संगीत नाटक (रूसी कहानी) : अलेक्सी रेमीज़ोव

Sangeet Natak (Russian Story in Hindi) : Aleksey Remizov

यह ठंडा, धूल भरा प्रात:काल था।

काम कर रहा सिपाही जम्हाई लेते हुए रजिस्टर के पन्ने पलट रहा था । वह निद्रालु और चिड़चिड़ा मालूम पड़ रहा था।

टेलीफोन बिना रुके बज रहा था । इसके पास खड़ा सारजेंट बैठ गया और बोला, “आग से संबंधित कागजात कहाँ हैं? तमगों का इनाम... ..हाँ, तमगे...ऐ?"

भारी बोझ से लदा हुआ डाकिया अंदर आया और भूरे, छोटे, कटे बालोंवाले लिपिक ने डाक का निरीक्षण किया।

"यह पार्सल हमारे लिए नहीं है! " वह अस्पष्टता से नाक में बोला, “हमारे लिए नहीं ।"

"नवाब साहब!'' पिछले दरवाजे से आवाज आई — " इसके लिए यह तीसरा महीना है, थोड़ी दया दिखाओ।"

"क्या तुम स्नेगोव हो?" सारजेंट ने पूछा; जैसे वह टेलीफोन पर बोल रहा हो, “तो काउंसिल चैंबर में जाओ और वहाँ प्रतीक्षा करो - प्रतीक्षा करने से तुम्हारा कुछ घिस नहीं जाएगा।"

पिछले सेहन में किसी जगह माउथ ऑर्गन बजाया जा रहा था।

छकड़े के घोड़े लातें मार रहे थे और घड़घड़ाहट हो रही थी ।

भूरे बादल धीरे-धीरे सूर्य को ढक रहे थे; थोड़ी देर के लिए सुनहरे हो जाते और फिर उसी तरह भूरे होकर आगे को तैर जाते थे।

एक कलम चिल्लाई!

"जरा रुको, वह शीघ्र वहाँ आ जाएगा।" प्रार्थी को निरीक्षक के कमरे में भेजते हुए सिपाही ने कहा। विलंबित सेवा के लिए गिरजा के घंटे बज रहे थे और उनकी बद्धलय आवाज उदास कर रही थी ।

'यह जरूर कोई अंत्येष्टि होगी! ' स्लोकिन ने सोचा- 'नहीं तो वे कभी के बंद हो गए होते।' अपने प्रतिष्ठित मकान की सलाखें लगी खिड़की से दृष्टि हटाकर सारी दीवार पर तब तक वह देखता रहा, जब तक ‘कुसकोव जादूगर' लिखा हुआ नहीं आ गया। चलती-फिरती संगीत नाटक मंडली के खेल के बारे में लाल विज्ञापन को उसने पुनः पढ़ा।

घबराकर अपने आपको फैलाते हुए और कुछ करने के लिए न सोच सकने के कारण उसने कुत्ते की तरह जम्हाई ली।

टूटा-फूटा जीर्ण स्टूल आगे-पीछे झूल गया।

* * * * *

स्लोकिन को हर चीज शुरू से याद आ गई, न केवल कल की अभागी शाम, जो इस नीच ढंग से समाप्त हुई थी, बल्कि सेंट पीटर्सबर्ग में शुरू के वर्षों से लेकर उस समय तक, जब उसने इस शहर के दु:खी तुच्छ गृह में जीवन व्यतीत किया था, जहाँ दैत्य ने उसे भेजा था। इस प्रकार उसने प्रतीक्षा का लंबा समय व्यतीत किया था, तब तक, जब तक परीक्षक आकर यह फैसला न करता कि उसे जेल में उस स्टूल पर बैठे रहना होगा अथवा स्वतंत्रतापूर्वक दुःखी सड़कों पर घूमना पड़ेगा।

