सालुक कुँवर : असमिया लोक-कथा

Saluk Kunwar : Lok-Katha (Assam)

असम में किसी समय में एक राजा रहा करता था। उसकी एक राजकुमारी थी, जो अत्यंत सुंदर थी और राजा अपनी पुत्री से अत्यधिक प्रेम करता था। उसने अपने सेवकों को आदेश दे रखा था कि राजकुमारी को प्रतिदिन फूलों से तौला जाए। इस काम के लिए मालिन फूल लाया करती थी। वह महल के बाग से रोज तरह-तरह के फूल चुन-चुनकर लाया करती थी। मालिन इस बात से बहुत खुश थी कि उसे राजकुमारी के लिए फूल लाने का मौका मिल रहा है।

राजमहल के बगीचे में एक सुंदर तालाब था। तालाब में रंग-बिरंगी मछलियाँ थीं। एक दिन मालिन जब अपने पति माली के साथ तालाब पर गई तो उसने उसमें सालुक के फूल उगे देखे। ये फूल बड़े-बड़े सफेद, गुलाबी और पीले रंग के थे। सालुक का फूल कमल के फूल की ही प्रजाति है, जिसमें खुशबू नहीं होती और इसकी सब्जी बनती है। उन फूलों में एक बहुत ही बड़ा फूल भी था, जिसकी सुंदरता से मालिन अभिभूत हो गई और उसने सोचा कि इस फूल को तोड़ लिया जाए तो इसकी बहुत ही स्वादिष्ट सब्जी बन सकती है। उसने उस फूल को तोड़ लिया। माली ने जब घर आकर अपनी कटारी से फूल को काटना चाहा, ताकि सब्जी बन सके तो उसमें से एक आवाज आई—

“आरे-आरे कटबे बे बूरा
हमा हेकी सालुक कुँवर गेनरू राजा।”

(मुझे मत काटो, मैं सालुक कुँवर हूँ और इस फूल के अंदर ही बैठा हुआ हूँ। मुझे काटना है तो किनारों से काटो, ताकि मैं बाहर आ सकूँ।)

आवाज सुनकर माली डर गया, पर मालिन ने बड़ी सावधानी से फूल की एक-एक पत्ती अलग करनी शुरू कर दी। पत्तियों के अलग होते ही उसमें से एक प्यारा सा सुंदर बालक बाहर निकला। निःसंतान माली व मालिन उसे ईश्वर का उपहार मानकर बेटे की तरह उसकी परवरिश करने लगे। समय बीतने के साथ सालुक कुँवर एक सुंदर नौजवान में बदल गया। उधर राजकुमारी भी एक सुंदर युवती बन चुकी थी। मालिन अभी भी राजकुमारी के तौलने के लिए महल में फूल लेकर जाती थी।

राजकुमारी की सुंदरता के बारे में सालुक जितना सुनता, उससे मिलने की चाह उसके अंदर उतनी बलवती होती जाती। एक बार जब मालिन ने फूल एकत्र किए तो सालुक ने बिना धागे की एक माला तैयार की और चुपचाप जूही के फूलों की वह माला उस ढेर में रख दी। मालिन क्रोधित हो उठी और उसने वह माला ले जाने से इनकार कर दिया तो सालुक ने उससे विनती कि वह इसे ले जाए।

राजकुमारी ने जब वह माला देखी तो पूछा कि यह कहाँ से आई है। मालिन को तो पता था कि उसके बेटे ने इसे रखा है, लेकिन राजकुमारी के पूछने पर वह डरकर राजकुमारी से माफी माँगने लगी, पर राजकुमारी तो माला देख बहुत खुश हो गई थी। जब उसे सच का पता चला तो उसने कहा कि वह सालुक कुँवर से मिलना चाहती है। सालुक कुँवर का रूप देख राजकुमारी समझ गई कि यह कोई साधारण इनसान नहीं है। उससे मिलने पर राजकुमारी को उससे प्यार हो गया और उन्होंने विवाह करने का निश्चय किया। उन्होंने गंधर्व विवाह कर लिया। इस समय किसी को बताना उचित न लगने के कारण उन दोनों ने अलग-अलग रहने का फैसला किया। सालुक कुँवर सबके सो जाने के बाद रात को मोर पर चढ़कर राजकुमारी से मिलने महल आने लगा। वह अपने मोर से कहता, “मेरे प्यारे मयूर, जल्दी से मुझे राजकुमारी के पास पहुँचा दे।”

