सपेरा (कन्नड़ कहानी) : उमा राव
Sapera (Kannada Story) : Uma Rao
बेंगलुरु के दक्षिण भाग में सभी सुविधाओं से सुसज्जित और डीलक्स कई अपार्टमेंट्स थे, जिनमें ‘स्वर्ग’ अपार्टमेंट्स भी एक है। उसमें सौ घर थे। स्वर्ग अपार्टमेंट्स में लोगों के जीवन को सुखमय और सुगम बनाने के लिए सभी सुख-साधनों की व्यवस्था की गई थी। सुबह की गरमी में चमकनेवाला स्विमिंग पूल था। टेबल टैनिस, बिलियर्डस आदि खेल खेलने के लिए क्लब हाउस था। रंग-बिरंगे फूल-पौधों से भरा बगीचा था, बीच-बीच में गुलमोहर के पेड़ और उनके बीच पगडंडियाँ थीं। कोक, पेप्सी, किटक्याट, रिग्लेस आदि चीजों को बेचने की एक दुकान भी थी।
चौबीसों घंटे बिजली की व्यवस्था करने के लिए जनरेटर का इंतजाम था। इन सबकी निगरानी करने के लिए सेक्यूरिटी गार्डस थे। घर के काम करने के लिए महिलाएँ आती थीं, जिन्हें कन्नड़ के साथ हिंदी, तमिल भी आती थी। उन सबको एक फोटो सहित आईडी कार्ड भी दिया गया था।
स्वर्ग अपार्टमेंट्स में देश के अलग-अलग हिस्सों से आए हुए लोग रहते थे। रेडीमेड गार्मेंट्स, प्लास्टिक्स चीजें आदि छोटे-मोटे कारखानों के मालिक, साफ्टवेर इंजीनीयर्स, जो अमरीका को अपने घर के पिछवाड़े के जैसे समझकर आते-जाते थे, विदेशों में अपने बेटों को भेजकर यहाँ पर कुत्तों को लेकर घूमनेवाले सेवा-निवृत्त अधिकारी लोग, जो आराम की जिंदगी बिता रहे थे। फ्रीलांस पत्रकार, दूरदर्शन सीरियल के निर्मापक, बहुराष्ट्रीय कंपनियों के एक्जिक्युटिव्स—इस प्रकार सभी प्रकार के निवासी थे और सब आपस में शिष्टाचार से बर्ताव कर रहे थे।
इन सौ परिवारों के बीच कभी-कभी छोटी-मोटी लड़ाइयाँ भी हो जाती थीं। किसी कामवाली ने हमारी सीढि़यों पर पान पीक थूक दी है; हमारे घर में जिस दिन पार्टी हुई थी, उसके दूसरे दिन हमारे घर की कामवाली खाली बीयर की बोतलों को ले जा रही थी, उसमें से चार बोतलों को सेक्यूरिटी गार्ड ने रख लिया है; एक कंपनी का कार ड्राइवर लड़कियों के बारे में, जो काम करने के लिए आती-जाती थीं, हिंदी में कॉमेंट करता है, इन विषयों के बारे में अकसर लड़ाइयाँ होती रहती थीं।
हर महीने कमेटी की मीटिंग होती थी, इसमें इन लड़ाइयों के बारे में चर्चा होती थी। तब सारे सदस्य कहते थे, ‘हम सब सिविलाइज्ड पीपल हैं। आम लोगों की तरह लड़ना-झगड़ना हमारी शान के लायक नहीं है। फिर ऐसा बर्ताव करते थे कि कुछ हुआ ही नहीं है और आपस में गुडमॉर्निंग, गुडनाइट कहते जाते थे।
