सन्त और सामन्त (अज्ञात) : कमलेश्वर

(यह एक आइरिश लोककथा है। कहा जाता है कि यह आदिम कथा (आयरलैण्ड के सभ्य होने के पहले चरण की) लातीनी से ली गयी है। समय लगभग 700 ई.।)

ओरघियाला देश में एक धनी सामन्त रहता था। उसका नाम डाइरी था। सन्त पैट्रिक ने उससे गिरजे और मठ के लिए थोड़ी जमीन माँगी। सामन्त ने कहा, “आपको कौन-सी जमीन पसन्द है?”

“वह पहाड़ीवाली जगह! वहीं मैं इमारत बनाऊँगा!” सन्त ने कहा। सामन्त वह पहाड़ी नहीं देना चाहता था। उसने पहाड़ी के नीचे वाली जमीन सन्त को दे दी, जहाँ अब ‘शहीदों का किला’ है, वहीं अर्दमाचा के पास। सन्त पैट्रिक वहीं अपने भक्तों के साथ रहने लगे। कुछ ही दिनों बाद सामन्त का नौकर वहाँ ‘ईसाइयों के चरागाह’ में घोड़े को चराने के लिए आया। अपनी जमीन में घोड़े को चरता देखकर सन्त को बुरा लगा। सन्त बोले, “जो जगह सामन्त ने भगवान के वास्ते दे दी है, वहाँ की शान्ति इस जानवर द्वारा भंग करके उसने अच्छा नहीं किया है।”

नौकर ने कुछ कान नहीं दिया, जैसे वह बहरा हो। नौकर ने मुँह नहीं खोला, जैसे वह गूँगा हो। वह घोड़े को वहीं रातभर चरने के लिए छोड़कर चला गया। सुबह वह लौटकर आया-अपने सामन्त का घोड़ा देखने के लिए। पर उसने देखा कि घोड़ा मरा हुआ पड़ा है। वह दुख मनाता हुआ वापस लौटा और सामन्त के सामने हाजिर होकर बोला, “हुजूर! उस ईसाई ने आपका घोड़ा मार डाला... घोड़ा वहाँ चरे, यह उसे बुरा लगा है।”

तब सामन्त डाइरी ने कहा, “उसने घोड़ा मार डाला, तो तुम जाकर उसे मार डालो... यही होना चाहिए।”

लेकिन उससे पहले कि सन्त पैट्रिक को मारनेवाला जाए, मौत ने आकर सामन्त डाइरी को ही दबोच लिया, क्योंकि मौत शब्दों से ज्यादा तेज चलती है। तब सामन्त की बीवी ने कहा, “यह उन ईसाई सन्त के कारण ही हुआ है! कोई जाए और उनसे हमारे लिए दुआएँ माँगकर लाए। तभी तुम मौत के चंगुल से बच पाओगे। जो उन्हें मारने के लिए गये हैं, उन्हें रोका जाए, और फौरन वापस बुलाया जाए।”

दो आदमी फौरन उन ईसाई सन्त के पास दौड़े। उन्होंने यह नहीं बताया कि सामन्त के महल में क्या घटित हुआ है, बल्कि कहा, “सुनिए सन्त! सामन्त डाइरी बीमार हैं। आप ऐसी कुछ दुआ दीजिए, जिसे हम उनके पास ले जाएँ और वह उठ खड़े हों!”

लेकिन सन्त पैट्रिक को सब पता था कि क्या घटित हो चुका है। वह बोले, “जरूर!” और उन्होंने जल में दुआएँ फूँकीं और वह पवित्र जल उन्हें दे दिया और कहा, “जाओ और घोड़े पर यह जल छिड़क दो... घोड़ा जीवित हो जाएगा। उसे तुम वापस महल में ले जाओ।”

उन्होंने वही किया। घोड़ा जी उठा। घोड़े को लेकर वे महल में पहुँचे। वहाँ पहुँचकर वही पवित्र जल उन्होंने सामन्त डाइरी पर भी छिड़का। वह भी मौत के चंगुल से छूट गया। तत्काल सामन्त डाइरी सन्त पैट्रिक को सम्मान देने के लिए चल पड़ा। साथ में पीतल का वह बड़ा देगचा लिये गया, जिसमें तीन ‘माप’ सामान आता था और जो विदेश से आया था। पहुँचकर सामन्त ने कहा, “सन्त! यह देगचा आपके लिए है!”

सन्त बोले, “हमारा धन्यवाद!”

महल में लौटकर सामन्त ने कहा, “यह सन्त महामूर्ख है। हमने तीन ‘माप’ वाला पीतल का देगचा दिया और वह पता नहीं क्या बोला... ‘हमारा धन्यवाद’... इसका क्या मतलब हुआ? दास लोगो, तुम जाओ और हमारा देगचा वापस ले आओ।”

नौकर सन्त के पास जाकर बोले, “हम इस देगचे को वापस ले जाएँगे।”

सन्त बोले, “हमारा धन्यवाद!”

जब नौकर देगचा लेकर पहुँचे, तो सामन्त ने पूछा, “तुमने जब देगचा वापस लिया, तो उस ईसाई ने क्या कहा?”

नौकर बोले, “हमारा धन्यवाद!”

सामन्त बोला, “लेते वक्त भी ‘हमारा धन्यवाद’, लौटाते वक्त भी ‘हमारा धन्यवाद’ - यह कहावत बढ़िया है, चलो! देगचा फिर ले चलो। हम भी बोलेंगे - ‘हमारा धन्यवाद!’ “

सामन्त देगचे समेत फिर वहाँ पहुँचा और बोला, “यह देगचा आपके पास ही रहेगा, क्योंकि आप निष्ठावान और संयमी हैं। इतना ही नहीं, मैं वह जमीन भी आपको देता हूँ, जो आपने पहले माँगी थी, पहाड़ी वाली जमीन। अब आप वहीं रहिए।”

और अब यही वह बस्ती है, जिसे अर्दमाचा के नाम से पुकारा जाता है।

सन्त पैट्रिक और सामन्त डाइरी - दोनों वहाँ पहाड़ी वाली जमीन पर साथ-साथ गये - उस जमीन को देखने, जो उपहार के रूप में और मित्रता की यादगार में दी गयी थी। वे पहाड़ी पर पहुँचे। वहाँ उन्हें एक स्थान पर एक हरिणी और उसका छोटा-सा छौना लेटे हुए दिखाई दिये। यही वह जगह है, जहाँ अब बायीं ओर अर्दमाचा बस्ती के गिरजे की वेदी बनी हुई है। सन्त पैट्रिक के साथी उस मृगछौने को पकड़कर मार देना चाहते थे। पर सन्त की मरजी नहीं थी। उन्होंने अपने साथियों को रोक दिया। इतना ही नहीं, सन्त ने छौने को उठाया और अपने कन्धे पर लाद लिया। वह हरिणी तब उनके पीछे भेड़ की तरह लगी रही-तब तक, जब तक कि सन्त ने अर्दमाचा के उत्तरवाले दूसरे मैदान में छौने को छोड़ नहीं दिया। लोगों का कहना है कि आज भी अर्दमाचा के उस उत्तर वाले मैदान में सन्त पैट्रिक की ईश्वरीय शक्ति का चमत्कार विद्यमान है... कोई चाहे, तो आज भी परख सकता है।

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