सौ रुपये (कहानी) : कृष्ण चन्दर
Sau Rupye (Story in Hindi) : Krishen Chander
मैंने सौ रुपये का काम किया था ।मुझे सौ रुपये मिलने चाहिए इसलिए मैंने सेठ से बात की।
सेठ ने कहा:सोला तारीख़ को आना।
मैं सोला तारीख़ को गया।
सेठ वहां नहीं था।इस का बूढ्ढा मैनेजर जिसकी चंद या साफ़ थी और जिसका एक दाँत बाहर निकला हुआ था और जो अपने असीसटनट को किसी ग़लती पर डाँट रहा था,मुझसे बड़ी शफ़क़त से कहने लगा:तुमने सौ रुपये का काम किया है,तुमको बराबर सौ रुपये मिलेंगे ।मगर सेठ यहां पर नहीं है कल आना।
मैंने पूछा:अगर सेठ कल भी यहां नहीं हुआ तो ?
मैनेजर बोला:तो मैं इंतिज़ाम कर रखूँगा,तुम फ़िक्र ना करो तुम्हारा पैसा तुमको मिल जाएगा।
मैंने दफ़्तर से बाहर निकल कर दो पिए का पूना पता , सकीली मसाला और हरी पत्ती वाला पान खाया । दो पैसे में देसी काला काँडी और ठंडी वाला पान भी खा सकता था और मलट्ठी ,लाल मसाला वाला पान भी और बनारसी छोटा पत्ता , गीली डली और इलायची वाला पान या मोहिनी तंबाकू वाला ,मगर मैं ने सिर्फ पूना पता सकीली मसाला और हरी पत्ती वाला ही खाया क्यों कि मुझे भूक बहुत लग रही थी और मेरी जेब में सिर्फ डेढ़ दो आने थे और ये पान जो मैंने खाया काफ़ी मोटा है और देर तक मुँह में रहता है।फिर मैं एक आने का ट्राम का टिकट लिया और ट्राम में बैठ कर मैंने ज़ोर से सेठ की बिल्डिंग की तरफ़ थूक दिया।दूसरे दिन फिर सेठ वहां नहीं था । उस के मैनेजर ने कहा:सेठ आज भी यहां नहीं हैं और फिर तुम्हारे हिसाब में कुछ ग़लती भी है।
मुझे ग़ुस्सा आया। मैं हिसाब कर चुका था। मैनेजर उसे दस बार चैक कर चुका था फिर भी कहीं ग़लती निकल आती है मगर मैं कुछ ना कह सका क्योंकि मैनेजर का लहजा बहुत नरम था और इस का हर फ़िक़रा रेशम में लिपटा हुआ था ।इसलिए मैंने भी नरमी से कहा:मेरा हिसाब तो बहुत साफ़ है।
इतना कह कर मैंने अपनी ख़ाकी पतलून की जेब से एक मेला पुर्ज़ा निकाला और मैनेजर के साथ ग्यारवें दफ़ा तफ़सीलात चैक करने बैठ गया:इतने पैसे रेग माल फेरने के,इतने पैसे रोग़न के , इतने पैसे मज़दूरी के , रेग माल और रोग़न की रसीदें मेरे पास थीं।मज़दूरी पहले से तै हो चुकी थी ।सेठ का फ़र्नीचर मेरी मेहनत से जग-मग ,जग-मग कर रहा था ।
मैनेजर ने कहा:हाँ हिसाब ठीक है,अच्छा कल आना।
हाँ कल ज़रूर। मैनेजर ने चंद या को सहलाते हुए कहा।
बाहर आकर मैंने दो पैसे का पान भी नहीं खाया , एक आने का ट्राम का टिकट भी नहीं लिया और फ़िरोज़ शाह महित रोड से साईन तक पैदल गया।
मगर दूसरे दिन मैं फिर सेठ के दफ़्तर गया।
आज दफ़्तर में सेठ मौजूद नहीं था ,मैनेजर भी ग़ायब था।
मैनेजर का अस्सिटैंट चिन्धयाई हुई आँखों से एक सिंगल चाय अपने सामने रखे कुछ सोच रहा था।इस का चेहरा बहुत ज़र्द था।माथे के क़रीब ,सफ़ैद रुख़्सारों के क़रीब पीला और थोड़ी के क़रीब मटीला सा था।ऐसा मालूम होता था जैसे किसी ने उनके चेहरे की हड्डीयों पर खाल के बजाय मैले मैले, पीले पीले काग़ज़ तराश के मुंढ दीए हूँ।मैं इस के चेहरे को ग़ौर से देखने लगा ।
