सौ शेर : एक शिकारी (कहानी) : एलफांस दोदे

Sau Sher : Ek Shikari (French Story) : Alphonse Daudet

तारतारैं तारास्कों गाँव का रहनेवाला था। उम्र पैंतालीस वर्ष, कद का नाटा, मोटा, फूले गाल और बड़ी-बड़ी रोबदार मूंछे। अपने को बहुत बहादुर, बड़ा शिकारी मानता था। उसके पास हथियारों के संदूक भरे हुए थे।

इसका कारण था कि तारतारैं स्पेनी वीर डान क्विग्जोट को बहुत पसंद करता था। वही डान क्विग्जोट, जो कभी अपने मरियल घोड़े पर बैठकर दुनिया जीतने निकला था और पवनचक्कियों को दैत्य समझकर उनसे जा भिड़ा था। हर जगह मुँह की खाकर, हारकर, झक मारकर गाँव लौटने पर मजबूर हुआ था। तारतारैं जानता था कि आखिर में डान क्विग्जोट का क्या हाल हुआ था, लेकिन वह फिर भी उसी की तरह घर छोड़कर निकलने की सोच रहा था। दुनिया जीतने के लिए नहीं, बल्कि वह शेरों का शिकार करने के लिए निकलना चाहता था।

इसमें सबसे बड़ी परेशानी यह थी कि उस गाँव के आसपास तो क्या, दूर-दूर तक किसी तरह का कोई शिकार नहीं मिलता था। आप ही बताइए, ऐसे में गाँव के शिकारी क्या करते? उन्होंने शिकार खेलने का एक नया तरीका ईजाद किया था–वे अपने हैट हवा में उछालते, फिर उनपर गोलियाँ चलाते और गाने गाते। तारतारैं को गीत की केवल एक कड़ी याद थी। वह उसी को गाता रहता था।

तारास्कों के निवासी तारतारैं की हँसी उड़ाते थे। लेकिन उसकी खुशमिजाजी के कारण उसको पसंद भी करते थे। उन्हें उम्मीद थी, एक-न-एक दिन तारतारैं अपने गाँव का नाम पूरी दुनिया में जरूर रोशन करेगा।

तारतारैं भी पूरी दुनिया को चौंका देना चाहता था, लेकिन कैसे? उसके हथियार जंग खा रहे थे, क्योंकि वहाँ उसके करने के लिए कुछ था ही नहीं। ऐसा लगता था, उस इलाके के सारे शेर और बाघ तारतारैं का नाम सुनते ही वहाँ से दुम दबाकर भाग गए थे। यह बात दूसरी थी कि वहाँ शेर-बाघ कभी थे ही नहीं। तारतारैं का कहना था कि वे इसलिए उस इलाके में नहीं थे, क्योंकि भाग गए थे। और भागे थे वीर शिकारी तारतारैं के डर से।

इसलिए तारतारैं ने दिल बहलाने का एक और उपाय सोचा। वह रहस्य और रोमांच की ढेर सारी पुस्तकें ले आया। अब वह उन्हें पढ़-पढ़कर मन बहलाया करता। उसके दिमाग में हर समय शिकार की रोमांचक कहानियाँ घूमती रहतीं।

एक दिन तारतारैं ने अपनी वरदी पहनी। तीर-तलवार, तमंचे और भाले लिये। फिर मूंछे उमेठता हुआ गाँव से चल दिया। लोगों ने पूछा, "कहाँ जा रहा है हमारा वीर?" तो उसका जवाब था, "मैं कुछ-न-कुछ करके रहूँगा।"

वह चल दिया। लोग हँसते रहे। तारतारैं पूर्व में गया, पश्चिम में घूमा, उत्तर-दक्षिण की खोजखबर ली; लेकिन कहीं कोई ऐसा न मिला जो उसका मुकाबला करता। न मनुष्यभक्षी जानवर मिले, न शत्रु के जासूस, न तस्कर मिले, न जहरीले साँप। बेचारा मुँह लटकाकर लौट आया।

लेकिन एक दिन उसकी इच्छा पूरी हुई। कोई पिंजरों में जंगली पशुओं को लेकर गाँव में आया। टिकट लगाकर पशुओं को दिखाया गया। तारतारैं और टोपों पर गोलियाँ चलाकर शिकार का मजा लेनेवाले लोग पिंजरों के सामने जा खड़े हुए। शेर के पिंजरे के सामने सबसे ज्यादा भीड़ थी। सब लोग आपस में बातें कर रहे थे। तभी पिंजरे में बंद शेर जोर से दहाड़ उठा। देखनेवाले डर गए। सिर्फ तारतारैं वहाँ खड़ा रह सका। उसके होंठों से निकला, "मैं हूँ तारतारैं! मैं करूँगा शेर का शिकार।"