हर कोई स्लोकिन को जानता था । उसकी प्रसिद्धि एक अच्छे अध्यापक के रूप में थी और सारी माताओं का मान उसे प्राप्त था, क्योंकि जिन बच्चों को वह पढ़ाता था, वे बिना समय गँवाए अगली श्रेणी में चले जाते थे। उसके पूर्व जीवन को कोई नहीं जानता था, परंतु वे सभी उसके दुर्भाग्य का यदि अनुमोदन नहीं करते थे तो भी कुछ मात्रा में दयालु भाव से देखते थे - उसी प्रकार के भाव से जैसे बुरे मौसम में उसका एकमात्र ओवरकोट चोरी हो जाए; ऐसा प्रतीत होता था कि वह सदा बिना ओवरकोट के ही घूमता था । उसकी भीगी पतलून उससे चिपकी रहती थी। अच्छे मौसम में भी उसपर वर्षा विश्वस्त रूप में पड़ती थी।

वह पीड़ा पहुँचानेवाला नहीं था - किसी को भी दुःखी नहीं करता था; और फिर यह दुःखी संगीत नाटक ऐसे आया था जैसे आकाश से गिरा हो । ऐसे नगर में संगीत नाटक को छोड़ना, जिसमें तार- बाजा तक न हो, ऐसे लगता था जैसे बिना शहद चखे मधुमक्खी पालन किया जाए। कुछ संगीतप्रेमी मित्रों, जिनकी कमी नहीं थी, को स्लोकिन ने एकत्र किया और उनसे मिलकर बॉक्स लेने का प्रबंध कर लिया और समय से पहले ले लिया। वह उचित व्यवहार करने के लिए सहमत हो गए। वे गाने में शामिल नहीं होंगे, परस्पर बातें नहीं करेंगे और सबसे महत्त्वपूर्ण यह कि वे देर से नहीं पहुँचेंगे। संगीत नाटक देखने का ऐसा अवसर न जाने कब मिलेगा! परंतु इस अभागे व्यवहार में जरूर किसी दुष्ट फरिश्ते का हाथ होगा, नहीं तो उन घटनाओं की व्याख्या कौन कर सकता है जिनसे बचना ईश्वर का आशीर्वाद ही समझा जाएगा। स्लोकिन के साथ एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना घट गई । वह संगीत नाटक में देर से पहुँचा और जो कुछ बाद में घटा... । वास्तव में वह परीक्षक की प्रतीक्षा में बैठा रहा, जिसके फलस्वरूप यह सब हुआ।

परदा उठने से पहले वह थिएटर पहुँच गया था, परंतु ओवरकोट उतारने और बॉक्स ढूँढ़ने में लगनेवाले समय में संगीत नाटक आरंभ हो चुका था और बॉक्स को ताला लगाया जा चुका था । बाहर रहना असंभव था; इसमें उसका दोष नहीं था। उसके किसी शिष्य ने उसे रोक लिया था । उसकी घड़ी धीरे चल रही थी । स्लोकिन ने दरवाजा खटखटाया, परंतु कोई उत्तर नहीं मिला — इसलिए कि शुरू में यह उसी का प्रस्ताव था ।

संगीत नाटक अपनी पूरी बहार पर था । ओ देवता! उन्होंने कैसे गाया, जैसे वे विदेशी थिएटर में नहीं गाते। प्रचलित रीति से धुन को सुंदरता से बनाया गया था - ऐसा प्रतीत होता था कि संसार में उससे महान् धुन शायद नहीं थी और उसे सुनने के बराबर कुछ और अच्छा करने योग्य नहीं था।

स्लोकिन ने कुछ धुनों को सुना जिन्होंने उसे क्रुद्ध कर दिया और अपनी सारी शक्ति खोकर तथा परस्पर समझौते को भूलकर उसने उसी समय दरवाजे को अपनी सारी शक्ति से खटखटाया।