स्वर्ग अपार्टमेंट्स में समारोह की कोई कमी नहीं थी। सप्ताह में एक या दो जन्मदिन आते थे, सभी बच्चे जाकर म्यूजिक शो देखते, कैंडल फूँकते, केक समोसा खाते और हैप्पी बर्थडे गाकर आते थे। कभी-कभी डिनर होता था, जिसमें अपार्टमेंट्स वाले शामिल होते थे, ‘रोटी सागर’ से जो पंजाबी खाना आता था, खाते, बीयर पीते, अंत्याक्षरी खेलते, सरदारजी के जोक्स सुनाते और अपने हाल ही के सिंगपुर-बैंकॉक, मलेशिया टूर्स के बारे में शेखी बघारते थे। उनके बीच बैनर्जी ने घोषणा की कि मैंने जो कुछ भी किया है, बार-बार करके ऊब गया हूँ, इसलिए इस बार अफ्रीका जाने का इरादा किया है। उनकी समझ में नहीं आता कि आफ्रीका, सिंगपुर और बैंकॉक से बड़ा है या कम? और इसके बारे में प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं कर पाए और बात को यह कहकर चुप हो जाते थे कि ‘तुम तो...यू आर डिफरेंट।’
इस प्रकार सुचारू रूप से उस अपार्टमेंट्स का दैनिक जीवन गुजर रहा था। मगर एक रविवार को एक घटना घटी, जिसने वातावरण को कोलाहल से भर दिया। उस दिन सभी ने भरपूर नाश्ता किया, अखबार हाथ में लिया और आराम से पढ़ने बैठे थे कि एक छोटा त्रिचक्र वाहन अपार्टमेंट्स के सामने आकर रुक गया। उसे कुछ गृहणियों ने बालकनी से देखा और सोचा कि किसी के घर फ्रास्टफ्री फ्रिज आया होगा; फिर वे सब अंदर चले गए। मगर कुछ देर के बाद उन्होंने ऊँचे स्वर में वाद-विवाद होते सुना तो कुछ महिलाएँ फिर से बालकनी में आईं। राधाकृष्णन जो उस बिल्डिंग्स रेसिडेंसी सोसाइटी के सेक्रेटरी थे, हाथ में ‘डेक्कन हेराल्ड’ पकड़कर ही नीचे उतर आए। वहाँ अनोखी वेश-भूषावाला एक आदमी हाथ में जो कागजात थे, सेक्यूरिटी गार्ड के आगे बढ़ाकर वाद-विवाद कर रहा था। राधाकृष्णन उसके पास गए और उसे सिर से पाँव तक देखा तो परेशान हुए। चौक तसवीरवाली लुंगी, आधा बाहु का महीन कुरता, बड़ी-बड़ी मूँछें, माथे पर भस्म, कुमकुम, गले में रंग-बिरंगी मणियाँ, रुद्राक्षी माला के साथ काले धागे से लटकता तावीज, एक टोकरी जो कंधे से लटक रही थी, बंद थी; मगर उसे देखने से ही पता चलता था कि उसमें क्या है।
राधाकृष्णन गार्ड को देखते हुए गरज पड़े, ‘‘अरे! तुम इससे क्यों बहस करते हो? मैंने कितनी बार कहा है कि ऐसे सपेरों और खेल-तमाशा दिखानेवालों को यों ही अपार्टमेंट्स के अंदर मत आने दो।’’
‘‘नहीं सर, ये...’’ गार्ड तुतलाया तो पीछे से अडमिनिस्ट्रेटिव मैनेजर शशिधर ने आकर समझाया, ‘‘सर, ये ‘ए’ ब्लॉक में...किराए पर आए हैं।’’
‘‘क्या!’’ तीस बरस तक स्टॉक एक्स्चेंज में काम करनेवाले राधाकृष्णन को हर्षद मेहता के नाटक भी इतने शॉक नहीं दे पाए थे।
शशिधर के हाथ में एग्रीमेंट के कागजात थे, उसे आगे बढ़ाते हुए राधाकृष्णन से कहा, ‘‘सभी कागजात नियमानुसार हैं, सर। ओनर ने जो पत्र हमें लिखा है, साथ में लाए हैं।’’ राधाकृष्णन ने शशिधर को बगल में आने के लिए कहा।
