सर्पदेव राजा : लोककथा (उत्तराखंड)

Sarpdev Raja : Lok-Katha (Uttarakhand)

एक किसान था । उसका नाम वीरपाल था । उसकी पत्नी का नाम डौखी था । डौखी को तिमला के फल खाने का शौक था । डौखी गर्भवती थी । जब वह अपने खेत में काम करने को जा रही थी तो वीरपाल ने उसे समझाया कि वह तिमला के पेड़ वाले रास्ते से घर न जाए । वह खेती बाड़ी का काम निपटाकर तिमला के पेड़ वाले रास्ते से ही घर आने लगी । पके हुए तिमलों को देखकर उसके मुँह में पानी आ गया । वह सोचने लगी - ’’मै गर्भवती हूँ । मुझे तिमला के पेड़ पर नही चढ़ना चाहिए ।’’ वह घर की ओर जाने लगी । फिर उसके मन में एक विचार आया - ’’मुझे तिमला के पेड़ पर नहीं चढ़ना चाहिए किन्तु मैं पेड़ के नीचे-नीचे लगे तिमलों को तो खा सकती हूँ ।’’ वह वापस आई । पेड़ के नीचे-नीचे लगे तिमलों को खाने लगी । तभी उसे ऊपर की टहनी पर कुछ पके हुए तिमले दिखाई दिए । जैसे ही वह उन्हें तोड़ने लगी वह गिर पड़ी । उसका पेट फट गया था लेकिन मरते मरते उसने एक लड़का और एक लड़की को जन्म दिया । शाम देर तक डौखी के घर न पहुँचने पर वीरपाल को चिन्ता हो गई । वह उसे खोजते-खोजते तिमला के पेड की और आया । उसने वहाँ डौखी का मृत शरीर देखा । वह अपने दो बच्चों को घर लाया । उसने अपने लड़के का नाम दीपक तथा लड़की का नाम बालि रखा ।

एक दिन वीरपाल की मुलाकात एक विधवा औरत से हो गई । उसका नाम सुरिणी था । धीरे-धीरे उन दोनों की निकटता बढ़ती गई । कुछ समय बाद वीरपाल और सुरिणी की शादी हो गई । वीरपाल की सुरिणी से भी एक बच्ची हुई । उसका नाम दीना रखा गया ।

सुरिणी दीपक और बालि से ईर्ष्या करती थी । वह उन दोनों को नीचा दिखाती रहती थी । एक बार सुरिणी ने वीरपाल से दीपक को जान से मारने को कहा । सुरिणी की वीरपाल से हुई इस बात को बालि ने सुन लिया । दीपक ने बालि से कहा - ’’यदि मैं मारा गया तो मेरी एक हड्डी पन्देरा (जल स्रोत) के ऊपर दीवाल में रखना । तुम्हें किसी भी चीज की जरूरत हो तो वहाँ आकर बता देना। ’’

वीरपाल ने सुरिणी की बातों में आकर दीपक को मार डाला । बालि ने दीपक की हड्डी पन्देरा के ऊपर दीवाल में छिपा कर रख दी । सुरिणी अपनी लड़की दीना को अच्छा-अच्छा खाना खिलाती । वह बालि को खाने को जूठा खाना देती।बालि उस खाने को जानवरों को खिला देती । वह पन्देरा में आकर कहती -’’हे मेरे भैया ! मुझे खाना दे दो ।’’ देखते ही वहॉ थाली में सजा खाना आ जाता ।

एक दिन जब बालि पन्देरा में आकर खाना मांग रही थी, सुरिणी भी वहॉ पहुँच गई । उसने बालि को खाना मांगते हुए देख लिया । उसने दीना को भी वहॉ भेजना शुरू कर दिया ।

दूसरे दिन दीना पन्देरा में आकर कहने लगी - ’’हे मेरे भैया! मुझे खाना दे दो ।’ वहाँ पर खाने की थाल की जगह पर कई अंगराल (जहरीली मधुमक्खी) आ गई । उन्होनें दीना को काट खाया । उसका शरीर सूज कर मोटा हो गया । वह घर चली गई । दीना को देखकर सुरिणी बोली - ’’बेटी! तू एक दिन के पन्देरा के खाने से ही इतनी मोटी हो गई । अब तू वहाँ रोज जाना ।’’ दीना ने रोते रोते पूरी बात सुरिणी को बताई । सुनकर वह क्रोधित हो गई ।

