संबंधों का अंत : सिक्किम की लोक-कथा

Sambandhon Ka Ant : Lok-Katha (Sikkim)

सिक्किम में बसनेवाली राई जाति में यह किंवदंती प्रचलित है कि प्राचीन समय में मानव और प्रेतों के मध्य अच्छे संबंध हुआ करते थे, परंतु एक घटना उनके मध्य ऐसी घटी, जिसने पूरी तरह से उनके संबंधों को विच्छेद कर दिया।

एक मानव को एक प्रेतात्मा से प्रेम हो गया। उनका वैवाहिक जीवन बहुत सुखद चल रहा था। जिंदगी उसी भाँति आगे बढ़ रही थी कि एक दिन उस मानव को अपनी पत्नी को छोड़ने उसके मायके जाना पड़ा। उसी समय जब वह ससुराल में था, एक रोज उन्हें शिकार के लिए अपने ससुरालवालों के साथ जंगल जाना पड़ा। शिकार पर जाते हुए वे अपने साथ एक कुत्ते को भी ले गए। जंगल पहुँचने पर एक स्थान विशेष को देखकर अपने दामाद को वहीं खड़ा कर वे शिकार के लिए आगे निकल गए। कुछ समय के बाद वे कुत्ते के साथ शिकार को भगाते हुए दामाद की तरफ आए। उनके आने से पूर्व एक छोटी सी चिड़िया होश उड़ी अवस्था में गिरते-पड़ते उसके सामने आई, जिसे उसने झपटकर पकड़ लिया और पटककर उसकी जान ले ली, तत्पश्चात् उस मरी चिड़िया के शरीर को अपनी जेब में डाल लिया। फिर किसी बड़े शिकार के आने की आस लगाए चौकन्ना होकर देखता रहा।

कुछ समय के बाद वहाँ शिकार तो नहीं, पर दौड़ते हुए ससुरालवाले और कुत्तों का आगमन हुआ। उन्होंने दामाद से पूछा कि यहाँ शिकार आया क्या? दामाद ने 'नहीं' कहकर सिर हिला दिया। अपने दामाद की बात सुनकर उन्हें बहुत ताज्जुब हुआ कि शिकार आखिर गया कहाँ? जबकि गया वह इसी दिशा में था! इतना कहकर वे सभी यहाँ-वहाँ खोजने लगे, जबकि ससुरालवालों के साथ आया कुत्ता यहाँ-वहाँ दामाद के इर्द-गिर्द चक्कर लगाता हुआ जोर-जोर से भौंकने लगा। कुत्ते की बारंबार इस हरकत से ससुरालवालों ने दामाद से कहा, "हे दामाद ! यह कुत्ता तो इसी बात का संकेत कर रहा है कि शिकार आप ही के पास है। इसलिए हमें पूरा यकीन है, शिकार आप ही के पास है।" अपने ससुरालवालों के मुँह से ऐसी बात सुनकर उसे बहुत क्रोध आया। उस छोटी सी चिड़िया को निकालकर दिखाते हुए कहा, "यह मरियल चिड़िया तुम्हारा शिकार है? तुम लोगों के लिए यह बड़ा शिकार होगा!" ऐसा कहते हुए उस चिड़िया को उनके समक्ष पटक दिया।