सालुक की माँ उसे वहाँ आते न देख ले, इसलिए राजकुमारी कहती—

“ऊरू ऊरू बेसी मंजूसा
माये देखा पाबे गा।”

(ओ मोर, जल्दी से उड़कर आओ, ताकि माँ न देख पाए।)

राजमहल के बाहर हाथ में भाले लिये प्रहरी खड़े रहते थे। राजकुमारी गाना गाती—

“फिरा फिरा सोनया मोरा
बालामे भंसाबे गा।”

(मेरे प्यारे सालुक कुँवर, जल्दी आ जाओ वरना भालों से तुम्हें छलनी कर दिया जाएगा।)

इसी तरह वे काफी समय तक मिलते रहे, लेकिन एक दिन सालुक को प्रहरियों ने देख लिया और उसे भालों से बींध दिया गया। राजकुमारी की लाख कोशिशों के बावजूद वह बच न सका। तब राजा को पता चला कि वह उसकी लाडली बेटी का पति था। राजकुमारी के दुःख से व्यथित राजा ने सालुक की अंत्येष्टि का प्रबंध किया। लोग उसकी मृत देह को लेकर श्मशान की ओर जाने लगे। तभी वहाँ एक तोता उड़ता हुआ आया और उसने उसकी मृत देह पर भी अमृत जल छिड़क दिया। अमृत-जल के छींटे पड़ते ही सालुक जीवित हो उठा। राजा और राज कुमारी ही नहीं, बाकी लोगों की भी खुशी का ठिकाना न रहा।

राजा ने राजकुमारी का विवाह सालुक के साथ करने का अपना निर्णय जब मालिन को सुनाया तो वह फूली न समाई। परंपरानुसार उन्होंने चढ़ावे के लिए मछली, मिठाइयाँ, दही और पान-सुपारी ली। विवाह के दिन पुरोहित ने सालुक कुँवर और राजकुमारी के सिर पर आम के पत्ते से जल छिड़का। उनके माथे पर काला लेप लगाया गया। वर के शरीर पर चंदन का लेप किया गया और फिर उसे अँगूठी, कपड़े और दही उपहार स्वरूप दिए गए। फिर आम की लड़की की आग जलाई गई और सालुक कुँवर ने आग में चावल, घी और फूल समर्पित किए। पुजारी ने मंत्रों का उच्चारण किया और इस तरह उनका विवाह संपन्न हो गया।

विवाह के बाद राजा ने सालुक को दरबार में एक महत्त्वपूर्ण पद दे दिया। राजदरबार के कई लोग उससे द्वेष रखने लगे। एक माली के बेटे को अपने बराबर सम्मान पाते देख उन्हें बहुत बुरा लगा और वे उसके खिलाफ षड्यंत्र रचने लगे। एक दिन राजा ने अपने सारे संबंधियों को शिकार पर चलने के लिए कहा, पर सालुक कुँवर को यह सोचकर आमंत्रित नहीं किया कि वह तो शिकार करना जानता ही न होगा। राजदरबारियों ने भी राजा के कान भरे कि एक माली के बेटे में राजसी गुण कहाँ से आ सकते हैं। राजकुमारी व सालुक दोनों ही इस बात से बहुत आहत हुए, पर कुँवर ने राजकुमारी को समझाते हुए कहा, “परेशान मत हो। मैं ही सबसे ज्यादा शिकार करके लौटूँगा। राजा ने नहीं बुलाया तो क्या, शिकार पर तो मैं जा ही सकता हूँ।”