अस्सिटैंट ने प्याली से निगाह उठा कर मेरी तरफ़ देखा और हाथ के इशारे से मुझे कुर्सी पर बैठने को कहा ।मैंने पूछा :सेठ कहाँ हैं? वो बोला:सेठ अपने दूसरे दफ़्तर गया हुआ है।
और मैनेजर कहाँ है? मैनेजर सेठ के तीसरे दफ़्तर गया है।
तो मुझे यहां चौथी मंज़िल पर किस लिए बुलाया है?मैंने ज़रा ग़ुस्से में तेज़ होते हुए कहा।
अस्सिटैंट ने चाय का आख़िरी घूँट भी निगल लिया।आहिस्ता से बोला:तुम यहां बैठ जाओ मैनेजर अभी आता होगा।इस से बात कर लेना।
मैं एक कुर्सी पर साढे़ दस बजे से लेकर पौने दो बजे तक बैठा रहा।पहले मैंने सोचा कि किसी शीशे का टुकड़ा लेकर सारे रोग़न को उतारिदों जो मैंने इतनी मेहनत से इस फ़र्नीचर पर चढ़ाया था।फिर मैंने सोचा कि अपने दोनों हाथों से अस्सिटैंट के नक़ली चेहरे से पीले पीले काग़ज़ के टुकड़ों को उतारता जाऊं हत्ता कि अंदर की हड्डी नंगी हो जाये।भर मैंने सोचा :मैनेजर को जान से मार देना बेहतर होगा। बहुत देर तक सेठ के लिए सज़ा सोचता रहा।आख़िर ख़्याल आया कि इस के सारे जिस्म पर बी नंबर की मोटी रेग माल फीरदों गा तो इस की सारी खाल उधड़ कर नंगी हो जाएगी।भर मैनेजर आगया।
मुस्कुराते हुए बोला:तुम्हारा काम हो गया है, मगर चैक मिला है सो रुपये का और अब पौने दो बज चुके हैं और दो बजे बंक बंद होता है और बंक यहां से दो मील दूर है और कल छुट्टी है और परसों इतवार है।
मैंने मायूसी से कहा:हाँ । मैनेजर मुसर्रत से हाथ मिलते हुए बोला।मैंने बेहद रखाई से कहा:चैक मुझे दे दो।
पाँच मिनट और चैक लेने में गुज़र गए क्योंकि चैक पर मेरा नाम ग़लत लिखा हुआ था मुहम्मद शफ़ी के बजाय मुहम्मद रफ़ी लिखा हुआ था।चच चचमैनेजर ने कहा ।बड़ी ग़लती हो गई , मुहम्मद शफ़ीक़ लिखते लिखते मुहम्मद रफ़ी लिखा गया मगर कोई हर्ज नहीं ,अब तुम सोमवार को आ के नया चैक ले लेना।मैंने कहा:मगर ये बियरर चैक है।नाम की ग़लती से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता ।तुम मेरे नाम की रसीद ले लू और चैक मुझे दे दो,सोमवार को मैं कहाँ आऊँगा कहीं और धंदा करूँगा।
अच्छा ले जाओ । मैनेजर ने रुकते रुकते कहा।चैक लेकर बाहर आया तो दो बजने में पौने दो मिनट थे किसी सूरत पैदल चल के बंक नहीं पहुंच सकता ।सो रुपये का चैक मेरे हाथ में था मगर अभी काग़ज़ का पुरज़ा था ।उसे स्वरूपों में तबदील करने के लिए बंक तक पहुंचना ज़रूरी था।दो बजे से पहले सिर्फ एक ही सूरत हो सकती थी।मैंने फ़ैसला कर लिया और चला कर कहा :टैक्सी।
पीली छत और स्याह जिस्म वाली ज़ूम से मेरे क़रीब आकर रुक गई।मैंने अंदर बैठते हुए कहा। कालबादेवी रोड के ना के पर चलो और ज़रा तेज़ चलो।जब कालबादेवी नाके पर पहुंचा तो दो बजने में दो मिनट थे।मगर बंक का लबादीवी रोड पर नहीं था, गो चैक पर ये लिखा था मगर बंक का लबा देवी रोड़ के नाके पर नज़र ना आया।दो एक दुकानदारों से पूछा,किसी को इतनी फ़ुर्सत नहीं थीं ,कोरिया में जंग तेज़ थी,भाव भी तेज़ जा रहे थे,किस को वार्निश करने वाले के स्वरूपों की फ़िक्र थी?