तारास्कों में खबर फैल गई कि वीर तारतारैं को शेरों के शिकार के लिए अफ्रीका जाना पड़ेगा। गाँव में हर समय तारतारैं की चर्चा होती कि वह अफ्रीका जा रहा है। लेकिन धीरे-धीरे करके कई महीने बीत गए, पर तारतारैं शेरों का शिकार करने के लिए अफ्रीका नहीं गया। अब उसके प्रशंसकों ने उसकी आलोचना करनी शुरू कर दी कि वह सिर्फ बातों का वीर है।

आखिर कैप्टन ब्राविडा नामक एक व्यक्ति उसके पास आया। उसने कहा, "तुम्हें अफ्रीका अवश्य जाना चाहिए, नहीं तो लोग कुछ कर बैठेंगे।"

तारतारैं को जाने का फैसला करना ही पड़ा। पूरा गाँव अपने हीरो को बिदा देने आ पहुँचा। तारतारैं ने पंखोंवाली टोपी पहन रखी थी। आँखों पर चश्मा था। हालाँकि उसका रंग पीला पड़ा हुआ था, फिर भी वह अपने को सँभालने की कोशिश कर रहा था। उसकी स्थिति ऐसी थी जैसे कोई उसे जहर का प्याला पीने पर विवश कर रहा हो।

मार्साइ बंदरगाह पर अफ्रीका जानेवाला जहाज खड़ा था। बेहद भीड़ और शोर के बीच तारतारैं जहाज पर सवार हो गया। रास्ते में भयंकर तूफान आ गया। तारतारैं की हालत खस्ता थी। वहीं उसका परिचय राजकुमार ग्रेगोरी से हुआ। जहाज का कप्तान भी उसका दोस्त हो गया। जब जहाज अल्जीयर्स पहुँचा तो बहुत सारे कुली जहाज पर चढ़ आए। काली-काली शक्लें देखकर तारतारैं घबरा गया और "समुद्री डाकू! समुद्री डाकू!" चिल्लाते हुए तुरंत हथियार लेकर खड़ा हो गया।

जहाज पर तो एक तमाशा हो गया। लोग हँसने लगे। जहाज के कप्तान ने तारतारैं को समझाया, "ये समुद्री डाकू नहीं, कुली हैं। सामान उतारने आए हैं।"
अब जाकर तारतारैं का जी ठिकाने आया, लेकिन समुद्री डाकुओं से लड़ने की उसकी इच्छा मन में ही रह गई। आखिर वह एक होटल में जाकर ठहरा। दो दिन, दो रात वह लगातार सोता रहा। फिर वीरवेश में हथियार सजाकर शेर के शिकार को निकल पड़ा।

तारतारैं इधर-उधर देखता हुआ लगातार आगे बढ़ता गया कि कहीं शेर दिखाई दे। वह दिनभर चलता रहा। अँधेरा हुआ तो उसे लगा, वह रेगिस्तान में पहुँच चुका है। उसने मन में कहा, 'यहाँ शेर अवश्य होने चाहिए। लेकिन शेरों को कैसे पता चले कि उनका शिकारी आ गया है!' आखिर उसे एक तरकीब सूझ ही गई। वह छोटे बच्चे की आवाज में रोने लगा। रोने की आवाज सुनकर शेर जहाँ भी होगा, भागा हुआ चला आएगा।' उसने सोचा।

और सच, थोड़ी ही देर में उसके सामने एक छाया दिखाई दी। तारतारैं खुश हो गया। उसकी चाल सफल हुई थी। शेर सचमुच आ गया था। उसने बंदूक उठाई। अँधेरे में अनुमान से निशाना साधा और गोली दाग दी।

"वाह! मैंने शेर को मार दिया! शाबाश!" कहकर वह उछलने-कूदने लगा। फिर थककर वहीं सो गया।
सपने में वह खुद को शेरों का शिकार करते हुए देखता रहा। उसकी नींद खुली तो उसने रेत पर खून के निशान देखे। उसने सुन रखा था, घायल शेर बहुत खतरनाक होता है। वह खून के निशान देखता हुआ चल दिया।

खून के धब्बे एक झोंपड़ी तक गए थे। तारतारैं जाकर पूछने लगा, "क्या यहाँ कोई घायल शेर आया है?" इतना सुनते ही एक औरत झोंपड़ी से निकली। उससे तारतारैं ने पूछा, "क्या मेरा घायल शेर यहाँ आया है?"

बदले में वह औरत लड़ने लगी। हुआ यह था कि तारतारैं ने शेर के भ्रम में एक गधे को घायल कर दिया था। वह औरत कहने लगी, "मैं तुझे गिरफ्तार करवाऊँगी। तूने मेरे गधे को मार डाला।"

भीड़ इकट्ठी हो गई। तारतारैं ने देखा कि मामला बिगड़ रहा है। उसने औरत को हरजाना दिया। पर यह बात उसकी समझ में नहीं आ रही थी कि घायल शेर गधे में कैसे बदल गया!