इसमें उसका दोष नहीं था । वह समय पर आ गया था, अनुचर ने उसका कोट लेने में काफी देर लगा दी थी और नजर कमजोर होने के कारण उसे बॉक्स ढूँढ़ने ने में समय लग गया था। उसने चौदह वर्षों से ऐनक लगा रखी थी और संगीत नाटक देखे हुए पाँच वर्ष बीत गए थे, जब से वह न चाहते हुए भी इस नगर में धकेल दिया गया था। वह काफी समय तक उस बिल में रहा। उसने दरवाजा खोलने की माँग की— उसको माँग करने का अधिकार था। मुझे अंदर आने दो। सुनते नहीं हो क्या? दरवाजा खोलो। यह बड़ी नीचता है ! समझ नहीं रहे हो? उसने आवाज से, हाथों और पैरों से याचना की, यहाँ तक कि अंदर आने के लिए बढ़ती हुई चीखें थिएटर के दूसरी तरफ सुनाई देने लगीं।

इतने में पुलिस निरीक्षक आ गया और दो अर्धसैनिक अपनी तलवारों को संभाले घटनास्थल की ओर बढ़े और एक ही आवाज से कारण भाँपते हुए, दोनों ने एक जैसे शब्दों में स्लोकिन से प्रार्थना की कि वह इस उत्पात को बंद कर दे। उनकी आवाज में नरमी के साथ स्थिरता थी ।

"सुनो, पुलिस अध्यक्ष, इस प्रकार निरादरपूर्ण व्यवहार मत करो।"

स्लोकिन ने कुछ नहीं सुना और त्योरी चढ़ाकर दरवाजा थपथपाता रहा । एकाएक पाँव पटकने की आवाज और शोर सुनाई दिया। निस्संदेह अंक समाप्त हो गया था । फिर झूलती हुई कोई वस्तु उसकी छाती पर आकर लगी । उसने महसूस किया कि उसे किसी चीज के अंदर धकेल दिया गया है । फिर उसको लगा कि वह हवा में उड़ रहा है; फिर किसी ने उसकी टाँग को पकड़ा और उसने उड़ना बंद कर दिया। दरवाजा खुला और उसे बाहर खींच लिया गया। वह कल देखेगा — प्रचलित रीति ने उसे थामा - - पुलिस अध्यक्ष... अव्यवस्था...

फिर उसी हाथ ने प्रशंसा के बहाने उसे इस तरह से पकड़ा, जैसे काँटे से मछली पकड़ते हैं; उसको ऊपर ऊँचा फेंका और विश्वस्त होकर कान में कहा, जैसे सपना देख रहा हो। गाड़ी झटके से आगे बढ़ी।

स्लोकिन को थाने ले जाया गया और रात भर के लिए उसे कुलीन कमरे में बंद कर दिया गया।

वह जीर्ण कुरसी पर बैठा झूलता रहा और समय की उड़ान पर ध्यान नहीं दिया, जो बहुत धीरे-धीरे चल रहा था जैसेकि वह प्राणहर समय नहीं आएगा जब सुपरिंटेंडेंट को आना था । " संभव है वह आए ही न! मान लो, वह आता ही नहीं!'' स्लोकिन ने अपने घुटने थामे, आँखें बंद कीं और सेंट पीटर्सबर्ग लौटने का भरसक प्रयास किया। उन दिनों को याद किया जब वह गर्व से चलता था, जहाँ हर एक उसकी आवाज सुनता था और संगीत नाटकों को देखता था—संगीत नाटक, जिसमें कालियायिन भाग लेता था— उसका स्वर भी अच्छा था, वह गा सकता था।

एकाएक दरवाजे की दूसरी ओर तथा बाहर सब शांत हो गया। गिरजा के घंटे बजने बंद हो गए थे, बादल अब चल-फिर नहीं रहे थे और अब आती हुई गाड़ी की आवाज सुनाई दे रही थी ।

स्लोकिन जल्दी से उठा, अपनी पतलून से हाथ साफ किए और कर्कश आवाज में बड़बड़ाया-

"श्रीमान्, मिस्टर सुपरिंटेंडेंट...!”

और ‘कुसकोव जादूगर' – प्रसन्न जादूगर दीवार से लुढ़क गया, खेल का लाल विज्ञापन खिड़की के रास्ते बाहर सड़क पर उड़ गया।

दरवाजे खोल दिए गए और स्लोकिन को छोड़ दिया गया।

यह तुम्हारे लिए संगीत नाटक था !

(अनुवाद : भद्रसैन पुरी)

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