हार कर मैंने एक पंजाबी सुख हारमोनियम बनाने वाले की दुकान में घुस गया।आईए आईए क्या चाहिए आपको ?सरदार ने अपनी इस आरी को छोड़कर जिससे वो लक्कड़ी काट रहा था मुझसे मुस्कुरा कर कहा।
मैंने कहा:सरदार मुझे बाजा नहीं चाहिए ,मरकनटाइल बंक का पता चाहिए चैक पर तो लिखा है कालबादेवी रोड और यहां कहीं नहीं मिलता। सरदार जी ने मुस्कुरा कर कहा:बादशाहो! वो बंक साथ वाली गली में है, इधर से घूम क्रिस्टा बाज़ार से इस तरफ़ पुराने चांदी वाले मंदिर के पास ।
मैंने सरदारजी का शुक्रिया भी अदा नहीं किया भागा वापिस टैक्सी के पास ,जब बंक में पहुंचा तो दो बज कर चार मिनट थे ।उसूलन मेरा चैक क्लर्क को नहीं लेना चाहिए था मगर मालूम होता है कि क्लर्क चैक पढ़ने के इलावा चेहरा पढ़ना भी जानता था। उसने ख़ामोशी से चैक मुझसे ले लिया।फिर उल्टा कर के देखा ,मुझसे कहने लगा:इस पर दस्तख़त करो।
मेरा नाम शफ़ी था लेकिन मैंने मुहम्मद रफ़ी लिखा।ये मुहम्मद रफ़ी कौन था?यहां कहाँ से आया था? कब पैदा हुआ?उसकी सूरत कैसी थी?इसके माँ बाप कौन थे?कौन जानता है? कुछ ज़िंदगीयां ऐसी होती हैं जो चैक पर लिखी जाती हैं और चैक पर ही काट दी जाती हैं।मैं टैक्सी वाले का चुकता करने लगा। दूर रुपये दो आने टैक्सी छोटी थी इसलिए मीटर बढ़ा नहीं ।टैक्सी बड़ी होती तो पाँच सात रुपये खुल जाते ।मैंने ख़ुशी से इतमीनान का सांस लिया ।इतने में किसी ने आके मेरे शाने पर-ज़ोर से हाथ मारा और कहा:कहो मेरे यार,बड़े टैक्सी में घूम रहे हो आज। मैंने घूम कर देखा:मेरा दोस्त इसहाक़ था।इसहाक़ बड़े खुले दिल का आदमी था। वो ख़ुद तो अबदुर्ररहिमान स्ट्रीट के अंदर एक खोजे के मकान के एक तंग से कमरे में रहता है और वही धंदा करता है जो मैं करता हूँ यानी वार्निश का और पुराने फ़र्नीचर को फिर से नया कर देने का लेकिन इस की महबूबा मुहम्मद अली रोड और कराफ़ोर्ड मार्कीट के नाके पर एक अच्छे होटल में रहती है ।मैंने देखा है बड़ी ख़ूबसूरत औरत है,बड़े बड़े सेठों के पास जाती है। ये इसहाक़ इस से पहले उस के पास ड्राईवर था।इसहाक़ कोय काम पसंद नहीं आया और वो इस से अलग हो गया।
वो औरत उस को बहुत पसंद करती है,ये भी इस को चाहता है मगर वो इस को अपने धरे पर लाना चाहती है और ये उस को अपने तरीक़े पर रखना चाहता है।दोनों में हमेशा लड़ाई होती है।भर ये इस से दस बारह रोज़ नहीं मिलता, फिर वो इस से मिलने आती है।ऐसे ही ये चक्कर चलता रहता है कभी कभी इसहाक़ जब कोई मोटी रक़म कमा लेता है तो उसे जा कर दे आता है और उसे एक लैक्चर भी झाड़ आता है। मगर जिस औरत के पास अच्छा होटल होगा, अच्छी जवानी,सेहत और ख़ूबसूरती होगी और सोने चांदी वाले सेठ होंगे ।वो वार्निश करने वाले इसहाक़ की बात क्यों सुनने लगी, सोचने की बात है यारो!