‘‘मैंने अंदर जाकर चेक किया है, सर। चेक टैली होता है।’’ शशिधर ने कहा।
‘‘ओनर को फोन करके पूछिए।’’ राधाकृष्णन ने परेशानी से कहा।
‘‘ट्राई किया सर, वे अमरीका गए हैं, अपने बेटे को देखने के लिए।’’
सभी खामोश हो गए।
यह खबर पूरे अपार्टमेंट्स में फैल गई, सभी रविवार के अपने काम-काजों को छोड़कर बालकनी में आ गए। बच्चे नीचे जमा होकर सपेरा के चारों ओर खड़े थे। मगर सपेरा विचलित नहीं हुआ और त्रिचक्र वाहन से अपना सामान उतारने में लग गया। उसने एक बिस्तर, जो चटाई से लपेटा हुआ था, कुछ बरतन, दो मिट्टी के बरतन, मिट्टी के तेल का एक स्टोव, भगवान् की तीन-चार तसवीरें, बेडशीट में लपेटे हुए कपड़ों की गठरियाँ, लाठी, एक बोरे में कई चीजें आदि सब उतारीं, बाद में उसने बड़ी सावधानी से दो पूँगियों को उतार लिया, जिन्हें उसने कंधे पर रखा था। पूँगियों को एक के अंदर एक मिलाकर रस्सी से बाँध दिया गया था। इसे देखते ही सबके होश उड़ गए।
उस आदमी ने सब चीजों को एक-एक करके उठाया और जाकर ‘ए’ ब्लॉक के अपने घर में रखा, जो तीसरी मंजिल पर था। सेक्यूरिटी गार्ड सोच रहा था कि उसकी चीजों को उठाकर रखूँ या नहीं; मगर राधाकृष्णन ने उसे आँखों से ही मना कर दिया। इस दौरान नटखट डिंपी सपेरा के पास आया और उस टोकरी की ओर इशारा करते हुए पूछा, ‘‘अंकल, इसमें साँप है?’’ तब उसकी माँ ने उसे एक थप्पड़ मारा। नए आनेवाले, रजिस्टर में अपना नाम, पेशा आदि दाखिल करते हैं; उस रजिस्टर में शशिधर ने लिखा, ‘शंभु, सपेरा-ए-३०’।
शशिधर हस्ताक्षर कराने के लिए रजिस्टर को राधाकृष्णन के पास लाया तो वे शशिधर पर बरस पड़े, ‘‘क्या है ये? तुम्हें जरा भी अक्ल नहीं है? प्रोफेशन की जगह ‘बिजिनेस’ लिखो,’ शंभु पंद्रह मिनट में ही सब सामान अंदर ले गया और दरवाजा बंद कर दिया। फिर बालकनी का दरवाजा खोल दिया। उसी पल से ‘स्वर्ग’ अपार्टमेंट्स में रहनेवाले लोगों की जिंदगी में एक विचित्र अशांति शुरू हो गई।
पिता और माता ने अपने-अपने बेटे-बेटियों को सावधान किया और कहा कि अगर शंभु उन्हें चॉकलेट, पीपरमेंट दे तो छूना नहीं, उसके बुलाने पर पास न जाना। ए-३२ में सीताचंद्रन रहते थे, उन्होंने सोचा कि हम तो निश्चिंतता से रहते थे, यह विघ्न कहाँ से टपक पड़ा। चीनी, कॉफी पाउडर, कर्ज लेने के लिए अब पड़ोसी न रहा।’ उन्होंने आँसू बहाए।
शंभु के बारे में क्या-क्या जानना चाहिए, इसके बारे में घर के कामवालों की एक मीटिंग भी हो गई।
‘‘ऐसे लोगों का संपर्क ही नहीं चाहिए। ये जादूटोना भी करते हैं।’’
‘‘उसकी आँखें तुमने देखीं, कैसी है?’’
‘‘काम नहीं करूँगा, यह कहने से वह नाराज हो गया तो? कुछ कर डाला तो?’’
‘‘ओह, क्या करेगा, साँप को पीछे छोड़ देगा?’’
