सच्चा चोर : हरियाणवी लोक-कथा
Sachcha Chor : Lok-Katha (Haryana)
एक बाणिये का छोहरा चोरी बी करै अर जूआ बी खेल्लै । तो जिब उसका बाप्पू मरण लाग्या, तै उस बखत कहण लाग्या - बई पुत्तर, न्यूं काम कर । इक बात का नेम कर ले। ओ लड़का बोल्या, बाप्पू, चोरी छोड्डूं न जूआ छोड्डूं । तो बाप बोल्या, भई चोरी बी कर जूआ भी खेल। इस मोहल्ले मैं एक धरमात्मा सेठ सै। उसके दरसन के बिना रोट्टी ना खाइये बोल्या, यो नेम कर ल्यूंगा। बाप बोल्या, कर ले। ओ नेम कर लिया।
वो बाणिया तो गया गुजर अर वोह अपणा साँझ- सबेरे जावै, उसकै दरसन कर आवै, न्हा कै रोट्टी खा ले। एक दिन वोह सेठ बैठक मैं नहीं आया तो उसनै च्यार गेड़े कोई नी दीख्या । पाँचमैं गेड़े गया। राह में एक सुनार की दुकान थी। वो सुनार जा के कहण लाग्या - सेठजी, वोह बाणिए क चोर-बदमास सै नी, चार गेड़े कर लिए उसनै। अर योह आज किम्मै चुघड़ा चास्सैगा । तो बैठक मैं सेठ आया, अर वोह पांचमैं गेड़े में आया। आंदीए उसनै सेठ दीख्या। उसने तो दरसन करने थे। दरसन करकै वोह उलटा बाहवड्या बोहड दिऊ बोह (सेठ) कहण लाग्या - भई उरै आ । फेर कहण लाग्या छोहरा उरै आ फेर कहण लाग्या बाहवड़ कै आ । वा उसकै धोरै आया। सेठ कहण लाग्या सो-दो सौ रपईये लेणे हों तो ईब ले ले, अर सो रपईये तेरे हर महीने घरां भेज दिया करूँगा । लड़का बोल्या - सेठजी, मन्नै नी चाहंदा एक आन्ना । मन्नै तो मेरा बाप नेम दिवाकर गया था। इसके दरसन करकै रोट्टी खाइए। मन्नै वोह नेम पुगाया सै। आज पाँचमैं गेड़े आया सूँ। सेठ बोल्या, तेरा नेम तेरे बाप ने दिवाया। छोहरा बोल्या, हाँ। तो सेठ बोल्या - एक नेम मैं दिवाऊँगा, मेरला करले । लड़का बोल्या, देखले सेठ जी, चोरी, जूआ तो छोडूनींगा। सेठ बोल्या, यह बी कर ल्यूँगा । तो आणकै नै उसनै के काम कर्या ।
योह नेम करकै नै अपणे हथियार- उजार पिना कै धर लिए अर सोच्या आज चोरी करणी राज्जाकै । ओह ताले काट्टण के उजार राख्या करदा। रात के ग्यारा बजे उस बखत ठा कै उजार वो चाल्या । अर वो राज्जा न्यूं तै गस्त मैं आवे अर वो परै तैं राजा कान्हीं आवै । राज्जा नै साह्मणै दीख्या । दीखदी कहण लाग्या, कूण भाई। लड़का बोल्या - चोर राज्जा नै सोच्ची, चोर न्यूं कह्या करै अक् मैं चोर सूं । फेर लवै सी आग्या । बोल्या - भाई, तै कौण सै? लड़का बोल्या - मैं तन्नै बता दी, 'चोर'। कहंदा - कहंदा धेरै आग्या । राज्जा बोल्या (तीसरा बचन से) कौण से तैं। लड़का बोल्या - मैं तन्नै कह दी चोर सूँ। चोर सै? बोल्या, 'हाँ'। चोरी किस कै करेगा ? लड़का बोल्या- - राज्जा