जो लोग सालुक को छोड़कर जंगल में चले गए। वे एक चिड़िया भी नहीं मार सके, लेकिन सालुक बहुत एकाग्रता से शिकार करने में जुट गया और उसने हिरणों का शिकार किया। वह ऐसा सबसे छिपकर कर रहा था। शिकार करने के बाद उसने एक साधु का वेष धारण किया और एक पेड़ के नीचे बैठ गया। राजा के कुछ संबंधियों ने जब एक साधु को तपस्या में लीन बैठे देखा तो वे उसके पास अपना भविष्य जानने की इच्छा से जुट गए। सालुक कुँवर ने उन सभी को एक-एक मृत हिरण दिया और साथ ही उन लोगों की पीठ पर गरम चिलम से एक निशान बना दिया। उसके बाद वह साधु का वेष त्याग अपने असली रूप में उनसे जा मिला। सभी उसे देख मुँह बनाने लगे, जैसे उसका आना उन्हें अखर रहा हो। कुछ देर बाद जब सब भोजन करने बैठे तो उन्होंने सालुक को पानी लेने भेजा। वह जिस तालाब से पानी लेने गया था, उस पर एक डायन का अधिकार था।

डायन ने उसे पकड़ लिया और यह जानने के बाद कि वह राजा का दामाद है, उससे बोली कि राजा अगर मुझे दस हजार मुद्राएँ देगा तो ही तुम्हें छोड़ूँगी। राजा तक जब यह खबर पहुँची तो उसने मना कर दिया, क्योंकि वह उसे पसंद नहीं करता था और चाहता था कि राजकुमारी की शादी किसी राजकुमार से हो जाए। सबको वापस महल में आया देख राजकुमारी ने सालुक कुँवर के बारे में पूछा—

“सुना सुना बाबा मोरा
सालुक कुँवर गेनरू राजा
रई किता दुर गा।”

(हे पिता, मेरा सालुक कुँवर कितना दूर है?)

तो राजा ने कहा—

“सुना सुना बेटी मोरा
सालुक कुँवर गेनरू राजा
जुया खेले पाशा खेले अरई बहुत दूर गा।”

(हे मेरी बेटी! वह तो मजे से बैठा जुआ खेल रहा है और अभी तो वह बहुत दूर है। उसे आने में समय लगेगा।)

राजा की बात सुन राजकुमारी को विश्वास नहीं हुआ, क्योंकि वह अपने पति को अच्छे से जानती थी। उसने अपने दो पालतू कुत्तों, छनौरा और भनौरा को सालुक की खबर लेने भेजा। सालुक की गंध से कुत्तों को उसके बारे में पता चल गया और तब उन्होंने उसे डायन की कैद से छुड़ाने के लिए एक धोबी से मदद माँगी।

धोबी ने एक बाँसुरी खरीदी और उसे बजाते-बजाते तालाब के आस-पास घूमने लगा। बाँसुरी की आवाज सुनकर डायन के बच्चे तालाब से बाहर निकल आए। धोबी बाँसुरी बजाता गया और बच्चे उसके पीछे-पीछे चलते जंगल तक आ गए। डायन उनके पीछे-पीछे गई, पर वापस लौटने की राह नहीं ढूँढ़ सकी और सालुक कुँवर मौका मिलते ही कुत्तों के साथ वापस महल में पहुँच गया।

राजकुमारी उसे देख बहुत खुश हो गई। सालुक ने सबको सच्चाई बताई। तब राजा को अहसास हुआ कि सालुक वास्तव में बहुत ही योग्य इनसान है। अपनी बात को सिद्ध करने के लिए उसने राजा को लोगों की पीठ पर पड़े निशानों को भी दिखाया और सब जान गए कि सारे शिकार उसने ही किए थे। राजा को अपनी भूल का अहसास हुआ और उसने उससे माफी माँगते हुए उसे अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया।

(साभार : सुमन वाजपेयी)

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