सफेद फूल (जापानी कहानी) : यासुनारी कावाबाता (अनुवाद : सरिता शर्मा)

Safed Phool (Japanese Story in Hindi) : Yasunari Kawabata

सगे रिश्तेदारों के बीच कई पीढ़ियों तक शादियों का सिलसिला तब जाकर थमा जब लड़की के परिवार की धीरे-धीरे फेफड़ों की बीमारी से मृत्यु हो गई थी। उसके कंधे भी काफी छोटे थे। जब पुरुष उसे गले लगाते होंगे, तो शायद वे चौंक जाते होंगे।

एक बार एक दयालु औरत ने उसे बताया था, "शादी में इस बात का ध्यान रखना। जो पुरुष बहुत ताकतवर होगा, वह नहीं चलेगा। जो आदमी कमजोर दिखता हो, जिसे कोई रोग न हो और जिसका रंग गोरा हो, ठीक रहेगा... बस उसे कभी फेफड़ों की बीमारी न हुई हो। ऐसा आदमी जो हमेशा ठीक से बैठता हो, शराब नहीं पीता हो और बहुत मुस्कुराता हो।"

हालाँकि, लड़की को ताकतवर आदमी की मजबूत बाँहों के घेरे में कसे हुए उसकी पसलियों को चटकने देने के दिवास्वप्न देखकर मजा आता था। हालाँकि उसका चेहरा तनावमुक्त लगता था पर वह हताश महसूस करती थी। जब वह अपनी आँखें बंद करती थी, तो अपने शरीर को जीवन के सागर पर तैरते हुए देखा करती थी जिसे धारा जहाँ ले जाती थी, वहाँ बह जाता था। इससे वह खुद को प्रेमातुर महसूस करती थी।

उसके चचेरे भाई के पास से एक पत्र आया। "मेरे सीने में अंतिम समय में तकलीफ हो रही है। मैं केवल यह कह सकता हूँ कि मेरी होनी का समय, जिसके सामने मैंने हार मान ली है, आ गया है। मैं शांत हूँ। हालाँकि, एक बात चुभती है। मैं जब स्वस्थ था, तो मैंने तुमसे तुम्हारा चुंबन लेने की इजाजत क्यों नहीं माँगी? कृपया अपने होठों को इस रोगाणु से दूषित मत होने देना।"

वह अपने चचेरे भाई के घर के लिए निकली। जल्द ही उसे समुद्र के किनारे के बने स्वास्थ्यालय में भेज दिया गया था।

युवा डॉक्टर ने उसका इतना ध्यान रखा, मानो वही एकमात्र रोगी हो। वह हर दिन उसके कपड़े के लाउंज को पालने की तरह उठाकर अंतरीप के छोर तक ले जाता था। वहाँ, बाँस कुंज हमेशा सूरज की रोशनी में चमकते रहते थे।

सूर्योदय का समय था।

"वाह, तुम बिल्कुल ठीक हो गई हो - सच में, पूरी तरह से। मैंने इस दिन का कितनी बेसब्री से इंतजार किया है।" डॉक्टर ने उसे चट्टान पर रखे हुए लाउंज से उठाया। "तुम्हारे जीवन का उस सूरज की तरह नए सिरे से अभ्युदय हो रहा है। समुद्र में जहाज पर तुम्हारे लिए गुलाबी पाल क्यों नहीं लहराते हैं? मुझे उम्मीद है कि तुम मुझे माफ कर दोगी। मैंने इस दिन का दो दिलों से इंतजार किया है - एक डॉक्टर के रूप में जिसने तुम्हारा इलाज किया है और मेरे अपने अन्य स्वयं के रूप में भी। मैंने आज के लिए कितने लंबे समय से इंतजार किया है! यह कितना दर्दनाक रहा है कि मैं अपनी डॉक्टर की अंतरात्मा की आवाज को अनसुनी नहीं कर सका। तुम पूरी तरह से स्वस्थ हो। तुम इतनी स्वस्थ हो कि अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए अपने शरीर का उपयोग कर सकती हो... पूरा समुद्र हमारे लिए गुलाबी क्यों नहीं हो जाता?

