सफ़र (कहानी) : यशु जान

Safar (Hindi Story) : Yashu Jaan

एक बार मैं अपने काम से जालंधर से करतारपुर की तरफ़ जा रहा था पर अचानक सड़क पे लग हुई भीड़ देखकर रुक गया । मैंने अपना वाहन सड़क के एक छोर पर खड़ा किया और भीड़ में घुसकर देखा तो एक बुज़ुर्ग व्यक्ति जिसे काफी चोटें लगी हुईं थी दर्द से कराह रहा था और एक लड़की उस बुज़ुर्ग से माफ़ी मांग रही थी और सिर्फ यही कह रही थी कि उससे गलती हो गई उसने जानबूझकर टक्कर नहीं मारी और ये सुनकर वह बुज़ुर्ग व्यक्ति गुस्सा हो रहा था । सड़क के एक किनारे पर उसका टूटा हुआ साइकल पड़ा हुआ था ।मैंने जब उनसे जाकर पूछा कि माजरा क्या है तो उन्होंने बताया ( बुज़ुर्ग ने ) कि वह एक ग़रीब व्यक्ति है और उस अमुक लड़की ने उसे अपनी गाड़ी से टक्कर मार दी । वो लड़की बार-बार माफ़ी मांग रही थी वहाँ पे खड़े लोग उस लड़की को बड़े गुस्से से देख रहे थे उस लड़की के साथ एक और लड़की थी शायद उसकी बहन थी (मैंने पूछने का प्रयत्न नहीं किया ) वह अमुक लड़की भी यही कह रही थी कि उन्होंने जानबूझकर टक्कर नहीं मारी है अमुक व्यक्ति ( बुज़ुर्ग जिन्हें चोट लगी थी ) एकदम से गाड़ी के आगे आ गया था । मैं खड़ा देख रहा था और मैंने दोनों को समझाने की कोशिश की मगर वह बुज़ुर्ग व्यक्ति किसी की बात सुनने को तैयार नहीं था ।
इतने में एक भला व्यक्ति आगे आया और उसने उस बुज़ुर्ग व्यक्ति को समझाया कि देखिये ये दोनों आपकी बेटी की उम्र की हैं और ग़लती भी मान रहीं हैं और आपका इलाज भी करवाना चाहती हैं तो आप फिर किस बात पे अड़े हुए हैं । उन सज्जन पुरुष की बात सुनकर उनका ( बुज़ुर्ग व्यक्ति का ) गुस्सा कुछ शांत हुआ । और मैंने भी कहा कि अमुक लड़कियां भी डरी हुई हैं आप इन्हें माफ़ कीजिये और जाने दीजिये इतना सुनते ही उस सज्जन पुरुष ने अपनी जेब में हाथ डाला और दो सौ रूपए निकालकर उस बुज़ुर्ग व्यक्ति को दिए और ये कहा कि वह अपना इलाज करवा लें इन पैसों से और ये भी कहा कि वह उनकी साइकल भी ठीक करवा देगा ।मुझे देखने में वो सज्जन व्यक्ति कुछ ख़ास तो नहीं लग रहा था क्यूंकि उसकी वेशभूषा बहुत ख़राब थी मग़र बातों से और कर्म से वह व्यक्ति बहुत अच्छी और सच्ची नियत वाला लगा वरना आज के ज़माने में कौन इतना करता है । पैसे मिलने पर बुज़ुर्ग ने बताया कि उसे पैसों की ज़रुरत नहीं है वह तो इसलिए अड़ा था क्यूंकि टक्कर मारने के बाद वह लड़कियां भागना चाहतीं थी पर भीड़ ने उन्हें भागने नहीं दिया और उसका मकसद सिर्फ उन अमुक लड़कियों को सबक सिखाना था कि ग़लती करके ग़लती मानना और ग़लती करके भागना और फिर पकड़े जाने पर डर के मारे ग़लती मानने में बहुत अंतर है । बुज़ुर्ग कि यह बात सुनकर उन दोनों लड़कियों ने उस बुज़ुर्ग के पैर पकड़ लिए फिर उस बुज़ुर्ग व्यक्ति ने उन्हें माफ़ करते हुए कहा कि वह दोनों घर जाएँ उनके माँ-बाप उनका इंतज़ार कर रहे होंगे । उस सज्जन पुरुष ने ( जिन्होनें बुज़ुर्ग व्यक्ति को पैसे दिए थे ) भीड़ में खड़े लोगों को हाथ जोड़कर जाने के लिए कहा और उन दोनों लड़कियों ने हमारा धन्यवाद किया और चली गईं और वह बुज़ुर्ग व्यक्ति भी चले गए । मैंने उस सज्जन पुरुष का धंन्यवाद किया और अलविदा ली । मैं उस वक़्त एक बात जान गया था कि आज के ज़माने में आग लगाने वाले जितने मर्ज़ी इकठ्ठा हो जायें पर बात को सुलझाने वाला एक ही काफ़ी होता है और फिर मैं भी निकल पड़ा उस एक व्यक्ति की तलाश में जो मेरी समस्याओं को सुलझा सके उसी सज्जन पुरुष की तरह जिन्होनें उस घायल और बेसहारा बुज़ुर्ग की मदद की और सुलझाई समस्या ।

(आप बीती घटना)
   

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