सद्भाव (अंग्रेज़ी कहानी) : आर. के. नारायण
Sadbhav (English Story in Hindi) : R. K. Narayan
मद्रास-बंगलौर एक्सप्रेस कुछ ही मिनटों में रवाना हो रही थी। ट्रालियों और कंधों पर लदे बिस्तर और बक्से जबरदस्त भीड़भाड़ के बीच खड़खड़ाते चले जा रहे थे। फल और पान-बीड़ी वाले शोर मचाते चीजें बेच रहे थे। देर से आने वाले मुसाफिर धक्का-मुक्की करते पसीने में लथपथ डिब्बों में चढ़ने की कोशिश कर रहे थे। इंजन एक हलके सुर में बायलर की 'गूं" ध्वनि करता पटरी से गुजरा। पहली घंटी बजी, गार्ड ने घड़ी पर नजर डाली। राजम अय्यर तेजी से प्लेटफार्म पर आये, एक हाथ में छोटा-सा बिस्तर और दूसरे में टूटा-सा पीला सन्दूक लिये डिब्बों की ओर लपके। तीसरे दर्जे का पहला डिब्बा जैसे ही आँख के सामने आया, जरा-सा उसके भीतर झांका और चढ़ने की कोशिश करने लगे। भीतर ठसाठस लोग भरे थे, इसलिए खिड़की से ही सामान जबरदस्ती घुसेड़ा और उसी से खुद भी भीतर पहुँच गये।
गाड़ी चली और पंद्रह मिनट बाद धूप से घिरे मकानों और खेतों की तेजी से पीछे जाती झाँकियाँ खिड़की से दिखाई पड़ने लगीं। दूसरा स्टेशन मंदकम आया, जहाँ बहुत से लोग उतर गये। 'आठ सवारियों, चार ब्रिटिश सैनिकों और छह भारतीय सैनिकों के लिए निश्चित इस डिब्बे में अब सिर्फ नौ आदमी रह गये। राजम अय्यर को सीट मिल गई और वे एक दुबले-पतले, गरीब से दिखते एक मुसाफिर के सामने आ बैठे। उसने अपना कोट उतारा, उसे गोलाई में लपेटा और सिर के नीचे रख कर लेट गया। घुटने सिकोड़कर मुँह तक लाया और गेंद की तरह गुड़ी-मुड़ी होकर सोने की कोशिश करने लगा। राजम अय्यर ने उस पर प्यार और करुणा से भरी एक नजर डाली। फिर उसने अपना चश्मा जेब से निकाला और एक छोटी-सी किताब उसके सामने लाकर पढ़ने लगा-इसमें मोटे तमिल अक्षरों में 'संधि' के नियम और प्रक्रियाएं पढ़नी शुरू की-जिसका पाठ इस प्रदेश के ब्राह्मण दिन में तीन दफा अवश्य करते हैं।
वह पाठ करने में मशगूल था कि बगल से किसी मुसाफिर की, जो कटपड़ी स्टेशन से भीतर चढ़ा था, घुरघुराने की आवाजें उसे परेशान करने लगीं। यह आदमी बैठने की जगह तलाश रहा था और गरीब-से सोते हुए मुसाफिर को उठाने के लिए, तीसरे दर्जे का नियम लागू करने की-कि इसमें आदमी बैठने लायक जगह ही घेर सकता है-कोशिश कर रहा था। इस कमजोर मुसाफिर से ज्यादा-से-ज्यादा हासिल करने के लिए पहले उसने उसे धमकाया, फिर गाली देना शुरू किया और अब हाथ उठाने की तैयारी दिखाई।
राजम अय्यर ने चश्मा सरकर ध्यान से देखा। उसकी नजरें खतरनाक लग रही थीं। उसने किताब में ध्यान लगाने की कोशिश की, लेकिन सफल नहीं हुआ। नया मुसाफिर गुंडों वाली हरकतों पर उतरता लग रहा था।
राजम अय्यर ने मुँह खोला और जोर से पूछा, 'यह सब क्या है?'