के करूँगा। राज्जा कहण लाग्या तो भाई न्यूं काम कर । राजा के खजाने का मन्नै बेरा से। तैं मन्नै सीरी रला ले। वोह् बोल्या रल जा अर चाल । ईब राज्जा आग्गै आग्गै हो लिया अर बाणियै का गैल हो लिया, अर जा कै नै जड़ै खजान्नै का ताला लाग्या था । ओह बता दिया के भाई इसके भीतर खजान्ना सै अर ताला लाग्या था। देख ले ईब । ओह उजार तै ताला काट के भीतर बड्या । एक थैली काढ के ल्याया । हजार रपईया था। जिद राज्जा कहण लाग्या 'बस'। ओह बोल्या, मन्नै एक्कैई चाहिए सै। ज्यादा चावैगी तो होर ले ज्यांगा फेर। अर भाई तन्नै सो 'चहन्दी हों तो लेल्ले। तो राज्जा बोल्या, मैं सोआं का के करूँगा, एक मन्नै ल्यादे एक राज्जा नै ल्याकै देद्दी । राज्जा नै अपणी कचहरी मैं धर ली, अर वो अपणी कांद्धे धर कै घरां लेग्या घरां ल्या कै नै अपणे सोग्या ।
तड़के ने दिन लिकड़या राज्जा खजांची नै कहण लाग्या भई खजान्ना सँभालो। खजांची गया। जै देखे दो थैल्ली कोन्नी । दस थैल्ली ठाके आपके घरां टिकाग्या। खजांची कहण लाग्या, जी बारा थैली गई। राज्जा नै मन मैं कही, सारी रात काली करी, दो थैल्ली गई, अर इसने दस पै हाथ साफ कर दिया। कहण लाग्या भई न्यूं काम कर, मुनादी करा दे सहर म्हें सारे में। सारे सहर में मुनादी करवा दी अक् रात आला चोर से ओह् राज्जा कै पेस हो ज्याओ। उसकी कोए कैद नहीं, अर उसकी कोए जेल नी। मुनादी करणिया मुनादी करदा- करदा सहर में को आया अर जद बणिए कै नै सुणी वो ठाके थैल्ली गेर कंधे अर राज्जा की कचहरी में ल्या के पटकी गद्द देसी।
जिद ओह राजा कहण लाग्या क्यूँ भई रात आला चोर तैं सै? लड़का बोल्या, हाँ मैं सूँ। राज्य बोल्ला, तैं मन्नै न्यूं बता चोर, न्यूं बी कहे करै मैं चोर सूं । लड़का बोल्या, मेरा बाप तो नेम दिवाग्या था अक् उस सेठ के दरसन करकै रोट्टी खाइए। अर ऊँह सेठ नै नेम दिवाला सै तैं झूठ नहीं बोलिए। मैं झूठ तो नहीं बोल्या । राज्जा बोल्या, अच्छा मुनीम वै दस थैल्ली ल्या भई । ईब मुनीम नै ल्याणी पड़ी दस थैल्ली। दस थैल्ली तो वोह अर दो थैल्ली वह । बारा थैल्ली धरी राज्जा कहण लाग्या - ले भाई, लड़का बारा थैल्ली तो ये लेज्या, अर सौ रपईये म्हीने की म्हीने घर पहुँचा दिया करूँगा । लड़का कहण लाग्या बारा की बी जरूरत नी । मन्नै अर को सो की जरूरत नी । मैं कोए जुआ खेल्लू ना चोरी करूँ। उठकै अपणे घरां आग्या। भाई कोए जूआ खेल्या ना कोए चोरी की। सभ किम्मै छोड़ दिया। भले के दरसन हो ज्यां तो भलाई सीक्खै, अर बुरै के दरसन हों ज्या तो बुराई सीक्खै।
(विजय दत्त शर्मा)