सदन के कूप में (व्यंग्य) : हरिशंकर परसाई
Sadan Ke Koop Mein (Hindi Satire) : Harishankar Parsai
अँगरेजी के अखबार में संसद के समाचार पड़ता हूँ, तो अकसर पढ़ने को मिलता है - सम मेम्बर्स एसेम्बल्ड इन द वैल ऑफ द हाउस । ब्रिटिश संसदीय भाषा में अध्यक्ष के आसन के सामने की जगह को 'बैल ऑफ द हाउस' कहते हैं । हमारे हिन्दी अनुवाद का हाल यह है कि हम अँगरेजी के मुहावरे के शब्दों का अनुवाद कर देते हैं । अँगरेजी में कहा जाता है- नऊ वी आर गोइंग टू बिगिन अवर प्रोग्राम । मैंने सुना है और पढ़ा है कि इसे हिन्दी में यों कहा-लिखा जाता है - अब हम हमारा कार्यक्रम आरम्भ करने जा रहे हैं। जा कहीं नहीं रहे हैं । अंगरेजी के 'गोइंग' का अर्थ वहाँ 'जाना' नहीं है। हिन्दी में होगा- अब हम हमारा कार्यक्रम आरम्भ करने वाले हैं । अंगरेजी में लिखा जाता है - डॉ० नामवर सिंह कम्स फॉम ए विलेज इन ईस्टर्न यू०पी०। मैंने विद्वानों द्वारा इसे ऐसा लिखा पढ़ा है - नामवर सिंह पूर्वी उ० प्र० के एक गाँव से आते हैं । क्या नामवर सिंह रोज गाँव से दिल्ली आते हैं ? असल में लिखना चाहिए - नामवर सिंह पूर्वी उत्तर प्रदेश के एक गाँव के हैं ।
हिन्दी अखबारों में 'वैल ऑफ द हाउस' का रूपान्तर किया जाता है 'अध्यक्ष की आसन्दी के सामने'। मेरा सुझाव है हमारी पद्धति के अनुसार इस जगह को 'सदन- कूप' कहना चाहिए। लिखना चाहिए- कुछ उत्तेजित सदस्य 'सदन- कूप' में कूद गये ।
मगर अंगरेजी - हिन्दी अनुवाद के विषय में नहीं लिख रहा हूँ । मैंने देखा है कि तीस-चालीस साल पहले कभी-कभी ही सदस्य सदन कूप में कूदते थे । अस देखता हूँ, दूसरे-तीसरे दिन सदन कूप में कूदने लगे हैं। यानी बहुत साहसी या दुस्साहसी हो गये हैं । अध्यक्ष काम रोको प्रस्ताव प्रस्ताव को मंजूरी नहीं दे रहे हैं, या कोई प्रश्न नहीं पूछने दे रहे हैं, तो उस पार्टी के सदस्य उठते हैं और शोर करते हुए सदन कूप में कूद जाते हैं। मैं नहीं जानता कि दुनिया की किसी संसद में अध्यक्ष के रूलिंग या निर्णय की इतनी अवहेलना होती है । हमारी राज्यसभा के अध्यक्ष डॉ० शंकरदयाल शर्मा ( अब महामहिम राष्ट्रपति) को एक बार रुलाकर हमारी संसद ने ऐतिहासिक उपलब्धि की । मैं नहीं जानता दुनिया की किसी संसद का अध्यक्ष रोया हो । मुख्यमन्त्रियों और मन्त्रियों के सदन में रोने की घटनाएँ हमारे देश में हुई हैं। एक राज्य के मुख्यमन्त्री पर आरोप लगाये गये कि वे अपने बेटों को भ्रष्टाचार करके धन जमा करने की छूट देते हैं । मुख्यमन्त्री जब तंग आ गये तो उन्होंने रोकर कहा- मैं भी बाप हूँ | कौन बाप है जो बेटों के भले के लिए नहीं करता ! सदन की सहानुभूति के साथ इस शालीनता से भ्रष्टाचार स्वीकार करने वाला प्रधानमन्त्री या मुख्यमन्त्री दुनिया में कहीं नहीं हुआ होगा। इससे अलग यह कि सिमरनजीत सिंह मान तलवार लेकर संसद में जाना चाहते हैं । यह महान भारतभूमि है । यहीं देवता अवतार लेते हैं और संसद या विधानसभा में बैठ जाते हैं। एक देवता पप्पू यादव को गिरफ्तार करने में बिहार सरकार को पसीना आ गया ।
संसद और विधानसभाओं की कार्यवाही की अराजकता, हंगामा की शिकायत आम तौर पर की जाती है। राज्यसभा की अखबारी रिपोर्ट में अकसर 'शॉउटिंग ब्रिगेड' का जिक्र होता है-चिल्लाने वाली ब्रिगेड ।
दो महीने पहले मध्यप्रदेश विधानसभा में एक काण्ड हो गया । एक सदस्य गोपाल भार्गव ने अन्य सदस्या कल्याणी पाण्डे का सदन में अपमान कर दिया । मेरा ख्याल है गोपाल भार्गव ने नासमझी में उस टिप्पणी को हल्का मजाक समझ लिया होगा, पर वे शब्द नारी सम्मान पर बहुत आघात करने वाले थे । यह भी ध्यान देने की बात है कि कैसे लोग विधानसभाओं में पहुँचने लगे हैं । स्त्रियों ने उन्हें धिक्कारते हुए मुख्यमन्त्री को चूड़ियाँ दीं कि पहन लो। इस पर कुछ महिलाओं का कहना है कि जवाब देने के लिए चूड़ी देना तो स्त्री की निर्बलता और हीनता की स्वीकारोक्ति है । कोई दूसरा तरीका अपमान का जवाब देने के लिए खोजना चाहिए। इसी विधान सभा में कई साल पहले एक सदस्य ने अध्यक्ष पर जूता फेंक दिया था। कुछ लोग मानते हैं कि विवाद का जवाब बुद्धि से नहीं जूते से देना चाहिए ।
घटनाएँ इस तरह की बहुत हो रही हैं। बिहार विधानसभा में राज्यपाल को अभिभाषण नहीं करने दिया । उन्हें सदस्यों ने घेर लिया और उनकी टोपी उछाल दी । महाराष्ट्र विधानसभा में शिवसेना के एक गिरोह ने अध्यक्ष को सदन में नहीं घुसने दिया ।
इन सब घटनाओं से मालूम होता है कि हमारे प्रतिनिधियों का मानसिक सन्तुलन खो गया है। उन्हें तर्क और विचार की शक्ति पर भरोसा नहीं रहा । कण्ठ-शक्ति, भुजा-शक्ति पर भरोसा आ गया है । शालीनता कम हो गई । तनाव अधिक है । असहनशीलता आ गई है। हो सकता है, पूरे समाज में जो...
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