'क्या है, का क्या मतलब?' उसने घुड़ककर राजम अय्यर की तरफ देखा।
'जरा धीरे बात करो," राजम अय्यर ने सख्त आवाज में कहा। वह आदमी चुप हो गया।
'भले आदमी, " राजम अय्यर ने समझाने के भाव से कहा, 'तुम्हारा यह ढंग सही नहीं है।'
आदमी चुप सुनता रहा। इससे राजम अय्यर को बढ़ावा मिला और उन्होंने नैतिकता की अपनी सीख को कुछ और पक्का करने की कोशिश की, 'नम्रता अच्छी बात है, कोशिश तो करो। यह तुम्हारा कर्तव्य भी है।' 'आप अपने काम से मतलब रखिये, 'नए मुसाफिर ने उत्तर दिया। 'अच्छा!' ऊपर-नीचे सिर हिलाते हुए राजम अय्यर ने कहा। मुसाफिर कुछ देर खड़ा सोचता रहा, फिर इस भाव से कि उसे एक सत्य का ज्ञान हो गया है, कहने लगा, 'आप मुझे ब्राह्मण लगते हैं। सुनिये, आप के दिन बीत चुके हैं। आप हम पर अब उस तरह अधिकार नहीं जमा सकते, जैसे पहले जमाते रहे हैं।'
राजम अय्यर जरा-से हँसे, फिर बोले, 'इसका तुम्हारे उस घटिया व्यवहार से क्या संबंध है, जो तुम इस आदमी से कर रहे हो?'
मुसाफिर बनावटी नम्रता से कहने लगा, 'तो, ब्राह्मण देवता, मैं तुम्हारे पैरों की धूल अपने माथे से लगाऊँ?" फिर वह गाने के सुर में कहने लगा, 'ब्राह्मण देवता! ब्राह्मण देवता!. आपके दिन अब खत्म हो चुके हैं, देवता जी ! अब आप हम पर हुक्म चलाना बंद कर दीजिए, देवता महाराज!'
'कौन किस पर हुक्म चला रहा है?' राजम अय्यर ने दार्शनिक-भाव से कहा।
इसके जवाब में मुसाफिर ने कुछ और ही बात कही : 'मटन के दाम अब बहुत ज्यादा बढ़ गये हैं। बिलकुल दुगने हो गये हैं।'
'अच्छा!" राजम अय्यर बोला।
'हाँ और क्यों हुआ है ऐसा?' मुसाफिर ने बात आगे बढ़ाई, 'क्योंकि अब ब्राह्मणों ने माँस खाना शुरू कर दिया है और छिपकर खरीदने के लिए वे जो चाहे देने को तैयार रहते हैं।' फिर दूसरे मुसाफिरों की ओर मुड़कर बोला, 'और हम गैरब्राह्मणों को भी यही कीमत देनी पड़ती है, हम छुपकर नहीं खरीदते, तब भी।
राजम अय्यर को यह कहावत याद आई कि कीचड़ में पत्थर फेंकने से गंदगी उसी पर आ गिरती है, और वे चुप रहकर आराम से बैठने के मूड में हुए।
लेकिन मुसाफिर बोलता रहा, 'पहले मीट की कीमत पाँच आने पौंड हुआ करती थी। मुझे खूब अच्छी तरह याद है। अब भाव बारह आने पौंड हो गया है। क्यों? क्योंकि ब्राह्मण लोग छुपकर खरीदने के लिए कोई भी दाम देने को तैयार हैं। मैंने अपनी आँखों से देखा है कि ब्राह्मण, पक्के ब्राह्मण, कंधे पर पवित्र जनेऊ डाले, तौलिया में लपेट कर मछली बगल में लिये चुपचाप चले जा रहे हैं। उनसे पूछिये कि इसमें क्या है, तो कहेंगे, केले हैं। मेरा ख्याल है कि केले में भी जान होती है। एक दफा मैंने एक आदमी की बगल में चुटकी ली तो बड़ी-सी मछली नीचे टपक पड़ी।' फिर राजम अय्यर की तरफ देखकर वह पूछने लगा, 'ब्राह्मण देवता! आज सवेरे क्या भोजन किया था ?'