मैंने इसहाक़ से पूछा :मुझे भूक लगी है, कुछ खाओगे?
वो बोला:हाँ भूका तो मैं भी हूँ ,चलो फ़ीरोज़े कबाबीए की दुकान पर।फ़ीरोज़े कबाबीए की दुकान से फ़ारिग़ हो कर इसहाक़ ने मुझसे दस रुपये उधार लिए और अपने रस्ते पर चला गया ।मुझे इसहाक़ बहुत पसंद है। इस के पास हूँ तो ना नहीं करेगा ,सबको खिलाए पिलाए गा और जब पैसे नहीं होंगे। तो मेरे सिवा किसी से क़र्ज़ नहीं माँगेगा ।
भूका मर जाएगा मगर किसी से उधार नहीं लेगा ।ऐसा दोस्त जो दुनिया में मेरे सिवा किसी से उधार ना ले कहाँ मिलता है?मुझे इसहाक़ की दोस्ती पर फ़ख़र है। मैं जब भी इसहाक़ से मिलता हूँ ,एक अजीब सी ख़ुशी ला पुरवाई, बच्चों की सी मुसर्रत महसूस करता हूँ ।मुझे ऐसा मालूम होता है जैसे दिल में कोई ग़म नहीं है,कोई तकलीफ़ नहीं ।जैसे सारी दुनिया खिलौनों से भरी पड़ी है और इस के सारे बाज़ार मेरे लिए सजे पड़े हैं।बाअज़ आदमीयों में कुछ ऐसी ही ताक़त होती है।बाअज़ आदमीयों में कुछ ऐसी ही बात होती है।इस वक़्त इसहाक़ से मिलकर मीराजी हल्काफुल्का हो गया। मैंने कराफ़ोर्ड मार्कीट से दोसीब ख़रीद कर खाए , एक भिकारी को दो आने दीए वहां से चलता बोरी बंदर आगया।लेकिन जेब में रुपये थे और अभी घर जाने को जी ना चाहता था ।इसलिए बोरी बंदर से हॉर्न बी रोड़ पर हो गया।
हॉर्न बी की दुकानें मुझे बहुत पसंद हैं, खासतौर पर उनके नुमाइशी दरीचे में आईने लगे हुए हैं और नी आन की रोशनीयां और क़द-ए-आदम कांच की बड़ी बड़ी शफ़्फ़ाफ़ सिलों के पीछे कैसी कैसी ख़ूबसूरत चीज़ें पड़ी हुई हैं ।ख़ूबसूरत टाईयां ,मौज़े,जराब,पतलून के कपड़े मफ़लर ,जूते ,हर हफ़्ते इन दरीचों के अंदर ख़ूबसूरत चीज़ें बदल जाती हैं और पुराने डिज़ाइनों की बजाय नए डिज़ाइन आ जाते हैं।शाम को घर जाने से पहले मैं अक्सर हॉर्न बी रोड के नुमाइशी दरीचे देखा करता हूँ।जेब में पैसे हूँ या ना हूँ इस से कोई ग़रज़ नहीं मैं अक्सर अपना काम ख़त्म कर के बोरी बंदर जाने के लिए हारून बी रोड से गुज़रता हूँ और एक दरीचे से नाक रगड़ कर अंदर की ख़ूबसूरत चीज़ें देखा करता हूँ।इस में मुझे इतना लुतफ़ हासिल होता है जितना बचपन में नए खिलौने देखकर हासिल होता था।मैंने जेब में हाथ डाल कर नए नए कर करे नोटों को थपथपाया और बड़ी शान से ऐवान ऐंड फ़्रीज़र के नमाइची दरीचों के सामने आ खड़ा हुआ।आह!किस क़दर ख़ूबसूरत क़मीज़ थी।बादामी रंग की साफ़-शफ़्फ़ाफ़ क़मीज़ पर नीलयावर सुरख़ धारियाँ मेरा तो जी मचल गया,मैंने अपनी क़मीज़ के फटे हुए कालर को सहलाया।इस नीली और सुरख़ रंग की धारीदार क़मीज़ को पहन कर मैं कैसा दिखाई दूँगा।मैंने तख़य्युल में अपने आपको क़मीज़ पहन कर क़द-ए-आदम आईने के सामने देखा ,वाह!क्या ठाट थे और क़मीज़ के दाम थे सिर्फ तीस रुपये इस से तिगुने रुपये उस वक़्त मेरी जेब में थे,मैं क़मीज़ ख़रीद सकता था मगर कुछ और बेहतर देखने की ख़ातिर आगे चला गया।