उस मरियल चिड़िया को देखते ही ससुरालवालों ने प्रसन्नता से कहा, "हाँ-हाँ, यही हमारा शिकार है।" कहते हुए प्रसन्न होकर वे सब नाचने लगे। इसके पश्चात् उन्होंने उस चिड़िया को एक डंडे से बाँधा, उसे अपने कंधे पर उठाया और गाँव की ओर चल पड़े। गाँव पहुँचकर उन्होंने मिलकर चिड़िया के पंखों को साफ किया। उसे टुकड़ों में काटा और सबके मध्य बाँट दिया। चिड़िया का सिर पंडित के लिए, उसकी दाईं जाँघ को गाँव के बुजुर्ग के लिए और बाईं जाँघ को अपनी बहन को भेंट स्वरूप दिया। चिड़िया के शरीर का विभाजन करने के पश्चात् दाईं जाँघ को लकड़ी में बाँधकर कुछ लोगों की सहायता से बेटी के यहाँ भेजा गया। उस छोटे से मांस के टुकड़े को इस तरह उठाए लोगों को देखकर मानव दामाद बहुत आश्चर्य में पड़ गया। उसने आधे रास्ते से गाँव के लोगों को वापस भेजा और उस चिड़िया की दाईं जाँघ को शाहबलूत के पत्ते में लपेटकर अपनी जेब में डाल लिया। घर पहुँचकर श्रीमान ने अपनी प्रेतात्मा पत्नी से कहा, "देखो, तुम्हारे घरवालों ने तुम्हें कितनी बड़ी सौगात भेजी है।" यह कहकर उसने शाहबलूत के पत्ते में लिपटी चिड़िया की दाईं जाँघ को नीचे पटक दिया, जो सीधे पत्नी की जाँघ में लगी, जिसकी पीड़ा से आहत होकर 'उई-उई-आई' करके प्रेतात्मा कराहने लगी, "आह, मेरी तो जाँघ ही टूट गई। अब तो मैं मर जाऊँगी।" दर्द से कराहती हुई प्रेतात्मा बिस्तर में धंस गई।

उस दिन के पश्चात् उससे उठा नहीं गया और वह बिस्तर में ही पड़ी रह गई। काफी समय से अपनी बेटी की कोई खोज-खबर न पाकर मायकेवाले अपनी बेटी को देखने उसके घर आए। जब उन्होंने अपनी बेटी की स्थिति देखी तो वे बड़े निराश हुए। उन्होंने उसका कारण पूछा और जब उन्हें उस घटना की जानकारी हुई तो वे अपने दामाद से बड़े रुष्ट हुए। दोनों तरफ से गहमा-गहमी बातचीत होने लगी। ससुरालवाले अपनी बेटी की तकलीफ में वे बड़े क्रोध में आ गए, इसलिए नाराजगी में उनके मुँह से जाने क्या-क्या निकल गया था। दोनों एक-दूसरे पर अनेक आक्षेप लगाने लगे। प्रेतात्माओं ने मानव दामाद से कहा, "तुम असल में राक्षस हो, जितना भी मांस खा लो, पेट नहीं भरता।" वहीं मानव ने प्रेतात्माओं से कहा, “तुम कैसे प्रेत हो, जिसे मक्खी के पाँव से मारने भर से तुम्हारे पाँव टूट जाते हैं; तुम ऐसा क्या खाते हो?" दोनों के बीच जो बातचीत हुई, उससे अंत में मानव को इतना क्रोध आया और वह इस नतीजे पर आया कि, “अब हम साथ नहीं रह सकते। हमारे-तुम्हारे बीच किसी तरह की कोई समानता नहीं है। जरा सी चोट में तुम्हारा पाँव टूट जाता है ! जीवों की आत्मा खाकर तुम्हारा पेट भर जाता है ! तुम कैसे मेरे साथ रह सकते हो? तुममें किसी भी प्रकार का संघर्ष करने का सामर्थ्य नहीं है ? हमारा और तुम्हारा किसी भी तरह का कोई मेल नहीं है, इसलिए आज से हमारे बीच किसी भी तरह का कोई संबंध नहीं रहेगा।"

मानव द्वारा गुस्से में इस तरह का जो निर्णय लिया गया, उसे दोनों ने सहज स्वीकार कर लिया। दोनों ने अपने मध्य अवाकाडो और शाहबलूत की पत्तियों का ढेर इकट्ठा करना शुरू किया। वे उसे तब तक इकट्ठा करते रहे जब तक रहे, जब तक दोनों एक-दूसरे की नजरों से ओझल नहीं हो गए। उस दिन की इस घटना के बाद मानव और प्रेतों के मध्य के सारे संबंध खत्म हो गए। आज जब भी राई पंडित मानव पर से प्रेतों के साये को दूर भगाते हैं, वे शाहबलूत और अवाकाडो की पत्तियों का इस्तेमाल करते हैं। प्रेत को मानव से दूर भगाने में यह पद्धति आज भी बहुत उपयोगी सिद्ध होती है।

(साभार : डॉ. चुकी भूटिया)

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