'किसने ? मैंने?' राजम अय्यर ने पूछा, 'लेकिन तुम यह क्यों जानना चाहते हो ?'
अब मुसाफिर दूसरों की तरफ देख कर कहने लगा, 'क्या मैं किसी से यह नहीं पूछ सकता कि आज सवेरे क्या खाया है?'
'जरूर पूछ सकता है। तो सुनो, मैंने खाया है चावल, घी, दही, बैंगन का सूप और सेम की सब्जी।'
'यही खाया है, और कुछ भी नहीं?' मुसाफिर ने बड़े भोलेपन से कहा।
'हाँ और कितनी दफा तुम मुझसे यह बात पूछोगे?'
'बुरा मत मानिये, बुरा मत मानिये, 'मुसाफिर बोला।
'तुम्हारा ख्याल है कि मैं झूठ बोल रहा हूँ?" अब राजम अय्यर ने कुछ तल्खी से कहा।
'जी हाँ!" मुसाफिर ने जवाब दिया। 'आपकी सूची में कई चीजें छूट गई हैं! आज सवेरे मैंने आपको बगल में केला-जलकेला-दबाकर ले जाते हुए नहीं देखा? हो सकता है आप जैसी शक्ल का कोई और आदमी हो? मैंने ही पहचानने में गलती की हो। मेरी बीवी मछली का सूप बहुत ही बढ़िया बनाती है। आप जो दाल खाते हैं, उसमें और इस सूप में कोई अंतर नहीं होगा। अपनी बीवी को, या जिस आदमी को मैंने देखा, उसकी बीवी को, मेरी बीवी के पास भेज देना-वह भी इससे बढ़िया सूप बनाना सीख लेगी। मेरे घर में बना सूप सैकड़ों ब्राह्मण बड़े मजे से पी चुके हैं। मैं अगर गलत कहता होऊँ तो मुझे कोढ़ हो जाये।'
'तुम..., " राजम अय्यर ने दाँत पीसते हुए कहा, 'तुम सचमुच सड़े हुए कोढ़ी हो।'
'तुमने किसे कोढ़ी कहा?"
'मैंने तुम्हें सड़ा-गला कोढ़ी कहा।'
'सड़ा-गला!' फिर अपने सीने पर हाथ मारकर बोला, 'मैं सड़ा-गला!"
'तुम जानवर हो, आदमी नहीं हो," राजम अय्यर गुस्से से कहते रहे, 'तुम्हें पुलिस के हवाले कर देना चाहिए।'
'अच्छा!" मुसाफिर ने उत्तर दिया, 'जैसे मैं नहीं जानता कि पुलिस क्या होती है।'
'जरूर जानते हो तुम! क्योंकि अब तक तुम बहुत बार उसके चंगुल में फैंस चुके होगे। और इन गंदी हरकतों से और भी फैंसते रहोगे, सड़क के कुत्ते की तरह अगर तुम सड़क पर ही मर न गये तो यही होगा. तुम्हारा जैसा गंदा मुँह है, उससे तुम्हारा भविष्य यही होने वाला है', राजम अय्यर भभक कर कहते जा रहे थे।
'तुमने क्या कहा?'मुसाफिर उन्हें देखकर चिल्लाया, 'तुमने क्या कहा, शैतान, राक्षस!'
'चुप रहो!" राजम अय्यर गरजे।
'तुम चुप रहो!"
'पता है, तुम किससे बात कर रहे हो?'
'मुझे क्या पता यह सुअर की औलाद कौन है?'