अगले दरीचे में ख़ूबसूरत साबुन थे, झाग वाले, स्पंज और तोलीए जिन्हें देखकर ख़ुद बख़ुद नहाने की ख़ाहिश पैदा होती थी।ये सब मैं ख़रीद सकता था। इस से अगले दरीचे में मर्दों के लिए शब ख़वानी के गाऊँ थे :भड़कीले ,रेशमी ,मुनक़्क़श गाऊँ जिन्हें पहन कर वार्निश वाला भी मिस्र का पाशा मालूम हो।सत्तर रुपये का गाऊँ और इस से ज़्यादा रक़म मेरे पास थी।मैंने इस गाऊँ को अपने तख़य्युल में पहना और एक ईरानी ग़ालीचे पर उड़ता हुआ दूर जला गया।हुआ साफ़ थी ,मेरे नीचे ख़ूबसूरत बाग़ों वाली ज़मीन घूम रही थी और हरी हरी दो आब मैं एक छरीरी नाज़ुक इंदाम नदी एक पहाड़ी हसीना की तरह धूप सैनिक रही थी।मैंने इस ग़ालीचे को इस नदी के किनारे उतरने का हुक्म किया ।ग़ालीचा नदी के किनारे उतर आया और ख़ुद बख़ुद कहीं से एक सुराही आगई और एक मर्मरीं हाथ और दो आँखें और एक हुसैन चेहरा।फिर मुझे किसी ने टहो का क्या कर ख़त लहजे में बोला:आगे बढ़ो,अब किसी और को भी देखने दो,आधे घंटे से यहीं खड़ा है ना लेना ना देना।मैंने मुस्कराकर ऐवान ऐंड फ़्रीज़र के वर्दी पोश ग़ुलाम की तरफ़ देखा जो मुझे डाँट रहा था और आगे चल दिया।बेचारे को मालूम था कि मेरे पास एक उड़ने वाला ईरानी ग़ालीचा है और जेब में सत्तर रुपये से भी ज़्यादा की रक़म है।मैं इस वक़्त अंदर जा के इस गाऊँ को ख़रीद सकता था,मगर मेरा जी नहीं माना।हारून बी रोड पर इस से बेहतर भी कोई चीज़ होगी। आगे चल कर देखा जाये ,इस वर्दी पोश ग़ुलाम को तो किसी वक़्त भी शिकस्त दी जा सकती है।आगे चलता चलता बहुत सी दुकानें देखता भालता मैं जगदम्बा लाल पायल की दुकान पर पहुंच गया।यहां नुमाइशी दरीशे में कैमरे पड़े थे जिन्हें मैं ख़रीद सकता था।कैमरे ख़रीद के मैं इन फ़र्नीचरों की तस्वीर ले सकता था जो पुराने थे ।मैंने सोचा ये कैमरा लेकर मैं इसहाक़ के पास जाऊँगा और इस से कहूँगा:
चल,आज तेरी और तेरी महबूबा की इकट्ठी तस्वीर लें गे।मैंने अपना ईरानी ग़ालीचा मंगवाया और कैमरा हाथ में लेकर सारे जहान के ख़ूबसूरत मुनाज़िर की तस्वीरें उतारने लगा।कैमरे के साथ जादू बैन पड़ी थी जिसमें देखने से तस्वीरें बिलकुल अपनी गहराई के साथ नज़र आती हैं यानी जैसे आदमी बिलकुल आपके सामने चल फिर रहे हूँ और मकान आपके सामने हू-ब-हू जैसे आपका।