सभी ठहाका मारकर हँस पड़े।
मगर एक बूढ़ी कामवाली नंजम्मा बोली, ‘‘ओह, मुझे कोई डर नहीं है। मेरे कंधे में गरुड़ का तिल है।’’ इसे सुनकर दूसरे लोगों ने उसे ईर्ष्या से देखा।
पूरे अपार्टमेंट्स में दूध सप्लाई करने के लिए एक को मात्र अनुमति दी गई थी। जो भी नए आते, दूधवाला उनके यहाँ जाकर पूछताछ करता, इसी प्रकार वह थोड़ा डरता हुआ शंभु के घर गया और कॉलिंग बेल दबाई। उस आदमी ने दरवाजा खोला और कहा, ‘‘मैं पॉकेट के दूध का इस्तेमाल नहीं करता, मेरे नाग को दुहा हुआ ताजा दूध ही चाहिए।’’ और उसने तुरंत दरवाजा बंद कर लिया। उस दिन से एक गोशाला से दुहा हुआ दूध एक डिब्बे में सिर्फ उसके घर आने लगा।
कमिटी ने विमला राजे के ड्राइवर को कार पार्क के एक कोने में सोने की अनुमति नहीं दी थी, इसलिए उसने व्यंग्य से कहा, ‘‘बेचारा हमारा शरद यहाँ सोता तो क्या हो जाता? कहा गया कि बाहर का आदमी नहीं चाहिए। अब बाहरवाले दूधवाले को अंदर छोड़ रहे हैं, परवाह नहीं क्या?’’ मगर उस दूधवाले को रोकने की हिम्मत किसी में नहीं थी।
इस प्रकार उस अपार्टमेंट्स को एक तरह से दुष्ट शक्तिने मानो वश में कर लिया था; सभी का मन शंभु के और उसकी गतिविधियों पर चौबीसों घंटे घूमने लगा। उसके साथ लिफ्ट में जाने से भी लोग डरने लगे, मगर उसके बारे में कहानियाँ गढ़ने लगे।
‘‘शाम के वक्त उसके घर के दरवाजे के पास जाने से केवड़े की गंध आती है, यह तुम्हें पता है?’’
‘‘उस आदमी ने परसों हमारे चिंचु और पुट्टू को उसके घर के अंदर बुलाया और चॉकलेट देने की बात कही, मगर दोनों घर आ गए।’’
‘‘उस दिन लक्कव्वा ने फूलों को, जिन्हें उस आदमी ने बाहर फेंका था, झाड़ू लगाकर साफ किया था, मगर लक्कव्वा बीमार होकर बिस्तर पर पड़ी है।’’
‘‘उससे कहना चाहिए कि तुम छोटी लुँगी पहनकर मत घूमा करो, यहाँ सभी गृहस्थ लोग रहते हैं।’’
‘‘मगर कहनेवाला कौन है?’’
‘‘अपार्टमेंट्स कितना सुंदर था, मगर अब इसकी हालत कैसी हो गई?’’
‘‘जानते हो, रात के बारह बजे पूँगी नाद सुनाई पड़ता है, मैंने पहले सोचा कि किसी ने नागिन का कैसेट चालू किया है, बाद में पता चला कि...’’
