साहसी इबोहल : मणिपुरी लोक-कथा
Sahsi Ibohal : Manipuri Lok-Katha
काम्बीरेन गाँव का एक युवक इबोहल बहुत बहादुर था। पूरे गाँव में उसकी
बहादुरी की चर्चा होती थी। साथ ही वह बुद्धिमान भी था। गाँव की प्रत्येक समस्या का
हल उसके पास था।
इबोहल को नए-नए स्थानों पर घूमने का बेहद शौक था। वह प्राय: महीनों घर से
बाहर बिताता। एक बार वह घूमते-घूमते बहुत दुर नगर में पहुँचा। शाम का समय था किंतु
सारा बाजार बंद था। लोग मुँह लटकाए घूम रहे थे। तभी इबोहल की नजर एक सुंदर
लड़की पर पड़ी। वह छाती पीट-पीट कर रो रही थी। पूछने पर पता चला कि कल गूँगी
राजकुमारी उसके पति की बलि लेगी।
'कैसी बलि?' इबोहल सुनकर हैरान हुआ।
तब वह लडकी बोली, 'हमारी राजकुमारी बोल नहीं सकती। रोज
उसके कमरे में एक आदमी भेजते हैं ताकि वह उसकी बलि ले और ठीक
हो जाए।'
इबोहल ने ओझा का रूप धारण किया और जड़ी-बूटियों से भरा
थैला उठाकर महल की ओर चल दिया। उसने देखा कि बाग के हरे-भरे
पेड़ काले हुए पड़े थे। दीवारों पर कालिख की परत चढ़ी थी। चारों ओर
उदासी छाई थी। उसने महाराज से प्रार्थना की-
'क्या मैं आपकी पुत्री को ठीक करने का प्रयत्न करूँ?'
महाराज को तो मुँह माँगी मुराद मिल गई। इबोहल ने अपना
झोला सँभाला और राजकुमारी के महल में पहुँच गया। वहाँ चारों
दिशाओं से गंदी बदबू आ रही थी। ऐसा लग रहा था जैसे तालाब का
पानी सड़ गया हो।
पिंजरे में बैठे पक्षी भी राजकुमारी की बीमारी का मातम मना रहे
थे। इबोहल ने खुखरी निकालकर कपड़ों में छिपा ली।
राजकुमारी के काले लंबे बाल
खिड़की से नीचे लटक रहे थे। एक दासी उन्हें
समेट रही थी, किंतु वह फिर खुल जाते।
राजकुमारी षोड्षी ने उकताकर संकेत दिया-
'काट दो इन बालों को, मैं इनसे तंग आ गई।'
ज्यों ही इबोहल ने राजकुमारी के बाल काटे, एक चमत्कार हुआ। वे दोगुनी तेजी
से बढ़ने लगे। दासी तो भूत-भूत चिल्लाकर भागी। इबोहल ने अपने गुरुमंत्र का जाप
किया और फिर बालों पर प्रहार किया। इस बार कटे बाल नहीं बढ़े।
राजकुमारी उससे बहुत प्रभावित हुईं। उस रात राजकुमारी के कमरे में इबोहल
जागकर बैठा। बीमार राजकुमारी सो गई। आधी रात को जब चंद्रमा खिड़की के सामने
पहुँचा तो एक भयंकर नागिन राजकुमारी के मुँह से निकलकर इबोहल पर लपकी।
सावधान इबोहल ने बड़ी फुरती से उस पर प्रहार किया। कुछ देर की भीषण
लड़ाई के बाद जीत इबोहल की हुई। इसी शोरगुल में राजकुमारी की आँख खुल गई।
उसने नागिन का कटा शरीर देखा तो अचानक चीख पड़ी- 'बचाओ, नागिन हमें मार
देगी।'
आवाज सुनते ही इबोहल और वह स्वयं दोनों ही चौंक उठे। राजकुमारी मारे खुशी
के नाचने लगी। सारा राजमहल आधी रात को जाग गया। पेट में पल रही नागिन ने ही
राजकुमारी को गूँगा बना रखा था। वही रात को आदमी को डस लेती थी।
महाराज ने इबोहल को सीने से लगा लिया। सुबह इबोहल को ढेरों इनाम दिए गए।
बाग के वे पेड़, जो नागिन की फुंकार से काले पड़ गए थे, फिर से लहलहा उठे। तालाब
के पानी में कमल ही कमल खिल गए। जैसे राजमहल में जिंदगी लौट आई।
इबोहल ने पुरस्कारों को सँभाला और एक बार फिर अपने गाँव की राह ली।
(रचना भोला यामिनी)