ यहां आना पड़ेगा”।
“इसी लिए तो मैं सोचती हूँ कि इस का क्या हल होसकता है”।
“तुम हौसला रखती हो”?
“क्यूँ नहीं...... आप क्या चाहते हैं मुझ से?...... मैं अभी आप के साथ जाने के लिए तय्यार हूँ......बताईए, कहाँ चलना है”?
“इतनी जल्दी न करो...... मुझे सोचने दो”।
“आप सोच लीजीए”।
“कल शाम को चार बजे तुम किसी न किसी बहाने से यहां चली आना, मैं तुम्हारा इंतिज़ार कर रहा हूँगा। इस के बाद हम रावलपिंडी रवाना हो जाऐंगे”।
“दतूफ़न भी हो तो मैं कल इस मुक़र्ररा वक़्त पर यहां पहुंच जाऊंगी”।
“अपने साथ ज़ेवर वग़ैरा मत लाना”।
“क्यूँ”?
“मैं तुम्हें ख़ुद ख़रीद के दे सकता हूँ”।
“मैं अपने ज़ेवर नहीं छोड़ सकती...... बाजी ने मुझे अपनी एक बाली भी आज तक पहन्ने के लिए नहीं दी। मैं अपने ज़ेवर उस के लिए छोड़ जाऊं"?
दूसरे दिन शाम को सलमा सैंडविचज़ तय्यार करने में मसरूफ़ थी कि जमीला ने अलमारी में से अपने ज़ेवर और अच्छे अच्छे कपड़े निकाले, उन्हें सूटकेस में बंद किया और बाहर निकल गई। किसी को कानों कान भी ख़बर न हुई। सलमा सैंडविचज़ तय्यार करती रही और जमील और जमीला दोनों रेल में सवार थे जो रावलपिंडी की तरफ़ तेज़ी से जा रही थी।
रावलपिंडी पहुंच कर जमील अपने दोस्त सुहैल के पास गया जो इत्तिफ़ाक़ से घर में अकेला था। उस के वालदैन ऐबट आबाद में मुंतक़िल होगए थे। सुहैल ने जब एक बुर्क़ापोश औरत जमील के साथ देखी तो बड़ा मुतहय्यर हुआ, मगर उस ने अपने दोस्त से कुछ न पूछा।
ज
मील ने उस से कहा “मेरे साथ जमीला है...... मैं इसे अग़वा करके तुम्हारे पास लाया हूँ”।
सुहैल ने पूछा। “अग़वा करने की क्या ज़रूरत थी”?
“बड़ा लंबा क़िस्सा है...... में फिर कभी सुना दूंगा......फिर जमील जमीला से मुख़ातब हुआ। बुर्क़ा उतार दो और इस घर को अपना घर समझो। सुहैल मेरा अज़ीज़ तरीन दोस्त है”।
जमीला ने बुर्क़ा उतार दिया और शर्मीली निगाहों से जिन में किसी और जज़बे की भी झलक थी, सुहैल की तरफ़ देखा। सुहैल के होंटों पर अजीब क़िस्म की मुस्कुराहट फैल गई। वो अपने दोस्त से मुख़ातब हुआ। “अब तुम्हारा इरादा क्या है”
जमील ने जवाब दिया। “शादी करने का...... लेकिन फ़ौरन नहीं। मैं आज ही वापस लाहौर जाना चाहता हूँ ताकि वहां के हालात मालूम हो सकें...... होसकता है बहुत गड़बड़ हो चुकी हो। मैं अगर वहां पहुंच गया तो मुझ पर किसी को शक नहीं होगा। दो तीन रोज़ वहां रहूँगा। इस दौरान में तुम हमारी शादी का इंतिज़ाम कर देना”।
सुहैल ने अज़-राह-ए-मज़ाक़ से कहा। “बड़े अक़लमंद होते जा रहे हो तुम”।
जमील, जमीला की तरफ़ देख कर मुस्कुराया। “ये तुम्हारी सोहबत ही का नतीजा है”।
“तुम आज ही चले जाओगे”?