'मैं तुम्हें जूतों से मारूंगा, ' राजम अय्यर ने धमकाया।
''मैं भी तुम्हारा भुरता बना दूंगा अपने जूतों से।
'मैं तुम्हें लातों से मारूंगा।'
'अच्छा!" मुसाफिर चीखा।
'आओ, देखते हैं।'
दोनों एक साथ उठ खड़े हुए।
अब दोनों एक-दूसरे के सामने डिब्बे के फर्श पर खड़े थे। राजम अय्यर को अचानक अपनी कमी का अनुभव हुआ। मुसाफिर पूरे नौ इंच उनसे कद में ऊँचा था। उसके सामने वे बहुत गट्टे और मोटे थे, ढीली धोती और हरा कोट पहने, जबकि सामने वाला ऊपर से नीचे तक खाकी सूट पहने था, भले ही वह काफी चीकट था। आँख के कोने से उन्होंने देखा कि दूसरे मुसाफिर चुपचाप तमाशा देख रहे हैं, उनमें से कोई भी बीच-बचाव के लिए तैयार नहीं है, वे देखना चाहते हैं कि इस मामले का फैसला क्या होता है।
मुसाफिर बोला, 'अब मुँह बंद किये क्यों खड़े हो, जैसे उसमें मिट्टी भर गई है।'
'चुप रहो," राजम अय्यर ने कुछ इस ढंग से उसे डपटा, जैसे उसकी लंबाई और शरीर से वे बिलकुल प्रभावित नहीं हैं।
'जनाब ने अभी कहा कि मुझे लातों से पीटेंगे, 'मुसाफिर इस तरह बोला, मानो इसके लिए वह अपने को पेश कर रहा हो।
'जरूर पीटूँगा, ' राजम अय्यर ने कहा।
'कोशिश कीजिए।'
'यह नहीं, मैं इससे भी ज्यादा कुछ करूंगा, ' राजम ने उत्तर दिया।
'ठीक है," यह कहकर मुसाफिर ने अपना सीना आगे बढ़ा दिया और बाँहों की आस्तीने ऊपर चढ़ा लीं।
राजम अय्यर ने भी अपना कोट उतारा और आस्तीने ऊपर चढ़ाई। उन्होंने अपने हाथ मले और अचानक जैसे हुक्म दिया, 'चुप खड़े हो जाओ।"
मुसाफिर चौंक कर उन्हें देखने लगा। उसकी समझ में नहीं आया कि क्या करे ! राजम अय्यर ने उसे सोचने का मौका भी नहीं दिया। उन्होंने जोर से अपनी दाहिनी बाँह घुमाई और थप्पड़ मारने के लिए हाथ बढ़ाया, लेकिन गाल पर लगने से पहले ही रोक लिया।
'कोई बात नहीं. मैं सोचता हूँ तुम्हें एक मौका और दिया जाना चाहिए।'
'कैसा मौका? 'मुसाफिर ने पूछा।
'मौका दिये बिना यह करना तुम्हारे साथ अन्याय होगा।'
' क्या करना ?'
'तुम वहीं खड़े रहो तो एक सेकिंड में यह हो जायेगा।'
'एक सेकिंड में? क्या करोगे तुम?'
'मैं कुछ खास नहीं करूंगा', राजम अय्यर जैसे मजा लेकर कहने लगे, 'कुछ भी खास नहीं करूंगा। मैं तुम्हारे दाहिने गाल पर चपत लगाऊँगा, उसी के साथ बायाँ कान खीचेंगा, और तुम्हारा मुँह, जो अभी तुम्हारी नाक के नीचे है, वहाँ से अलग होकर तुम्हारे बायें कान के नीचे आ जायेगा, और फिर वहीं बना रहेगा।... लेकिन तुम्हें दर्द बिलकुल नहीं होगा।'
'क्या कह रहे हो तुम?'
'और इस काम में इतना भी समय नहीं लगेगा, जितना 'श्री राम' कहने में लगता है।'
'मैं इस पर विश्वास नहीं करता, 'मुसाफिर बोला।
'ठीक है। मत करो विश्वास, 'राजम अय्यर ने लापरवाही से कहा, 'मैं यह तब तब नहीं करता, जब तक मैं विवश न हो जाऊँ।'
'तुम सोचते हो, मैं बच्चा हूँ?"