एक गरीब विधवा कांसपात की झोपड़ी में रहती थी । उसे कन्डाली (बिच्छूघास) का साग खाने का शौक था । एक बार कन्डाली के पत्ते में उसे झिस्सू कीड़ा दिखाई दिया । वह उसे पत्ते से हटाने की सोच ही रही थी , तभी वह सांप के रूप में बदल गया । उसने बुढि़या से कहा - ’’ घबरा मत । मैं तेरा बेटा सर्पदेव राजा हूँ । ‘‘ उसका ऊपर का हिस्सा मनुष्य जैसा तथा नीचे का साँप जैसा था । सर्पदेव राजा के छूते ही बुढिया की कांसपात की झोपड़ी महल में बदल गई । एक दिन सर्पदेव राजा ने अपने हाथ मे सोने की पाती रखी और गांवों में जाकर कहने लगा - ‘‘इस सोने की पाती को अपने पास रख दो । बदले में मुझ सर्पदेव राजा से अपनी लड़की की शादी कर दो।’’

सर्पदेव राजा बालि के गांव भी पहुंच गया । उसे देखकर सुरिणी ने सोचा-’’इस प्राणी का आधा शरीर सांप का और आधा मनुष्य का है । इसी से बालि का विवाह करना ठीक रहेगा ।’’ सुरिणी ने सर्पदेव राजा से सोने की पाती ले ली और बालि का विवाह सर्पदेव राजा से कर दिया।

विवाह के बाद बालि सर्पदेव राजा के साथ उसके घर गई । उसे पता चला कि सर्पदेव राजा रात को अपनी केंचुली उतार देता था । तब वह सुन्दर राजकुमार के रूप में प्रकट हो जाता था । बालि का जीवन सर्पदेव राजा के साथ हंसी-खुशी से गुजरने लगा ।

जब बालि की सौतेली माँ सुरिणी को पता चला कि वह खुशी से रह रही है तो उसने बालि को मायके बुला दिया । बालि मायके आने को तैयार नहीं हुई । सुरिणी ने कहा -’’ हम तो साधारण मनुष्य हैं । अपने मायके तो माता पार्वती भी आई थी ।’’

बालि सुरिणी की बातों में आ गई । वह मायके चली गई । मायके में सुरिणी ने लोहे की गर्म सौरी बालि के सिर में चुबोकर उसे मार दिया । सुरिणी ने बालि के कपडे़ दीना को पहनाकर उसे सर्पदेव राजा के पास भेज दिया ।

’’मेरी तबियत इस बीच काफी बिगड़ गई थी । इसलिए मेरा चेहरा और आवाज बदल गई है ।’’ - दीना ने सर्पदेव राजा से कहा । सर्पदेव राजा ने दीना को ही अपनी पत्नी समझा ।

एक दिन सर्पदेव राजा के घोड़े को उसका नौकर शेष पानी पिलाने ले जा रहा था । उसी समय एक चिडि़या घोड़े के पास आ गई । उसे देखकर घोड़े की आंखो में आंसू आ गए । चिडि़या कहने लगी -’’ मै बालि, सर्पदेव की रानी’’ । शेष ने यह बात सर्पदेव राजा को बताई । दूसरे दिन सर्पदेव राजा घोड़े में बैठकर वहीं गया जहां कल शेष घोड़े को पानी पिलाने ले गया था । थोडी देर में वही चिडिया सर्पदेव राजा के हाथ पर बैठ गई । वह कहने लगी - ’’मै बालि, सर्पदेव की रानी ।’’ सर्पदेव ने उस चिडि़या को सहलाना शुरू किया । थोड़ी देर बाद वह बालि के रूप में बदल गई । बालि ने सर्पदेव राजा को पूरी कहानी बता दी ।

राजा बालि को लेकर अपने महल चला गया । उसने सुरिणी, वीरपाल तथा दीना को कठोर दण्ड दिया।

(साभार : डॉ. उमेश चमोला)

  • उत्तराखंड कहानियां और लोक कथाएं
  • मुख्य पृष्ठ : भारत के विभिन्न प्रदेशों, भाषाओं और विदेशी लोक कथाएं
  • मुख्य पृष्ठ : संपूर्ण हिंदी कहानियां, नाटक, उपन्यास और अन्य गद्य कृतियां