तस्वीर अपनी लंबाई चौड़ाई और मोटाई के साथ इतनी अच्छी दिखाई देती कि सिनेमा में भी इतनी अच्छी मालूम नहीं होती।बचपन में एक बढ़िया एक बड़ी सी जादू बैन हमारे मुहल्ले में लाया करती थी और हम लोग एक पैसा देकर तमाशा देखते थे।इस जादू बेन को देखकर मेरा दिल-ख़ुशी से काँपने लगा और दुकान के अंदर दाख़िल हो गया।कोनटर पर मैंने एक नौजवान से पूछा:ये जादू बैन कितने की है?साढे़ पैंतीस रुपये
नौजवान बड़ी ख़ूबसूरत क़मीज़ पहने था। इस के बाल घुँघर या ले और पीछे को घूमे हुए टी आयरन को रोशनी में नए फ़र्नीचर के वार्निश की तरह चमकते थे।इस के होंटों पर भी जवानी की वार्निश थी।इस के लबों पर एक मग़रूर मुस्कुराहट थी जो सिर्फ चैक लिखते वक़्त पैदा होती थी।उसने मेरी तरफ़ निगाह उठा कर एक ख़ूबसूरत लड़की की तरफ़ देखा जो अभी अभी दुकान में दाख़िल हुई थी। वो उस की तरफ़ मुतवज्जा हो गया और एक मेले मैले चेहरे वाला ना आसूदा गुजराती जो ग़ालिबन इसका अस्सिटैंट था ,मेरी तरफ़ आगया ।मैंने देखा कि इस के चेहरे का वार्निश जगह जगह से उखड़ा हुआ है और उसने मुस्कुराने की कोशिश भी नहीं की।
मैंने कहा:जादू बैन मुझे दिखाओ। उसने जादू बीन में एक मुदव्वर फ़ीता रखकर मेरे हाथ थमा दिया और मुझसे कहा:इसे घुमाते जाओ,यूं स्विच दबाकर ,नई नई तस्वीरें तुम्हारे सामने आती जाएँगी।मैंने बटन आन किया:टारज़न हाथी पर सवार सामने से चला आरहा था।मैंने बटन दबा दिया। टारज़न आबशार में छलांग लगा रहा था।नीचे मगरमच्छ कितने ख़ौफ़नाक मालूम हो रहे थे, मैंने बटन दबा दिया।फूलों के गजरे ,फूलों के हार और फूलों के लहंगे पहने हुए हवाई जज़ीरे की लड़कीयां नाच रही थीं।मैंने बटन दबा दिया ।
साहिल की रेत पर शराब और फल और बिस्कुट और खाने की चीज़ें एक शफ़्फ़ाफ़ तश्तरी में पड़ी थीं और एक औरत रेत पर आँखें बंद किए बैठी थी।इस का मुँह मेरे इस क़दर क़रीब थ कि मैंने जल्दी से बटन दबा दिया।ईरानी ग़ालीचा ज़मीन पर आगया।
मैंने गुजराती ख़ारिश-ज़दा क्लर्क से कहा:ये जादू बैन तो बहुत अच्छी है ,मेरे बचपन की जादू बेन से हज़ार दर्जे बेहतर है,कितने में दोगे? वो मुस्कुराए बग़ैर बोला:साढ़े पैंतीस रुपये की जादू बैन आती है,मुद्दो रंगीन तस्वीरों वाले फ़तीले एक दर्जन उस के साथ लेना पड़ेंगे।दस रुपये के ये होंगे,सेल्ज़ टैक्स उस के इलावा पच्चास के ऊपर रक़म जाएगी।मैं जब हाथ डाल कर दस दस के नए कर करे नोटों को थपथपाया।आपको यक़ीन नहीं आएगा।