'मैं तो चाहता हूँ कि तुम मुझ पर विश्वास न करो। तुमने कभी जुजुत्सु का नाम सुना है? नहीं सुना। जुजुत्सु में यह एक बड़ी सीधी चाल है जिसे दक्षिण भारत में सिर्फ छह आदमी जानते हैं।'
'तुमने तो कहा था कि लातों से मारोगे!" मुसाफिर ने पूछा।
'यह उससे ज्यादा खतरनाक नहीं हैं?" यह कहकर राजम अय्यर ने उसके मुँह और बायें कान के बीच अपनी उँगली घुमाई और कहा, 'मैं मानता हूँ कि तुम्हारा चेहरा ठीक-ठाक और अच्छा गोल है लेकिन सोचो कि जब तुम कानों से लगा मुँह लेकर सड़कों पर चलोगे तो कैसे लगोगे.' यह कहकर उन्होंने इस तस्वीर को आगे बढ़ाया, 'मेरा ख्याल है, जालारपेट स्टेशन पर जब गाड़ी रुकेगी तो तुम्हारा चेहरा देखने के लिए खासी भीड़ जमा हो जायेगी...।"
मुसाफिर ने अपनी ठोड़ी पर हाथ फेरा और कुछ सोचने लगा। राजम अय्यर कहते रहे, 'मैंने तय किया कि यह मेरा कर्तव्य है कि तुम्हें आगाह कर दूँ। मैं तुम्हारी तरह बददिमाग और गुस्सैल नहीं हूँ। मुझे तुम्हारी बीवी और बच्चों की भी चिन्ता है। जब तुम अपना नया मुँह लेकर घर लौटोगे तब बच्चे अपने पापा को पहचान नहीं पायेंगे।. अच्छा, कितने बच्चे हैं तुम्हारे?'
'चार।'
'और सोचो,' राजम अय्यर कहते रहे, 'तुम्हें खाना भी बायें कान के नीचे से खाना पड़ेगा, और पानी पीने के लिए बीवी की मदद लेनी पड़ेगी। उसे तुम्हारे मुँह में ऊपर से पानी डालना पड़ेगा।'
'मैं डॉक्टर से इलाज करवा लूँगा, 'मुसाफिर ने सोचते हुए कहा। 'जरूर करवाना, ' राजम अय्यर ने खुलासा किया, 'और अगर कोई डॉक्टर तुम्हारा इलाज कर देगा तो मैं हजार रुपये दूँगा। यूरोप के डॉक्टर भी इसका इलाज नहीं कर सकते।'
मुसाफिर सिर झुकाकर सोच रहा था। अब राजम अय्यर ने चिल्लाकर कहा, 'तो तैयार हो जाओ। दाहिने गाल पर एक तमाचा... मैं तुम्हारा कान खींचेगा, और तुम्हारा मुँह...।"
मुसाफिर अचानक खिड़की की तरफ दौड़ा और सिर निकालकर बाहर देखने लगा। स्टेशन पास आ रहा था।
गाड़ी जैसे ही जालारपेट स्टेशन पर रुकी, मुसाफिर ने अपना थैला पकड़ा और बाहर कूद गया। वह तेजी से भाग रहा था और एक नारियलवाले और खिलौनेवाले से टकराते-टकराते बचा।
राजम अय्यर सोचने लगे, बाहर जाने की जरूरत नहीं है। खिड़की से बाहर झाँककर उन्होंने आवाज लगाई, 'अरे, सुनो...।"
मुसाफिर ने सिर घुमाकर देखा।
'वापस आओगे? तुम्हारे लिए सीट रखें?' राजम अय्यर ने पूछा।
'नहीं, मेरा टिकट जालारपेट तक का ही है," मुसाफिर ने जवाब दिया और पहले से ज्यादा तेजी से भागने लगा।
ट्रेन चलने लगी। जालारपेट पीछे रह गया। कमजोर मुसाफिर उसी तरह दबासिकुड़ा बैठा था। राजम अय्यर ने चश्मा उतारा और कहा, 'अब आराम से लेट जाओ।"
मुसाफिर पैर सीधे करने लगा। राजम अय्यर ने पूछा, 'तुमने सुना कि उसने अपना टिकट जालारपेट का ही बताया था ?'
'हाँ।'
'वह चौथे डिब्बे में जाकर बैठ गया है। मैंने उसे उसमें घुसते देखा, ' राजम अय्यर ने कहा, यद्यपि यह झूठ था। कमजोर मुसाफिर ने तो उनकी बात पर विश्वास कर लिया, लेकिन दूसरे मुसाफिर संदेह से उन्हें देखते रहे।