लड़की ने डॉक्टर को कृतज्ञता से भरकर देखा। फिर उसने अपनी नजरें समुद्र की ओर घुमा लीं और इंतजार करने लगी।

लेकिन अचानक इस अहसास ने उसे चौंका दिया कि उसके मन में शुचिता का कोई महत्व नहीं था। उसने अपने बचपन से अपनी मौत को पहले से ही भाँप लिया था, इसलिए वह समय में विश्वास नहीं करती थी; वह समय की निरंतरता में विश्वास नहीं करती थी। और इसलिए पवित्र होना असंभव होता।

"मैंने कितनी ही बार तुम्हारे शरीर को भावुक होकर निहारा है। लेकिन मैंने तुम्हारे समूचे शरीर को तर्कसंगत तरीके से भी निहारा है। एक चिकित्सक के रूप में, मेरे लिए तुम्हारा शरीर एक प्रयोगशाला था।"

"क्या?"

"एक खूबसूरत प्रयोगशाला। अगर दवा देना मेरा पेशा नहीं होता, तो मेरी भावनाओं ने अब तक तुम्हें मार डाला होता।"

वह डॉक्टर के प्रति घृणा महसूस करने लगी। वह उसकी आँखों से बचने के लिए हटकर बैठ गई।

उसी अस्पताल में एक युवा मरीज ने उससे बात की, जो उपन्यासकार था। "हमें एक दूसरे को बधाई देनी चाहिए। हम दोनों एक ही दिन अस्पताल छोड़ देंगे।"

दोनों गेट के पास एक कार में बैठकर पाइन कुंज के बीच से कार चलाते हुए बाहर निकल गए।

उपन्यासकार ने अपने हाथ औरत के कंधों के इर्द-गिर्द रखने शुरू कर दिए। उसने खुद को उससे सटाना शुरू कर दिया, मानो वह उस हल्की सी चीज की तरह लुढ़क रही हो जिसके पास खुद को रोकने की ताकत बिल्कुल न हो।

दोनों घूमने के लिए गए।

"यह जीवन की गुलाबी भोर है - तुम्हारी सुबह और मेरी सुबह। इस दुनिया में एक ही समय में दो-दो सुबहें होना कितनी अजीब बात है। दो सुबहें एक हो जाएँगी। यह अच्छा है। मैं एक किताब लिख दूँगा जिसका शीर्षक दो सुबहें होगा।"

उसने खुशी से भरकर उपन्यासकार को देखा।

"इसे देखो। तुम्‍हारा यह स्कैच मैंने अस्‍पताल में बनाया था। भले हम मर जाएँ, मेरी किताब में हम जि़ंदा रहेंगे। लेकिन अब दो सुबहें हैं - उन विशेषताओं का पारदर्शी सौंदर्य जो विशेषताएँ हैं ही नहीं। तुममें सुगंध जैसा सौंदर्य है जिसे खुली आँखों से नहीं देखा जा सकता है, उस पराग की तरह जो वसंत में खेतों में खुशबू बिखेर देता है। मेरे उपन्‍यास को एक सुंदर आत्‍मा मिल गई है। उसे मैं कैसे लिखूँ? अपनी आत्‍मा को चमकते हुए हीरे की तरह मेरी हथेली पर रख दो जिससे मैं उसे देख सकूँ। मैं उसे शब्‍दों से आकार दूँगा...।"

"क्या?"

"इतनी खूबसूरत सामग्री के साथ - अगर मैं उपन्यासकार नहीं होता, तो मेरी भावनाएँ तुम्हें सुदूर भविष्य में नहीं रहने देतीं।"

उसके बाद वह उपन्यासकार के प्रति घृणा महसूस करने लगी। उसने उसकी टकटकी से बचने के लिए खुद को सीधा किया।

वह अपने कमरे में अकेली बैठी हुई थी। उसके चचेरे भाई की थोड़ी देर पहले मृत्यु हो गई थी।

"गुलाबी, गुलाबी।"

जब उसने अपनी सफेद त्वचा पर नजर डाली जो धीरे-धीरे पतली होती जा रही थी, तो उसने "गुलाबी" शब्द को याद किया और मुस्कुराई।

"अगर कोई आदमी मुझे एक शब्द से लुभाना चाहता है तो...," उसका मन इसके लिए हामी भरने का हुआ। और वह मुस्कुरा दी।

  • मुख्य पृष्ठ : यासुनारी कावाबाता जापानी कहानियां
  • जापान की कहानियां और लोक कथाएं
  • भारतीय भाषाओं तथा विदेशी भाषाओं की लोक कथाएं
  • मुख्य पृष्ठ : संपूर्ण हिंदी कहानियां, नाटक, उपन्यास और अन्य गद्य कृतियां