लेकिन ये बिलकुल सच्च है कि इस से पहले मेरे दिल में जादू बैन के सिवा और कोई तस्वीर ना थी।लेकिन नोटों को हाथ लगाने से एक दम मुझे धचका सा लगा और बहुत सी तस्वीरें बटन दबाए बग़ैर मेरे सामने घूम गईं ।एक बच्चा फटी हुई क़मीज़ पहने गली के फ़र्श पर बैठा है और रो रहा है।मैंने पहचाना मेरा बचा था।एक औरत की शलवार का पायँचा दूसरे पायंचे से ऊंचा है।इस की ओढ़नी से इस के सर के उलझे हुए बाल बाहर निकलते हुए नज़र आरहे थे।मैं समझ गया कि एक आदमी दरवाज़े पर खड़ा है।
इस की सूरत हर लम्हा बदलती जाती है।इस का ग़ुस्सा हर लम्हा बढ़ता जाता है।कभी ये मालिक मकान का मैनेजर बन जाता है।कभी दूध वाले सेठ का नौकर। कभी बिजली वाली कंपनी का ओहदेदार। कभी पानी वाले दफ़्तर का।मैंने बटन दबा दिया:अब मेरे सामने घर के फ़र्श पर एक ख़ाली तश्तरी पड़ी थी जिस पर एक गिलास औंधा पड़ा हुआ है।नोट मेरी जेब से बाहर निकले,फिर वहीं हाथ रह गए।ख़ूबसूरत क्लर्क ,ख़ूबसूरत लड़की को कैमरा बेच कर कोनटर पर वापिस आगया।मैं जल्दी से घूम कर दुकान से वापिस जाने लगा ।बाहर जाते-जाते मैं जानता था कि वो क्लर्क अपनी बेहतरीन वार्निश शूदा मुस्कुराहट से मेरे फटे हुए कालर देख रहा है,मेरी ख़ाकी ज़ैन की पतलून देख रहा है,जिसकी पीठ में दो जगह टुकड़े सिले हुए हैं।मुझे मालूम था कि वो मुझ पर हंस रहा है।मैंने अच्छी तरह दाँत पीस लिए,अच्छी तरह जेबों में हाथ डाल कर नोटों को अपनी गिरिफ़त में ले लिया और नुमाइशी दरीचों से निगाह उठा कर सीधा बोरी बंदर की तरफ़ चलने लगा।चलते चलते महसूस हुआ कि जैसे किसी ने मुझसे शदीद धोका किया है,किसी ने मुझे सौ रुपये देकर दो सौ छीन लिए हैं ।इस के साथ ही मेरा ईरानी ग़ालीचा और जादू बैन भी छीन ली है।किसी ने ज़ोर से मेरे मुँह पर चपत मारी है।किसी ने मेरे हर नोट पर लिख दिया है।तुम्हारे लिए नहीं मेरे क़दम भारी होते गए और मैंने महसूस किया कि मेरी मेहनत का हर नोट उदासी की एक लंबी ज़ंजीर है,जिसे मैं ख़ुद अपने हाथों से खींच रहा हूँ ।बोरी बंदर पहुंच कर यका-य़क मैंने फ़ैसला किया कि मैं आज गाड़ी से अपने घर वापिस नहीं जा सकता ।आज पैदल ही बोरी बंदर से साईन जाऊँगा। बहुत रात गए मैं थका मांदा अपने घर लौटा। मेरी बीवी मुतफ़क्किर थी और मेरा इंतिज़ार कर रही थी लेकिन जब उसने नोट देखे तो ख़ुश हो गई ।इसलिए वो मेरी उदासी का मतलब ना समझ सकी।बोली:लेकिन ये क्या बात है, तुम आज ख़ुश होने की बजाय उदास हो? मैंने चारपाई पर बैठते हुए कहा :जान-ए-मन !आज मुझे पता चला है कि ये दुनिया बूढ़ी हो चुकी है और मुझे ऐसी दुनिया चाहिए जो बच्चों की तरह मुस्कुरा सके।वो बोली:मैं नहीं समझी तुम
क्या कह रहे हो।
मैंने कहा :जान-ए-मन !मैं कह रहा हूँ कि अब पुराने फ़र्नीचर पर वार्निश करने से काम नहीं चलेगा।अब नया फ़र्नीचर लाना होगा।