शंभु के पड़ोसी सीताचंद्रन की बात ही कुछ और थी! बेचारा वह किंकर्तव्यविमूढ़ होकर तड़प रहा था, ‘‘मैं तो इस घर को बेचने के इरादे से एजेंट के पास गया। अब एजेंट मुझसे पूछता है, ‘उस घर को खरीदने के लिए कौन आएगा? आपके घर के बारे में सभी को पता चल गया है। चार-पाँच लाख में बेच दीजिए। कोई ऑफिस खोल देगा।’ इतना अच्छा घर और इतनी कम दाम में बेचूँ? यह झंझट कहाँ से मेरे गले में पड़ गया।’’
अपार्टमेंट्स में सभी परेशान थे। मगर शारदम्मा, जो शंभु के घर के नीचे रहती थी, निश्चिंत थी। वह अस्सी साल की थी। उसका पति नहीं था। बच्चे भी नहीं थे, इसलिए वह अकेली रहती थी। उस दिन सभी इकट्ठे हुए थे, शारदम्मा ने फटकारते हुए कहा, ‘‘वह क्या करेगा, वह तो अपना काम कर रहा है, किसी को परेशान नहीं कर रहा है। अच्छा भाड़ा दे रहा है। सुबह जाता है, शाम को घर आता है। आप क्या कह रहे है, जो हाथ में मोबाइल पकड़कर कार में घूमता है, उसका काम ही काम होता है? वही इज्जतदार आदमी है? देखिए, उस दिन बागबान नहीं आया, दो दिन तक पौधों को पानी देने के लिए कोई नहीं आया, सबने परेशानी व्यक्त की कि पौधे सूख रहे हैं, मगर किसी ने कुछ किया क्या? तब शंभु नीचे आया, पाइप को बगीचे के नल में लगाकर, आधे घंटे में ही सभी पौधों को पानी से सींचकर ऐसे चला गया, मानो कुछ हुआ ही नहीं, आप क्यों पागलों की तरह बातें करते हैं।’’
शारदम्मा के सामने सब चुप्पी साधे रहे, मगर उसकी पीठ पीछे कहने लगे, ‘‘यह बूढ़ी औरत पगला गई है। बूढ़ी को इस जमानेवालों के बारे में क्या पता है? किसी को कुछ हुआ तो बूढ़ी को क्या लेना-देना है?’’
उस दिन स्वर्ग अपार्टमेंट्स में छाई मुश्किलों के बारे में चर्चा करने के लिए विशेष मीटिंग बुलाई गई। शंभु खुद ही घर छोड़कर चला जाए, इसके लिए उसे तकलीफ देने के उपाय ढूँढ़े जाने लगे।
‘‘और क्या किया जा सकता है? केबल को काट डालना ज्यादा असरदार तो होता है। मगर उसके पास टी.वी. ही नहीं है, क्या फायदा?’’
‘‘पानी?’’
‘‘जी हाँ, पानी को बंद न किया जाए तो भी...पानी की धारा को तो स्लो कर सकते हैं न? इस हालात में वह शिकायत भी नहीं कर सकेगा। अगर शिकायत की भी तो कह सकते हैं कि सभी के घर की हालत यही है, दुरुस्त करा रहे हैं, बस।’’
‘‘ब्रिलियंट आइडिया, इट शुड वर्क।’’
दूसरे दिन अपार्टमेंट्सवालों ने एक अचरज की बात देखी। शंभु अपने दोनों हाथों में एक-एक प्लास्टिक का घड़ा पकडे़ था और धड़-धड़ आवाज के साथ तीन मंजिल से उतर आया, गार्डन में जो नल था, उससे पानी भरकर फिर चुपचाप ऊपर चढ़ गया। इस प्रकार वह पाँच-छह बार पानी ऊपर ले गया। पानी कम आया है या कम आ रहा है, इसके बारे में उसने मुँह तक नहीं खोला।
शंभु इसी प्रकार घड़ा छलकाते हुए सीढ़ी चढ़ रहा था, तभी दूसरी मंजिल में जो घर खाली था, खरीदने के लिए शू बेचनेवाला एक व्यापारी सामने आया। इसे देखकर उस व्यापारी ने बेचनेवालों से कहा, ‘‘इस अपार्टमेंट्स में पानी के लिए नीचे घड़ा लेकर जाना पड़ता है। मुझे तो ऐसा घर नही चाहिए।’’ और वह नाराजगी व्यक्त करते हुए चला गया।
‘‘देखिए, एक आदमी की वजह से इस प्रॉपर्टी की कीमत ही गिर रही है। हमें तो कुछ तो कुछ करना ही पड़ेगा। वकील राजण्णा को भी इस इमर्जेंसी मीटिंग में ले आया हूँ।’’ राधाकृष्णन ने कहा।
मेनन ने ऐसा मुँह बनाया कि सभी के षड्यंत्र का उसे पता है, कहा, ‘‘देखिए, यह सब इस अपार्टमेंट्स के मालिक का ही कारबार है। ऐसे आदमी को यहाँ पर लाकर रखा है और खुद अमरीका जाकर बैठ गया है। मगर अब अपार्टमेंट्स का इमेज खराब हुआ है और कीमत गिर रही है। वह छह महीने के बाद वापस आएगा और पूरे अपार्टमेंट्स को आधे दाम में खरीदकर इस सपेरा को धक्का देकर निकाल देगा।’’ मेनन की इस बात से सब परेशान हुए और सोचा कि यह बात हमें क्यों नहीं सूझी?