दिन बीतते गए और तारतारैं शेर का शिकार नहीं कर सका। राजकुमार ग्रेगोरी ने उसे बताया कि यहाँ के शेर मारे जा चुके हैं। शायद आगे कहीं मिल जाएँ।
एक दिन तारतारैं को पता चला, गाँववाले उसके बारे में बड़े चिंतित हैं। वे जानना चाहते थे कि उनके हीरो ने कितने शेर मारे हैं।

यह जानकर तारतारैं लज्जित हो उठा। वह शेरों के शिकार का पक्का निश्चय करके निकल पड़ा। रास्ते में उसकी भेंट एक दुबले-पतले आदमी से हुई।
तारतारैं उससे डींग हाँकने लगा, "मैंने अब तक सौ शेर मारे हैं।" उस आदमी ने पूछा, "क्या तुमने बोंबोनिल शिकारी के बारे में सुना है।"
तारतारैं बोला, "बोंबोनिल तो मेरा बचपन का दोस्त है। मैंने ज्यादातर शिकार उसी के साथ किए हैं।"

यह सुनकर वह आदमी हँस पड़ा। असल में वही बोंबोनिल था। वह तारतारैं से बोला, "जाओ, अपने गाँव लौट जाओ, क्योंकि यहाँ शेर बचे ही नहीं हैं।" अपना परिचय देकर वह चला गया।

तारतारैं एक नए शहर में पहँचा। वहाँ उसे बाजार में एक आदमी के साथ शेर खडा दिखाई दिया। लेकिन शेर अंधा, लँगड़ा और बूढ़ा था। वह उसी शेर का शिकार करने की जिद करने लगा। इसपर शेर के मालिक से उसकी लड़ाई भी हो गई। आखिर राजकुमार ग्रेगोरी ने उसे बचाया।

अब तारतारैं ने बाजार से एक ऊँट खरीदा। जैसे ही वह ऊँट पर बैठा, ऊँट तेजी से भाग निकला। तारतारैं बहुत घबराया, पर ऊँट रुका नहीं। आसपास खड़े लोग हँसते रहे। उन्हें मजा आ रहा था। आखिर थककर ऊँट रुका और सुस्ताने के लिए बैठ गया, तब कहीं जाकर बहादुर तारतारैं उससे उतर सका।

तारतारैं बहुत दुखी था। उसके सारे पैसे खत्म हो चुके थे। बिना पैसे क्या करे, कहाँ जाए! आखिर वह एक जगह बैठकर रोने लगा। तभी सामने एक शेर दिखाई पड़ा। सारा दुःख भूलकर उसने निशाना साधकर गोली चला दी। शेर मर गया। लेकिन वह वही अंधा, लँगड़ा, बूढ़ापालतू शेर था। उस शेर का मालिक आ गया। खूब झगड़ा हुआ। आखिर उसने अपना सारा सामान बेचकर हरजाना दिया और शेर की खाल को अपने गाँव भेज दिया।

वह अब ऊँट को भी बेचना चाहता था, पर ऊँट को उससे न जाने कैसा स्नेह हो गया था। वह कहीं जाता ही न था। हर समय उसके पीछे-पीछे चलता था। तारतारैं छिपकर जाना चाहता था, पर ऊँट तो जैसे जादू जानता था। वह उसे ढूँढ़ ही लेता था। तारतारैं जहाज पर गया तो ऊँट वहाँ भी जा पहुंचा। तारतारैं ने जहाज के कप्तान से कहा, "यह ऊँट मेरा नहीं है।" कप्तान बोला, "मैं ऊँट को मार्साइ के चिड़ियाघर में भेज दूंगा।" लेकिन मार्साइ से जब तारतारैं अपने गाँव के लिए गाड़ी पर सवार हुआ तो क्या देखता है कि ऊँट, गाड़ी के पीछे भागा आ रहा है।

तारास्कों में पूरा गाँव रेलवे स्टेशन पर मौजूद था। शेर की खाल ने उन्हें विश्वास दिला दिया था कि तारतारैं सचमुच बहुत बड़ा शिकारी है। जब उसका स्वागत हो रहा था तो पीछे-पीछे ऊँट भी आ गया। सब कहने लगे, "यह कहाँ से आ गया?"

तारतारैं ने ऊँट की ओर देखा। फिर बोला, "मैंने सौ शेरों का शिकार किया था। यह भी मेरे साथ था।" सबने तालियाँ बजाकर ऊँट का भी स्वागत किया। तारतारैं अब एक महान् शिकारी बन चुका था और उसे इनाम में मिला था ऊँट।

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