जमील ने जवाब दिया। “अभी......इसी वक़्त। मुझे सिर्फ़ अपने इस सरमाया-ए-हयात को तुम्हारे सुपुर्द करना था। ये मेरी अमानत है”।
जमील अपनी जमीला को सुहैल के हवाले करके वापस लाहौर आगया। वहां काफ़ी गड़बड़ मची हुई थी। वो सलमा से मिलने गया। उस ने शिकायत की कि वो कहाँ ग़ायब होगया था। जमील ने उस से झूट बोला। “मुझे सख़्त ज़ुकाम होगया था। अफ़सोस है कि मैं तुम्हें इस की इत्तिला न दे सका, इस लिए कि हमारा टेलीफ़ोन ख़राब था और नौकर को अम्मी जान ने किसी वजह से बर-तरफ़ कर दिया था”।
सलमा जब मुतमइन होगई तो उस ने जमील को बताया कि उस की बहन कहीं ग़ायब होगई है। बहुत तलाश की है मगर नहीं मिली। अपने ज़ेवर कपड़े साथ ले गई है...... मालूम नहीं किस के साथ भाग गई है।
जमील ने बड़ी हमदर्दी का इज़हार किया। सलमा उस से बड़ी मुतअस्सिर हुई और उसे मज़ीद यक़ीन होगया कि जमील उसे मोहब्बत करता है। उस की आँखों में आँसू आगए। जमील ने महज़ रवादारी की ख़ातिर अपनी जेब से रूमाल निकाल कर उस की नमनाक आँखें पूँछीं और मस्नूई मोहब्बत का इज़हार किया। सलमा अपनी बहन की गुमशुदगी का सदमा कुछ देर के लिए भूल गई।
जब जमील को इतमीनान होगया कि उस पर किसी को भी शुबा नहीं तो वो टैक्सी में रावलपिंडी पहुंचा। बड़ा बेताब था। लाहौर में उस ने तीन दिन कांटों पर गुज़ारे थे। हर वक़्त उस की आँखों के सामने जमीला का हसीन चेहरा रक़्स करता रहता।
धड़कते हुए दिल के साथ वो जब अपने दोस्त के घर पहुंचा तो उस ने जमीला को आवाज़ दी। उस को यक़ीन था कि उस की आवाज़ सुनते ही वो उड़ती हुई आएगी और उस के सीने के साथ चिमट जाएगी......मगर उसे ना-उम्मीदी हुई।
उस का दोस्त उस की आवाज़ सुन कर आया। दोनों एक दूसरे के गले मिले। जमील ने थोड़े तवक्कुफ़ के बाद पूछा। “जमीला कहाँ है”?
सुहैल ने कोई जवाब न दिया। जमील बड़ा मुज़्तरिब था। उस ने फिर पूछा। “यार......जमीला को बुलाओ”।
सुहैल ने बड़े रिक़क़्त-आमेज़ लहजे में कहा। “वो तो उसी रोज़ चली गई थी”।
“क्या मतलब”?
“जब तुम यहां उसे छोड़कर गए तो वो दो तीन घंटों के लिए ग़ायब होगई......उसे ग़ालिबन तुम से मोहब्बत नहीं थी”।
जमील फिर लाहौर आया। मगर सलमा से उसे मालूम हुआ कि उस की बहन अभी तक ग़ायब है, बहुत ढ़ूंडा मगर नहीं मिली। चुनांचे जमील को फिर रावलपिंडी जाना पड़ा ताकि वो उस की तलाश वहां करे।
वो अपने दोस्त के घर न गया। उस ने सोचा कि होटल में ठहरना चाहिए। जहां से मतलूबा मालूमात हासिल होने की तवक़्क़ो हो सकती है। जब उस ने रावलपिंडी के एक होटल में कमरे किराए पर लिया तो उस ने देखा कि जमीला साथ वाले कमरे में सुहैल की आग़ोश में है।
वो उसी वक़्त अपने कमरे से निकल आया। लाहौर पहुंचा। जमीला के जे़वरात उस के पास थे, ये उस ने बीमा कराकर अपने दोस्त को भेज दिए और सिर्फ़ चंद अलफ़ाज़ एक काग़ज़ पर लिख कर साथ रख दिए। “मैं तुम्हारी कामयाबी पर मुबारकबाद पेश करता हूँ......जमीला को मेरा सलाम पहुंचा देना”।
दूसरे दिन वो सलमा से मिला। वो उस को जमीला से कहीं ज़्यादा ख़ूबसूरत दिखाई दी। वो अपनी बहन की गुमशुदगी के ग़म में रो रही थी। जमील ने उस की आँखें चूमीं और कहा “ये आँसू बेकार ज़ाए न करो...... इन्हें उन अश्ख़ास के लिए महफ़ूज़ रख्खो, जो इन के मुस्तहिक़ हैं”।
“लेकिन वो मेरी बहन है”।
“बहनें एक जैसी नहीं होतीं...... उसे भूल जाओ”।
जमील ने सलमा से शादी करली। दोनों बहुत ख़ुश थे। गर्मीयों में मरी गए तो वहां उन्हों ने जमीला को देखा जिस का हुस्न मांद पड़ गया था और निहायत वाहीयात क़िस्म का मेक-अप किए थे, पिंडी प्वाइंट पर यूं चल फिर रही थी जैसे उसे कोई सौदा बेचना है
(1954)