सभी की शिकायत सुनने के बाद वकील राजण्णा ने कह दिया, ‘‘आप कहते हैं कि इस आदमी के पास राशन कार्ड है, सब डाक्यूमेंट्स हैं, समय पर भाड़ा भी दे रहा है, अपना काम करके शांति से रहता है। हम उसे यह कहकर भगा नहीं सकते हैं कि वह एक अनोखा आदमी है।’’
‘‘कोई वजह ढूँढि़ए।’’ सभी ने आग्रह किया तो वकील ने कहा, ‘‘अगर वह किन्हीं रहस्यमय गतिविधियों में शामिल हुआ है तो या गुंडा हो तो या आतंकवादी हो तो...ऐसी शंका हो तो?’’
सभी के कान खड़े हो गए।
‘‘यस, आई विल वर्क आन दिस।’’ राधाकृष्णन ने टेबल पर मुक्का मारा, ‘‘केस को ठीक से रेडी करेंगे और सीधा पुलिस कमिश्नर के पास जाएँगे।’’
सभी के चेहरे पर चैन की छाया पसर गई।
‘स्वर्ग अपार्टमेंट्स’ के चार कमेटी मेंबरों ने पुलिस कमिश्नर से भेंट का समय लिया; मगर उसी दिन सबेरे एक विचित्र घटना घटी। सबेरे शंभु के घर के सामनेवालों ने अखबार और दूध को अंदर ले जाने के लिए जब दरवाजा खोला तो सपेरा के घर का खुला दरवाजा देखकर आश्चर्यचकित हुए। उन्होंने कुछ सोचा और दरवाजा बंद कर लिया। आठ बजे कामवाली आई, उस वक्त भी दरवाजा खुला ही था। पहले जब सपेरा अपने घर का दरवाजा खोलता तो सुराही, बिछाई हुई चटाई, भगवान् की एक-दो तसवीरें—सब दिखते थे, मगर अब सब चीजें गायब थीं। कामवाली को आगे करके कुछ कदम अंदर जाने पर पता चला कि घर खाली हो गया है। तुरंत इंटरकाम से सेक्यूरिटी और राधाकृष्णन को खबर दी गई। सब लोग भागे आए। कदम पर कदम रखते हुए सारे घर का चक्कर लगाया। घर शून्य लग रहा था, घर में मात्र अगरबत्ती की गंध फैली हुई थी, जो अनोखा था। कमरे के कोने में साँप की टोकरी, जो बंद करके रखी हुई थी, उसे देखकर सब डर गए। मगर उसे खोलकर देखने की हिम्मत किसी में नहीं थी। राधाकृष्णन भी टोकरी की ओर देख रहे थे। कहीं टोकरी हिल तो नहीं रही है, सभी ने उसे परखा। फिर धीरे से, खामोशी से, घर के बाहर आए, इशारा किया।
तुरंत दरवाजा बंद किया गया, घर से एक ताला लाकर लगा दिया गया। ताला खींचकर देखा गया कि चाबी लगी है कि नहीं! फिर चाबी को सेक्यूरिटी गार्ड को सौंप दिया गया।
‘‘अभी जाइए और किसी सपेरे को ले आइएगा, यह सब काम हमसे नहीं हो सकता है।’’ राधाकृष्णन की आवाज में भारीपन था।
(अनुवाद : डी.एन. श्रीनाथ)