संत की महिमा : ईरानी लोक-कथा
Sant Ki Mahima : Lok-Katha (Iran)
तुर्किस्तान और ईरान के बीच कई सालों से लड़ाई चलती चली आ रही थी। तुर्किस्तान को बार-बार हार का मुंह देखना पड़ रहा था।
किन्तु एक दिन संयोगवश ईरान के प्रसिद्ध सन्त पुरुष अत्तारी साहब तुर्कों के हाथ में पड़ गये। तुर्क तो ईरानियों से खार खाये हुए हो थे। इसलिए वे अत्तारी साहब को मार डालने के लिए तैयार हो गये।
ईरान के कुछ लोगों को इसका पता चला। इस पर एक भले धनवान पुरुष ने अत्तारी साहब के वजन के बराबर हीरे देने की तैयारी दिखाई और मांग की कि सन्त पुरुष को छोड़ दिया जाय, लेकिन तुर्क नहीं माने।
जब ईरान के बादशाह को इस बात की खबर लगी तो वे खुद तुर्किस्तान के सुलतान के सामने हाजिर हुए और बोले, “मेरे राज्य के लिए आपकी न जाने कितनी पीढ़ियां हमसे लड़ती आ रही हैं, फिर भी आप हमसे हमारा राज्य छीन नहीं सके हैं, लेकिन आज मैं आपसे यह कहने आया हूं कि आप हमसे राज्य ले लीजिए और हमारे अत्तारी साहब को हमें वापस सौंप दीजिये। धन नाशवान है, राज्य भी नाशवान है; किन्तु सन्त तो सदा अमर हैं। अत्तारी साहब को खोकर ईरान कलंकित नहीं होना चाहता।”